अपने लिखे हुए को पढ़ पढ़ कर जो आत्म मुग्धता पिछले ५-६ वर्षों में हुई है , वह बिना भोजन १०-१५ साल जिन्दा रखने की एनर्जी ,और अपने चाटुकारों के साथ ,शरीफ लोगों का मज़ाक उड़ाने की पर्याप्त ताकत दे सकती है ऐसा ब्लाग जगत में आसानी से देखा और महसूस किया जा सकता है !
अच्छे आदमी की पहचान, उसके कार्यों से अथवा सोच से होती है , और अक्सर रंगे सियार वक्त के साथ पहचान लिए जाते हैं और उस समय भी ये अपने कार्यप्रणाली पर पछतावा न करके, केवल अपनी पुरानी राज सत्ता और किये गए कुछ उल्लेखनीय कार्यों का हवाला देते देखे जाते हैं !
यहाँ कुछ मदारी बढ़िया कपडे पहनकर,बिना पढ़े, किताबी संकलन के आधार पर, पहली द्रष्टि में लोगों को प्रभावित करने और पर्याप्त भीड़ इकट्ठी करने में कामयाब हैं ! ऐसे मदारियों की सख्त आवश्यकता, इन ब्लाग नायकों को हमेशा रहती है जिनको शुरू के दिनों, (कालोनी बसने के समय ) से २०-३० लोगों के मध्य वाहवाही की आदत पड़ गयी हो ! ब्लाग जगत में शांत स्वभाव से कार्य करने का अर्थ, अक्सर यह अति उत्साही ब्लागर उसकी कमजोरी मान लेते हैं और उसके कार्यों का मखौल उड़ाकर, अपने प्रति भीड़ को आकर्षित करने का प्रयास करते रहते हैं ! नपुंसक दर्शकों के मध्य अधिकतर यह काम और भी आसान हो जाता है , प्रतिकार और प्रतिरोध न होने के कारण सज्जनों का अपमान और दुर्जन महिमा मंडित होता देखना आम है !
अफ़सोस यह है कि यह कार्य वरिष्ठ ब्लागर अपने अनुयायियों के बल पर कर रहे हैं और प्रतिकार किये जाने पर , प्रतिकारी पर चोट करने के लिए इन चेलों के साथ साथ कई बार महागुरु को भी आकर पब्लिक में यह कहना पड़ता है कि उनके प्रिय ब्लागर ने कुछ नहीं किया केवल प्रतिकारी ही उत्पाती है और उसके महान और विद्वान् शिष्य को बुरा बता कर, सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाह रहा है ! इस प्रकार के चरित्र हनन में, नवोदित और निर्दोष ब्लागरों की शक्ति का सफलता पूर्वक दुरूपयोग किया जा रहा है !
मुझे एक ऐसी ही घटना याद आ रही है जिसमें शांत स्वभावी अजीत वडनेरकर के साथ घटी थी और उसका किसी ने कोई प्रतिकार नहीं किया था ! अगर यह परंपरा ख़त्म नहीं की गयी तो कल आपके साथ भी यही घटना घटेगी और दोष आप भी तमाशबीनों को देंगे ! अतः हर हालत में आपको भीड़ से आगे आना पड़ेगा ! किसी शायर की निम्नलिखित इन अफसोसजनक पंक्तियों के दोषी हम सब समान रूप से ही हैं ...
साहिल के तमाशाई , हर डूबने वाले पर ,
अफ़सोस तो करते हैं ,इमदाद नहीं करते
घटिया लोगों को महिमा मंडित करने का प्रयास नहीं होना चाहिए और अगर तथाकथित अच्छे लोग भी यह प्रयास करते हैं तो यह सिर्फ इन महानायकों द्वारा, अपनी सुरक्षा के लिए गुंडे पालने जैसा ही है ! अगर गुरु ही असुरक्षा में जी रहे हैं तो वे लोगों को क्यां बांटेंगे ? कई बार सुवेषित बन्दर को , अनजाने में अथवा जल्दवाजी में आदर्श मान लेने की भूल ,का प्रायश्चित्त करने में महीनो लगते हैं ! और धीर गंभीर लोगों के मध्य जग हंसाई होती है सो अलग ! मगर शरीफ अनुयायिओं को जब तक अपनी भूल का पाता चलता है तब तक यह गुरु लोग अपना उल्लू साध चुके होते हैं !
