"मैं ने सिर्फ एक सच कहा लेकिन
यूं लगा जैसे इक तमाशा हूँ
मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ "
यह लफ्ज़ हैं ,५३ वर्षीय सरवत एम् जमाल के , जो उन्होंने अपने ब्लाग सरवत इंडिया पर लिखे नए लेख "होली ....ग़ज़ल " में व्यक्त किये हैं ! यह दर्द उन्हें हमारे ही एक देश वासी ने होली की मुबारकबाद भेजते समय अनजाने में दे दिया ! शायद
- उन्हें अंदाजा ही नहीं होगा कि उनके इन शब्दों से एक संवेदन शील दिल को कितनी तकलीफ होगी कि वे शायद होली ही न खेल पायें !
- उन्हें शायद यह भी नहीं पता होगा कि सरवत जमाल ही नहीं इस देश में लाखो अल्पसंख्यक अपने अन्य मित्रों के साथ ठीक वैसे ही उत्साह से होली खेलते हैं जैसे हम .
- उन्हें शायद यह भी नहीं पता होगा कि सरवत जमाल के घर में भी होली वैसे ही खेली जाती है जैसे उनके घर में !
- उन्हें शायद यह भी नहीं पता होगा कि सरवत जमाल और उनकी धर्म पत्नी श्रीमती अलका मिश्रा इस बार होली नहीं मना पाए !
- उन्हें शायद यह भी नहीं अंदाजा होगा कि इस परिवार की यह होली , इन शुभचिंतक के " आप भी तो भारतीय हैं ....." जैसे शब्दवाण की भेंट चढ़ चुकी है !
बेचारे सरवत जमाल इस पर और क्या कहें ....उनकी ही ग़ज़ल की दो लाइनें दे रहा हूँ ....
...........
और बेटी का बाप क्या करता
अपनी पगडी तो पाँव में धर दी
"आपकी आंखों में नमी भर दी !
बेगुनाहों ने मर के हद कर दी
और बेटी का बाप क्या करता
अपनी पगडी तो पाँव में धर दी
ye kab tak chalega ye bada sawalhai.......
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर एम एस सथ्यू साहब की फिल्म गर्म हवा का एक दृश्य याद आ गया...पार्टिशन के बाद दिल्ली में एक हवेली में बड़ी बी रह रही होती है कि कोई सरकारी महकमे का कारिंदा बड़ी बी के पास पहुंचता है और कहता है कि ये हवेली कस्टोडियन की देखरेख में रहेगी...इस पर बड़ी बी कहती हैं...मैंने तो सिर्फ दो ही जने थे...ये मुआ तीसरा कस्टोडियन कहां से आ गया...
सरवत भाई, शर्मिंदा हैं हम कि आज़ादी के 63 साल बाद भी मुल्क से ऐसी सोच को नहीं मिटाया जा सका...हो सके तो इन्हें माफ़ कर दीजिएगा...
जय हिंद...
सर्वात जमाल के साथ जैसा हुआ....कोई चकित करने वाली बात नहीं है.हम सभ इसके कहीं न कहीं शिकार होते रहते हैं. सवाल करने का मन करता है कि क्या भारतीय होने के लिए होली मनाना ज़रूरी है ....क्या सेकुलर दिखने के लिए दरगाहों पर जाना ..ज़रूरी है...
ReplyDeleteबहुसंख्यक और अल्पसंख्यक ...इस पीड़ा से मुक्ति कब तक..क्या हमें भी मोक्ष मिलेगा....
अल्पसंख्यक कहीं का हो चाहे दिल्ली का या कश्मीर का..दर्द और दुःख सामान ही है..हाँ ज़र्रा बराबर अंतर होता हो..
जिस खुले दिल से सतीश साहब ...लोगों को गले लगाते हैं...इसे दुर्लभ न कहा जाए तो क्या कहूँ..कितने लोग हैं.....ऐसे.
और हमें इन पर नाज़ है..serwat साहब से यही कहूँगा..खुशदीप हैं हमारे साथ सतीश जी हैं हमारे साथ और भी ढेरों हैं ..
दिल प मत ले यार!!!!
