ब्लाग पर कुछ लिखने का मन था , सोचता था कि ईमानदारी से कुछ भी लिखा जाये और उससे किसी का कुछ फायदा हो तो शायद यह प्रयास सार्थक हो सके ! मगर आश्चर्य कि लोगों ने इस ईमानदारी पर भी ऊँगली उठाई !
दूसरों के लिए वैमनस्य और शिकायतें लेकर लिखते हम लोग जब अपने कमजोर दिनों में आते हैं, तब भाग्य को दोषी बताते हैं !
हमारे किशोर बच्चे , ईर्ष्या और वैमनस्य के ये बीज,अपने माँ -बाप के द्वारा, अपने ही घर में बिखेरते, देखते हुए बड़े होते हैं ! हर कदम, अपनी झूठी बड़ाई में , सराबोर हम लोगों के पास इतना समय कहाँ कि अपने बच्चों को देते इस संस्कार पर ध्यान दे पायें !
आज ब्लाग जगत में जो कुछ चल रहा है उसे देख बेहद खिन्नता का भाव मन में है , कुछ साथियों की मांग थी की यूरोप यात्रा के कुछ खुशनुमा संस्मरण बांटने का प्रयत्न करुँ मगर इस विद्वेष पूर्ण माहौल में क्या लिखें और कौन पढ़ेगा !
नवयुवक नीशू के पत्र के जवाब में , एक लाइन का पत्र प्रकाशित कर रहा हूँ "
यह प्रकरण कम से कम मेरे लिए बेहद दुखद है नीशू !
ऐसा लग रहा है कि हम लोग यहाँ कोई इलेक्शन लड़ने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं ! मेरा आपसे अनुरोध है कि जिस कारण नाराज हैं,उस पर स्वस्थ विरोध से अधिक न जाएँ ! व्यक्तिगत रंजिश आपके लिए भी उतनी ही खराब होगी जितनी दूसरों के लिए ! "
दूसरों के लिए वैमनस्य और शिकायतें लेकर लिखते हम लोग जब अपने कमजोर दिनों में आते हैं, तब भाग्य को दोषी बताते हैं !
हमारे किशोर बच्चे , ईर्ष्या और वैमनस्य के ये बीज,अपने माँ -बाप के द्वारा, अपने ही घर में बिखेरते, देखते हुए बड़े होते हैं ! हर कदम, अपनी झूठी बड़ाई में , सराबोर हम लोगों के पास इतना समय कहाँ कि अपने बच्चों को देते इस संस्कार पर ध्यान दे पायें !
आज ब्लाग जगत में जो कुछ चल रहा है उसे देख बेहद खिन्नता का भाव मन में है , कुछ साथियों की मांग थी की यूरोप यात्रा के कुछ खुशनुमा संस्मरण बांटने का प्रयत्न करुँ मगर इस विद्वेष पूर्ण माहौल में क्या लिखें और कौन पढ़ेगा !
नवयुवक नीशू के पत्र के जवाब में , एक लाइन का पत्र प्रकाशित कर रहा हूँ "
यह प्रकरण कम से कम मेरे लिए बेहद दुखद है नीशू !
ऐसा लग रहा है कि हम लोग यहाँ कोई इलेक्शन लड़ने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं ! मेरा आपसे अनुरोध है कि जिस कारण नाराज हैं,उस पर स्वस्थ विरोध से अधिक न जाएँ ! व्यक्तिगत रंजिश आपके लिए भी उतनी ही खराब होगी जितनी दूसरों के लिए ! "
हमारे किशोर बच्चे , ईर्ष्या और वैमनस्य के ये बीज,अपने माँ -बाप के द्वारा, अपने ही घर में बिखेरते, देखते हुए बड़े होते हैं ! हर कदम, अपनी झूठी बड़ाई में , सराबोर हम लोगों के पास इतना समय कहाँ कि अपने बच्चों को देते इस संस्कार पर ध्यान दे पायें !
ReplyDeleteआज समाज का यही दुर्भाग्य है जिसके लिए सोचने का किसी के पास वक्त नहीं ,आज कोई भी किसी को अच्छी सलाह नहीं देता ,बस वही सलाह देता है जो उसके खुद के फायदे का हो ,देश,समाज और बच्चें जो इंसानियत की नीवं हैं की किसको है चिंता ?
