राज भाटिया जो प्रचार से दूर, पराये देश में रहते हुए भी भारतीय संस्कृति नन्हे-मुन्हे बच्चों को सिखाने के प्रयत्न में लगे हुए हैं ! नन्हे मुन्नों को अपने पास बैठा कर यह भारतीय कल्चर की कहानिया सुनाते हैं, इनकी इस वेब साईट पर जायेंगे तो किसी भी हिंदू का सर श्रद्धा से झुक जाएगा ! महसूस हो जाएगा की हम एक पावन स्थान पर आ गए हैं और वहाँ दिखाई पड़ेंगे बच्चों से घिरे हुए मधुर आचरण की कहानिया सुनाते राज !
और आश्रम भी ऐसा जहाँ गुरुवर नानक, माँ शारदा, ख़ुद केशव विराजमान हैं, वहां एक योगी राज भाटिया अपनी सुगन्धित धूनी रमाये बैठे नज़र आयेंगे !
ब्लाग जगत पर जिन लोगों को अब तक मैं जान पाया उनमे राज भाई ! विदेश में बसे ऋषि प्रतीत होते हैं, ! भारतीय कल्चर को बढ़ाने का ऐसा प्रयत्न और लगाव अब तक मैं और कहीं नही देख पाया ! अचानक पहली बार कोई व्यक्ति इस ब्लॉग पर आएगा तो लगेगा कि जैसे यह स्थान किसी धार्मिक हिंदू का है, मगर कुछ देर में इस संत के विचार जान कर आप समझ जायेंगे कि यह जगह एक विशाल दिल वाले इंसान की है जो मानवता से प्यार करता है , अपने देश से प्यार करता है अपनी संस्कृति से प्यार करने के साथ साथ, हर मज़हब की भी उतनी ही इज्ज़त करता है जितनी हिंदू धर्म की !
"अनवर भाई अगर गलती से किसी का मन भी दुखा दु तो मुझे सारी रात नीद नही आती, जब तक उस से माफ़ी ना मांग लु,ओर गलत को गलत कहने मे कभी भी परहेज नही किया..."
और आश्रम भी ऐसा जहाँ गुरुवर नानक, माँ शारदा, ख़ुद केशव विराजमान हैं, वहां एक योगी राज भाटिया अपनी सुगन्धित धूनी रमाये बैठे नज़र आयेंगे !
ब्लाग जगत पर जिन लोगों को अब तक मैं जान पाया उनमे राज भाई ! विदेश में बसे ऋषि प्रतीत होते हैं, ! भारतीय कल्चर को बढ़ाने का ऐसा प्रयत्न और लगाव अब तक मैं और कहीं नही देख पाया ! अचानक पहली बार कोई व्यक्ति इस ब्लॉग पर आएगा तो लगेगा कि जैसे यह स्थान किसी धार्मिक हिंदू का है, मगर कुछ देर में इस संत के विचार जान कर आप समझ जायेंगे कि यह जगह एक विशाल दिल वाले इंसान की है जो मानवता से प्यार करता है , अपने देश से प्यार करता है अपनी संस्कृति से प्यार करने के साथ साथ, हर मज़हब की भी उतनी ही इज्ज़त करता है जितनी हिंदू धर्म की !
"अनवर भाई अगर गलती से किसी का मन भी दुखा दु तो मुझे सारी रात नीद नही आती, जब तक उस से माफ़ी ना मांग लु,ओर गलत को गलत कहने मे कभी भी परहेज नही किया..."
उपरोक्त शब्द राज ने वेब साईट चाट पर अनवर से कह रहे हैं, जबकि आज फैशन बन चुका है अपने बड़प्पन को सिद्ध करने का, अपने ज्ञान ( ज्ञान भाई माफ़ करें ;-) .. उनसे नही कह रहा ) के प्रचार करने का, कोई मौका हमारे कुछ प्रतिष्ठित ब्लागर हाथ से नही जाने देते ! अपनी विद्वता प्रचार का यह नशा, उनके कुछ स्वयं ज्ञानी चेले चेलियों ने उनकी पीठ थपथपा कर और दुगुना कर दिया ! ऐसे ढोल नगाड़े बजते माहौल में कौन हिम्मत करे प्रश्न करने की ?? हर किसी को अपनी इज्ज़त की चिंता रहती है कि सरे बाज़ार मेरी धोती ना खोल दी जाए ....