@ खुशदीप सहगल
ReplyDeleteकुछ लोग और समूह ऐसी सोच पर ही जीवित हैं। वे कैसे अपने प्राणों का तोता मरने देंगे।
बहुत ही मुश्किल सवाल है क्योंकि इसी की दम पर गाडी चल रही है.
ReplyDeleteरामराम.
शानदार पोस्ट है...
ReplyDelete@ शहरोज
ReplyDeleteयहाँ अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक का नहीं वरन दोहरी मानसिकता का है. दिखाने के दाँत और खाने के दाँत ---
इंसान, इंसान में फर्क करने वाले को कोई तो लक्ष्य चाहिए. आज सर्वत जी तो कल कोई और --
शहरोज़ साहब,
ReplyDeleteज्यादातर लोग अच्छे हैं। चंद नासमझ हैं।
अफ़सोस कि आप, सरवत साहब और सतीशजी इनकी बातों को तूल दे रहे हैं।
अनदेखी करें और अपने आसपास के
खुशगवार तबीयत वाले किरदारों को
महसूस करें। हिन्दुस्तान जिनसे आबाद है।
मार्मिक गाथा
ReplyDeleteएक असंवेदनशील नासमझ व्यक्ति की बात को इतना महत्व देने की कोई आवशयकता मुझे तो लगती नहीं। एक शेर याद आया:-
ReplyDeleteवाइज़-ए-तंगनज़र कहता है क़ाफ़िर मुझको
और क़ाफ़िर ये समझता है मुसलमान हूं मैं
सरवत जी को कोई ज़रूरत नहीं है ऐसी बकवास पर ध्यान देने की। सतीश सक्सेना और ख़ुशदीप जैसे लोग भी तो इसी समाज में रहते हैं। उनकी बातों का क्या कोई वज़न नहीं है?
शानदार पोस्ट है...
ReplyDeleteसतीश जी ,नमस्कार ,आदाब,
ReplyDeleteये आप के स्वभाव की विशेषता है कि आप सब के दुख में दुखी हो जाते हैं,
ये सच है कि ये बहुत दुख का और शर्म का विषय है
लेकिन ये दुख ,ये शर्म किसी एक क़ौम ,किसी एक
जाति का नहीं है ,ये दर्द है हर सच्चे भारतीय का, कभी इस का निशाना सर्वत साहब होते हैं तो कल शायद "सतीश सक्सेना" जैसा secular व्यक्ति भी हो सकता है ,
जो लोग भी इस तरह की बात करते हैं वो किसी धर्म ,किसी क़ौम के हितैषी नहीं बस saddist प्रवॄत्ति के होते हैं ,इन को ignore कर देना ही मेरे ख़याल में ठीक है .
Mere khyaal se aise kisi bhi vayakti ko itna haq yaa mahatav nahi diya jana chhaiye ki wo kisi ke man ki khushi aur shanti ko khatam kar sake
ReplyDeletein logon ko ignore kar dena hi sahi hai
aise log bahutere mil jaayenge jo samvedansheel nahi hote hain
bante hai samvedansheel ........
aur ye sirf muslim-hindu yaa phir dharm ki baat nahi hai
log tarah tarah se dil ko thes pahuchate hain agar sabki baat dil tak gayi to jina mushkil ho jaayega
i am sure bahut si mail aayi hogi holi par .......... agar ek koi buri bhi hai to hazaar dusri achchi houngi doston ki shubhkamana liye houngi .........
kya ye sahi hai ki hazaron achchi mail ko chor kar ek ke liye dukhi hoya jaaaye ?
सतीश जी, आपकी पोस्ट स्वागतयोग्य है, लेकिन मुझे लगता है, कि यदि चन्द लोग इस मसले को इरादतन छेडते हैं तो हम उन पर चर्चा और अफ़सोस ज़ाहिर करके उनके मंसूबों को कामयाब कर देते हैं.वे तो यही चाहते हैं, कि इन मुद्दों पर चर्चा गर्माये, और वे इसमें अपने हाथ सेंक लें. शिकार होते हैं सर्वत साब, आप ,हम या शहरोज़ साहब, जिन के दिलों में जाति-धर्म, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक जैसी बातें ही नहीं हैं. अजित जी की बात से सहमत हूं, हमें ऐसे नासमझ लोगों की बात पर ध्यान ही नहीं देना चाहिये. सामाजिक बहिष्कार ही इनका एकमात्र इलाज है.