कोई फ़रक नहीं पडेगा सक्सेना जी। विवाद से उसकी टीआरपी जो बढती है।
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट लिखी है......लेकिन यहाँ कोई किसी की सुनने वाला भी नही है....हम सभी सिर्फ इतना भर करें..कि ऐसी पोस्टो पर ना जाएं और ना कोई प्रतिक्रिया दें...। वैसे देखा गया है ऐसी परिस्थितियां ज्यादा देर तक नही रहती....कुछ समय बाद सभी शांत हो जाते हैं...
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने, किसी भी शिकायत को व्यक्तिगत खुन्नस में तब्दील नहीं करना चाहिए. बल्कि सही और सभी तरीके से शिकायत करनी चाहिए. अगर बात सार्वजानिक है, तो शिकायत भी सार्वजानिक कर सकते हैं.
ReplyDeleteनीरज जाट जी टिप्पणी से सहमत्।
ReplyDeleteअब आप युरोप दौरे पर लिखना शुरु किजिए
कुछ आपके खींचे चित्र भी देखने की ईच्छा है।
बस शुरु किजिए।
सतीश जी, एक बहुत ही रोचक बात हुई. मैं स्कूल के दिनों के अपने एक घनिष्ट मित्र सलीम भाई से जो कि कंस्ट्रक्शन का कार्य करते हैं (मैंने उनके साथ कंस्ट्रक्शन का कार्य भी किया है) से अपने लेखों और ब्लॉग के बारे में बताया. बस उन्होंने टपक से आपका नाम लिया और कहा कि "हमारे एक मित्र सतीश सक्सेना जी भी ब्लॉग लिखते हैं" और लगे आपकी और आपके लेखन की तारीफ करने.
ReplyDeleteतब मैंने बताया कि सलीम भाई, सतीश जी तो हमारे भी मित्र हैं, लेखन के माध्यम से. :-)
तो वह चौंक गए. हमसे मालूम किया कि क्या आप उन्हें जानते हैं? तो हमने आपका ब्लॉग उनको दिखाया, जिसे देख कर वह बड़े खुश हुए. और कहने लगे
"वाह! दुनिया कितनी छोटी है" :-)
bilkul sahi kaha hai aapne bachhe jo dekhte hai sunte hai usi ka to anusaran krte hai
ReplyDelete
ReplyDeleteसभी जन यदि मॉडरेशन लगा कर रखें,
तो भड़काऊ टिप्पों पर नियँत्रण रखा जा सकता है ।
लगता है ब्लॉगजगत को धारा 144 की आवश्यकता है ।
चहुँ ओर शाँतिः शाँतिः शाँतिः
सब टी.आर.पी का खेल है जी...किसी को इस बात से कोई मतलब नहीं कि वो अनर्गल प्रलाप कर रहा है या फिर कुछ सार्थक लिख रहा है...बस हिट्स मिलने चाहिए...ज्यादा से ज्यादा
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteकम लोग हैं ब्लॉग जगत में जिनका मैं बेहद आदर करता हूं, एक आप भी हैं...(हालांकि प्रेम सबको करता हूं।) आप भी जानते हैं कि इसका कोई व्यक्तिगत कारण नहीं है...न ही हम लोग नियमित मिलते जुलते हैं और न ही पहले से परिचित हैं...पर हां ये ज़रूर कहूंगा कि समझाएं समझने वालों को....मैंने भी कोशिश की थी....एक पत्र भी लिखा था...
मैं चाहता तो मैं भी उस पत्र को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर के टिप्पणी और रीडरशिप पा लेता...पर शायद यही अंतर है...इनको सस्ती लोकप्रियता का मंत्र मिल गया है...पर शायद जिसने मंत्र दिया है वो ये बताना भूल गया कि इसका असर कुछ ही समय तक रहता है....
बेहतर है कि ठोकर खा के संभलने दें...आप खुद ही देखिए...ये लोग उन लोगों पर निशाना साध रहे हैं जिन्होंने आज तक इनके खिलाफ कुछ नहीं बोला...और आप समझा रहे हैं...इनमें से कोई बी बच्चा नहीं है...दरअसल ये लोकप्रियता का इंडिया टीवी वाला फंडा है....
ये अपने ही घर के बच्चे हैं सच है...पर बेहतर है कि गिर के संभलने दें....नहीं हमेशा का सबक नहीं मिल पाएगा....