मैं कल ब्लॉग जगत में, एक साल पुरानी कुछ पोस्ट पढ़ कर कुछ ब्लाग नायकों को समझने की कोशिश कर रहा था जानकर स्तब्ध रह गया कि किस तरह लोग अपनी धुन में दूसरे पक्ष को समझने का प्रयत्न ही नही करते ! और मजेदार बात यह कि हर पक्ष का ग्रुप उनके पक्षः में दोनों हाथों से तलवारें चला रहा है !
चंद "बेस्ट सैलर" किताबें पढ़ कर, उनके उद्धरण देते विद्वान्, यहाँ ब्लाग जगत में विदुर और केशव को सिखाते देखे जा सकते हैं !
इस माहौल में राज भाई के यह शब्द वन्दनीय हैं !
शहरोज भाई के लिखे "पंडित पुरोहितों के बिना उर्स मुकम्मिल नहीं होता" पर दिए गए उनके कमेंट्स
"कट्टरवाद की बीमारी सबसे खतरनाक बीमारी है, दुसरा आग लगाने ओर भडकाने वालो से भी हमे बचना चाहिये, वेसे जब मेरा दोस्त(पकिस्तान से) इस दुनिया से गया तो मेने उस की रुह को जन्नत मे जगह मिले के लिये नमाज भी अदा की ओर इस से मेरे धर्म को तो कोई हानि नही हुयी, बल्कि मुझे आत्मिक शान्ति मिली.
आप ने बहुत ही सुन्दर लिखा हे काश सारे भारत वाषी आप के ख्याल के हो जाये तो हमारे भारत मे ही नही पुरी दुनिया मे कितनी शान्ति हो।"
धार्मिक जनून के इस माहौल में अगर एक हिंदू, किसी मस्जिद में जाकर मत्था टेकता है, तो हिंदू धर्म की इज्ज़त बढ़ाने में इससे बड़ा योगदान और कुछ नही हो सकता, मेरा यह विश्वास है कि किसी हिंदू को मत्था टेकते देख कर मस्जिद में उपस्थित हर मुस्लिम भाई को एक सुखद आश्चर्य और सुकून की भावना ही नहीं पैदा होगी बल्कि तुंरत उसके दिल में उस व्यक्ति विशेष के प्रति आदर सम्मान देने की भावना भी पैदा होगी !
न सिर्फ़ एहतराम बल्कि उसकी अजमत पर हर इंसान सोचने पर मजबूर हो जाएगा...सच पूछिए तो इंसान सिर्फ़ इंसान होता है, मज़हब तो इंसानियत के बाद आता है, सतीश जी, आपको पता है, जब हम कोल्कता में थे, तो मेरे पापा के एक दोस्त जो कि सॉफ्टवेर इंजीनिअर भी थे, पूरे महीने का रोजा रखते थे, उनका कहना था कि वैसे तो वो अपनी सेहत के लिए रोजा रखते थे लेकिन जैसे जैसे रोजे रखते गए, रोजे की साए रूल्स ख़ुद बखुद पूरे करने को दिल चाहने लगा...वो मुस्लिम नही हो गए, लेकिन उनके हिसाब से जिस धर्म जो अच्छाइयां हैं उन्हें एक्सेप्ट करने में इंसान नीचा नही होजाता...उनकी बातें उनके खयालात सुनकर उनकी अज़मत पर निसार होने का दिल करता था...वैसे आप भी उन्हीं अजीम लोगों में आते हैं सतीश जी..
ReplyDeleteहिन्दी मे चिठा लिखते अभी ज्यादा समय नहीं हुआ हैं सो आप यहाँ का इतिहास जरुर पढ़ ले . दो पोस्ट ये देखे और भी बहुत कुछ हैं फिर बायोग्राफिकल लिखे . मोदेरेशन चालू हैं सो कमेन्ट रहे या मिटे पर आपकी भ्रान्ति दूर हो महाशय ये जरुरी हैं http://tippanikar.blogspot.com/2008/01/blog-post_17.html
ReplyDeletehttp://tippanikar.blogspot.com/2007/11/blog-post_20.html
निश्चय ही, विभिन्न धर्मों में सौहार्द बढ़ाने से बेहतर पुण्य और क्या होगा!
ReplyDeleteभाई,
ReplyDeleteएक बच्चा मैं भी हूं जो राज भाई के ब्लाग पर कहानियां सुनने जाता हूं। चुपचाप कुछ गीत भी सुन आता हूं।
मैं आपकी बात से सहमत हूँ. सस्नेह.
