डिस्नेलैंड पेरिस के अन्दर ही एक होटल ,मैजिक सर्कस में ठहरना हुआ था , नाश्ते के समय साथ एक यूरोपियन दम्पति भी अपने लगभग डेढ़ साल के बच्चे के साथ नाश्ता कर रहे थे ! नाश्ते के दौरान माँ ने अपने बच्चे की कोई मदद नहीं की और मैं अपना नाश्ता भूल उस नन्हे स्मार्ट का नाश्ता करते हुए देखता रहा ! वाकायदा चाकू छुरी का समुचित उपयोग करते , इस आत्मविश्वासी शिशु का यह फोटो मुझे डिस्ने लैंड की हमेशा याद दिलाएगा !
मुझे आपने परिवार में, इसी की हमउम्र टिन्नी की याद आ गयी जो हम सबकी लाडली और अधिक केयर रखने की बदौलत आज भी शायद इस प्रकार खाना नहीं सीख पायी है !
क्या अधिक संरक्षण और अपने बच्चे की बुद्धि पर भरोसा न करते हुए हम लोग, उसका आत्मविश्वास तोड़ने के अपराधी नहीं हैं ?
मुझे आपने परिवार में, इसी की हमउम्र टिन्नी की याद आ गयी जो हम सबकी लाडली और अधिक केयर रखने की बदौलत आज भी शायद इस प्रकार खाना नहीं सीख पायी है !
क्या अधिक संरक्षण और अपने बच्चे की बुद्धि पर भरोसा न करते हुए हम लोग, उसका आत्मविश्वास तोड़ने के अपराधी नहीं हैं ?
arewa ah bahut pyaara bachcha hai...
ReplyDeletewe always treat out kids as kids and dont allow them to grow up . This is exactly what i said few days back in 2 of your posts . We need to treat individuals as individuals
ReplyDeletei thought you went with your family
looks like you went alone
In 1992 when i went to bremen germany alone my parents were on tether hooks and lo and behold in germany in a restaurant i found a bunch of kids not more than 6 years all alone enjoying pizza party . ordering what they like , making payments etc
good post
अरे वाह इस नन्हे स्मार्ट की ये अदा हमे भी बेहद पसंद आई....
ReplyDeleteregards
अरे वाह इस नन्हे स्मार्ट की ये अदा हमे भी बेहद पसंद आई....
ReplyDeleteregards
hum sab shayad apne bachchon ki jaroorat se jyada dekhbhaal karte hain, isliye kabhi kabhi vah aathnirbhar bahin ban paate,
ReplyDeleteaapne bahut badiya baat se roobroo karaaya, dhnyvad
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
पोस्ट सँजो लिया है। श्रीमती जी लौट कर आती हैं तो दिखाना है :)
ReplyDeleteबच्चे को आप की नज़र तो नहीं लगी? फोन कर पूछ लीजिए। लग गई हो तो लोहबान वगैरह के टोटके भी बता दीजिएगा। ;)
सही है,
ReplyDeleteग्रीष्म ऋतु में वर्ष भर पुराने एक पौधे को खूब पानी देते रहें, और दूसरे को प्रकृति के भरोसे छो़ड़ दें। दूसरे पौधे की जड़ें पानी की खोज में भूमि में बहुत नीचे तक चली जाती हैं, और वह टिकाऊ बन जाता है। दूसरा वृक्ष अधिक हरा अवश्य नजर आएगा। लेकिन मूल के गहराई तक न होने के कारण आंधी में शायद गिर जाए।
सर!
ReplyDeleteदेखा जाये तो आदमजात की इतनी कुव्वत ही नहीं कि बच्चों को पैदा कर सके.
बच्चों के पैदा होने में मां-बाप माध्यम ज़रूर बनतें हैं पर वो पैदा करतें हैं? ज़रा गम्भीरता से सोचें??
निरही बच्चे को पहले परिवार और फिर समाज अपने आग्रहों पूर्वआग्रहों के बोझ से मार डालता है. बच्चे अपनी-अपनी मालिकित का एलान भर हैं.
