Thursday, April 12, 2012

प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ? -सतीश सक्सेना

एक काफी समय पहले लिखा गीत को दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूँ ....आनंद लीजिये !
शीतल मनभावन पवन बहे
बादल चहुँ ओर उमड़ते हैं 
जिस ओर उठाऊँ द्रष्टि वहीं
हरियाली चादर फैली है ,
मन में उठता है प्रश्न, पवन लहराने वाला कौन ?
बादलों के सीने को चीर बूँद बरसाने वाला कौन?


कल कल छल छल जलधार
बहे, ऊँचे शैलों की चोटी से
आकाश चूमते वृक्ष लदे
हैं , रंग बिरंगे फूलों से ,
हर बार रंगों की चादर से, ढक जाने वाला कौन ?
धरा को बार बार रंगीन बना कर जाने वाला कौन ?


चिडियों का यह कलरव वृन्दन 
कोयल की मीठी , कुहू कुहू ,
बादल का यह गंभीर गर्जन ,
वर्षा ऋतु की रिमझिम रिमझिम
हर मौसम की रागिनी अलग,सृजनाने वाला कौन ?
मेघ को देख घने वन में मयूर नचवाने वाला कौन ?

अमावस की काली रातें ,
ह्रदय में भय उपजाती क्यों ?
चाँदनी की शीतल रातें
प्रेमियों को भाती हैं क्यों
देख कर उगता पूरा चाँद , कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
चाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?


कामिनी की मनहर मुस्कान
झुकी नज़रों के तिरछे वार
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?

59 comments:

  1. एक ही तो है वो...........................
    जाने क्या क्या किया करता है !!!!

    बहुत सुंदर..............
    सादर.

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  2. सुन्दर सृजन , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.

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  3. कामिनी की मनहर मुस्कान
    झुकी नज़रों के तिरछे वार
    बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
    प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
    लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
    देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?

    बेहतरीन प्रेम भाव की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....

    RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....

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  4. चिडियों का यह कलरव वृन्दन
    कोयल की मीठी , कुहू कुहू ,
    बादल का यह गंभीर गर्जन ,
    वर्षा ऋतु की रिमझिम रिमझिम

    प्रकृति के विभिन्न रूपों से प्रभावित और आनन्दित करता सुंदर गीत.

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  5. आदरणीय सर जी , पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा , अच्चा लगा . आपकी रचनाये बेहद संतुलित एवं भावनाओं को प्रदर्शित करने में श्रेष्ठ है . धन्यवाद

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    1. मेरे गीत पर आपका स्वागत है अनुराग भाई !
      शुभकामनायें !

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  6. ईश्वर और प्रकृति के प्रति प्रेम का अनूठा समावेश

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  7. रहस्यवादी कौतूहल का सुन्दर समावेश!

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  8. पहले शायद पढ़ने में नहीं आया, सुंदर गीत।

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  9. प्रकृति प्रेम के सुन्दर ्भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  10. सुंदर प्रकृति चित्रण के साथ छायावाद !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
    इसी कौन ? पर सभी मौन

    अनजाने होठों पर क्यों पहचाने गीत हैं
    कल तक जो बेगाने थे जन्मों के मीत हैं

    हरीहरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन
    जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
    दिशायें देखो रंग भरी चमक रही उमंग भरी
    ये किसने फूल फूल पे किया सिंगार है
    ये कौन चित्रकार है......????????

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    1. यह गीत और यह आवाज अमर रहेगी ...

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  11. बहुत सुंदर गीत शुभकामनायें आपको ....

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  12. मन में उठता है प्रश्न, पवन लहराने वाला कौन ?
    बादलों के सीने को चीर बूँद बरसाने वाला कौन?

    Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/#ixzz0aHbR7I91
    ब्लोगिये से सुन्दर रचना कहो लिखवाता है ये कौन ,

    अरे टिपवाता है ये कौन . ?भाई टिपवाता है ये कौन .?

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    1. यह समस्या भी खूब याद दिलाई.... :-)
      शुभकामनायें वीरू भाई

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  13. अद्वैत परब्रह्म कि धुन सुनाता सुंदर गीत ... ...... ....
    शुभकामनायें ...

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  14. मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है। उस परम सत्ता के रूप को हम देख नहीं पाते पर अपने आसपास हर पल हो रहे परिवर्तन को होते रहने से उसकी उपस्थिति को महसूस तो हम करते ही रहते हैं।

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  15. बस एक ही शक्ति है जिसे सब ईश्वर मानते हैं ... बहुत सुंदर रचना

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  16. छायावाद की छटा लिये बहुत ही प्यारा गीत ।

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  17. एक सभी के मन बसता है, खुद पूछे कि है वो कौन?
    मन में होने का आभास मिले पर तन एड्रेस बताए कौन?
    प्रकृति सत्य, कर्म अनादि। शाश्वत आत्म को पूछे कौन?
    आत्म अवलोकन करे जो बंदा,सत्य पाकर भी होता मौन।

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    1. आपका स्वागत है सुज्ञ जी....

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  18. सर जी वह प्रकृति ही है।

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  19. उसी कौन की सतत खोज मन के अन्दर और विश्व के बाहर लगी रहती है।

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  20. उस सत्ता सर्वोच्च की, करते विनय सतीश ।

    लौकिकता के भजन से, होते खुश जगदीश ।

    होते खुश जगदीश , यहाँ जब मरा मरा से ।

    पवन धरा जल चाँद, वृक्ष इस परम्परा से ।

    करे मोक्ष को प्राप्त, हिले प्रभु-मर्जी पत्ता ।

    अंतर-मन भी वास, करे वह ऊंची सत्ता ।।

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    1. शुक्रिया रविकर भाई ...
      आपके कमेन्ट लाजवाब हैं , इससे रचना की सुन्दरता में चार चन लगते हैं !
      शुभकामनायें !

