प्रथम प्यार का प्रथम पत्र
है, भेज रहा मृगनयनी को !
उमड़ रहे जो भाव, ह्रदय में
अर्पित, प्रणय संगिनी को !
इस आशा के साथ कि
समझें तड़प हमारे प्यार की !
प्रेयसि पहली बार लिख रहा, चिट्ठी तुमको प्यार की !
अक्षर बन के जनम लिया
है मेरे दिल के,भावों ने !
दबे हुए, जो बरसों से थे
लिखा उन्हीं अंगारों ने !
शब्द नहीं लिखे हैं इसमें ,
भाषा ह्रदयोदगार की !
झुकी नज़र को इक पन्ने पर, भेंट हमारे प्यार की !
तुम्हे दृष्टि भर जिस दिन
देखा था सतरंगी रंगों में,
भूल गया मैं , रंग पुराने
भरे हुए थे , यादों में !
उसी समय से,पढनी सीखी ,
गीता अपने, प्यार की !
प्रियतम पहली बार गा रहा, मधुर रागिनी प्यार की !
मुझे याद वे शब्द तुम्हारे
ह्रदय पटल पर लिखे हुए
दुनिया वालों की नज़रों से
कब के दिल में छिपे हुए
निज मन की बतलाऊं कैसे
बाते हैं , अहसास की !
न जाने क्यों आज उठ रही, तड़प हमारे प्यार की !
अगला भाग पढ़ने के लिए प्रणय निवेदन - II पर क्लिक करें !
प्रथम प्यार का प्रथम पत्र है
ReplyDeleteलिखता निज मृगनयनी को
उमड़ रहे जो भाव, ह्रदय में
अर्पित , प्रणय संगिनी को .nice
आज स्वप्न में, देख तुझे
ReplyDeleteझंकार उठे वीणा के स्वर
शायद जैसे तुमने मुझको
याद किया , अंतर्मन से ,
जैसे तड़प उठी हो सजनी , करके यादें प्यार की !
लगता पहली बार महकती बगिया अपने प्यार की !
पूरा गीत दिल को छू गया । और आखिरी पँक्तियाँ लाजवाब मगर कुछ बताने की जरूरत नही गीत बहुत कुछ कह रहा है। बधाई इस गीत के लिये और शुभकामनायें
शब्द नहीं लिखे हैं इसमें
ReplyDeleteक्या कहना है.....इस के अलावा प्रेम में और कहा भी क्या जा सकता है.एक विदेशी वामपंथी आलोचक हुए हैं काडवेल उन्हों ने कहा था जो प्रेम कि कविता नहीं लिख सकता तो वह क्रान्ति की भी कविता नहीं लिख सकता.
आप कामयाब कवि हैं भाई साहब.
अक्षर बन के जनम लिया
ReplyDeleteहै मेरे दिल के , भावों ने
दवे हुए जो बरसों से थे
भड़क उठे , अंगारों से
शब्द नहीं लिखे हैं इसमें , भाषा ह्रदयोदगार की !
आशा है स्वीकार करोगी ,चाहत अपने प्यार की ! प्रेम निवेदन के भाव को ंशब्दों में सजा दिया, सच में किसी को लिखे थे क्या...
satishjee bahut pyara geet likha hai aapne...........
ReplyDeleteतुम्हे द्रष्टि भर , जिस दिन
देखा उन सतरंगी रंगों में ,
भूल गया मैं रंग पुराने
भरे हुए थे , स्मृति में
उसी समय से पढनी सीखी , गीता अपने प्यार की !
प्रियतम पहली बार गा रहा मधुर रागिनी प्यार की !
देखा उन सतरंगी रंगों में ,
भूल गया मैं रंग पुराने
pyar ke alava duniya me rakha kya hai.
kabhee kabhee ye chota mota bichoh ahsaaso ko ubharane me sahayak hota hai..........:)
dekhiye huee na acche geet kee rachana.............
भरे हुए थे , स्मृति में
उसी समय से पढनी सीखी , गीता अपने प्यार की !
प्रियतम पहली बार गा रहा मधुर रागिनी प्यार की !
प्रथम प्यार का प्रथम पत्र है
ReplyDeleteलिखता निज मृगनयनी को
उमड़ रहे जो भाव, ह्रदय में
अर्पित , प्रणय संगिनी को
बहुत सुंदर गीत है जी, देखा.. जवानी मे लिखे गये प्रेम-गीत बुढापे में कैसे काम आते हैं?:)
रामराम.
