एक काफी समय पहले लिखा गीत को दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूँ ....आनंद लीजिये !
हरियाली चादर फैली है ,
मन में उठता है प्रश्न, पवन लहराने वाला कौन ?
बादलों के सीने को चीर बूँद बरसाने वाला कौन?
कल कल छल छल जलधार
बहे, ऊँचे शैलों की चोटी से
आकाश चूमते वृक्ष लदे
हैं , रंग बिरंगे फूलों से ,
हर बार रंगों की चादर से, ढक जाने वाला कौन ?
धरा को बार बार रंगीन बना कर जाने वाला कौन ?
चिडियों का यह कलरव वृन्दन
कोयल की मीठी , कुहू कुहू ,
बादल का यह गंभीर गर्जन ,
वर्षा ऋतु की रिमझिम रिमझिम
हर मौसम की रागिनी अलग,सृजनाने वाला कौन ?
मेघ को देख घने वन में मयूर नचवाने वाला कौन ?
अमावस की काली रातें ,
ह्रदय में भय उपजाती क्यों ?
चाँदनी की शीतल रातें
प्रेमियों को भाती हैं क्यों
देख कर उगता पूरा चाँद , कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
चाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?
कामिनी की मनहर मुस्कान
झुकी नज़रों के तिरछे वार
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
शीतल मनभावन पवन बहे
बादल चहुँ ओर उमड़ते हैं
जिस ओर उठाऊँ द्रष्टि वहींबादल चहुँ ओर उमड़ते हैं
हरियाली चादर फैली है ,
मन में उठता है प्रश्न, पवन लहराने वाला कौन ?
बादलों के सीने को चीर बूँद बरसाने वाला कौन?
कल कल छल छल जलधार
बहे, ऊँचे शैलों की चोटी से
आकाश चूमते वृक्ष लदे
हैं , रंग बिरंगे फूलों से ,
हर बार रंगों की चादर से, ढक जाने वाला कौन ?
धरा को बार बार रंगीन बना कर जाने वाला कौन ?
चिडियों का यह कलरव वृन्दन
कोयल की मीठी , कुहू कुहू ,
बादल का यह गंभीर गर्जन ,
वर्षा ऋतु की रिमझिम रिमझिम
हर मौसम की रागिनी अलग,सृजनाने वाला कौन ?
मेघ को देख घने वन में मयूर नचवाने वाला कौन ?
अमावस की काली रातें ,
ह्रदय में भय उपजाती क्यों ?
चाँदनी की शीतल रातें
प्रेमियों को भाती हैं क्यों
देख कर उगता पूरा चाँद , कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
चाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?
कामिनी की मनहर मुस्कान
झुकी नज़रों के तिरछे वार
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
एक ही तो है वो...........................
ReplyDeleteजाने क्या क्या किया करता है !!!!
बहुत सुंदर..............
सादर.
सुन्दर सृजन , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteकामिनी की मनहर मुस्कान
ReplyDeleteझुकी नज़रों के तिरछे वार
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
बेहतरीन प्रेम भाव की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
चिडियों का यह कलरव वृन्दन
ReplyDeleteकोयल की मीठी , कुहू कुहू ,
बादल का यह गंभीर गर्जन ,
वर्षा ऋतु की रिमझिम रिमझिम
प्रकृति के विभिन्न रूपों से प्रभावित और आनन्दित करता सुंदर गीत.
आदरणीय सर जी , पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा , अच्चा लगा . आपकी रचनाये बेहद संतुलित एवं भावनाओं को प्रदर्शित करने में श्रेष्ठ है . धन्यवाद
ReplyDeleteमेरे गीत पर आपका स्वागत है अनुराग भाई !
Deleteशुभकामनायें !
dhanyavad sir ji
Deleteईश्वर और प्रकृति के प्रति प्रेम का अनूठा समावेश
ReplyDeleteरहस्यवादी कौतूहल का सुन्दर समावेश!
ReplyDeleteपहले शायद पढ़ने में नहीं आया, सुंदर गीत।
ReplyDeleteसुन्दर गीत .
