पंकज सुबीर की वेब साईट सुबीर संवाद सेवा को देखते हुए एक उनकी अपील देखी जिसमे पूरे सप्ताह राकेश खंडेलवाल की ही चर्चा करने की इच्छा प्रकट की गयी थी ! साधारणतया ऐसी इच्छा, आज के युग में, जहाँ प्रकाशक- लेखक के मध्य तल्खियत की कहानिया रोज ही सुनी जायें, अचंभित करने वाली ही लगती है ! मुझे इसी वेबसाइट से पता चला कि राकेश खंडेलवाल के गीतों का संकलन (अँधेरी रात का सूरज) प्रकाशित करने की इच्छा ख़ुद पंकज सुबीर की ही है, और यह संकलन ख़ुद पंकज जी ने ही किया है ! पंकज सुबीर ख़ुद कवियों को गीत और ग़ज़लें सिखाने वाली कक्षाओं का संचालन करते हैं और यह, मेरी जानकारी अनुसार देश में इस प्रकार का पहला प्रयोग है ! निस्संदेह पंकज देश में लेखन को बढावा देने हेतु, एक प्रसंशनीय योगदान दे रहें हैं ! इस वेब साईट को पढ़ते पढ़ते यह इच्छा बलवती होती चली गयी कि राकेश खंडेलवाल जैसी सशक्त लेखनी के ऊपर मैं भी, अपने टूटे फूटे शब्दों में कुछ लिखने का प्रयत्न करुँ !
अमेरिका में निवास कर रहे राकेश, अपने देश से दूर रह कर अपनी संस्कृति के राजदूत हैं , उनके हर गीत से हमारे देश की विनम्रता, विविधिता और सौम्यता नज़र आती है ! अपने पाठकों से आशीर्वाद लेते राकेश की विनम्र अभिव्यक्ति की एक झलक देखिये ....
"एक आशीष जो शारदा ने दिया,
वह भरे जा रहा शब्द से आंजुरि
आपके पांव पर वह चढ़ाता हूँ मैं,
होके करबद्ध करता नमन आपको
आपके शब्द देते रहें प्रेरणा,
कामना पुष्प सी मुस्कुराने लगी !
आपके स्नेह से जो सजी है मेरी,
भेंट करता वही अंजुमन आपको"
आत्ममंथन के कारण,उपजे नैराश्य भाव के साथ साथ ईमानदारी, इस मासूम गीतकार के ईमानदार दिल की एक तस्वीर पेश करता है......
"जीवन के हर समीकरण का कोई सूत्र अधूरा निकला
इसीलिए तो कभी किसी से सामंजस्य नहीं हो पाया"
पहली बार इस महान गीतकार की रचनाएं पढ़कर मेरी पहली प्रतिक्रिया (७ जून ०८ ) इस प्रकार थी ॥"आपकी शैली तथा आपकी ईमानदारी बहुत पसंद आई ! निस्संदेह आप एक शानदार इंसान भी होंगे ! और आपके गीत , वाकई मज़ा आ गया आपके गीतों को पढ़कर ! संकलित करने के योग्य हैं , आशा है आज की बनावटी दुनिया को आप यह निश्छल, सोम्य गीतसृजन लगातार देते रहेंगे !"
इसका जवाब राकेश जी ने इस गीत से दिया ....
"आपकी यों ही शुभकामनायें मिलें लेखनी शब्द तब ही चितेरा करे
मेरी मावस सी एकाकियत में सदा आपका नेह आकर सवेरा करे..."
राकेश खंडेलवाल ने मेरी पोस्ट " अम्मा ! " पर माँ स्तुति में टिप्पणी देकर मेरी उक्त रचना का सौन्दर्य कई गुना बढ़ा दिया !
"कोश के शब्द सारे विफ़ल हो गये, भावनाओं को अभिव्यक्तियां दे सकें
शब्द तुमसे मिले, भावना कंठ सब इक तुम्हारी कॄपा से मिला है हमें
ज़िन्दगी की प्रणेता दिशादायिनी, पूर्ण अस्तित्व का तुम ही आधार हो
इतनी क्षमता महज हमको मिल न सकी, अर्चना जो तुम्हारी सफ़ल कर सकें"
मेरी एक अन्य रचना पर "वे नफरत बांटें इस जग में हम प्यार लुटाने बैठे हैं "......राकेश जी की गीतमयी प्रतिक्रिया देख मैं भौचक्का रह गया, लगा कि इन खुबसूरत पंक्तियों के बिना वह गीत ही अपूर्ण था जिसे राकेश जी ने आकर पूरा किया ! मेरी प्रतिक्रिया इस तरह थी "॥
अरे वाह, राकेश जी !
मैं बड़ा खुशकिस्मत हूँ कि आप इस गरीबखाने में आए ! सच बताऊँ ! आपके आते ही गीतों के स्वर में झंकार आ जाती हैं ! आपने न केवल इस गीत के मर्म को पढ़ लिया बल्कि सम्पूर्णता भी दी,....."
