जबसे ब्लॉग जगत से जुड़ा हूँ , ईमानदार लेखन, पढने को लगभग तरस से गए !मगर हाल में गुल्लक पर लिखी राजेश उत्साही की आप बीती "सूखती किताबों में भीगा मन " पढ़ते पढ़ते, मेरा मन अवश्य भीग गया !
राजेश की लेखन शैली के बारे में जानना हो तो गुल्लक पर लिखा उपरोक्त लेख पढ़ लें ! अपने आपको बड़े लेखक साबित करने में लगे हम लोग ,शायद इस लेखक में ईमानदारी की एक गंध महसूस कर सकें !
बरसों से, बेशकीमत कलम का धनी यह लेखक ,अपने आपको स्थापित करने के संघर्ष में लगे, लेखकों में, हिम्मत की एक मिसाल है !
इस कविता संग्रह में एक कविता " चक्की पर " की इन लाइनों पर गौर करें ....
स्त्रियाँ अपने में मगन
सूप में फटकती रहती हैं चिंताएं
लापरवाह अपनी देह के प्रति
...
बहरहाल
मैं और मेरा दोस्त
चक्की की आवाज के बीच स्वतंत्रता से
बात कर सकते हैं बिना किसी डर और
झिझक के
उनके और उनकी देह के बारे में !
अभावों से उनका सतत संघर्ष उनकी रचनाओं में मुखर हैं ! सामाजिक विषमताओं से जूझते एक आम आदमी की चीत्कार उनकी हर रचना में दिखाई देती है ! "छोकरा " "मैंने सोंचा " "कल रात" सोंचने को मजबूर कर देती हैं !
इस पुस्तक को पढ़कर राजेश उत्साही के प्रति श्रद्धा बढ़ी है !
इस शारदा पुत्र के सम्मान में, इस लेख को लिख कर, अपने आपको धन्य मान रहा हूँ !
राजेश उत्साही जी नि संदेह बहुत अच्छे ईमानदार रचनाकार है,..
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति,अच्छी समीक्षा,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार ||
शुभकामनाये ||
राजेश उत्साही एक प्रतिभावान रचनाधर्मी हैं -उन पर कई मित्रों की पोस्ट इन दिनों पढ़ा हूँ -आपकी सोने पर सुहागा है !
ReplyDeleteशुक्रिया सतीश भाई। मेरे प्रति व्यक्त किए विचारों से अभिभूत हूं। किन्तु यह क्या आपने जिस तरह से समीक्षा की शुरूआत की थी,उससे लग रहा था कि आप पूरी किताब पर विस्तार से बात करेंगे। यह जो कि वास्तव में एक टिप्पणी भर ही है,मुझे और अन्य पाठकों को अतृप्त ही छोड़ देगी।...या मैं समझूं कि यह लेख की पहली किश्त है।
ReplyDeleteराजेश भाई ,
Deleteस्वागत है आपका ...
मैं साहित्यिक लेखक बिलकुल नहीं हूँ ...और समीक्षक तो बिलकुल नहीं :)
मैं अभी भी इस पुस्तक को पढ़ रहा हूँ , इसे और गुल्लक को पढ़कर आपके प्रति मन में जो कुछ आया वह इस पर लिख दिया ताकि मेरे आदरणीय पाठक गण इसका स्वाद ले सकें ...
शुभकामनायें आपको....
सच कहा आपने इतनी सरलता कम ही देखने को मिलती है।
ReplyDelete...बिलकुल प्यार का रस उड़ेल दिया,राजेश भाई पर !
ReplyDeleteजिस कविता का जिक्र किया है,इससे लगता है कि आप सार को पकड़ने में भी निपुण हैं !
राजेशजी ने हमें भी वह अनमोल-पुस्तक भेंट की है !
राजेश उत्साही के प्रति आपका स्नेह और सम्मान स्पष्ट रूप से झलक रहा है आपके शब्दों में .... शुभकामनाएं....
ReplyDeleteराजेश जी एक सरल हृदय व्यक्ति हैं जिन्हें साहित्य का अच्छा ज्ञान है . उनकी लेखनी में अपनी जड़ों से जुड़े होने की झलक साफ दिखाई देती है .
