Saturday, May 24, 2008

अभिशाप -सतीश सक्सेना

बरसों पहले खेल खेल 
में हुआ किसी से प्यार 
और प्यार के बदले मुझको 
दिया तुम्ही ने शाप  ! 
तुम्हारा सत्य हुआ अभिशाप 
सुनयने ग्रहण किया वह शाप 

किसको अपना दर्द सुनाऊँ 
दिल की गहरी चोट दिखाऊँ 
ज्यों ज्यों बीते समय और 
भी बढ़ता जाता घाव , 
मानिनी जीवित रहता शाप  !
सुनयने ग्रहण किया वह शाप

क्यों आयीं जीवन में मेरे 
दोष अकेला मेरा कैसे 
बारम्बार भुलाना चाहूं ,    
ना     भूले  अभिशाप   ! 
रात भर दिल दहलता शाप !

हर आँगन में प्यार तलाशूँ 
मरुस्थल में  यार तलाशूं 
आशा लेकर फिरूं भटकता 
मिले   कहीं    ना  प्यार  , 
तुम्हारा पीछा करता शाप 
सुनयने जाग्रत  है वह शाप !  

चंदा  सूरज   चाहे  हमने 
मिलके देखे सपने हमने 
मगर विधाता ने किस्मत 
में   किया  क्रूर   उपहास  , 
चैन   से  ना  रहने   दे शाप  !
सुनयने ग्रहण किया वह शाप !   

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- सतीश सक्सेना

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