मजेदारी यह है कि यह गुरु शिष्य , रक्षक और रक्षित दोनों ही कायर हैं , और एक दुसरे को क्रीम पाउडर लगाकर ही, एक दुसरे का कद ऊँचा करने में हमेशा प्रयास रत रहते हैं !
Tuesday, March 2, 2010
"ब्लाग जगत और सम्मान सुरक्षा" में आपकी आवाज चाहिए - सतीश सक्सेना
Labels:
ब्लागर
39 comments:
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
- सतीश सक्सेना
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प्रतिकार और प्रतिरोध न होने के कारण सज्जनों का अपमान और दुर्जन महिमा मंडित होता देखना आम है!
ReplyDeleteसतीश जी
लाख टके की बात कही आपने
मनुष्य अपने प्रकृति के अनुरूप ही अपने क्रियाकलाप रखता है .. किसी भी स्थान और क्षेत्र में समय समय पर वाद विवाद का उपस्थित होना कोई बडी बात नहीं .. पर अपने जीवन की तरह ही ब्लॉग जगत में भी अपने लक्ष्य को कोई न भूले .. वैसे गलत बातों का विरोध और सही दृष्टिकोण का पक्ष हमें जरूर लेना चाहिए !!
ReplyDeleteसतीश भईया आपने जो कुछ भी कहा उससे बिल्कुल सहमत हूँ , ये निरन्तर होता आया है और हो भी रहा है ।
ReplyDeleteसतीश जी!
ReplyDeleteआप की तकलीफ समझी जा सकती है। लेकिन ब्लाग जगत में स्वानुशासन से ही कुछ हो सकता है। वह भी आएगा तब आएगा। अजित जी के साथ हुई किस घटना का उल्लेख आप ने किया है। उस का संदर्भ ध्यान नहीं आ रहा है।
stabdh............
ReplyDeleteSundar Post!
ReplyDeleteEk-ek pankti apne aap mein sookti hai. Aap ko saadhuwaad aur badhai.
मुझे ये समझ नहीं आता की ब्लॉग जगत में अपने आपको महिमा मंडित करने से मिलता क्या है...क्यूँ इसके लिए लोग इतने प्रपंच करते हैं? दूसरे ये के किसी के कुछ कहने से सच्चे इंसान को फर्क भी क्या पड़ता है? क्यूँ इस कवायद में हम अपना समय नष्ट करते हैं?
ReplyDeleteनीरज
सतीश भाई,
ReplyDeleteगानों में बात कहने की पुरानी आदत है, इसलिए बस इतना कहूंगा...
खुली नज़र क्या खेल दिखेगा दुनिया का,
बंद आंख से देख तमाशा दुनिया का...
जय हिंद...
महागुरु को भी आकर कहना पड़ता है कि उनके प्रिय ब्लागर ने कुछ नहीं किया केवल प्रतिकारी ही उत्पाती है/ उसके महान और विद्वान् शिष्य को बुरा बता कर, सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाह रहा है!
ReplyDeleteइस प्रकार के चरित्र हनन में, नवोदित और निर्दोष ब्लागरों की शक्ति का सफलता पूर्वक दुरूपयोग किया जा रहा है!
यह ढका छुपा नहीं है सतीश जी
वैसे आपका पूरा लेख ही बहुत कुछ कहने की कोशिश कर रहा
"मुझे एक ऐसी ही घटना याद आ रही है जिसमें शांत स्वभावी अजीत वडनेरकर के साथ घटी थी और उसका किसी ने कोई प्रतिकार नहीं किया था"
ReplyDelete-- क्या आप स्प्ष्ट करेंगे कि यह उल्लेख किस घटना के संबंध में है?