ReplyDeleteआपने अच्छा परिचय दिया है . हालाँकि पुस्तक के बारे में जानना अभी बाकि है .
राजेश जी जैसे साहित्यिक व्यक्तित्व के बारे मे आपके विचार सुखद लगे ………बहुत बढिया और सटीक परिचय दिया है आपने।
ReplyDeleteराजेश उत्साही जी निसंदेह रत्नों में से एक है ... उनके साहित्य के बारे में सारगर्वित समीक्षा जानकारी देने के लिए आभार .
ReplyDeleteराजेश जी के लिए , उनकी भावनाओं के लिए कितना सही लिखा
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .
achchi jankari di.....dhanybad.
ReplyDeleteस्वागत है आपका ...
Deleteराजेश जी से रु-ब-रु कराने के लिए भाई जी ...
ReplyDeleteआप का आभार!
राजेश भाई के लिए आपका आशीर्वाद आवश्यक था....
Deleteआभार
राजेश जी को नियमित फोलो करती हूँ.....
ReplyDeleteकई समीक्षाएँ पढीं....
आपका नजरिया भी बहुत अच्छा लगा....
शुक्रिया.
अनु
"बंद लगी होने खुलते ही" वाले अंदाज़ में बिना कौमा के फुल-स्टॉप लगा दिए भाई साहब!! ये क्या!!
ReplyDeleteजो शब्द ह्रदय से निकले हैं
Deleteउन पर न कोई संशय आये
वाक्यों के अर्थ बहुत से हैं ,
मन के भावों से पहचानें !
मैंने तो अपनी रचना की, हर पंक्ति तुम्हारे नाम लिखी
क्या जाने अर्थ निकालेगी, इन छंदों का, दुनिया सारी !
:):):)
Deletepranam.
राजेश उत्साही जी की इस कविता में कितना बड़ा यथार्थ छिपा हुआ है!...आभार सतीश जी!
ReplyDeleteहम भी अभी किताब पूरी कर ही नहीं पाये हैं, कविता का रस लेने में समय लगता है। आपकी पोस्ट से ही पता चल रहा है कि आप भी रस लेकर पढ़ रहे हैं।
ReplyDeleteवाकई पढ़ रहा हूँ ....
Deleteपाठक बन कर पढ़ा रहा हूँ :)
आभार !
राजेश जी जैसे बेहतरीन रचनाकार से जुडी इस सुंदर के लिए आभार ....
ReplyDeleteसतीश जी कविता के प्रति राजेश जी की प्रतिबद्धता और ईमानदारी से प्रेरित होकर ही मैंने "वह, जो शेष है" प्रकाशित की है... वास्तव में उनकी पुस्तक तो वर्षो पहले आनी चाहिए थी. लेकिन मेरा सौभाग्य कहिये कि यह पुस्तक "ज्योतिपर्व" से प्रकाशित हुई. एक दिन पहले ही समकालीन हिंदी साहित्य पत्रिका के संपादक और वरिष्ट साहित्यकार श्री प्रभाकर श्रोत्रिय जी को मैंने यह पुस्तक भेंट की है. पुस्तक का कलेवर और सरसरी तौर पर कविता को देखकर उन्होंने कहा कि प्रकाशन में सम्भावना है. एक बात और.. प्रकाशक कभी बड़ा नहीं होता. रचनाकार उसे बड़ा बनता है. इसलिए इस पुस्तक का सारा श्रेय उत्साही जी को ही जाना चाहिए. यदि राजेश जी का दूसरा संग्रह भी ज्योतिपर्व से ही आता है तो वह प्रकाशन की उपलब्धि होगी...
ReplyDeleteअरुण जी सही कहे हैं। बाक़ी कल फ़ुरसत में बतियाएंगे।
Deleteसतीश जी, आपके हृदय उद्गार मन को भिंगाते हैं। अनावश्यक शब्दाडंबर के विस्तार में न पड़कर आपने दिल से जो बात कही है, वह किसी आत्मीय जन के लिए ही कही जा सकती है। राजेश जी में कुछ खास है जो सबको प्रेरित करता है। कविताएं तो उनकी लाजवाब हैं ही।
Deleteachhi prstuti, .......yek achhe rachnakar ka parichay mila aabhar ...