ReplyDeleteप्रकृति प्रेम के सुन्दर ्भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसुंदर प्रकृति चित्रण के साथ छायावाद !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteइसी कौन ? पर सभी मौन
अनजाने होठों पर क्यों पहचाने गीत हैं
कल तक जो बेगाने थे जन्मों के मीत हैं
हरीहरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन
जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशायें देखो रंग भरी चमक रही उमंग भरी
ये किसने फूल फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है......????????
यह गीत और यह आवाज अमर रहेगी ...
Deleteबहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत शुभकामनायें आपको ....
ReplyDeleteold is gold :)
ReplyDeleteमन में उठता है प्रश्न, पवन लहराने वाला कौन ?
ReplyDeleteबादलों के सीने को चीर बूँद बरसाने वाला कौन?
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ब्लोगिये से सुन्दर रचना कहो लिखवाता है ये कौन ,
अरे टिपवाता है ये कौन . ?भाई टिपवाता है ये कौन .?
यह समस्या भी खूब याद दिलाई.... :-)
Deleteशुभकामनायें वीरू भाई
अद्वैत परब्रह्म कि धुन सुनाता सुंदर गीत ... ...... ....
ReplyDeleteशुभकामनायें ...
मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है। उस परम सत्ता के रूप को हम देख नहीं पाते पर अपने आसपास हर पल हो रहे परिवर्तन को होते रहने से उसकी उपस्थिति को महसूस तो हम करते ही रहते हैं।
ReplyDeleteवाह ..
ReplyDeleteबढिया !!
बस एक ही शक्ति है जिसे सब ईश्वर मानते हैं ... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteछायावाद की छटा लिये बहुत ही प्यारा गीत ।
ReplyDeleteएक सभी के मन बसता है, खुद पूछे कि है वो कौन?
ReplyDeleteमन में होने का आभास मिले पर तन एड्रेस बताए कौन?
प्रकृति सत्य, कर्म अनादि। शाश्वत आत्म को पूछे कौन?
आत्म अवलोकन करे जो बंदा,सत्य पाकर भी होता मौन।
आपका स्वागत है सुज्ञ जी....
Deleteसर जी वह प्रकृति ही है।
ReplyDeleteउसी कौन की सतत खोज मन के अन्दर और विश्व के बाहर लगी रहती है।
ReplyDeleteउस सत्ता सर्वोच्च की, करते विनय सतीश ।
ReplyDeleteलौकिकता के भजन से, होते खुश जगदीश ।
होते खुश जगदीश , यहाँ जब मरा मरा से ।
पवन धरा जल चाँद, वृक्ष इस परम्परा से ।
करे मोक्ष को प्राप्त, हिले प्रभु-मर्जी पत्ता ।
अंतर-मन भी वास, करे वह ऊंची सत्ता ।।
शुक्रिया रविकर भाई ...
Deleteआपके कमेन्ट लाजवाब हैं , इससे रचना की सुन्दरता में चार चन लगते हैं !
शुभकामनायें !
गीत बहुत ही श्रेष्ठ है।
ReplyDeleteशुक्रिया अजीत जी ....
Deleteशुभकामनायें आपको !
Hridaysparshi Geet.... Bahut Sunder
ReplyDeleteकितना कुछ देता जाता है वह .... पत्थर में रख दो तो वह भी जीवंत हो उठता है
ReplyDeleteप्रकृति प्रेम के सुन्दर भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
बहुत ही सुंदर गीत ... ..बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत ..पढकर मज़ा आ गया ...सुंदर गीत के लिए बधाई
ReplyDeleteआभार आपका ....
Deleteकामिनी की मनहर मुस्कान
ReplyDeleteझुकी नज़रों के तिरछे वार
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
बड़ी सुंदर पंक्तियाँ है....
प्रकृति इश्वर का साकार रूप है, चारोओर से वही हमें पुकार रहा है !
बस महसूस करने के लिये आप जैसा संवेदनशील भाउक मन चाहिए !
सुंदर रचना .....
आभार आपका ....
Deleteबहुत बढ़िया .
ReplyDeleteगीत विधा में आपकी निपुणता बेमिसाल है भाई जी .
