कल दिन में दो बार खाना खा लिया सुबह 11 बजे और रात 8 बजे , आज सुबह घर से निकलते ही, कल की हुई बेवकूफी पता चल गयी ! बेसन की मोटी रोटी और खुद बनाये हुए स्वादिष्ट दम आलू की सब्जी और छाछ, खाने की कीमत पता चल रही थी साथ ही, मेरे कुछ दुबले पतले मित्रों का हाल में बढ़े हुए वजन का राज भी पता चल रहा था ! सो आज उपवास रखना होगा केवल तरबूज के साथ साथ ही अगले पंद्रह दिन सुबह की चाय और बिस्किट भी बंद ताकि प्रायश्चित्त हो इस लालच का !
लम्बे जर्मनी प्रवास में , सुबह सुबह डिपार्टमेंटल स्टोर में जब अस्सी से ऊपर की महिलाओं पुरुषों को अपना सामान साईकिल पर लादकर साइकिल ट्रेक पर तेजी से जाते देखता तो अपने देश के बुजुर्गों की दयनीय दशा अवश्य याद आती थी कि हम मानसिक तौर पर आज भी कितने अविकसित हैं !
जब तक हूँ तब तक कुरीतियों अनीतियों और अन्याय के खिलाफ लिखना तो होगा इस विश्वास के साथ कि लिखा अमर है और रहेगा ताकि जाते समय खुद को यह कष्ट न हो कि हम संक्रमण काल में भी निष्क्रिय रहे !
इस हिन्दुस्तान में रहते , अलग पहचान सा लिखना !
कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना !
दिखें यदि घाव धरती के, तो आँखों को झुका लिखना
घरों में बंद, मां बहनों पे, कुछ आसान सा लिखना !
विदूषक बन गए मंचाधिकारी , उनके शिष्यों के ,
इन हिंदी पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !
इन हिंदी पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !
किसी के शब्द शैली को चुराये मंच कवियों औ ,
जुगाडू गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !
जुगाडू गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !
व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !
तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !
प्रेरक। वजन एक बार बढ़ जाए तो उसे वापस पहले जैसा करना बहुत कठिन है। पहले से ही चौकस रचना एकमात्र उपाय है।
ReplyDeleteजब तक हूँ तब तक कुरीतियों अनीतियों और अन्याय के खिलाफ लिखना तो होगा इस विश्वास के साथ कि लिखा अमर है और रहेगा ताकि जाते समय खुद को यह कष्ट न हो कि हम संक्रमण काल में भी निष्क्रिय रहे !
ReplyDeleteइस हिन्दुस्तान में रहते , अलग पहचान सा लिखना !
कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना !
व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !
तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !
बहुत खूब, दिल से लिखते हैं आप,
ये सच है कि अच्छा लिखा व्यर्थ नहीं जाता कभी न कभी उसे उसके कद्रदान मिल ही जाया करते हैं और फिर यह तो इंटरनेट हैं दुनिया देखती हैं आज नहीं तो कल
बहुत ही प्रेरक एवं अविस्मरणीय सृजन
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏
व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
ReplyDeleteहजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !...बहुत सुंदर!!
व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
ReplyDeleteहजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !
कोशिश करते हैं हजूर कुछ लिखना
ReplyDeleteना तलवार लिखी जाती है ना कलम
परवा का झंडा झुक लिया है
सुलतान लिखवा रहा है अपना लिखना।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर और प्रेरक रचना ।
ReplyDeleteलिखा हुआ अमिट और अमर अवश्य रहेगा।
ReplyDeleteसमय को साधकर लिखी अर्थपूर्ण रचना
ReplyDeleteसमय को साधकर लिखी अर्थपूर्ण रचना
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति .....एहसास दिल के लिखते हैं
ReplyDeleteबहुत उच्च कोटि की रचना है यह।
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