लेकर निर्बल की हाय पुत्र !
होगा जग में उद्धार नहीं,
अपने दिल पर रख हाथ देख
आत्मा को लज्जित पाओगे
लज्जित मन से क्यों काम करो
गंगा सा निर्मल मन लेकर,
निर्बल का ऋण लेकर मन पर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
वैष्णव जन कहलाये वह ही
जो कष्ट दूसरों का समझे,
पीड़ा औरों की निज मन में
महसूस करे, आगे आकर ,
सारे तीर्थों का सुख मिलता,
सेवा निर्बल की करने में ,
अपने सुख की कामना लिए, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
अन्याय सहन करने वाला
अन्यायी से भी पापी है,
न्यायार्थ दंड भाई को दो
यह कर्म ज्ञान है गीता का
अन्यायी बनकर जीने से,
कुल कीर्ति नष्ट हो जाती है
केशव की बातें बिसरा कर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
वह दिन दिखलाओ महाशक्ति
जिसमें कोई न, प्रपंच रहे !
धार्मिक पाखण्ड समाप्त करो
वास्तविक साधू सन्यासी हों
जाती बंधन को काट मूल से,
मुक्ति दिलाओ नरकों से
अपराध बोध लेकर मन में क्यों लोग मनाते दीवाली ?
ऐसा कोई अवतार धरो जो
नष्ट , वर्ण-संकट कर दे !
अपने अपने कर्मानुसार,
मानव समाज का काम करे
खेलें रंग और गुलाल सभी,
हर कौम गले मिलकर होली
औरों के लिए घृणा लेकर ! क्यों लोग मनाते दीवाली ?
होगा जग में उद्धार नहीं,
अपने दिल पर रख हाथ देख
आत्मा को लज्जित पाओगे
लज्जित मन से क्यों काम करो
गंगा सा निर्मल मन लेकर,
निर्बल का ऋण लेकर मन पर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
वैष्णव जन कहलाये वह ही
जो कष्ट दूसरों का समझे,
पीड़ा औरों की निज मन में
महसूस करे, आगे आकर ,
सारे तीर्थों का सुख मिलता,
सेवा निर्बल की करने में ,
अपने सुख की कामना लिए, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
अन्याय सहन करने वाला
अन्यायी से भी पापी है,
न्यायार्थ दंड भाई को दो
यह कर्म ज्ञान है गीता का
अन्यायी बनकर जीने से,
कुल कीर्ति नष्ट हो जाती है
केशव की बातें बिसरा कर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
वह दिन दिखलाओ महाशक्ति
जिसमें कोई न, प्रपंच रहे !
धार्मिक पाखण्ड समाप्त करो
वास्तविक साधू सन्यासी हों
जाती बंधन को काट मूल से,
मुक्ति दिलाओ नरकों से
अपराध बोध लेकर मन में क्यों लोग मनाते दीवाली ?
ऐसा कोई अवतार धरो जो
नष्ट , वर्ण-संकट कर दे !
अपने अपने कर्मानुसार,
मानव समाज का काम करे
खेलें रंग और गुलाल सभी,
हर कौम गले मिलकर होली
औरों के लिए घृणा लेकर ! क्यों लोग मनाते दीवाली ?
कम से कम एक दीप करो रौशन।
ReplyDeleteअपनी हस्ती की शाम से पहले।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत ख़ूब!
ReplyDelete'जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
धरा पर अँधेरा कहीं रह न जाये'
बहुत सुंदर सतीश जी बहुत सुंदर्।
ReplyDeleteअवतार तो आप हम सभी हैं बस श्रेष्ठता प्राप्त करने की आवश्यकता है। प्रेरक कविता है।
ReplyDeleteदीबाली पर होली /बधाई
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /
सतीशजी शीर्षक लोग मानते दीवाली की जगह लोग मनातें दीवाली कर लें.ये त्रुटियाँ अन्यत्र भी विद्यमान हैं कृपया ठीक करें.
ReplyDeleteरचना की भाषाकीय प्रवाहिता के साथ विचारों की पावनता ध्यान आकृषित कर रहीं है.बधाई.
अरे सतीश जी, पूरी शुचिता से और स्वच्छता से ही दिवाली मन सके तो कोई विरला ही दिवाली मना पायेगा।
ReplyDeleteआप जैसे विद्वान कवि ह्रदय का स्वागत है सुभाष जी ! स्नेह के लिए आभार !
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी यह कविता
ReplyDeleteलेकर निर्बल की हाय पुत्र !
ReplyDeleteहोगा जग में उद्धार नहीं,
अपने दिल पर रख हाथ देख
आत्मा को लज्जित पाओगे
लज्जित मन से क्यों काम करो! गंगा सा निर्मल मन लेकर,
निर्बल का ऋण लेकर मन पर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
बहुत ही प्यारी पंक्तियां हैं...बधाई...
खेलें रंग और गुलाल सभी, हर कौम गले मिलकर होली
ReplyDeleteऔरों के लिए घ्रणा लेकर ! क्यों लोग मनाते दीवाली ?
बहुत सुंदर सोच ! धन्यवाद !
अति सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
अन्याय सहन करने वाला
ReplyDeleteअन्यायी से भी पापी है,
न्यायार्थ दंड भाई को दो
यह कर्म ज्ञान है गीता का
अन्यायी बनकर जीने से, कुल कीर्ति नष्ट हो जाती है
केशव की बातें बिसरा कर, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
बहुत २ शुभकामनाएं !
सुंदर प्रेरक कविता है....
ReplyDeleteऐसा कोई अवतार धरो जो
ReplyDeleteनष्ट , वर्ण-संकट कर दे !