आपसे सहमत!! लेकिन चला जाता हूँ अपने ही धुन में .....ये अपुन का फार्मूला है.
ReplyDeleteमान्यवर!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट में विषय तो है,
लेकिन इरादा स्पष्ट नही है!
पता नही आपने निशाना किसपर साधा है?
सतीशजी,
ReplyDeleteबीती किसी बात का उल्लेख न करें। राज़ को राज़ रहने दें।
@अजित भाई,
ReplyDeleteआपका नाम की चर्चा, बिना आपसे पूछे आपके दिए प्यार के अधिकार के कारण की गयी है , वह कष्ट भी शायद मैं भुला नहीं पाऊंगा ! आगे चर्चा किसी भी हालत, में आपसे बिना अनुमति, होने का सवाल ही पैदा नहीं होता ! यह जो लिखा है, जिनके लिए इंगित है उनका अपमान करने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है ! हाँ उन्हें समझ आ जाये कि यह गलत है तो भी यह लेखन सफल हो जायेगा !
सतीश जी , दुनिया में सभी तरह के लोग हैं। ब्लॉगजगत में भी ।
ReplyDeleteलेकिन ब्लोगिंग के कोई नियम बनाना संभव नहीं लगता ।
इसमें तो आत्मसंयम की ज़रुरत है।
प्रतिकार करने से राजसी और तामसी प्रवर्ति को बढ़ावा मिलता है।
मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है। लेकिन कहते हैं --एक चुप सौ को हरावे।
बाकी तो यहाँ सभी ज्ञानी हैं।
सज्जनों व वरिष्ठों का अपमान करने वाले की खुद की प्रतिष्ठा समाज में धीरे धीरे क्षीण हो जाती है इसी तरह ऐसे उद्दंड लोगों व उनके गुरुओं की भी ब्लॉगजगत में यही दुर्गति होगी बेशक वे कितने ही लोकप्रिय क्यों न हो | इसलिए चिंतित मत होईये देर सवेर सब समझ जायेंगे |
ReplyDelete@रतन सिंह शेखावत !
ReplyDeleteहमारे संस्कारों की याद दिलाने के लिए आपका आभारी हूँ , बड़े छोटे का लिहाज़ तो वह करेगा जिसने अपने घर में कुछ सीखा हो दुःख यह है कि अपना हिसाब सीधा करने के लिए कुछ सम्मानित लोग भी ऐसे लोगों का प्रयोग करते हैं !
आपका आना अच्छा लगा !
बिल्कुल सही फ़ोडा है आपने नारियल को ..बिल्कुल बींचोबीच ..और सबसे अच्छी बात ये है कि चाहे कोई माने या न माने ..मगर इस हकीकत से वाकिफ़ सभी हैं ..कई बार कोशिश तो ये भी कि ..हम भी उसी जमात में शामिल हो जाएं तमाशबीन बनके देखें ....मगर जाने मन के किस कोने से आवाज़ आती है और ...बस धांय ढिशुम ..होने लगती है ....मगर सतीश जी .....अब तो ये ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है ....और पहले भी कह चुका हूं कि ...बेशक सायबर कानून अभी भारत में उतनी तेज़ी नहीं दिखा पाए हैं ...मगर यहां याद दिलाता चलूं कि ..अभी ज्यादा समय नहीं बीता है जब सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक ब्लोग्गर को कोई राहत नहीं दी ....शायद बहुत से लोग मामले से वाकिफ़ हों और बहुत से अनजान हों .....
ReplyDeleteअजय कुमार झा
hmm agar sab khud ko sanyat karke chle to is tarah ki koi porblem n ho
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट है आपकी पोस्ट और टिप्पणीकर्ताओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश कर रही हूँ।ाज तक ब्लागजगत का रूप मुझे तो समझ नही आया इस लिये अपने काम मे लगे रहना ही श्रेयस्कर है। धन्यवाद।
ReplyDeleteभाई मेरे, साफ सुथरी सर्फ एक्सेल से धुली कमीज पहनो सिखाने के लिए यह कतई जरुरी नहीं है कि यह दिखाया जाये कि उसकी कमीज कितनी गंदी है.