मां बाप के अधूरे सपनें पूरे करने के अहंकार के साधन... "मेरा बच्चा सबसे आगे" में "मेरा" महत्पूर्ण साध्य है, "बच्चा" तो साधन भर र्है! क्यों भूलते हैं हम जो अस्तित्त्व संसार में लाता है वही हमें सम्भालता भी है ताउम्र...
किसी शायर की दो लाइनें स्मरण हो आयीं :
बच्चों के नन्हें हाथों को छू लेने दो चादँ सितारे!
चार किताबें पड़कर फिर ये भी, हम जैसे हो जायेंगें!!
बहुत सही कहा आपने ...........कभी कभी अधिक संरक्षण और अपने बच्चे की बुद्धि पर भरोसा न करते हुए हम लोग, उसका आत्मविश्वास तोड़ डालते है !
ReplyDeletewaah....mujhe bhi yah yaad rahega
ReplyDeleteहम हमेशा अपने बच्चों के सामने यह बताने की कोशिश करते हैं की जैसे हम सब जानते हैं... और बच्च्चा मान लेता है..हमने भगवान् को नहीं देखा और कह देते हैं की भगवान् होता है.. यही बात बच्चों को लेकर ओवर पोजेस्सिव होने में किए जाने वाले नुक्सान की है...
ReplyDeleteउम्दा विचारणीय प्रस्तुती ....
ReplyDeleteइक बार में बेरूत के AIRPORT पर था बोर्डिंग के लिए लाइन में लगा था , मेरे आगे इक साऊदी फैमिली खड़ी थी उनके साथ एक प्यारी सी बच्ची थी , बच्ची खेलते हुए गिर गयी में जैसे ही उसको उठाने के लिए आयेज बढ़ाँ बच्ची के बाप ने मुझे रोक दिया, कहने लगा इस को खुद खड़ा होने दो, इस को अभी से आदत पड़नी चाहिए. में सोच रहा था की हम होते तो कितनी संवेदनशीलता दिखाते.
ReplyDeleteकुछ लोग दिल से सोचते हैं कुछ लोग दिमाग़ से सोचते हैं...
ReplyDelete@-क्या अधिक संरक्षण और अपने बच्चे की बुद्धि पर भरोसा न करते हुए हम लोग, उसका आत्मविश्वास तोड़ने के अपराधी नहीं हैं ?
ReplyDeleteA very significant question came in your mind.
Over protective parents hamper the normal growth of our children.
Many times when i counsel such parents, they are averse to such advices. They are not ready to understand. Simply stuck with their beliefs.
If we really want our child to be independent and confident, we must follow west. Unfortunately we are following the Live-in- relationship theory , but not this attitude from them.
Parents, who treat their kids as individuals and infuse confidence in them to survive all kind of situations and hardships are genuinely admirable.
Divya
सतीश जी , इसे देखकर वो बात याद आ गई --उत्थे ते बच्चा बच्चा अंग्रेज़ है जी ।
ReplyDeleteअब अंग्रेज़ का बच्चा तो अंग्रेज़ ही बनेगा जी ।
सांस्कृतिक अंतर का एक महत्वपूर्ण बिन्दु उठाया आपने ।
ReplyDeleteदर-असल इस मामले में भी हमें सहनशीलता दिखानी चाहिए. बच्चे को स्वयं अपने ऊपर आत्मविश्वास पैदा करने में मदद करनी चाहिए. लेकिन हमारा प्यार इस सोच पर भारी पड़ जाता है.
ReplyDeleteहम बच्चों को लेकर ज्यादा नर्वस रहते हैं -
ReplyDeleteमगर वह बच्चा अभी सीख ही रहा है!
