कुत्तों की एक दोस्त संस्था ,"Friendicoes" डिफेन्स कालोनी फ्लाईओवर के नीचे कार्यरत थी , वहाँ के व्यवस्थापक गौतम को फोन लगा कर आपातकालीन सहायता की मांग की , उन्होंने तुरंत एम्बुलेंस की व्यवस्था कर भेजना स्वीकार किया ! लगभग १ घंटे इंतज़ार करने के बाद एम्बुलेंस पार्क में पंहुच चुकी थी ! चिंताजनक मिनी को अपनी गोद में उठाकर एम्बुलेंस तक ले जाते समय मुझे पार्क में बैठे लोग विचित्र नज़र से देख रहे थे !
शायद मणिपुरी की डॉ देवी, ने देखते ही कह दिया कि इसके बच्चे पेट में मर जाने के कारण, जहर फैलने का खतरा है !आपरेशन तुरंत करना होगा !ओपरेशन टेबल पर उसे बेहोशी का इंजेक्शन देते समय , जिस तरह से मिनी मुझे देख रही थी वह मैं कभी नहीं भूल सकता ! आपरेशन के दौरान मैंने टेलीफोन पर अपने बॉस और सहकर्मियों को "मेरी एक दोस्त का आपरेशन है अतः आफिस नहीं आ सकता ...हाँ ...कुतिया सुनकर.. मेरा साथ देने कोई नहीं आया !
लगभग १५ दिन मिनी उस हास्पिटल में रही , इस दोस्त के कारण , मेरा वहाँ जाना नियमित ही रहा ! इस बीच में वहां जीवों के प्रति लगाव रखने वाले कितने ही लोगों से मुलाक़ात हुई ! हास्पिटल से मिनी को लाने के लिए मैं अपनी गाड़ी और पार्क में भ्रमण करने वाले पड़ोसी मित्र राजपाल को लेकर वहाँ पंहुचा ! गरीब मिनी जो कभी चलती गाडी में नहीं बैठी थी ,घबराहट में उसने पिछली पूरी सीट गंदी कर दी ! दुबारा गाडी लेकर हॉस्पिटल जाकर सीट साफ़ कराई, इस बीच हमारे वे मित्र अपना माथा पकड़ कर, मेरी हरकतों के साक्षी बने रहे ! बहरहाल लगभग १५ दिन अस्पताल में रहने के बाद, मिनी को जब वापस उसी पार्क में लाकर बाहर छोड़ा तो एक कोने से दूसरे कोने में उसका उछल उछल कर दौड़ते हुए देखना ,आकर मुझे चाटना, मेरी सारी थकान, मेहनत और पैसे का खर्च भुला चुका था !
निदा फाजली का एक शेर मुझे बहुत पसंद है , आपकी नज़र कर रहा हूँ , गौर से पढियेगा !
"घर से मस्जिद है बहुत दूर,चलो यूं करलें
किसी रोते हुए बच्चे को, हंसाया जाए "
Aadarneeya satishji !
ReplyDeleteAap insaan ke rup mei ek farishta ho. Bahut saaf aur achhe dil ke ho.Ishwar ne Aapka jeewan doosron ke leye hi banaya hai.
Aap ka eh post ne duniya ko bata deya ki aapka jeevan ka lakshya kya hai..
"Doosron ke leye jeena"
Pranaam!
सच्चा दोस्त!
ReplyDeleteप्रत्येक जीव को
ReplyDeleteसजीव अगर मानें
अपने मन में
सदा ऐसे विचार पालें
जो ऐसे पल हर पल
समस्त चेतना में पा लें।
मिनी को जब वापस उसी पार्क में लाकर बाहर छोड़ा तो एक कोने से दूसरे कोने में उसका उछल उछल कर दौड़ते हुए देखना ,आकर मुझे चाटना, मेरी सारी थकान, मेहनत और पैसे का खर्च भुला चुका था !
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
@Anonymous...
ReplyDeleteकुछ दिन पहले एक "अनाम" ने मुझे एक पोस्ट जिसमें मैंने उस दिन की दिनचर्या की चर्चा करते हुए एक जरूरतमंद वृद्ध दम्पति को १०० रुपया और एक पंक्चर वाले को ३० रुपया अधिक देने की चर्चा की थी ! उन "अनाम" का कमेंट्स था की मैं १३० रुपया देकर, दुनिया को अपने महानतम कार्य बता रहा हूँ ...!
उस कमेंट्स में मेरे प्रयास को, अपना नाम कमाने हेतु किया गया प्रयास और ब्लाग के जरिये फायदा उठाना मात्र था !
मेरा उस पोस्ट को लिखने का उद्देश्य मंदिर न जाकर, मंदिर में खर्च होने वाले पैसे का अन्य जीवों की मदद पर लगाने का था !
हर पोस्ट ..हर लेखक या ब्लागर अपनी अपनी समझ और उद्देश्य लेकर लिखता है ! पढने वाले भी उसमें हर अर्थ ढूँढने का प्रयास अपनी समझ के अनुरूप ही करेंगे !