"जब भी कुछ फ़ूटा अधरों से
तब तब ही उंगली उठी यहाँ
जो भाव शब्द के परे रहे वे
कभी किसी को दिखे कहाँ
यह वाद नहीं प्रतिवाद नहीं
मन की उठती धारायें हैं !
ले जाये नाव दूसरे तट, हम पाल चढ़ाये बैठे हैं !"
राकेश खंडेलवाल जैसा शब्द सामर्थ्य से धनी गीतकार विरले ही जन्मते हैं, अपनी अभिव्यक्तियों को शब्दों के मोतियों से सजाने व श्रृंगार करने की जो विधा राकेश जी के पास है, अन्यंत्र नही दिखाई देती ! और राकेश जी के व्यक्तित्व की सबसे बेहतरीन खासियत है उनका विनम्र स्वभाव, लगता ही नही कि यही व्यक्ति,काव्यपुरुष राकेश खंडेलवाल हैं !हम उम्मीद करते हैं कि राकेश बरसों तक हिन्दी भाषा को सशक्त आधार प्रदान करते रहेंगे !
अमेरिका में निवास कर रहे राकेश, अपने देश से दूर रह कर अपनी संस्कृति के राजदूत हैं , उनके हर गीत से हमारे देश की विनम्रता, विविधिता और सौम्यता नज़र आती है ! अपने पाठकों से आशीर्वाद लेते राकेश की विनम्र अभिव्यक्ति की एक झलक देखिये ....
"एक आशीष जो शारदा ने दिया,
वह भरे जा रहा शब्द से आंजुरि
आपके पांव पर वह चढ़ाता हूँ मैं,
होके करबद्ध करता नमन आपको
आपके शब्द देते रहें प्रेरणा,
कामना पुष्प सी मुस्कुराने लगी !
आपके स्नेह से जो सजी है मेरी,
भेंट करता वही अंजुमन आपको"
आत्ममंथन के कारण,उपजे नैराश्य भाव के साथ साथ ईमानदारी, इस मासूम गीतकार के ईमानदार दिल की एक तस्वीर पेश करता है......
"जीवन के हर समीकरण का कोई सूत्र अधूरा निकला
इसीलिए तो कभी किसी से सामंजस्य नहीं हो पाया"
पहली बार इस महान गीतकार की रचनाएं पढ़कर मेरी पहली प्रतिक्रिया (७ जून ०८ ) इस प्रकार थी ॥"आपकी शैली तथा आपकी ईमानदारी बहुत पसंद आई ! निस्संदेह आप एक शानदार इंसान भी होंगे ! और आपके गीत , वाकई मज़ा आ गया आपके गीतों को पढ़कर ! संकलित करने के योग्य हैं , आशा है आज की बनावटी दुनिया को आप यह निश्छल, सोम्य गीतसृजन लगातार देते रहेंगे !"
इसका जवाब राकेश जी ने इस गीत से दिया ....
"आपकी यों ही शुभकामनायें मिलें लेखनी शब्द तब ही चितेरा करे
मेरी मावस सी एकाकियत में सदा आपका नेह आकर सवेरा करे..."
राकेश खंडेलवाल ने मेरी पोस्ट " अम्मा ! " पर माँ स्तुति में टिप्पणी देकर मेरी उक्त रचना का सौन्दर्य कई गुना बढ़ा दिया !
"कोश के शब्द सारे विफ़ल हो गये, भावनाओं को अभिव्यक्तियां दे सकें
शब्द तुमसे मिले, भावना कंठ सब इक तुम्हारी कॄपा से मिला है हमें
ज़िन्दगी की प्रणेता दिशादायिनी, पूर्ण अस्तित्व का तुम ही आधार हो
इतनी क्षमता महज हमको मिल न सकी, अर्चना जो तुम्हारी सफ़ल कर सकें"
मेरी एक अन्य रचना पर "वे नफरत बांटें इस जग में हम प्यार लुटाने बैठे हैं "......राकेश जी की गीतमयी प्रतिक्रिया देख मैं भौचक्का रह गया, लगा कि इन खुबसूरत पंक्तियों के बिना वह गीत ही अपूर्ण था जिसे राकेश जी ने आकर पूरा किया ! मेरी प्रतिक्रिया इस तरह थी "॥
अरे वाह, राकेश जी !
मैं बड़ा खुशकिस्मत हूँ कि आप इस गरीबखाने में आए ! सच बताऊँ ! आपके आते ही गीतों के स्वर में झंकार आ जाती हैं ! आपने न केवल इस गीत के मर्म को पढ़ लिया बल्कि सम्पूर्णता भी दी,....."
"जब भी कुछ फ़ूटा अधरों से
तब तब ही उंगली उठी यहाँ
जो भाव शब्द के परे रहे वे
कभी किसी को दिखे कहाँ
यह वाद नहीं प्रतिवाद नहीं
मन की उठती धारायें हैं !
ले जाये नाव दूसरे तट, हम पाल चढ़ाये बैठे हैं !"