मेरा अनुरोध है कि आगे से इन लोगों पर कुछ न लिखें....हम सब आपकी यूरोप यात्रा के संस्मरण पढ़ने को लालायित हैं...
कोशिश तो यही रहती है कि बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय देकर ईर्ष्या की बजाय प्रेम सिखाऊं। आपकी बात मेरे लिये प्रेरक है जी, धन्यवाद
ReplyDeleteरही बात ब्लागिंग की और नीशू की, इस बारे में मौन रहना चाहूंगा।
प्रणाम स्वीकार करें
विद्वेष हमेशा आधारहीन होता है. संस्कारों की भी अहमियत होती है. असंस्कारित कितना भी प्रयास कर ले संस्कारित दिखने का असलियत नज़र आ ही जाती है.
ReplyDeleteब्लागजगत में आप कतिपय अशोभनीय बातों के चलते विचलित क्यों होते हैं यह तो चलता ही रहता है और शायद रहेगा भी. आप इन सब टी आर पी के कुछ पिछलग्गूओ के चलते हमे उन संस्मरणों से वंचित न करें.
आप ने विदेश भ्रमण से पहले जहान ब्लॉग को अल्प विराम मोड़ पर छोड़ा था { अनूप , ज्ञान और समीर मे सुलह सफाई !!! } वही से आप ने ब्लॉग को उठा लिया बस अब आप नीशू और उनके मे { जीके खिलाफ नीशू लिख रहे हैं } सुलह सफाई करवाना चाहते हैं । जबकि सतीश जी ना पहले वाले तीनो ने आप को बिच बचाव के लिये कहा था और ना मैने अब किसी ब्लॉग पर नीशू या किसी अन्य का निमंत्र्ण आप के लिये पढ़ा हैं ।
ReplyDeleteयूरोपे के चित्र डाले , एफ्फिल टावर देखा या नहीं , वेनिस गए या नहीं । उत्सुकता हैं ।
आप लिखें, हम पढ़ने के लिये बैठे हैं ।
ReplyDeleteये लेकर क्या बैठ गए ,यूरोप गए थे वहां का कुछ हाल समाचार बताईये !
ReplyDeleteकुछ लोगों की निरंतर उपेक्षा ही समस्याओं का स्थाई हल है !
हम भी यही कहेंगे , छोडिये इन पचड़ों को और अपनी यूरोप यात्रा का वर्णन सुनाइये तस्वीरों सहित अपने नए कैमरे से । कैसी रही यात्रा ?
ReplyDeleteवैसे तो यहाँ ब्लागजगत में सच कहने और सुनने की परम्परा कभी रही तो नहीं(हमारा अनुभव तो यही कहता है)...लेकिन शायद हमारे जैसे कुछ लोग जो कि आदत से मजबूर हैं, उनकी जुबां सच बोल ही देती है(जिसका कि बाद में उन्हे खमियाजा भी भुगतना पडता है)...
ReplyDeleteसतीश जी, यहाँ अधिकतर लोग ऎसे हैं जो बिना समस्या को समझे, उसकी तह में जाए बस अपना निर्णय सुनाने को तैयार बैठे रहते हैं....शायद ये लोग सच्चाई को जानना भी नहीं चाहते..कारण कि सबके किसी न किसी ग्रुप के साथ अपने स्वार्थ(टिप्पणी मोह)जुडे हुए हैं.....अब सच्चाई का पक्ष लें तो टिप्पणियों का त्याग करना पडे...सो, ऎसा नुक्सान वाला काम भला कौन करना चाहेगा..
रही बात वर्तमान मुद्दे की तो सिर्फ एक बात कहना चाहूंगा कि क्या किसी नें भी अपनी नेकनीयती का परिचय देते हुए ये जानने का प्रयास किया कि ऎसी क्या वजह थी, जिसके कारण कुछ लोगों को यूँ अपना विरोध प्रकट करना पड रहा है.....ये हो सकता है कि ये सारा विवाद सिर्फ अपनी टी.आर.पी बढाने के लिए किया जा रहा है.....लेकिन बिना आपसी संवाद स्थापित किए, बिना उसके कारण को जाने झट से किसी को गलत कह देना मेरी नजर में तो उचित नहीं है.
