"माँ " पर प्रकाशित, एक पुरानी पोस्ट दुबारा प्रकाशित कर रहा हूँ ...शायद आप मेरी माँ के बारे में वेदना महसूस कर सकें ....
माँ ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला, मुझे अपने बचपन में ऐसा कोई चेहरा याद ही नही जिसके लिए मैं यह प्यारा सा शब्द बोलता ! अपने बचपन की यादों में उस चेहरे को ढूँढने का बहुत प्रयत्न करता हूँ मगर हमेशा असफल रहा मैं अभागा !
मुझे कुछ धुंधली यादें हैं उनकी... वही आज पहली बार लिख रहा हूँ ....जो कभी नही लिखना चाहता था !
-लोहे की करछुली (कड़छी) पर छोटी सी एक रोटी, केवल अपने इकलौते बेटे के लिए, आग पर सेकती माँ....
-बुखार में तपते, अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ ....
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....
बस यही यादें हैं माँ की ......
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....
ReplyDeleteमन भर आया,जब की मेरी माँ अभी जिन्दा है | उम्दा भावनात्मक प्रस्तुती के लिए *******
ma ki mahima apar he jitna gungan karo kam he
ReplyDeleteहरि मेहता साहब के धुंधले शेर की याद दिला दी कि ‘जिसने बख्शी थी ज़िंदगी मुझको, मैं उसे ख़ाक में मिला लाया.’… दुनिया का सबसे पवित्र लफ्ज़. मीना कुमारी के कोई औलाद नहीं थी और मैंने एक बार पुष्पा दी (मेरी दूसरी माँ, आकाशवाणी की) से कह दिया कि अगर मीना कुमारी माँ होती, तो दुनिया की बेहतरीन माँ होती. तो उनका जवाब मुझे लाजवाब कर गया, “माँ भी बेहतर और बुरी होती है क्या?” … ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे!!
ReplyDeletekaash !
ReplyDeletehar aadmi ko har pal maa mayassar rahti....
आपकी इस वेदना ने अन्दर तक हिला दिया है. मुझे अभी कुछ दिन पहले ही एक ऐसे अंतिम संस्कार में शामिल होना पढ़ा था जहाँ माँ कि अंतिम यात्रा में चार साल के अबोध का क्रंदन देखकर कलेजा मुंह को आ गया था. वास्तव में अगर कभी गलती से भी ऐसा बुरा ख़याल दिमाग में आ जाता है तो सिहर उठता हूँ और आपने तो इस अहसास को जिया है............
ReplyDeleteNice post and 3rd vote .
ReplyDeleteख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की
ReplyDeleteसोच फिर कितनी क़ीमती है मां
इसकी क़ीमत वही बताएगा
दोस्तो ! जिसकी मर गई है मां
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/mother.html
गुरू जी!! कुछ कहने लायक छोड़बे नहीं किए हैं … अब हम का टिप्पणी करें...
ReplyDeleteरुला दिया आपने...दर्द भीतर से महसूस किया..
ReplyDeleteकहीं भीतर तक छू गई आपकी बात
ReplyDeleteहोठ तो बस हिल रहे थे कविता तो दिल ने पढ़ा और मैं पूरा का पूरा खो गया..बेहद संवेदनशील और सुंदर कविता...प्रस्तुति के लिए धन्यवाद सतीश जी..कुछ अलग और बेहतरीन भी...बधाई
ReplyDeleterula diya sir aaj hi maa par ek post maine bhi daali thi...ho sake to padhiyega coment na bhi de to chalega
ReplyDeletesatishji! Pranaam !
ReplyDeletewaapsi ke liye badayee ! maine yeh socha ki ,aap ki yatra ke bare mei kuch khaas padne ko milega ! Lekin aapne tho kuch alag likh kar humhe rula deya ! Kya kahoon ! Kya tippane doon ! koi shabd nahi hai .... !
उफ़, भैया रुला ही दिया आपने, बहुत मार्मिक और संवेदनशील, आपकी वेदना हमारी वेदना में बदल चुकी है !