राकेश खंडेलवाल जैसा शब्द सामर्थ्य से धनी गीतकार विरले ही जन्मते हैं, अपनी अभिव्यक्तियों को शब्दों के मोतियों से सजाने व श्रृंगार करने की जो विधा राकेश जी के पास है, अन्यंत्र नही दिखाई देती ! और राकेश जी के व्यक्तित्व की सबसे बेहतरीन खासियत है उनका विनम्र स्वभाव, लगता ही नही कि यही व्यक्ति,काव्यपुरुष राकेश खंडेलवाल हैं !हम उम्मीद करते हैं कि राकेश बरसों तक हिन्दी भाषा को सशक्त आधार प्रदान करते रहेंगे !
आपका लेखन तो विविधता युक्त है। कविता और गद्य पर समान अधिकार से लिखते हैं। बधाई।
ReplyDeleteमैं तो अपने को अशक्त पाता हूं काव्य के क्षेत्र में।:(
शुक्रिया ज्ञानदत्त भाई !
ReplyDeleteअक्सर आपके ब्लाग पर जाकर सीखने का प्रयत्न करता हूँ ! साभार
"जीवन के हर समीकरण का कोई सूत्र अधूरा निकला
ReplyDeleteइसीलिए तो कभी किसी से सामंजस्य नहीं हो पाया"
yah ved vakya he jivan ka
regards
bahut sunder line sir
regards
सरीशजी-- आपने मुझे कुछ ज्यादा ही ऊँचा बिठा दिया है. मैं इस योग्य नहीं हूँ.. मैं तो केवल लेखनी की इस बात का उत्तर देने का प्रयत्नशील हूँ
ReplyDeleteविद्यापति, जायसी की
कलमों के ओ उत्तराधिकारी
सूरा मीरा के अनुयायी
सहज काव्य के कुशल चितेरे
तुम अभिव्यक्ति लिये दिनकर सी
औ' प्रवाह तुलसी-मानस सा
तुम साकेत सजा अधरों पर
चित्रित करते साँझ सवेरे
जिसने सहज प्रेरणा बन कर अनगिन महाकाव्य रच डाले
ढूँढ रहा द्वारे चौबारे, एक वही मैं भाव नया सा
सतीश जी आप की लेखनी सच मे कमाल की है,धन्यवाद
ReplyDeleteशब्दों के जादूगर राकेश जी शब्दों को कठपुतलियों की तरह नचा कर जहां एक ओर दैनिक जीवन की विसँगतियों का चित्रण करते हैं वहीं दूसरी ओर जीवन की गहरी दार्शनिक व्याख्या भी करते हैं। सतीश जी आपने वह सब कह दिया जो मैं अनुभव तो करता था पर जिसे अभिव्यक्त नहीं कर पाता था।
ReplyDeleteराकेश जी को हार्दिक बधाई व सतीश जी को साधुवाद ।
सतीष जी आपने राकेश जी पर जो कुछ भी लिखा है वो राकेश जी के व्यक्तित्व को पूर्णत: रेखांकित करता है । आपको इस हेतु शिवना प्रकाशन की ओर से धन्यवाद
ReplyDeleteसतीशजी आपने जो भी लिखा , बड़ा जानकारी पूर्ण लिखा ! माननीय राकेश जी के बारे में मुझे समीरजी से ही मालुम पडा की वो उनके गुरु हैं ! और समीर जी मेरे गुरु हैं तो आदरणीय राकेश जी तो मेरे दादागुरु हुए ! प्रणाम उनको ! और आज के समीर जी की ब्लॉग पोस्ट से मालुम पडा की वो इस रचना के विमोचन समारोह में अमेरिका जा रहे हैं ! आदरणीय राकेशजी और पंकज जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ! पंकज जी से भी अभी तक कोई संवाद स्थापित नही हो पाया ! और यो भी कविता और काव्य से पाला नही पड़े तब तक उनका नशा नही आता ! आपसे आज दोनों ही गुणीजनों का परिचय मिला ! पंकज जी से तो भोपाल जाते समय ही रास्ते में मुलाक़ात कर ने का शौभाग्य शायद मिल ही जायेगा ! और इस काव्य संग्रह की किताब भी जारी होते ही खरीद लेंगे ! शायद इस बहाने काव्य से हमारा भी कुछ वास्ता पड़ सकेगा !
ReplyDeleteइस जानकारी के लिए धन्यवाद ! और दशहरे की आपको शुभकामनाएं !
सतीश जी, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। राकेश खंडेलवाल जी को उनके गीत संग्रह के लिए बधाई और पंकज सुबीर जी व आपको धन्यवाद। जब ब्लागर साथी लेखन की नई बुलंदियां हासिल करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। साथियों द्वारा उत्साहवर्धन किया जाना देखकर और भी अच्छा लगता है। आप सभी को दशहरा के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteकोई भी सशक्त लेखनी, पाठकों के प्रोत्साहन के बिना बेकार है ! आप लोगों ने आकर यहाँ कमेंट्स दिए, मैं आप लोगों का आभारी हूँ !
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