(खैर जो देखा सो कह दिया...ओर मैं ये भी जानता हूँ कि ये सब लिखकर मैं कुछ लोगों की नाराजगी ही मोल लेने जा रहा हूँ, लेकिन जो सच है, वो सच है)
आश्चर्य कि लोगों ने इस ईमानदारी पर भी ऊँगली उठाई !
ReplyDeleteइस दुनिया में ऐसा भी होता है .. नीशू से तो मैं भी ऐसी ही उम्मीद करती हूं !!
आप सुनाईये अपनी यात्रा के संस्मरण.
ReplyDeleteआपने उचित समझाईश दे दी, अब मानना/ न मानना लोगों के विवेक पर छोड़ दिजिये.
योरप यात्रा के बारे में लिखिये। सब पढ़ेंगे। यह सब चिन्ता छोड़िये।
ReplyDeleteआप बिलकुल सही कह रहे हैं....अभी-अभी नीशू को उसके ब्लॉग पर जाकर नीचे वाली टिप्पणी दी है.....
ReplyDeleteऐसा लग रहा है कि फिल्म राजनीति आज रिलीज हुई है और हम ब्लोगर राजनीति बना रहे हैं....
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नीशू जी आपसे फोन पर इतनी लम्बी बातचीत के बाद लगा था कि इस समस्या का कोई हल निकल आएगा पर लगता है ऐसा नहीं हो सका. ब्लॉग संसार की असलियत ये है कि सभी को नहीं पढ़ते हैं और सभी के साथ नहीं जुड़ते हैं. रही बात इस तरह के विवादों की तो इससे होने वाला क्या है? एसोसिअशन बनाने या न बनाने से कोई संसद का रास्ता खुल या बंद हो रहा है.............हम फिर कहेंगे कि आपकी कलम में ताकत है..ऐसा लिखो कि कुछ भी खुरापात करने वाले की पेंट गीले बनी रहे कि पता नहीं नीशू अब क्या लिखेगा?
शेष आप सभी लोग खुद समझदार हैं....हम तो अभी सीनियर या जूनियर किसी में नहीं आते हैं............
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
फिल्म- देशप्रेमी
ReplyDeleteगीत-महाकवि आनन्द बख्शी
संगीत- लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल
नफरत की लाठी तोड़ो
लालच का खंजर फेंको
जिद के पीछे मत दौड़ो
तुम देश के पंछी हो देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों
देखो ये धरती.... हम सबकी माता है
सोचो, आपस में क्या अपना नाता है
हम आपस में लड़ बैठे तो देश को कौन संभालेगा
कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा
दीवानों होश करो..... मेरे देश प्रेमियों आपस में प्रेम करो
मीठे पानी में ये जहर न तुम घोलो
जब भी बोलो, ये सोचके तुम बोलो
भर जाता है गहरा घाव, जो बनता है गोली से
पर वो घाव नहीं भरता, जो बना हो कड़वी बोली से
दो मीठे बोल कहो, मेरे देशप्रेमियों....
तोड़ो दीवारें ये चार दिशाओं की
रोको मत राहें, इन मस्त हवाओं की
पूरब-पश्चिम- उत्तर- दक्षिण का क्या मतलब है
इस माटी से पूछो, क्या भाषा क्या इसका मजहब है
फिर मुझसे बात करो
ब्लागप्रेमियों... आपस में प्रेम करो
एक विचारणीय पोस्ट
ReplyDeleteयही तो मैं भी कह रहा हूँ.....
ReplyDeleteलिखते रहिए बिना विरोध की परवाह किए। कोई रोता है तो रोने दें। अपना काम करें बेहतर होगा। इस लड़ाई को जितना तवज्जो देंगे उनकी मनोकामना उतनी ही पूरी होगी।
ReplyDeletestish bhaai aadaab aapki kmaal ki dil ki gehraaiyon ko chune vaali lekhni ke aek aek shbd mene dekhe men prfullit hun ke aaj bhi itne behtrin chintk,vichark,lekhk mojud hen bdhaai ho. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteक्यों आप लोग बेवजह की बातों मैं अपना समय व्यर्थ करते हैं / अगर करना ही है तो कुछ एसा करो जिससे से इस देस को कुछ गति मिल सके / यह देस पचासों सालों से स्थिर खड़ा हुआ है / इस देस को आपके तजुर्बे की बेहद आवस्यकता है-verma
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