ReplyDeleteसरवत एम् जमाल और उनकी धर्म पत्नी श्रीमती अलका मिश्रा से हर संवेदनशील व्यक्ति को माफ़ी मांगनी चाहिए। आशा है ये हम सब को माफ़ कर देगें।
ReplyDeleteसभी को अपने नेक कार्यों को बिना किसी के कहे की कुछ भी परवाह किए और कान न देते हुए जारी रखना चाहिए। वरना जिस प्रकार वे अभी सफल हो रहे हैं उसी प्रकार सदा सफल होते रहेंगे। वे जब जो चाहते हैं कहते हैं करते हैं तो आप क्यों रूकते हैं, आपको भी अपने नेक कार्यों को जारी रखना चाहिए। भले ही वे कुछेक के नजरिये में हितकारी न नजर आते हों। पर उनका नजरिया ही तो सब कुछ नहीं है।
ReplyDeleteसब कुछ देश की राजनीति से प्रेरित है वरना हम सब एक इंसान है बस...हमें खुद में मानव मूल्य की सार्थकता को समझनी चाहिए और बेकार की बातों से बच कर रहना होगा.....
ReplyDeleteसच में दिल को छू लेने वाली पोस्ट...
अजित जी से सहमत।
ReplyDeleteचंद लोग तो हमेशा ही ऐसे रहेंगे ।
इन्हें तूल देने की ज़रुरत नहीं ।
अभी भी बहुत से अच्छे लोग हैं।
प्रिय सतीश | कुछ लोग विघ्न संतोषी होते है जब तक वे विघ्न पैदा न करदें तब तक उन्हें चैन नहीं आता |और मजेदार बात यह कि वे समझते है कि हम बड़े अच्छे काम कर रहे हैं |आपने सही लिखा है कि एक मूर्ख और ह्रदयहीन व्यक्ति के द्वारा जाने अनजाने में कहे गए कडवे बोल किसी संवेदनशील ह्रदय को छलनी कर सकते हैं , और ह्रदयहीन लोगों को इसका अहसास तक नहीं होता "" वाकई यह अफसोस करने की बात है | आदमी संवेदना हीन हो चुका है
ReplyDeleteजमाल साहब बहुत संवेदनशील हैं .... बहुत सी बातों को इतना ज़्यादा दिल पर नही लेना चाहिए ... निराशा और हाताशा .. दोनो ही अच्छी नही .... वो गीत है ना ...
ReplyDeleteकुछ तो लोग कहेंगे ..
लोगों का काम है कहना ... तो काहे को परवा करनी ......
समाज में एक न्यून संख्या ऐसे लोगों की है जो अपने शब्दों से दूसरों को आहत करते हैं. इसके विरुद्ध लिख कर आप ने अच्छा किया.
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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ये हो क्या रहा है?
ReplyDeleteहम सब प्राइमरी स्कूल के बच्चे हैं क्या?
अजीत जी, वंदना जी की बात एकदम सटीक है....
सुनते आये थे कि ’गंदगी’ को मिट्टी डालकर ढांप देना चाहिये.
ये सब कुछ भी ब्लॉग जगत में चलेगा?
क्या कहूँ !
ReplyDeleteजिसने भी कहा ये उसकी नासमझी ही कही जायेगी .. या हो सकता हो कहीं की चोट कही दिखाई दी
सर्वत साहब मुझे आपसे ज्यादा दुःख हुआ ये सब पढ़ कर ... दिल्ली ब्लोगर मीट में आपसे मुलाक़ात हुई थी और हम आपकी सहृदयता से हम वाकिफ हैं हम अपनी तरफ से इसकी माफी मांगते हैं ...बाइबिल में एस वाक्य है "ईश्वर उन्हें माफ करना जिन्हें ये नहीं पता नहीं कि वो क्या कर रहे हैं"