Thursday, May 19, 2022

कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना -सतीश सक्सेना

इन दिनों भयंकर गर्मी पड़ रही है , काफी समय से दौड़ना बंद कर, आराम करने की मुद्रा में चल रहा हूँ ! हानिकारक मौसम में शरीर पर नाजायज जोर न पड़े इस कारण यह रेस्ट आवश्यक भी है मगर सम्पूर्ण आराम के दिनों खाने के चयन पर अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है ! अन्यथा ट्रकों के पीछे सही वाक्य लिखा ही रहता है कि सावधानी हटी दुर्घटना घटी !

कल दिन में दो बार खाना खा लिया सुबह 11 बजे और रात 8 बजे , आज सुबह घर से निकलते ही, कल की हुई बेवकूफी पता चल गयी ! बेसन की मोटी रोटी और खुद बनाये हुए स्वादिष्ट दम आलू की सब्जी और छाछ, खाने की कीमत पता चल रही थी साथ ही, मेरे कुछ दुबले पतले मित्रों का हाल में बढ़े हुए वजन का राज भी पता चल रहा था ! सो आज उपवास रखना होगा केवल तरबूज के साथ साथ ही अगले पंद्रह दिन सुबह की चाय और बिस्किट भी बंद ताकि प्रायश्चित्त हो इस लालच का !

लम्बे जर्मनी प्रवास में , सुबह सुबह डिपार्टमेंटल स्टोर में जब अस्सी से ऊपर की महिलाओं पुरुषों को अपना सामान साईकिल पर लादकर साइकिल ट्रेक पर तेजी से जाते देखता तो अपने देश के बुजुर्गों की दयनीय दशा अवश्य याद आती थी कि हम मानसिक तौर पर आज भी कितने अविकसित हैं !

जब तक हूँ तब तक कुरीतियों अनीतियों और अन्याय के खिलाफ लिखना तो होगा इस विश्वास के साथ कि लिखा अमर है और रहेगा ताकि जाते समय खुद को यह कष्ट न हो कि हम संक्रमण काल में भी निष्क्रिय रहे !

इस हिन्दुस्तान में रहते , अलग पहचान सा लिखना !
कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना !

दिखें यदि घाव धरती के, तो आँखों को झुका लिखना
घरों में बंद, मां बहनों पे, कुछ आसान सा लिखना !

विदूषक बन गए मंचाधिकारी , उनके शिष्यों के ,
इन हिंदी पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !

किसी के शब्द शैली को चुराये मंच कवियों औ ,
जुगाडू गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !

व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !

तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !

13 comments:

  1. प्रेरक। वजन एक बार बढ़ जाए तो उसे वापस पहले जैसा करना बहुत कठिन है। पहले से ही चौकस रचना एकमात्र उपाय है।

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  2. जब तक हूँ तब तक कुरीतियों अनीतियों और अन्याय के खिलाफ लिखना तो होगा इस विश्वास के साथ कि लिखा अमर है और रहेगा ताकि जाते समय खुद को यह कष्ट न हो कि हम संक्रमण काल में भी निष्क्रिय रहे !

    इस हिन्दुस्तान में रहते , अलग पहचान सा लिखना !
    कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना !

    व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
    हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !

    तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
    बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !

    बहुत खूब, दिल से लिखते हैं आप,
    ये सच है कि अच्छा लिखा व्यर्थ नहीं जाता कभी न कभी उसे उसके कद्रदान मिल ही जाया करते हैं और फिर यह तो इंटरनेट हैं दुनिया देखती हैं आज नहीं तो कल

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  3. बहुत ही प्रेरक एवं अविस्मरणीय सृजन
    🙏🙏🙏🙏

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  4. व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
    हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !...बहुत सुंदर!!

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  5. व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
    हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !

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  6. कोशिश करते हैं हजूर कुछ लिखना
    ना तलवार लिखी जाती है ना कलम
    परवा का झंडा झुक लिया है
    सुलतान लिखवा रहा है अपना लिखना।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  8. सुंदर और प्रेरक रचना ।

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  9. लिखा हुआ अमिट और अमर अवश्य रहेगा।

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  10. समय को साधकर लिखी अर्थपूर्ण रचना

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  11. समय को साधकर लिखी अर्थपूर्ण रचना

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  12. खूबसूरत अभिव्यक्ति .....एहसास दिल के लिखते हैं

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  13. बहुत उच्च कोटि की रचना है यह।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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