ReplyDeleteनिसंदेह महत्वपूर्ण है राजेश जी का लेखन.
ReplyDeleteआग में तप कर कुंदन बनता है
ReplyDeleteआदरणीय उत्साही जी के लिए आपकी कलम ने अक्षरश: बहुत ही सही कहा है .. सूखती किताबों में भीगता मन पढ़ने के बाद मुझे भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ था ... आपका बहुत-बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए ..
ReplyDeleteराजेश जी का लेखन और उनके साहित्य के बारे में सारगर्वित
ReplyDeleteसमीक्षा जानकारी देने के लिए आभार .
इत्ते से नहीं चलेगा जी, आराम से पढ़िये और उसके बाद समीक्षा भी कीजिये। कवितायें और पुस्तक तो पढ़ ही लेंगे लेकिन एक कवि का दूसरे कवि की कविताओं पर नजरिया जानना भी अच्छा लगेगा। इंतज़ार रहेगा, आभार एडवांस में दिये देते हैं ताकि आप बाद में मुकर न जायें।
ReplyDelete@ संजय भाई
Deleteमान गए गुरु ...
बात तो माननी चाहिए मगर यदि आगे की समझ ही न हो तब ...???
:-))
jaankaari ke liye aabhaar :)
ReplyDeleteराजेश जी की रचनाओं में जो बैचेनी है उसको महसूस किया जा सकता है ...
ReplyDeleteआपने कमाल की समीक्षा की है ...
पर " की इन लाइनों पर गौर करें ....
ReplyDeleteस्त्रियाँ अपने में मगन
सूप में फटकती रहती हैं चिंताएं
लापरवाह अपनी देह के प्रति
राजेश जी बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति ..पुस्तक प्रकाशन पर ढेर सी बधाई ...
समय हो तो ब्लॉग पर आइये ...ताना -बाना .ब्लॉग स्पोट .कोम
...
राजेश उत्साही जी के बारे में पढ कर अच्छा लगा । उनकी रचनाएं जो आपने उध्दृत की हैं नारी और पुरुष की सेच की अंतर स्पष्ट बताती हैं । सुंदर समीक्षा ।
ReplyDeleteराजेश जी के साहित्य के बारे में...जानकारी देने के लिए आभार
ReplyDeleteराजेश जी के लेखन में ईमानदारी है ,जो मन को छूती है !
ReplyDelete@राजेश उत्साही को, मैं ब्लॉग जगत के उन रत्नों में से एक मानता हूँ ...
ReplyDeleteपूर्णॅ सहमति है। राजेश जी के लेखन के मुरीद हम भी हैं। समीक्षा का ट्रेलर अच्छा लगा, पूरी समीक्ष का इंतज़ार है।
सर आपकी लेटेस्ट पोस्ट पर कमेंट नहीं कर पा रहे हैं...........
ReplyDeleteसो इधर आकर लिख रही हूँ...............
सुंदर रचना के लिए बधाई.............
your blog is really full of life.........i can smell happiness in ur posts...
touch wood...
regards.
anu
दिल करे नाचने को यारों,
ReplyDeleteमाहौल सुगन्धित हो जाए
जीवन के सुंदर पन्नों में ,
चन्दन की गंध समा जाये
इतना लाजवाब गीत है पर आपका कमेन्ट बॉक्स नज़र नहीं आ रहा इस गीत पे ... तो यहीं बता रहा हूँ ... आनद ले रहा हूँ इस गीत का ... आशा की किरण जगाता मंमोहल कीट ... बहुत बधाई सतीश जी ...
राजेश जी के बारे में आपकी लेखनी द्वारा जानकार
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा.बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
राजेश जी को,आपको और अरुण जी और उनकी
श्रीमती जी को.
राजेश जी के बारे में यह जानकारी अच्छी लगी...वैसे उनके ब्लॉग को यदा कदा पढ़ने का सौभाग्य मिलता है.. सादर
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