आपका कमेंट्स अपने नाम से होता तो और अच्छा लगता ! खैर आपका शुक्रिया !
मेरी तरफ दर्द से देख जैसे कह रही हो मुझे बचा लो !
ReplyDeleteek scha dost dost se kehta hai.....
bada nek kaam kiya aapne satish ji...par aaj to insaan ke bachche yunhi tadap tadap ke mar jaate hain...unke liye bhi kuch karne ki zarurat hai
ReplyDeleteसतीश जी
ReplyDeleteसादर
आपका दोस्त सकुशल है जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई. आपके दोस्त और आपकी दोस्ती के प्रति शुभकामनाएँ. नेक कार्य में कोई साथ दे, न दे क्या फर्क पड़ता है.
शायद इंसानियत इसी को कहते हैं सतीश भईया , आपने बहुत ही नेक काम किया है ।
ReplyDelete@ adarneeya satishji !
ReplyDeleteहर पोस्ट ..हर लेखक या ब्लागर अपनी अपनी समझ और उद्देश्य लेकर लिखता है ! पढने वाले भी उसमें हर अर्थ ढूँढने का प्रयास अपनी समझ के अनुरूप ही करेंगे !
Mujhe accha laga aapje kaments padkar. apse sehmat bhi hun. Aapko aur appka har lekh se juda hun basut pasand hai lekin bahut kam kaments deta hun.
Mere jeevan ke andhere mei rehna pasand karta hun. . Duniya ne mujhe akela kiya .Aur akelapan mujhe accha lagta hai. Isleye annoymus hun
@Anonymous... !
ReplyDeleteलोगों के कारण अँधेरे में रहना पसंद करते हो ? क्षमा करें ,मगर मैं इसे कायरता कहूँगा ! किसी शायर का एक शेर मझे बचपन से बहुत पसंद है ...
"हमको मिटा सके यह जमाने में दम नहीं
हमसे ज़माना खुद है, जमाने से हम नहीं !"
कितने सह्रदय हैं आप । एक सच्चे दोस्त ौर मिनि बी ापकी दोस्ती को कभी भुलायेगी नही । आपको सलाम .
ReplyDelete@Anonymous... !
ReplyDeleteलोगों के कारण अँधेरे में रहना पसंद करते हो ? क्षमा करें ,मगर मैं इसे कायरता कहूँगा ! किसी शायर का एक शेर मझे बचपन से बहुत पसंद है ...
@Aadarneeya satishji ! Mere naam se kayarta paehle se hi juda hai.Mujhe koi fark nahi padta. Accha laga aap jaise mahaan blogger ke muh se sunkar. Mera umr 50 , Ishwar ne mujhe itna kator bana diya ke aur mujhe kisi bhi prakar ka taqleef se gujarna mushkil nahi haina koi shikayat hai jeevan se...
"हमको मिटा सके यह जमाने में दम नहीं
हमसे ज़माना खुद है, जमाने से हम नहीं !
ye shayar app jaise insaan ke liye hai
shukruya
भावुक कर देने वाला आलेख ..आभार
ReplyDelete@
ReplyDeleteआप बहुत निराश लगते हो ...अगर दिल्ली में हैं तो मैं आपसे मिलना चाहूँगा ! मेरा नंबर ९८११०७६४५१ है !
सादर
प्रेरक कार्य ..
ReplyDeleteसभी आपकी तरह संवेदनशील हो जाये तो यह जग कितना सुंदर बन जाये ..
बहुत अच्छा कार्य किया । बिल्कुल ऐसी ही एक है हमारे घर में । नाम है रोमा । आजकल गुस्सा है कि हम ब्लॉगिंग करने लगे हैं । लैपटॉप को कई बार आग्नेय नेत्रों से देख चुकी है । आज सायं टहलाने ले जायेंगे । याद दिलाने का आभार ।
ReplyDeleteआपकी दोस्ती को नमस्कार
ReplyDeleteयही तो है इबादत, पू्जा
यही तो है दान, जकात
यही तो है प्रेम, श्रद्धा
यही तो है आस्तिकता, धार्मिकता
प्रणाम स्वीकार करें
वाह! आज हमें आपके संवेदनशील ह्रदय का पता चला!
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteमैं सुबह पार्क में आकर आपकी दोस्त से मिलना चाहूंगा...
आपके इस लेख ने पाबला जी के घर की एक बेज़ुबान सदस्य की याद दिला दी जो अब इस दुनिया में नहीं है...पाबला जी ने पिछले साल दीवाली के पास उसके दुनिया से अलविदा कहने पर बड़ी ही मार्मिक श्रद्धांजलि दी थी...पटाखों के शोर ने उस बेज़ुबान की जान ली थी...उस लेख की एक लाइन मुझे भुलाए नहीं भूलती...उस बेज़ुबान ने आसमान पर उड़ते विमान को इस तरह देखा जैसे कह रही हो कि इनसान तूने उड़ना तो सीख लिया लेकिन सभ्य होना नहीं सीखा...