ReplyDeleteफिलहाल कुछ कहने की स्थिति में नहीं....
ReplyDeleteवैसे भी इस पोस्ट पर कोई सारगर्भित टिप्पणी नहीं की जा सकती....मां से ज़्यादा सार कहां है....
भावनाओं का मोल क्या.....
आंसू कोरों तक आ चुके हैं...अभी विराम...
इमोशनल कर दिया सक्सैना साहब आपने। मैं कभी अपनी मां की किसी बात पर हंसता हूं या मजाक करता हूं तो वो कहती है कि मेरे जाने के बाद तुम मेरी बात याद करोगे। और मैं पत्थरदिल फ़िर हंस देता हूं।
ReplyDeleteआपने जो देखा है, भोगा है, जानकर समझकर बहुत देख हुआ।
aasheesh sadaiv sath rahega ...........
ReplyDeletejanha tak maine blog pada hai jijjee ne kamee pooree karane kee koshish kee hai hai na.....?
Camera wale prasang me unaka jikr hai........
yatra kaisee rahee.......
main ek maa hun aur ek bachche kee is ankahi bhasha ko samajh sakti hun, ........mann bhar aaya
ReplyDeleteओह ! बेहद मार्मिक ।
ReplyDeleteमाँ ।
आप वापस आ गए क्या ?
फ़िराक गोरखपुरी की यह कविता पढियेगा। इसमें बीस बरस के उस नौजवान के जज्बात हैं,जिसकी माँ उसी दिन मर गयी जिस दिन वह पैदा हुआ।
ReplyDeletehttp://hindini.com/fursatiya/archives/142
माँ शब्द निःशब्द कर देता है ।
ReplyDeletePosted for Comment Follow up
ReplyDeleteRula diya aapne, bas anshu tapakate-tapakate ruk gaya.
ReplyDeletebehad marmik ........nishabd hun....kuch kahne ki himmat hi nahi hai.
ReplyDelete-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं
ReplyDeleteअत्यंत हृदयस्पर्शी ....
संवेदनशील प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteमै तो खुद अपने हाथो मां को शमशान छोड कर ही नही, बल्कि अग्नि भी दे कर आया, मेरी मां मेरी सब से अच्छी दोस्त थी, खुब लडता भी था मां से... इसी लिये अग्नि भी दे दी... ओर लडाई भी खत्म
ReplyDeletesatishji !
ReplyDeletevery touchy & sentimental post.
No words.....
अत्यंत मार्मिक....शब्द चित्र खींच दिया...
ReplyDeleteसतीश जी, आपने मेरी कल की टिपण्णी पब्लिश ही नहीं की???
ReplyDelete:-(
भाबुक कर दिया सक्सेना जी आपने
ReplyDeleteमार्मिक प्रसतुति
ReplyDeleteaye maa ! teri surat se alag bhagwaan ki surat kya hogi...kya hogi?
ReplyDeleteसचमुच आपकी पोस्ट दिल को लग गई
ReplyDeleteएक मां की ही ऐसी कोर्ट होती है जो हर बेटे का हर जुर्म माफ कर देती है।
ReplyDeleteप्रणाम
marmik...dil ko chhoone valee ghatana.
ReplyDeleteAapki ye post dubara padhne par bhee utanee hi nistabdh kar gaeee. ma ko khokar aap kitane bade uplabdhee se wanchit rahe.
ReplyDelete@ शाहनवाज भाई !
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी मुझे नहीं मिली , कृपया दुबारा दें . स्नेह के लिए आभारी हूँ !
@अपनत्व,
ReplyDeleteआपके ममत्व के लिए आभारी हूँ !
मैंने तो बस इतना ही लिखा था, क्या आप वापिस आ गए हैं? और एक पसंद का चटका लगाया था आपके लेख पर.
ReplyDeleteसतीश जी..कुछ अलग और बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत मार्मिक और संवेदनशी
ReplyDeleteरुला दिया आपने..
ReplyDeleteमार्मिक!
ReplyDeleteआपका मार्मिक संस्मरण दिल को छू गया.
ReplyDeleteपितृदेवो भव:!