स्नेह की सहज, सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबधाई।
इस आशा के साथ , कि समझें भाषा अपने प्यार की ,
ReplyDeleteप्रेयसि पहली बार लिख रहा, चिट्ठी तुमको प्यार की !
बहुत बढ़िया भाव .... प्रेमिका को पहली चिठ्ठी प्यार की ...
आपकी रचना रजनीगन्धा के सुवासित फूलों की तरह लगी ..जिनकी मादक सुगंध मन मोह लेती है
ReplyDeleteभाई सतीशजी, इतनी लम्बी पाती, वो भी पहली बार? या तो प्रेयसी निहाल हो गयी होगी या फिर निढाल हो गयी होगी। सारा दिल एक साथ ही निकाल कर रख दिया। बेहद मधुर और दिल को छूने वाली रचना। सम्भाल कर रखिए हमारे यहाँ कई युवा है, चोरी ना कर लें। बधाई।
ReplyDeleteSatish ji,
ReplyDeleteBahut hi sundar giit.
padh kar hi jhurjhuri aa gayi.
kaya din the ve.......
kaya din hain ye......
ab pata chala kii chitthiyan likh
likh aapne bhi khub fadi hai:)
shubhkamnayen.................
बस भाव ही भाव है यहाँ शब्द तो दीखते ही नहीं -प्रेमिक अनुभूति की शायद ऐसी ही शब्दहीन भाषा होती हो सीधे दिल में उतरती चली जाने वाली !
ReplyDeleteअरे सतीश भईया मुझे तो पता ही नहीं आप इतनी अच्छी कविताएं भी लिखते हैं , लाजवाब ।
ReplyDeleteशब्द नहीं हैं मन के भाव उड़ेले हैं । ईश्वर करे आपके भावों को सतत अभिव्यक्ति मिलती रहे ।
ReplyDeleteप्रेम ही सच्चाई और सच्चाई ही पूजा और पूजा ही प्रेम।
ReplyDeleteप्रथम प्यार का प्रथम पत्र है
ReplyDeleteलिखता निज मृगनयनी को
उमड़ रहे जो भाव, ह्रदय में
अर्पित , प्रणय संगिनी को
बहुत सुंदर भाव लिये है आप का यह पहला प्रेमपत्र, आप ने इस मै भाव को शव्दो का रुप दे दिया.
धन्यवाद
सतीश जी ,
ReplyDeleteश्रृंगार रस की उत्तम कृति ,
बहुत सुंदर,
अक्षर बन के जनम लिया
है मेरे दिल के , भावों ने
दवे हुए जो बरसों से थे
भड़क उठे , अंगारों से
शब्द नहीं लिखे हैं इसमें , भाषा ह्रदयोदगार की !
वाह!
गली गली में चर्चा चलती सजनी अपने प्यार की !
ReplyDeleteलिख लिख बारम्बार फाड़ता, चिट्ठी तेरे नाम की !
यह पाती भिजवा ही दें वर्ना यही कहना पडेगा
काश यह पाती
मैं भिजवाता
और
वह पाती
बेहतरीन लिखा आपने ...खूबसूरत रचना !!
ReplyDelete______________
"पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".
प्रथम रागिनी प्यार की , बड़ी मधुर लगी ।
ReplyDeleteदिल ज़वान तो हम ज़वान।
अक्षर बन के जनम लिया
ReplyDeleteहै मेरे दिल के , भावों ने
दवे हुए जो बरसों से थे
भड़क उठे , अंगारों से
शब्द नहीं लिखे हैं इसमें , भाषा ह्रदयोदगार की !
आशा है स्वीकार करोगी ,चाहत अपने प्यार की
बेहद खूबसूरत गीत..निसंदेह.
सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार
आपकी रचना में
बहुत अच्छे भाव है.
- विजय तिवारी ' किसलय
प्रथम प्यार का प्रथम पत्र है
ReplyDeleteलिखता निज मृगनयनी को
उमड़ रहे जो भाव, ह्रदय में
अर्पित , प्रणय संगिनी को
Behad Sundar geet itana anupam patra paane wali ko bhi bahut bahut baadhaiya jinake prem ne itana sundar srajan karwadiya aapse.
Padanane ke liye dhanywaad.
dhanyewad sir..aap mere blog par aaye aur apni amulye tippani di..jiske maadhyam se me bhi aap tak pahuch saki aur aapko padhne ka mauka mila..bahut acchhi poem likhi hai..har shabd sundar mala me gutha hua..ek dam perfect kavita.