ReplyDeleteसदाचार बिना गुंडों के कारनामे बताये भी सिखाया जा सकते हैं.
उचित क्या है कि लिस्ट बना लें और अनुचित क्या है, उसकी लिस्ट बना लें, तो भी बहुतेरे आईटम दोनों लिस्टों में छूट ही जायेंगे, आप आखिर कहाँ तक मेहनत करते जाईयेगा.
आप उचित के उदाहरण प्रस्तुत करते रहे, लोग अनुसरण करते चलेंगे. मामला स्व विवेक का है. सभी सुधिजन हैं, कोई भी निरिह, अबोध या दलित नहीं है कि बिना मार्गदर्शन के शोषित हो जायेगा, आप निश्चिंत हो सकारात्मक और सार्थक लेखन करें.
मेरी शुभकामनाएँ.
सधे शब्दों में खरी बात
ReplyDeleteजानते सब हैं
ReplyDeleteमानते सब नहीं
महात्मा गांधी जी ने कहा था कि
''सोते हुए को तो जगाया जा सकता है परन्तु जो सोने का बहाना कर रहा है, उसे जगाना असंभव है।''
तो यही गति, अब चाहे दुर्गति मानें या मूढ़मति - सद्गति तो नहीं मान सकते, रहेगी। गियर बदलेंगे कैसे, उसे गाड़ी के जो स्वचालित है और उसमें गियरों की व्यवस्था ही नहीं है। बेगियर की गाड़ी तो ऐसे ही दौड़ेगी और फोड़ती हुई ही नजर आएगी। जो बच जाएगा उसकी चोट से उसका अपना सौभाग्य होगा। अब ब्लॉग रूपी वाहन में अगर ईंधन ही चुक जाये तो बात अलग है, या खरीदना पड़े मतलब डॉटकॉम करके, फिर तो स्वच्छंदता, उच्श्रंखलता पर काबू पाना संभव दिखता है। इसके बिना तो गाड़ी यूं ही चलती रहेगी। पर हमें अपने सद्प्रयासों में कमी नहीं लानी चाहिए। कवि दुष्यंत ने कहा भी है कि ' कौन कहता है कि आसमान में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो' तो आपकी पोस्ट की तबीयत तो बहुत पसंद आई, आप इसी तरह के पत्थर उछालते रहा करें, हमारे लिए तो फूल हैं जिनके लिए पत्थर हैं, कामना करेंगे उनके लिए भी फूल रूप में परिवर्तित हों और आसमान में सुराख हो या न हो पर मनों में जो सुराख हैं वे ही रिपेयर हो जाएं तो सुकून मिलेगा।
सतीश जी केसे बनाये स्वानुशासन इस ब्लांग जगत मै?लेकिन जो बात आप कह रहे है, वो सब समझते है, ओर कोई अपने आप को ग्याणी महा ग्यानी समझे या महा गुरु समझे उस से क्या? अच्छा है इन्हे तव्ज्जो ही मत दो, मस्त रहो, रास्ते मै कही कीचड पडा हो तो उस से बच कर निकल जाना चाहिये, अग्र उस मे पत्थर मारेगे तो छींटे तो हम पर ही गिरेगे ना.
ReplyDeleteआप की हर बात से सहमत है, लेकिन इस का हल कोई नही है
सर्वश्रेष्ठ होली पोस्ट -आप भी तो अलोक मेहता हुए जाते हैं -हा हा हा हा !
ReplyDeleteसतीश जी डिफेंसिव मत होईये -शस्त्र उठाईये! जो लक्षित हैं वे ऐसे तो मानेगें नहीं .
उनके बीच ही जमिये और उन्हें किनारा कराईये ......खुद किनारे पर नहीं !