आपके शब्द प्रोत्साहन हैं मेरे लिए ....
Deleteबहुत सुंदर |
ReplyDeleteइन इन्द्रधनुषी रंगों में प्रकृति की छटा तो है ही,उस रहस्यवाद की ओर भी संकेत है जहां तक पहुंचने की विज्ञान की हर कोशिश नाक़ाम होगी।
ReplyDeleteकौन???...सदियों से उठने वाले इस प्रश्न का उत्तर प्रकृति है, ईश्वर है, अनुभूति है या फिर से वही प्रश्न..आखिर कौन???.
ReplyDeleteभाई सतीश जी नमस्ते ! जी हां यही सब तो है जिससे हमें हर पल अहसास होता है की इश्वर है...
ReplyDeleteआज इस सेकुलर वाद के युग में बहुत सही सोच को गंभीरता पूर्वक प्रदर्शित किया है आपने ...
आपकी इस रचना को पढ़ कर मुकेश जी द्वारा गया गीत याद आ गया .....हरी भरी वसुंधरा नीला नीला ये गगन .......ये किसने फुल बिखेर के किया श्रृंगार है ....वो कौन चित्रकार है वो कौन चित्रकार ......आभार आपका
आपके शब्द प्रोत्साहन हैं मदन भाई ...
Deleteवाह ...बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteले लिया आनंद! शुभकामनायें!
ReplyDeleteये सब खुराफात तो कामदेव ही कर सकते हैं -और कौन करेगा ?
ReplyDeleteरोमांटिक कविता, लालित्य भरी ,श्रृंगार परिपूरित
सतीश भाई ,
Deleteआपके कहे अनुसार आनंद लेते हुए लिख रहा था पर समय इजाजत नहीं दे रहा इसलिए फिलहाल इतना ही ... आगे वैसे भी चिड़ियों / कवि / चांद / अमावस जैसे हालात के पार लगते ही नाजुक कटि प्रदेश और उसके निकट फिसलन भरी वादियां हैं :)
बाहर जो शीतल पवन बहे
बादल चहुँ ओर उमड़ते हों
हर सू देखूं हरियाली तो
तब कुदरत से कह बैठूं मैं
मेरे अंदर कब आओगी ?
छलछल कर जो जलधार बहे
ऊंचे हिम गिरी की छाती से
फल लदे वृक्ष की टहनी जब
धरती चूमें , जमकर झूमे
कुछ पुष्प धरा पर बिखरे हों
तब कुदरत से कह बैठूं मैं
मेरे अंदर कब आओगी ?
अब समझ में आया कि कल से घटाओं ने आपकी छत के ऊपर क्यों डेरा जमाया हुआ है!! भीग गए हम तो आपके गीत की फुहार में!! आनंद!!
ReplyDeleteअमावस की काली रातें ,
ReplyDeleteह्रदय में भय उपजाती क्यों ?
चाँदनी की शीतल रातें
प्रेमियों को भाती हैं क्योंwaah .......bahut badhiya ...
Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/#ixzz1rnf47opS
प्यारा गीत है। समय का अभाव है वरना अंतिम बंद पढ़कर तो ताल से ताल मिलाना चाहिए था। आनंद आ गया।
ReplyDeleteसुंदर सुंदर मनभावन पंक्तियाँ आपसे लिखवाता है कौन?
ReplyDeleteप्यारा है ये प्रेम गीत.
ReplyDeleteदेख कर उगता पूरा चाँद , कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
ReplyDeleteचाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?
खुबसूरत शब्दों से सुसज्जित आपके गीत ....और यह सश्यश्यामला वसुंधरा,
सच ! कितनी खुबसूरत है यह दुनियां......और कितनी सुंदर है उपरोक्त अभिव्यक्ति.............?आभार ........
देख कर उगता पूरा चाँद , कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
ReplyDeleteचाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?
बहुत सुन्दर रचना... शुभकामनायें
:)
बहुत सुंदर रचना है
ReplyDeleteप्रश्न के उत्तर चाह रहे हैं
ऊपर भी वही तो
चल रहा है जिस तरह
नीचे मनमोहन मौन क्यों हैं
नहीं बता रहे हैं !