मेर्रे गीत पर, आदरणीय बृजमोहन श्रीवास्तव के कमेंट्स पढ़कर की बोर्ड से, उँगलियाँ हटाकर, निढाल सा हो गया ,
बेटी शायद मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है !
बेटी शायद मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है !
"प्रिय सतीश -यह अनुभव ले पूरी तरह सिद्ध है कि बेटियां माँ बाप को ज्यादा चाहती है ,पुत्र तो शादी के बाद बदल भी जाता है किन्तु बेटी को शादी के बाद भी माँ बाप की चिंता सताती रहती है | इसका कारण है बचपन से ही पुत्र का कार्यक्षेत्र बाहर और बेटी का घर के अन्दर होता है |बेटी देखती है घर कैसे चलाया जा रहा है ,माँ को क्या क्या परेशानी हो रही है ,पिता कितने कष्ट सहन कर अल्प आय में घर चला रहा है ,उनके प्रति प्रेम व् सहानुभूति उसके मानस में अंकित हो जाती है बेटा इन सब से बेखबर रहता है"
एक एक शब्द लगता है हर घर की कहानी है , कितने भारी मन से विदा होकर "अपने घर" जाती है हमारी बिटिया "अपना घर" छोड़ कर ! उसका अपना घर विवाह के दिन से ही "मायका " बन जाता है और घर के लोग, घर से बेटी को भेज अक्सर गंगा नहाने जाते हैं , एक जिम्मेवारी से मुक्ति मिली , और नए घोंसले में यह बच्ची अपनी जगह बनाने के प्रयास में एक नयी शक्ति से लग जाती है !
सारे जीवन यह बच्ची "अपने घर" की याद आते ही तड़प उठती है , त्यौहार और मायके में हुए उत्सव के अवसरों पर, अक्सर भाई या पिता के संदेशे का इंतज़ार करती रहती है , कि शायद इस बार माँ किसी को भेज पाए !
और अक्सर माँ -बाप , अपने व्यस्त बेटे -बहू के सामने, अपने आपको असहाय सा महसूस करते हैं.....
एक एक शब्द लगता है हर घर की कहानी है , कितने भारी मन से विदा होकर "अपने घर" जाती है हमारी बिटिया "अपना घर" छोड़ कर ! उसका अपना घर विवाह के दिन से ही "मायका " बन जाता है और घर के लोग, घर से बेटी को भेज अक्सर गंगा नहाने जाते हैं , एक जिम्मेवारी से मुक्ति मिली , और नए घोंसले में यह बच्ची अपनी जगह बनाने के प्रयास में एक नयी शक्ति से लग जाती है !
सारे जीवन यह बच्ची "अपने घर" की याद आते ही तड़प उठती है , त्यौहार और मायके में हुए उत्सव के अवसरों पर, अक्सर भाई या पिता के संदेशे का इंतज़ार करती रहती है , कि शायद इस बार माँ किसी को भेज पाए !
और अक्सर माँ -बाप , अपने व्यस्त बेटे -बहू के सामने, अपने आपको असहाय सा महसूस करते हैं.....
बिल्कुल सही कहा आपने और आपका विश्लेषण एक दम सटीक है. बेटियां वाकई ऐसी ही होती हैं. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
जी हाँ बेटियां ऐसी ही होती हैं...
ReplyDeleteअगर हम बहू कॊ भी बेटी समझे, बेटी जितना प्यार दे तो.... बेटा भी नही बदलेगा,
ReplyDeleteइसी तरह संसार चलता रहेगा,
ReplyDeleteबेटे-बहु ना सही बेटी-दामाद
वक्त पर काम आएंगे।
राम राम
बिलकुल सहमत पिता को बेटी ही समझ पाती है पूरी सच्चाई और संवेदना के साथ -पिता के लिए भी शीतल हवाएं हैं बेटियाँ !
ReplyDeleteसहमत हूं आपसे .. पर जो बेटियां अपने माता पिता के लिए संवेदनशील होती हैं .. अपने सास ससुर के लिए भी उतनी ही संवेदन शील हो जाएं .. और जो माता पिता अपनी बेटियों के लिए संवेदनशील होते हैं .. वो बहूओं के लिए भी होने लगे .. तो इस दुनिया का सारा दुखदर्द दूर हो जाए !!
ReplyDeleteभावुकता से ओत-प्रोत कर दिया आपने..शिखा जी से सहमत ऐसी ही होती हैं बेटियाँ!!
ReplyDeleteसंस्कार अच्छे हों तो बेटा , बेटी में कोई फर्क नहीं होता ।
ReplyDeleteलेकिन यह सच है की बेटी बाप की कमजोरी होती है।
is baat se main bilkul sahmat hoon .kyonki main isi varg se taalluk rakhti hoon .umda lagi post ,sundar .
ReplyDeleteसतीश जी ,नमस्कार ,
ReplyDeleteजी बिल्कुल सही है बेटियां सुरभित फ़िज़ाएं हैं वो अपने माता पिता की हर भावना को समझती हैं लेकिन बेटों को कम आंकना उन के साथ अन्याय है,
बेटियां जज़्बाती ज़्यादा होती हैं इस लिए दिखाई देता है
बेटे जता नहीं पाते अपना प्यार ,
और सब से बढ़कर ये चीज़ें इन्सान के मेज़ाज पर निर्भर होती हैं (indivisualy)
त्यौहार और मायके में हुए उत्सव के अवसरों पर, अक्सर भाई या पिता के संदेशे का इंतज़ार करती रहती है , कि शायद इस बार माँ किसी को भेज पाए !
ReplyDelete-kitni gehrayi se beti ke man ko samjha hai...khushi ho rahi he is post ko padh kar. aur man dhanye kar raha hai aapke jaise nirmal man par.
और अक्सर माँ -बाप , अपने व्यस्त बेटे -बहू के सामने, अपने आपको असहाय सा महसूस करते हैं.....
-aah kaisi mazburiya hai mata-pita ki bhi.....ufff....ankhe nam kar di.
सतीश जी.. बृजमोहन जी के ख्यालात वाकई भावनात्मक हैं.. लेकिन मैं संगीता जी बात से सौ फीसदी मु्त्तफिक हूं.. कि अगर बेटियां ससुराल जाकर बहू के बजाए बेटी का रूप निभाएं, तो तमाम दुख-दर्द खत्म हो जाएं.. फिर शायद हमें बोटियों के लिए इस तरह आंसू भी न बहाना पड़ें... कुछ गलत कह दिया हो, तो माफ कर दीजिए...
ReplyDeleteसतीश जी.. बृजमोहन जी के ख्यालात वाकई भावनात्मक हैं.. लेकिन मैं संगीता जी बात से सौ फीसदी मु्त्तफिक हूं.. कि अगर बेटियां ससुराल जाकर बहू के बजाए बेटी का रूप निभाएं, तो तमाम दुख-दर्द कत्म हो जाएं.. फिर शायद हमें बोटियों के लिए इस तरह आंसू भी न बहाना पड़ें... कुछ गलत कह दिया हो, तो माफ कर दीजिए...
ReplyDeleteBhagvan kee aseem krupa hai mujh par yanha to teen betiya kisee bhee najariye se beto se kum nahee........shiksha ke kshetr me jo unhone line lee poora sahyog unhe diya . sateesh jee bus ye yaad rakhiyega kee patnee bhee kisee kee betee hai.unhe bhee nazarandaz nahee karana hai......
ReplyDeleteसही कहा है आपने ... शायद इसलिए बेटियाँ दिल के करीब रहती हैं ...
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