सतीश जी बहुत अच्छी बात कही आपने, पता नही लोग इस प्रकार से क्यों ब्लॉगिंग का उद्देश्यही बदल दे रहे हैं और अपनी फालतू की बात से चर्चा में आने की योजना में लगे रहते है...इन्हे रोक पाना तो मुश्किल है पर नज़रअंदाज किया जा सकता है दूसरा रास्ता अपनाना ही पड़ेगा....
ReplyDeleteshee baat hai,log-baag surkhiyon men rhne ke liye kuchh bhee ulul-julul likhte rhte hai aur log tippanee bhee khoob dete hain,aapke vicharo se shmt.
ReplyDelete@अरविन्द मिश्र,
ReplyDeleteवाह गुरु देव आपने होली सार्थक कर दी , अपनी तारीफ़ धुरंधरों से सुनकर अच्छा लगता है !
मुझे दिली अफ़सोस गुरुघंटाल के लिए होगा, यह व्यक्ति , दिल से वाकई बहुत अच्छा है मगर आत्म सम्मोहित होने के कारण अपने पुत्रमोह को नहीं छोड़ पा रहे ! हम लोग हर क्षेत्र में लगभग सभी कहीं न कहीं विशिष्टता रखते है और सभी आदरणीय है , अगर हम एक दूसरे का सम्मान न कर सकें तो कम से कम बेवजह अपमान करने से तो बचा जा सकता है ! अगर ऐसे दुश्चरित्र स्वनामधन्य संतानों की तारीफ़ कर रहे हैं तो निस्संदेह वे अपने गौरव और सम्मान का दुरुपयोग कर रहे हैं कम से कम मेरे जैसे ईमानदार लोग बेहद व्यथित हैं और उनका कद और सम्मान मेरी निगाह में बहुत गिरा है !
भविष्य में प्रयत्न रहेगा कि जब तक पहचान न हो जाये जल्दी किसी को सम्मान न दूं !
@डॉ मनोज मिश्र ,
ReplyDeleteबिलकुल ठीक कह रहे हैं , टिप्पणियों से इन्हें शक्ति मिलती है , और उर्जावान होकर यह अपने भक्तों को बचाते हैं उन्हें दूसरों को अपमानित करने की शिक्षा देते है, इन्हें एक दिव्य ज्ञान प्राप्त है, कि वरदान देने की शक्ति इनको ही मिली है !श्लोक भी सही लिखते हैं ....
@राज भाटिया ,
मैं आपसे सहमत नहीं हूँ , प्रतिकार न करने से ही राक्षस जागते हैं ! आप अपना अपमान भूल गए हैं मगर मुझे वह भी याद है ...अपमान भूलाने से लोग लोग संत नहीं कहते , कायर कहा जाता है ...
@अविनाश वाचस्पति,
आप अन्तर्यामी हैं प्रभु ...खुल कर कहते रहिये इसे लोग पसंद करेंगे
सादर .
@उड़न तश्तरी ,
महाराज कभी नीचे भी आ जाओ , हम लोग जमीन के प्राणी हैं , गूढ़ वचन नहीं समझ पाते ...मदद करो
अन्यथा ...
;-)
@ निर्मला कपिला ,
मैं अपने आपको फेल मानता हूँ, कोई अपने जैसा गधा मिलता ही नहीं ...
@डॉ रूप चन्द्र शास्त्री ,
अगर वाकई आप आजकल के क्रिया कलापों से नहीं वाकिफ तो इसे ना समझें , क्यों उलझाते हैं स्वयं को, आपको कष्ट ही होगा !
संक्षेप में कहूं तो मैं एक आहत दोस्त , अपने एक नसेड़ी नवाब दोस्त की मज़ाक उड़ा रहा हूँ, जो बेवकूफ कारिंदों से घिरा बैठा, अपने आप को ब्लाग जगत का सर्व शक्तिमान विधाता समझने लगा है
असल में जब भी क्रांति होती है उसका कारण धृतराष्ट्र का अंधा होना ही होता है. यह शुभ है कि क्रांति के लक्षण दिखाई देने लगे हैं..आज शश्त्र उठाकर क्रांति नही होती बल्कि वैचारिक क्रांति होती है जिसका सुत्रपात होने लगा है.
