Friday, October 10, 2008

अँधेरी रात का सूरज - राकेश खंडेलवाल

पंकज जी का अनुरोध था कि मैं राकेश जी पर कुछ और लिखूं, हिन्दी की सेवा में लगे हुए एक सम्मानित विद्वान् का अनुरोध पाकर, इस मशहूर गीतकार की रचनाओं पर नज़र डालते हुए, गीतकार की कलम पर विषय अनायास ही मिल गया ! राकेश खंडेलवाल मशहूर हैं, भाषा को झंकार प्रदान करने वाले शब्दों का उपयोग करने के लिए ! उनकी गीतमाला में हर शब्द मोती की तरह पिरोया होता है

मगर आजकल के ये दरबारी कवि अपने आप को चमकाने के लिए क्या नहीं करते ! गंभीर विषयों, पर सभ्य सुसंस्कृत भाषा के धनी, इस कवि की तकलीफ इन शब्दों में देखिये ...

"मान्य महोदय हमें बुलायें सम्मेलन में हम भी कवि हैं
हर महफ़िल में जकर कविता खुले कंठ गाया करते हैं
हमने हर छुटकुला उठा कर अक्सर उसकी टाँगें तोड़ीं
और सभ्य भाषा की जितनी थीं सीमायें, सारी छोड़ी
पहले तो द्विअर्थी शब्दों से हम काम चला लेते थे
बातें साफ़ किन्तु अब कहते , शर्म हया की पूँछ मरोड़ी

हमने सरगम सीखी है वैशाखनन्दनों के गायन से
बड़े गर्व से बात सभी को हम यह बतलाया करते हैं"

ख़ुद की भाषा से चमत्कृत ये आधुनिक कवि, और सामने भीड़ में बैठे अपने गुरु की रचनाओं पर तालियाँ बजाते उनके कुछ सर्वश्रेष्ठ शिष्य, अक्सर कविसम्मेलनों में समां बांधते हर जगह नज़र आ जायेंगे ! अच्छी टी आर पी बढ़ाने के सारे मन्त्र इन्हे पता होते हैं ! राकेश जी आगे कहते हैं ....

"हम दरबारी हैं तिकड़म से सारा काम कराते अपना
मौके पड़ते ही हर इक के आगे शीश झुकाते अपना
कुत्तों से सीखा है हमने पीछे फ़िरना पूँछ हिलाते
और गधे को भी हम अक्सर बाप बना लेते हैं अपना

भाषा की बैसाखी लेकर चलते हैं हम सीना ताने
जिस थाली में खाते हैं हम, छेद उसी में ही करते हैं !
जी हम भी कविता करते हैं"

राकेश जी की उपरोक्त व्यथा पर राजीव रंजन प्रसाद के कमेंट्स थे ....

आदरणीय राकेश जी,आपका ने हास्य लिखने का तो केवल बहाना किया है, इन शब्दों के पीछे की गहरी पीडा समझी जा सकती है। सचमुच तिलमिलाहट होती है कविता और साहित्य का सत्यानाश करने वाले विदूषकों से...

आजकल अधिकतर जगहों पर नगाडे बजाते यह लेखक दिख जाते हैं, घटिया लेखन के यह रचनाकार कोई न कोई मुखौटा ओढ़कर काम करते हैं, कोई अपने ज्ञान का ढिंढोरा पीटता है तो अन्य दूसरों पर सतत आक्रमण कर अपने आपको को विजयी घोषित किए बैठा है !मेरे अपने कुछ मित्र भी इन लोगों में से हैं जिनमे प्रतिभा की कोई कमी नही, मगर उनकी कमियां समझाने की हिम्मत कौन करे ?? और कौन सरे आम अपनी धोती खुलवाने की हिम्मत करे ?? ;-)

और अंत में नवयुग के कवियों को, भाषा और कविताओं की मिट्टी पलीद करते देख, अधिकतर शांत रहने वाले, क्रोधित संवेदनशील राकेश खंडेलवाल......

सड़े हुए अंडे की चाहत
गले टमाटर की अकुलाहट
फ़टे हुए जूते चप्पल की माला के असली अधिकारी
हे नवयुग के कवि, तेरी ही कविता हो तुझ पर बलिहारी

तूने जो लिख दी कविता वह नहीं समझ में बिलकुल आई"
खुद का लिखा खुदा ही समझे" की परंपरा के अनुयायी
तूने पढ़ी हुई हर कविता पर अपना अधिकार जताया
रश्क हुआ गर्दभराजों को, जब तूने आवाज़ उठाई

सूखे तालाबों के मेंढ़क
कीट ग्रसित ओ पीले ढेंढ़स
चला रहा है तू मंचों पर फ़ूहड़ बातों की पिचकारी
हे नवयुग के कवि, तेरी ही कविता हो तुझ पर बलिहारी

