प्रणाम आप सबको !
अकर्मण्यता की आदत से, है कितना लाचार आदमी !
जकड़े घुटने पकड़ के बैठा , ढूंढ रहा उपचार आदमी !
जकड़े घुटने पकड़ के बैठा , ढूंढ रहा उपचार आदमी !
माँ की दवा,को चोरी करते,बच्चे की वेदना लिखूंगा !
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
- सतीश सक्सेना
वाह ! यह कविता याद आ गयी, कुछ काम करो, कुछ काम करो !
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-०५-२०२२ ) को
'रिश्ते कपड़े नहीं '(चर्चा अंक-४४३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सच है आज लाचार है इंसान ... और ये लाचारी इस उम्र में इंसान खुद ही लाता है ...
ReplyDeleteइंसान खुद ही जिम्मेवार है ...
ReplyDeleteनमन आपको। आपकी जीवनचर्या एवं दृष्टिकोण से तो बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
ReplyDeleteAll information is value able , I am happy by reading this..
ReplyDeleteFood Questions
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