ReplyDeletebadhayi.
सतीश जी, गीत की हर पंक्ति...
ReplyDeleteअपने आप में मुकम्मल हो गई हैं....
बहुत कुछ कहा जा सकता है...
लेकिन सबका सारांश...यही है...
लाजवाब...बह्त खूबसूरत..
Behatreen rachna ke liye badhai.. Main kyoon is tarah nahin likh pata??? :(
ReplyDelete'अक्षर बन के जनम लिया
ReplyDeleteहै मेरे दिल के , भावों ने '
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मन में आता है बतला दूं , सबको बातें प्यार की !
लगता सारा गगन पढ़ रहा ,पोथी अपने प्यार की !
वाह!वाह!!
बरसों पूर्व बहुत ही सुन्दर प्रेम गीत लिखा गया था !
क्या बात है!
प्रेम भावों की बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति.
बहुत ही ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार गीत लिखा है जो काबिले तारीफ है! बहुत बढ़िया लगा! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
ReplyDeleteकोई जवाब नही लयबद्ध और भावपूर्ण भी...बढ़िया प्रेम गीत..एक पत्र में सारी भावनाएँ सिमट कर आ गई...क्या लेखनी है सतीश जी बहुत बहुत धन्यवाद....
ReplyDeleteवाह,बहुत खूब!
ReplyDeleteइस विलक्षण रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें...शब्द किस ख़ूबसूरती से भावों में पिरोये हैं की पढ़ कर बरबस मुंह से वाह वा निकल रही है...
ReplyDeleteनीरज
सतीश जी
ReplyDeleteनमस्कार ,
कबीरा अन्योनास्ति पर आगमन के लिए आप का हार्दिक धन्यवाद ,
आप की जानकारी के लिए बतादूँ की मैं प्रवीण जी नहीं हूँ प्रवीण जी से संभवतः आप का आशय प्रवीण शुक्लाजी से है वेदिल्ली से हैं ,मैन्फैज़बाद यु पि से हूँ|
मुझे आप 'कबीरा ''के नाम से संबोधित कर सकतेहैं | आजकल इन्टरनेट से दूर हूँ संभवता सेप्टेम्बर से २३ फरबरी सें नेट कटा हुआ है इसी कारन से आप डेट नहीं है \
पुनः धन्यवाद
प्राणों से प्यारी से शादी....मैंने प्यार किया...
ReplyDeleteसात साल बाद....मैंने प्यार क्यों किया...
जय हिंद...
सुंदर गीत.
ReplyDeleteआपके प्रथम प्यार का प्रथम पत्र बहुत भाया ।
ReplyDeleteअक्षर बन के जनम लिया
है मेरे दिल के , भावों ने
दवे हुए जो बरसों से थे
भड़क उठे , अंगारों से
शब्द नहीं लिखे हैं इसमें , भाषा ह्रदयोदगार की !
आशा है स्वीकार करोगी ,चाहत अपने प्यार की !
वाह वाह !
बहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteअरे वाह सतीश जी!! आपका ये पक्ष तो पहली बार देखा! सुन्दर रचना. बधाई.
ReplyDeleteप्रेम की प्रथम पाती बिलकुल इसी तरह होती है ।
ReplyDeleteऐसा लगता हैं जैसे आपने मेरा भूतकाल मेरे सामने लाकर खड़ा कर दिया है ,आगे कुछ कहते नहीं बन रहा है ,बस ..." भीग जाती हैं पलके तन्हाई मैं ,कांप उठता हूँ दर्द मेरा कोई जान न ले . और भी डरता हूँ ऐसे मैं ,मेरी आँखों मैं उसे देख कर कोई पहचान ना ले ".
ReplyDeleteऐसा लगता हैं जैसे आपने मेरा भूतकाल मेरे सामने लाकर खड़ा कर दिया है ,आगे कुछ कहते नहीं बन रहा है ,बस ..." भीग जाती हैं पलके तन्हाई मैं ,कांप उठता हूँ दर्द मेरा कोई जान न ले . और भी डरता हूँ ऐसे मैं ,मेरी आँखों मैं उसे देख कर कोई पहचान ना ले ".
ReplyDeleteआपकी रचना रजनीगन्धा के सुवासित फूलों की तरह लगी ..जिनकी मादक सुगंध मन मोह लेती
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