उसे सीखने के लिए -सेल्फ रिलायांट होने की बहुत बचपन से ट्रेनिंग दी जा रही है -१८ -१९ वर्षों में माँ बाप को छोड़ चल देगा
मगर अपने यहाँ का वात्सल्य प्रेम बच्चों को दुलार की पिलई बना देता है जीवन भर माँ बाप की छाती पर मूंग दलते रहते हैं !
आत्मविश्वास बचपन से ही पैदा किया जाता है………………एक उम्दा आलेख्।
ReplyDeletePost jitni badiya Tippaniyan us se jyada badiya parantu main Dr. Arvind Mishra ji se sahmat hoon.
ReplyDeleteaaj poora din 15-16 gilas pani, 3 kg Tarbooj 1 chay (Sorry) 1.5 cup tomoto soup bus..kal ki kal dekhenge lekin subah 9 baje wt. tha 90.150 sham 7.30 baje wt. tha 89.350
pet theek hai.. koi haiza-vaiza nahi hua..filhaal...
काफी हद तक आप सही कह रहे हैं.. पर पूरी तरह से सहमत नहीं.. उसके कारण हैं. कभी मिलेंगे तो मिलकर ढेरों बात करेंगे आपसे... और हाँ ये तस्वीर आपने इज़ाज़त ले के निकाली थीं ना? वर्ना बहुत बवाल होता है यहाँ बच्चों कि तस्वीर बिना पूछे निकलने पर. मैंने क्रच में निकाल ली थीं.. मुझसे तो कुछ नहीं कहा पर मेरे जिस फ्रेंड का बच्चा वहाँ का मेंबर था उनसे शिकायत कर दी थी..
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा आपने.अपनी गलतियों से ही सीख कर आत्मविश्वास आता है बच्चे में, एक बार ऐसा ही कुछ हम भी देख हैरान हो गए थे .शिकागो में एक स्विम्मिंग पूल में हमने देखा कि बच्चों के पूल में एक पिता ने अपने ९ माह के बच्चे को डाल दिया और वो बच्चा आराम से तैरने लगा .हमने हैरान होकर पूछा तो उसने कहा कि उसने बच्चे को ६ माह में ही एक छोटे से पूल में छोड़ दिया था और वो बच्चा हाथ - पाँव मरने लगा और तभी से तैरना जनता है .
ReplyDeleteसच है अधिक संरक्षण से बच्चों के सेकने में अवरोध आता है
ReplyDeleteAat wishwas to tod dete hain...apni galti sweekarna bhi nahi sikhaya jata..gar bachha table se takraye,to 'is table ne mara mere bachhe ko? Chalo ham bhi use marenge'...galti table ki...zindageebhar aise log doosaron ka scapegoat banate rahte hain! Kyonki unse kabhi galati ho hi nahi sakti!
ReplyDeleteAap "arthi to uthi....' me us ladki ke baare me jaanna chahte hain..gar mujhe e-mail ID mile to bata sakti hun..scrap pe likhna mauzoom nahi hoga!
बच्चों पर कोई बात छोड दें तभी तो वे स्मार्ट बनेंगे .. हम भारतीय अपने बच्चों को पराधीन बना देते हैं !!
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट है। कल ही दिल्ली एयरपोर्ट पर एक बच्ची मिली जो मसूरी में कक्षा नौ में पढ़ती है और अकेले कानपुर आ रही थी। उससे बात करने के बाद अचानक अपना छोटा बेटा याद आया जिसको हम अकेले बाजार नहीं भेजते बावजूद उसके यह कहने पर - पापा अब मैं बड़ा हो गया हूं।
ReplyDeleteक्या अधिक संरक्षण और अपने बच्चे की बुद्धि पर भरोसा न करते हुए हम लोग, उसका आत्मविश्वास तोड़ने के अपराधी नहीं हैं ...
ReplyDeleteसहमत हुआ जा सकता है मगर अभिभावकों के आस पास के माहौल पर भी निर्भर करता है ...
आये दिन सुर्खिया बने किस्से डराते भी तो हैं ...
संरक्षण और आजादी दोनों ही संतुलित होनी चाहिए ...!!