रोज सुबह एकाग्रचित्त होकर टहलने / दौड़ने निकलना तभी संभव होगा जब आपमें एक धुन या जिद बन जाए कि मैंने मरते समय तक अपने शरीर को फुर्तीला बनाये रखना है यकीनन बीमारियां आपके खूबसूरत गठे हुए शरीर के निकट नहीं आएँगी , वे सिर्फ सुस्त शरीर के मालिकों को ही ढूंढती हैं !
मेडिकल व्यवसाय से मदद की आशा छोड़कर अपने शरीर की आंतरिक रक्षाशक्ति पर विश्वास रखें , आप जीतेंगे !
साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
आपकी लेखनी के साथ मानस दौड हम भी लगा लेते हैं।
ReplyDeleteस्वास्थ्य के प्रति सजग और सचेत करती पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी बात स्वीकार्य है, आपकी सलाह अनुकरणीय है।
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