ग्राहम स्टेंस और दो मासूम बच्चे ...
और अब यह बेचारी नन.....
शर्म से और लिख नही पा रहा ......
और अब यह बेचारी नन.....
शर्म से और लिख नही पा रहा ......
माँ की दवा,को चोरी करते,बच्चे की वेदना लिखूंगा !
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
- सतीश सक्सेना
निश्चय ही, किसी भी प्रकार की धार्मिक बर्बरता को निन्दित किया जाना चाहिये।
ReplyDelete'aap or hum sharmsaar hue jateyn hain, pr darendo pr koee asar nahee hottaa....'
ReplyDeleteregards
you should write and write in depth and detail that how we use religion as a tool to humiliate the humanity
ReplyDeleteaap ka mudda
ReplyDeletedur tak awaz karega
regards
आपने आप मे एक संपुर्ण पोस्ट!!फ़िर एक निंदनीय कृत्य!!
ReplyDeleteनिंदा योग्य कृत्य है ! वाकई शर्म के मारे क्या लिखा जाए ?
ReplyDeleteधार्मिक बर्बरता बहुत निंदनीय है !
ReplyDeleteइस दुख और शर्म में आप अकेले नहीं हैं सतीश जी।
ReplyDeleteइन हिन्दू तालिबानी आतंकवादियों के विरुद्ध आवाज़ उठाना ज़रूरी हो गया है इससे पहले कि वे भारत को हिटलर का जर्मनी बना दें।
धर्म का सामाजिक रूप अब मानव विरोधी हो चुका है।
ReplyDeleteइससे ज्यादा कुछ इस विषय पर लिखना-शायद किसी भी संवेदनशील मानव के लिए संभव नहीं.
ReplyDeletesateek baat
ReplyDeletesateesh jee lhik kar hoga bhee kya? dharmandhata ko mitana to shayad sambhav n ho.... hum niyantrit bhee kar pate....
ReplyDeleteये तो कहो गागर में सागर भरने की कला कहाँ से सीखी /यदि गोड गिफ्ट है तो हम क्या कर सकते हैं और अगर कहीं से सीखी है तो वो जगह हमको बताओ ताकि हम वह पहुँच कर गा सकें ""ये क्या जगह है दोस्तों ये कौन सा दयार है ""इस कला को अर्थात थोड़े में सब कुछ कह जाना को कभी नाविक के तीर कहा गया था "देखत में छोटे लगें घाव करें गंभीर ""आपकी इन तीन लाइनों के वारे में कुछ कहने से पहले मैं तो यही कह सकता हूँ "" सो मो सन कहि जात न कैसे ,साक बनिक मनी गुन गन जैसे ""
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ReplyDeleteसतीश जी
ReplyDeleteआओ ये दुःख भी बाँट ले हम आपस में.
क्योंकि दुःख साझे होतें हैं. हिन्दू, मुसलमान, सिख या इसाई के नहीं. ये इंसानियत के दुःख हैं और इंसान ही इनकी दवा कर सकता है, कोई हिन्दू, मुस्लिम, सिख या इसाई नहीं.
ग्राहम स्टेंस और दो मासूम बच्चे ...
ReplyDeleteऔर अब यह बेचारी नन.....
शर्म से और लिख नही पा रहा ......
बेहद शर्मनाक...यही है कुछ लोगों का राष्ट्रवाद...
खैर...हमने अपने ब्लॉग में आपके ब्लॉग का लिंक दिया है...
शर्म आती है अपने देश में ये सब होते देख कर...किस कदर गिरते जारहे हैं हम, कहीं कोई मर्यादा कोई सीमा रह ही नही गई है, लेकिन उस से ज़्यादा शर्मनाक बात ये हैं ऐसे दरिन्दे खुले आम घूम रहे हैं और कोई कुछ नही करता....आपको नही लगता सतीश जी इन खूंखार बजरंगियों ने हिन्दुइज्म का चेहरा कितना भयानक और बदसूरत कर दिया है?
ReplyDeleteक्या यही चेहरा था हमारे देश के बहुसंख्यक का ?
नही बाबरी मस्जिद की शहादत से पहले ये चेहरा बहुत प्यारा था....लेकिन उसे बदसूरत और अब भयानक बनाने वालों पर कोई रोक क्यों नही लगाता?