पढ़ा सुना हर एक चुटकुला, तेरी ही बन गया बपौती
समझदार श्रोताओं की खातिर तू सबसे बड़ी चुनौती
तू अंगद का पांव, न छोड़े माईक धक्के खा खा कर भी
चार चुटकुलों को गंगा कह, तूने अपनी भरी कथौती

कीचड़ के कुंडों के भैंसे
करूँ तेरी तारीफ़ें कैसे
हर संयोजन के आयोजक पर है तेरी चढ़ी उधारी
हे नवयुग के कवि, तेरी ही कविता हो तुझ पर बलिहारी

क्या शायर, क्या गीतकार, सब तेरे आगे पानी भरते
तू रहता जब सन्मुख, कुछ भी बोल न पाते,वे चुप रहते
हूटप्रूफ़ तू, असर न तुझ पर होता कोई कुछ भी बोले
आलोचक आ तेरे आगे शीश झुकाते डरते डरते

ओ चिरकिन के अमर भतीजे
पहले, दूजे, चौथे, तीजे
तुझको सुनते पीट रही है सर अपना भाषा बेचारी
हे नवयुग के कवि, तेरी ही कविता हो तुझ पर बलिहारी !
और ऐसे में राकेश खंडेलवाल जैसे रचनाकार का सब्र भी टूट जाता है जब भाषा और संवेदनाओं का मजाक सारे आम उडाया जाए !

डॉ अमर ज्योति के शब्दों में "शब्दों के जादूगर राकेश जी शब्दों को कठपुतलियों की तरह नचा कर जहां एक ओर दैनिक जीवन की विसँगतियों का चित्रण करते हैं वहीं दूसरी ओर जीवन की गहरी दार्शनिक व्याख्या भी करते हैं।"

और अंत में मैं एक शानदार गीतकार, प्रेरणादायी, कविश्रेष्ठ राकेश खंडेलवाल की "अँधेरी रात का सूरज" का स्वागत करता हूँ ! साथ ही पंकज सुबीर का भी धन्यवाद जिनके कारण यह रचना हिन्दी जगत को मिल सकी !

15 comments:

  1. और अंत में मैं एक शानदार गीतकार, प्रेरणादायी, कविश्रेष्ठ राकेश खंडेलवाल की "अँधेरी रात का सूरज" का स्वागत करता हूँ ! साथ ही पंकज सुबीर का भी धन्यवाद जिनके कारण यह रचना हिन्दी जगत को मिल सकी !

    'aapke inhe shabdo mey humara bhee subhkamna or svar shameel hai'

    regards

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  2. क्या बात है, बहुत शानदार....बार बार पढने की इच्छा होती है...

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  3. सतीश जी आपने तो अंधेरी रात का सूरज को बहुत लोकप्रिय बना दिया है । आपको बधाई अच्‍छे लेख के लिये

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  4. इस सुनहरे आयोजन के मौके पर बहुत सुन्दर आलेख. मेरा सौभाग्य कि मैं इस आयोजन में सम्मलित हो रहा हूँ.

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  5. बेहतरीन तहरीर है...

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  6. Rakesh Ji ke sambandh me ek achchha lekh..badhai...!

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  7. शानदार गीतकार, प्रेरणादायी, कविश्रेष्ठ राकेश खंडेलवाल की "अँधेरी रात का सूरज" का स्वागत करता हूँ ! साथ ही पंकज सुबीर का भी धन्यवाद जिनके कारण यह रचना हिन्दी जगत को मिल सकी !

    आपके इन शब्दों से श्रेष्ठ शब्द आदरणीय राकेश जी और पंकज जी के लिए मुझे नही मिल रहे हैं ! दोनों को बहुत २ बधाई और शुभकामनाए ! एवं आपने जिस शैली में ये रचना लिखी है उसके लिए आपको भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

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  8. शानदार गीतकार, प्रेरणादायी, कविश्रेष्ठ राकेश खंडेलवाल की "अँधेरी रात का सूरज" का स्वागत करता हूँ ! साथ ही पंकज सुबीर का भी धन्यवाद जिनके कारण यह रचना हिन्दी जगत को मिल सकी !