ReplyDeleteवैसे अरविंद मिश्र जी ने कृष्ण वाला गीता ज्ञान दे ही दिया है.
रामराम.
सतीश भाई एक बात तो तय है जब अजीत जी जैसे अच्छे इंसान को निशाना बनाया जा सकता है तो हम जैसे हमेशा उन्के निशाने पर रहेंगे।सवाल किसी के एक के अपमान का नही है,अपमान तो किसी का भी नही किया जाना चाहिये।इसके लिये क्या असली ज़िंदगी कम पड़ रही है जंहा झूठ-फ़रेब और तनाव ही तनाव है,मैं तो शायद उन सब से बचकर यंहा आया और मुझे खुशी है यंहा आप जैसे और भी बहुत से अच्छे इंसान मिले।यंहा तो सिर्फ़ प्यार होना चाहिये अगर यंहा भी मान-अपमान घात-प्रतिघात चलेगा तो उससे अपनी असली दुनिया क्या कम है?
ReplyDeleteजमे रहिये भाई जी, बस सुबह होने को है....
ReplyDelete'हम लोग हर क्षेत्र में लगभग सभी कहीं न कहीं विशिष्टता रखते है और सभी आदरणीय है , अगर हम एक दूसरे का सम्मान न कर सकें तो कम से कम बेवजह अपमान करने से तो बचा जा सकता है !'
ReplyDeleteमेरे मन की भी बात यही है !शुक्रिया !!
सौ सुनार की.....एक लोहार की....
ReplyDeleteसौ सुनार की.....एक लोहार की....
ReplyDeleteप्रिय सतीश,
ReplyDeleteतुम ने पुन: एक चिंतनीय आलेख प्रस्तुत किया है. वाकई में लाख टके की बात है.
"घटिया लोगों को महिमा मंडित करने का प्रयास नहीं होना चाहिए "
यह सही है, और जब हिन्दी चिट्ठों की संख्या 50,000 से ऊपर पहुँच जायगी तब घाटिया लोग कहीं न रहेंगे. लेकिन जब तक हमारी संख्या सीमित है तब तक घाटिया लोगों को अपनी गंदी राजनीति चलाने का अवसर मिलता रहेगा.
नंगे से खुदा भी डरता है, और फिलहाल हिन्दी चिट्ठाजगत में घाटिया लोगों से अधिकतर चिट्ठाकार थर्राते हैं.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.IndianCoins.Org
सतीश जी ,नमस्कार ,
ReplyDeleteआप का ये लेख पढ़ कर बहुत मज़ा आया ,मैं जानती हूं कि ये चिन्तन का विषय है न कि मज़ा लेने का ,लेकिन जब दिमाग़ ये सोच रहा हो कि मालूम नही मेरी सोच कितनी सही है कितनी ग़लत उस समय ऐसा लेख पढ़्ने को मिले तो मज़ा ही आएगा न.
सही बात है कि सही समय पर किये गए प्रतिरोध का ही महत्व है .
सतीश जी ... दुनिया है तो लोग हैं, लोग हैं तो बाते हैं ... बाते हैं तो नोक-झोंक भी है .... कोई कुछ तो कोई कुछ .....
ReplyDeleteकुछ तो लोग कहेंगे,
लोगों का काम है कहना .....
छोड़ो बेकार की बातों में ......
मस्त रहना ही अच्छा है ....
सतीश जी ... दुनिया है तो लोग हैं, लोग हैं तो बाते हैं ... बाते हैं तो नोक-झोंक भी है .... कोई कुछ तो कोई कुछ .....
ReplyDeleteकुछ तो लोग कहेंगे,
लोगों का काम है कहना .....
छोड़ो बेकार की बातों में ......
मस्त रहना ही अच्छा है ....