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  21. गीत बहुत ही श्रेष्‍ठ है।

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    1. शुक्रिया अजीत जी ....
      शुभकामनायें आपको !

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  22. कितना कुछ देता जाता है वह .... पत्थर में रख दो तो वह भी जीवंत हो उठता है

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  23. प्रकृति प्रेम के सुन्दर भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति.
    सुंदर रचना.

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  24. बहुत ही सुंदर गीत ... ..बधाई

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  25. बहुत सुंदर गीत ..पढकर मज़ा आ गया ...सुंदर गीत के लिए बधाई

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  26. कामिनी की मनहर मुस्कान
    झुकी नज़रों के तिरछे वार
    बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
    प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
    लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
    देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
    बड़ी सुंदर पंक्तियाँ है....
    प्रकृति इश्वर का साकार रूप है, चारोओर से वही हमें पुकार रहा है !
    बस महसूस करने के लिये आप जैसा संवेदनशील भाउक मन चाहिए !
    सुंदर रचना .....

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  27. बहुत बढ़िया .
    गीत विधा में आपकी निपुणता बेमिसाल है भाई जी .

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    1. आपके शब्द प्रोत्साहन हैं मेरे लिए ....

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  28. बहुत सुंदर |

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  29. इन इन्द्रधनुषी रंगों में प्रकृति की छटा तो है ही,उस रहस्यवाद की ओर भी संकेत है जहां तक पहुंचने की विज्ञान की हर कोशिश नाक़ाम होगी।

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  30. कौन???...सदियों से उठने वाले इस प्रश्न का उत्तर प्रकृति है, ईश्वर है, अनुभूति है या फिर से वही प्रश्न..आखिर कौन???.

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  31. भाई सतीश जी नमस्ते ! जी हां यही सब तो है जिससे हमें हर पल अहसास होता है की इश्वर है...
    आज इस सेकुलर वाद के युग में बहुत सही सोच को गंभीरता पूर्वक प्रदर्शित किया है आपने ...
    आपकी इस रचना को पढ़ कर मुकेश जी द्वारा गया गीत याद आ गया .....हरी भरी वसुंधरा नीला नीला ये गगन .......ये किसने फुल बिखेर के किया श्रृंगार है ....वो कौन चित्रकार है वो कौन चित्रकार ......आभार आपका

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    Replies
    1. आपके शब्द प्रोत्साहन हैं मदन भाई ...

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  32. वाह ...बहुत ही बढिया।

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  33. ले लिया आनंद! शुभकामनायें!

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  34. ये सब खुराफात तो कामदेव ही कर सकते हैं -और कौन करेगा ?
    रोमांटिक कविता, लालित्य भरी ,श्रृंगार परिपूरित

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    Replies
    1. सतीश भाई ,
      आपके कहे अनुसार आनंद लेते हुए लिख रहा था पर समय इजाजत नहीं दे रहा इसलिए फिलहाल इतना ही ... आगे वैसे भी चिड़ियों / कवि / चांद / अमावस जैसे हालात के पार लगते ही नाजुक कटि प्रदेश और उसके निकट फिसलन भरी वादियां हैं :)

      बाहर जो शीतल पवन बहे
      बादल चहुँ ओर उमड़ते हों
      हर सू देखूं हरियाली तो
      तब कुदरत से कह बैठूं मैं
      मेरे अंदर कब आओगी ?

      छलछल कर जो जलधार बहे
      ऊंचे हिम गिरी की छाती से
      फल लदे वृक्ष की टहनी जब
      धरती चूमें , जमकर झूमे
      कुछ पुष्प धरा पर बिखरे हों
      तब कुदरत से कह बैठूं मैं
      मेरे अंदर कब आओगी ?

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  35. अब समझ में आया कि कल से घटाओं ने आपकी छत के ऊपर क्यों डेरा जमाया हुआ है!! भीग गए हम तो आपके गीत की फुहार में!! आनंद!!

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  36. अमावस की काली रातें ,
    ह्रदय में भय उपजाती क्यों ?
    चाँदनी की शीतल रातें
    प्रेमियों को भाती हैं क्योंwaah .......bahut badhiya ...

    Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/#ixzz1rnf47opS

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  37. प्यारा गीत है। समय का अभाव है वरना अंतिम बंद पढ़कर तो ताल से ताल मिलाना चाहिए था। आनंद आ गया।

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  38. सुंदर सुंदर मनभावन पंक्तियाँ आपसे लिखवाता है कौन?

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  39. प्यारा है ये प्रेम गीत.

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  40. देख कर उगता पूरा चाँद , कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
    चाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?
    खुबसूरत शब्दों से सुसज्जित आपके गीत ....और यह सश्यश्यामला वसुंधरा,
    सच ! कितनी खुबसूरत है यह दुनियां......और कितनी सुंदर है उपरोक्त अभिव्यक्ति.............?आभार ........

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  41. देख कर उगता पूरा चाँद , कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
    चाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?


    बहुत सुन्दर रचना... शुभकामनायें

    :)

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  42. बहुत सुंदर रचना है
    प्रश्न के उत्तर चाह रहे हैं
    ऊपर भी वही तो
    चल रहा है जिस तरह
    नीचे मनमोहन मौन क्यों हैं
    नहीं बता रहे हैं !

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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