    आपके इन शब्दों से श्रेष्ठ शब्द आदरणीय राकेश जी और पंकज जी के लिए मुझे नही मिल रहे हैं ! दोनों को बहुत २ बधाई और शुभकामनाए ! एवं आपने जिस शैली में ये रचना लिखी है उसके लिए आपको भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    .....................
    आशा है ताऊ के शब्दों को दोहराने की मजबूरी को माफ़ कर देंगे

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  9. ज़ाकिर भाई !
    क्या खूबसूरत प्रतिक्रिया दी है आपने, एक पंथ चार काज किए हैं आपने ! पहले मैं आपकी और ताऊ की हूबहू प्रतिक्रियाएं देख कर आपलोगों से जानना चाहता था की ऐसा कैसे सम्भव हुआ अचानक निगाह नीचे की लाइन पर पड़ जाने से फर्क समझ में आ गया साथ ही मंतव्य भी !
    ताऊ का गंभीर लेखन और हरयाणवी अंदाज़ में मस्ती लेखन, हर व्यक्ति के बस का नही है उनको समझ पाना ! आपने उनकी प्रतिक्रिया की कापी कर बेहतर समीक्षा दी इस लिखे को, और इस महान गीतकार तथा पंकज सुबीर जी को !
    पी सी रामपुरिया जी के प्रति सम्मान प्रकट करने हेतु मैं आपका आभारी हूँ !

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  10. भाई सक्सेना जी, ऎसी पोस्ट मत दिया करो कि मेरे जैसे उज़बक दिन भर यहीं चक्कर काटा करें ।
    धन्यवाद लेकर क्या करेगा ? दिमाग बेकाबू हो जाया करता है ।
    बेहतरीन व सराहनीय पोस्ट !

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  11. सतीश जी,
    आपका लेख पढ कर गुरुजी के व्यक्तित्व के एक नये आयाम का परिचय मिला । धन्यवाद !

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  12. कविवर राकेश जी को अनेकों बधाई और आपको भी इस अनूठे विमोचन समारोह पर ..
    सस्नेह
    Lavanya

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  13. आप समस्त मेहमानों का प्रोत्साहन देने के लिए शुक्रिया !

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  14. इतनी सारी शुभकामनायें, इतना अपनापन और बिखरते हुए शब्द हाथ में पकड़े
    व्यस्तताओं से जूझता मैं. यद्यपि मेरा प्रयास होता है कि सभी को व्यक्तिगत
    तौर पर संदेशों के उत्तर लिखूँ. इस बार ऐसा होना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है
    इसलिये सभी को सादर प्रणाम सहित आभार व्यक्त कर रहा हूँ. भाई समीरजी,
    पंकज सुबीरजी, सतीश सक्सेनाजी. नीरज गोस्वामी जी, कंचन चौहान जी,
    गौतमजी, रविकान्तजी, मीतजी, राजीव रंजन प्रसादजी, पारुलजी संजय पटेलजी.
    पुष्पाजी, मोनिकाजी, रमेशजी, रंजनाजी, रंजूजी, सीमाजी,अविनाशजी,फ़ुरसतियाजी,
    लवलीजी,अजितजी,योगेन्द्रजी,पल्लवीजी,लावण्यजी,शारजी,संगीताजी,अनुरागजी,मोहनजी,
    तथा अन्य सभी मेरे मित्रों और अग्रजों को अपने किंचित शब्द भेंट कर रहा हूँ

    मन को विह्वल किया आज अनुराग ने
    सनसनी सी शिरा में विचरने लगी
    डबडबाई हुई हर्ष अतिरेक से
    दॄष्टि में बिजलियाँ सी चमकने लगीं
    रोमकूपों में संचार कुछ यूँ हुआ
    थरथराने लगा मेरा सारा बदन
    शुक्रिया लिख सकूँ, ये न संभव हुआ
    लेखनी हाथ में से फ़िसलने लगी

    आपने जो लिखा उसको पढ़, सोचता
    रह गया भाग्यशाली भला कौन है
    आपके मन के आकर निकट है खड़ा
    बात करता हुआ, ओढ़ कर मौन है
    नाम देखा जो अपना सा मुझको लगा
    जो पढ़ा , टूट सारा भरम तब गया
    शब्द साधक कोई और है, मैं नहीं
    पूर्ण वह, मेरा अस्तित्व तो गौण है

    जानता मैं नहीं कौन हूँ मैं, स्वयं
    घाटियों में घुली एक आवाज़ हूँ
    उंगलिया थक गईं छेड़ते छेड़ते
    पर न झंकॄत हुआ, मैं वही साज हूँ
    अधखुले होंठ पर जो तड़प, रह गई
    अनकही, एक मैं हूँ अधूरी गज़ल
    डूब कर भाव में, पार पा न सका
    रह गया अनखुला, एक वह राज हूँ

    आप हैं ज्योत्सना, वर्त्तिका आप हैं,
    मैं तले दीप के एक परछाईं हूँ
    घिर रहे थाप के अनवरत शोर में
    रह गई मौन जो एक शहनाई हूँ
    आप पारस हैं, बस आपके स्पर्श ने
    एक पत्थर छुआ और प्रतिमा बनी
    आपके स्नेह की गंध की छाँह में
    जो सुवासित हुई, मैं वो अरुणाई हूँ.

    सादर

    राकेश खंडेलवाल

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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