जय हिंद...
आपके दोस्त के स्वास्थ्य के लिये मंगलकामनायें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर काम किया, पुजा से बढ कर. आप का धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूब सतीश जी एक बहुत प्रशंसनीय कार्य किया आपने. मानवता तो यही कहती है जो आपने किया
ReplyDeleteआभार
इस वाकये से आपके संवेदनशील हृदय का पता चलता है।
ReplyDeleteबहुत कम लोग ऐसा कर पाएंगे ।
मानव सम्वेदना का एक सुंदर उदाहरण है यह पोस्ट |
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा |
आशा
satishjee lagata hai meree nazar parkhee nazar hai.............aapke vyktitv ne sabit jo kar diya.
ReplyDeletebadee hoo aapse dero aasheesh dene ka man ho aaya hai ..........
doosaro ko khushee dene me hee asalee khushee chipee hotee hai jeevan kee .
Happy journey.......
paraso nikal rahe hai na aap Europe trip par ?
hum log bhee 2 wks ke liye Australia kal nikal rahe hai
laptop soch rahee hoo sath na le jau .
Holiday should be holiday .
सच्चे अर्थों में परमात्मा की सेवा!!!
ReplyDeletetrue friend
ReplyDeleteand like the last 2 lines of sher
बेजुबान प्राणी, वाणी से नहीं आँखों से
ReplyDeleteबात करते हैं। आँखों भाषा को बांच
पाना सबके वश की बात नहीं होती।
मारने वाले से बचाने वाले का क़द सदैव
बड़ा होता है। जीव मात्र के लिए
आपके द्वारा दिखाई गई करुणा अद्वैत का
परिचायक है। इस सदाचरण के लिए आपको
बहुत...बहुत बधाई!
आपके जज्बे को प्रणाम!
ReplyDeleteजिस तरह से मिनी मुझे देख रही थी वह मैं कभी नहीं भूल सकता!
ReplyDeleteआह :-(
आपने डेज़ी की याद दिला दी मुझे, वह भी मुझे आखिरी बार कुछ ऐसा ही देख गई थी।
आप जैसे संवेदनशील 'प्राणी' से मिलने की ललक कुछ और बढ़ गई है
Three cheers for Mini-Satish friendship
ए प्यार करने वाले प्यार का अंजाम देख ले, डूबते हुए सूरज की शुबहा और शाम देख ले..........................................अब आप की बारी है
ReplyDeleteसतीश भईया आपने बहुत ही नेक काम किया है इंसानियत इसी को कहते हैं ,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिये बहुत -बहुत धन्यवाद् .
सतीशजी,
ReplyDeleteआपके व्यतित्व की परछाई हर एक पोस्ट मैं दिख जाती है, और इस पोस्ट से भी सन्देश मिलता है की हम कुछ भी होने से पहले इंसान हैं, और दोस्ती का रिश्ता जात-पात, धर्म और तो और स्पीशीज भी नहीं देखता! आप की पोस्ट अर्थपूर्ण लेखन और अर्थपूर्ण कार्यों के लिए प्रोत्साहित करती है!
आभार कविता...
सतीशजी,
ReplyDeleteआपके व्यतित्व की परछाई हर एक पोस्ट मैं दिख जाती है, और इस पोस्ट से भी सन्देश मिलता है की हम कुछ भी होने से पहले इंसान हैं, और दोस्ती का रिश्ता जात-पात, धर्म और तो और स्पीशीज भी नहीं देखता! आप की पोस्ट अर्थपूर्ण लेखन और अर्थपूर्ण कार्यों के लिए प्रोत्साहित करती है!
आभार कविता...
Hello Satish ji,
ReplyDeleteMay i have address of that hospital please, I may need for my pets in future.
Thanks
shweta
satish1954@gmail.com
Deletei thought if you will post it on blog it will helpful to others too ...
Deleteanyway .. please email the hospital address at coolbreeze017@gmail.com
it will be helpful .
thanks again .
आपने शायद ध्यान से लेख नहीं पढ़ा, यह हॉस्पिटल डिफेन्स कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे, Friendicoes SECA के नाम से कार्यरत है ! बहरहाल अन्य डिटेल दे रहा हूँ , आशा है आप इसका फायदा उठाएंगे !
Deletehttp://www.friendicoes.org/
(011) 24314787, (011) 24320303 271-273, Defence Colony Flyover Market, Defence Colony, Delhi- 110024
Thanks much for given info. I read the post fully but i was searching the address in Lucknow . Now its clear ... that its in Delhi.
DeleteIts a good website ... Thanks again.
ReplyDeleteshweta !
Deleteकृपया भविष्य में अनाम होकर कमेंट न करें , महत्व नहीं दिया जाएगा !
Sorry to ask , But which comment did i posted as anonymous ?
DeleteI am sorry . But if i do so in future , that will be fine if it won't get published or won't be given importance.
DeleteThanks
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