अपने अपने कर्मानुसार,
मानव समाज का काम करे
खेलें रंग और गुलाल सभी, हर कौम गले मिलकर होली
औरों के लिए घ्रणा लेकर ! क्यों लोग मनाते दीवाली ?
बहुत ही सशक्त रचना है सतीश जी!!!!!!!!!
बहुत बढिया रचना लिखी है।बधाई।
ReplyDeleteSatishji, vastav men ek badhia rachna di hai aapne. typing ki trution ko theek karlen, maza kirkara kar deti hain ye.rachna men koi kami nahin.
ReplyDeleteप्रेरक कविता।
ReplyDelete'जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
ReplyDeleteधरा पर अँधेरा कहीं रह न जाये'
" so pure and touching"
Regards
bade bhai ab paripakv geetkaar ho gaye hain.
ReplyDeletepahli nazar me padhkar kisi jangetkaar ka ehsaas krate hain.
kai panktiyaan achchi ban padi hain.
वैष्णव जन कहलाये वह ही
ReplyDeleteजो कष्ट दूसरों का समझे,
पीड़ा औरों की निज मन में
महसूस करे, आगे आकर ,
सारे तीर्थों का सुख मिलता, सेवा निर्बल की करने में ,
अपने सुख की कामना लिए, क्यों लोग मनाते दीवाली ?
wah sateesh ji, sahi mayne main to yehi diwali hai. bahut khoob kaha aapney. shukriya share karne ke liye
परिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteपिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
आपकी सुख समृद्धि और उन्नति में निरंतर वृद्धि होती रहे !
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
आपने जो अंत में प्रार्थना लिखी है वास्तब में टिप्पणी कारों को वह नहीं करना चाहिए ,जैसा कि आज मैं कर रहा हूँ विना समझे टिप्पणी दे रहा हूँ , क्योंकि आपकी इच्छा या प्रार्थना या कविता आज के माहौल पर मुझे सही बैठती नहीं दिख रही /नरसी मेहता कहते रहे वैष्णव जन तो तेणे कहिये जो पीर पराई जाने रे =उनके भजन को गांधी जी रिपीट करते रहे /महाशक्ति ने हमें अपने हाल पर छोड़ रखा है /कुल कीर्ति नष्ट होने की बात गीता में कृष्ण ने भी कही /आप औरों के लिए घ्रणा की बात करते हैं ""क्या कहीं फिर कोई वस्ती उजड़ी लोग क्यों जश्न मनाने आए ,तेरी बातें ही सुनाने आए =गजल नहीं सुनी क्या / अब तो , बर्तमान में जो चल रहा है उस माहोल के प्रति कुछ कहने से भी तथा कथित आधुनिक लोग मना करते हैं उल्टा कहते हैं +अपने माहौल पे इल्जाम लगाते क्यों हो ,आग के शहर में बारूद बनाते क्यों हो ""निर्वल की हाय वावत भी बहुत कहा गया =निर्वल को न सताइए जाकी मोटी हाय ,मुई खाल की साँस सों लोहा भस्म हो जाए =किसने माना/ किंतु लिखते लिखते एक बात मेरी समझ में आई की ""वो आपनी खूँ न छोडेंगे तो हम अपनी आदत क्यों बदलें /हज़ार ने पढी और एक पर भी कुछ असर हुआ तो हमारा लिखना ही नहीं वल्कि हमारा जन्म सफल हो गया कृपया लिखें -आज महसूस किया कि लिखते लिखते भी समझ में आजाता है /थैंक्स
ReplyDeleteदेर से रचना पढ़ पाया! अफ़सोस !
ReplyDeleteसतीश भाई, क्या कहूं, कहतें हैं अच्छे मन में ही अच्छे विचार होते हैं.
बस अपनी ये अच्छाई सलामत रखियेगा
bahut sunder geet..
ReplyDeleteruchikar evm prerak..
Wah..wa
badhai swikaren
or haan...
मित्रवर,
नमस्कार.
मेरे ब्लाग 'हास्य कवि दरबार' पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर आपकी सदाशयता से अभिभूत हूं.
परन्तु आपकी जानकारी के लिये निवेदन है कि
यों तो मेरे पांच ब्लाग है लेकिन मैं केवल तीन ब्लाग्स को ही निरन्तर अपडेट कर पा रहा हूं.
इसलिये यदि आप मेरे निम्न ब्लाग्स पर भ्रमण करेंगें तो मेरी जानकारी में रहेंगें और संवाद बना रहेगा
योगेन्द्र मौदगिल डाट ब्लागस्पाट डाट काम
yogindermoudgil.blogspot.com
हरियाणा एक्सप्रैस डाट ब्लागस्पाट डाट काम
haryanaexpress.blogspot.com
कलमदंश पत्रिका डाट ब्लागस्पाट डाट काम
kalamdanshpatrika.blogspot.com
निम्न दोनो ब्लाग्स अभी अपडेट नहीं कर पा रहा हूं
हास्यकविदरबार डाट ब्लागस्पाट डाट काम
hasyakavidarbar.blogspot.com
यारचकल्लस डाट ब्लागस्पाट डाट काम
yaarchakallas.blogspot.com
शेष शुभ
आशा है आप उपरोक्त तीनों ब्लाग्स ही पढ़ेंगें
साभार
-योगेन्द्र मौदगिल
मुबारक हो सक्सेनाजी क्या लिखा है आपने. प्रथम पद्यांश में तो आपने कमाल लिखा है की दिल के अन्दर तक संवेदना पैदा कर दी है. लेकिन आज के इस समय में बिरले ही होंगे जो आपकी इन पंक्तियों को पढ़ कर उस पर अमल करेंगे . भगवान् से प्रार्थना करता हूँ की आप इसी प्रकार लिखते रहें और आपकी कवितायें पूरे संसार में पढ़ी जायें............ शुभकामनाये............
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