ReplyDeleteसतीश जी आपने बहुत ही सत्य बात कही है ! राज भाई एक
ReplyDeleteसंत पुरूष है ! सब छल कपट से दूर , सबको शकुन सा मिलता
है उनके पास ! मुझे तो ऐसा लगता है की हम पास ही बैठे बातें
करते हैं ! उनके ब्लॉग पर नया कुछ हो ना हो पर मुझे रोज
वहाँ गए बिना चैन नही पङता ! और ऐसा आकर्षण किसी
के भी प्रति तभी होता है जब वह आदमी सात्विक हो ! उसका
मन निर्मल हो ! भाटिया जी वाकई सरल इंसान हैं !
@बेनामी प्रथम !
ReplyDeleteआपकी भाषा से लगा आप मेरे शुभचिंतक हैं , आपका आभारी हूँ चेतावनी के लिए, मैं अपनी सम्पूर्ण ईमानदारी के साथ अपना स्पष्टीकरण देने का प्रयत्न करूंगा !
- यह सच है की मैं गत मई से ही ब्लोग्स में हूँ, और चिट्ठाकारों का इतिहास और आपस के ग्रुप्स के बारे में कुछ नही मालूम है बदकिस्मती से मेरा यहाँ कोई मित्र भी नही है जो मुझे रास्ता बताये ! यकीन मानिए अपनी ईमानदारी और बुद्धि पर ही भरोसा कर चल रहा हूँ !
- अक्सर मूल इतिहास चाहे नवीन या पुराना जो किसी और के द्बारा परिभाषित हो, सच नही माना जा सकता ! हर नए लेखन में समय के साथ तथ्य और तथ्यों के अर्थ बदल जाते हैं ! और यह लाइन आज भी सच है कि " जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी "
- राज भाटिया जी के बारे में या आपके बारे में कोई मित्र क्या कह रहा है मुझे तब तक विश्वास नही करना चाहिए जब तक मैं ख़ुद ना देख लूँ और उस दिन भूल सुधार करते हुए आपसे क्षमा मांग लूँगा !
-मैंने आपके उपरोक्त दोनों लिंक देखे, जिस तरह के अप्रिय और कड़वे शब्दों का प्रयोग किया गया है उसे देख कर एक वित्रष्ण| सी महसूस की है ! परस्पर बहस या संवाद के समय हर शब्द का अर्थ, अलग निकालना नही चाहिए ! मगर अगर बहस अगर अप्रिय स्थिति में पंहुच जाए तब उस बहस को बंद कर देना ही उचित है ! मैं यह मानता हूँ, कि समस्त महिला ब्लागर अत्यन्त सम्मानित एवं शिक्षित हैं, अगर पुरुषों से बहस हो तो पुरुषों को शिष्टता का दायरा नही लांघना चाहिए ! उस नाते भाटिया जी ने किसी का दिल न दुखे, क्षमा याचना की है !
मैं आपका आभारी हूँ, कि आपने आगाह किया, मुझे लोगों के गुण अवगुण के बारे में नही मालुम मगर उत्सुकता है, अनाम लिखने को मैं अधिक ग़लत नहीं मानता फिर भी कोई अनाम अगर कुछ मुझसे व्यक्तिगत कहना कहते है तो कृपया मेल द्बारा सूचित करें तो अधिक अच्छा लगेगा !
सतीश जी आप ने तो बहुत कुछ कह दिया मेरे बारे, शायद मे इन सब का हक दार नही, बिलकुल आम सा आदमी हु, मुझे कोई गाली भी देदे तो भी मे चुप चाप सुन लेता हू, आगे यह जो अनाम भाई हे आप इन की बात ओर इन की टिपण्णीयां जरुर पढे, मे तो इन्हे बहुत अच्छी तरह से जानता हु, लेकिन मे इन की तरह से नंगा ओर गंदा नही बन सकता, जेसा भी मे हु अच्छा हू,ओर खुश हू,
ReplyDeleteधन्यवाद
raj ji jaise shudh dhaarmik vyaktitv par apna lekh kendrit kar aapne achcha kiya.
ReplyDeletezarurat hai achche logon ki achchi baaten logon k beech prachaarit ki jaayen.
rakshanda ki nek-niyat ka main bhi qaayal hun.
मेरा घर है मेरा वतन वो ऐसा हो जहाँ हरेक अमनोचैन से ज़िँदगी बसर करेँ..जो कायदा और कानून ऐसा वतन कायम करे उसकी रखवाली और हिफाज़त करना हमवतनी इन्सान का फर्ज़ है -
ReplyDeleteराज भाई साहब को मैँ एक बहुत साफ और खुशमिज़ाज किस्म का इन्सान समझती हूँ और उनका परिवार से बडा नेह नाता है -
Good Post on a Good man !
- लावण्या
आपसे सहमत हूँ. राज जी एक बेहतरीन इन्सान हैं.
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