कभी सोचा आपने कि हमारे जाने के बाद क्या फर्क आएगा हमारे परिवार में ....कुछ ऐसा काम कर चलें जिससे कुछ यादें दर्ज हो जाएँ हमेशा के लिए, जो हमारे अपनों को सुख दे पायें ! आज मैं याद करना चाहता हूँ अपने उन प्यारों को, जिन्होंने मुझे खड़ा करने में मदद की !
- सबसे पहले उन्हें, जिन्होंने मुझे उंगली पकड़ के चलना सिखाया , अगर वे हाथ मुझे सहारा न देते तो शायद मेरा अस्तित्व और यह भरा पूरा परिवार और मुझे चाहने वाले , कोई भी न होते ! उनमें से कुछ हैं और कुछ मेरी अथवा परिवार की लापरवाही के कारण, समय से पहले, छोड़ कर चले गए ! शायद समय रहते उनकी अस्वस्थता पर उचित ध्यान दिया जाता तो वे अभी हम लोगों के साथ होते ! इन बड़ों के साथ, मैं अपने आपको हमेशा स्वार्थी महसूस करता हूँ , उनके साथ ही सबसे कम कर पाया और हमेशा उनका ऋणी ही रहूँगा , उनका कर्जा लेकर मरना मेरी नियति होगी ...
- इसके बाद वे, जो मेरे अपने नहीं थे , जिनसे कोई रिश्ता नहीं था उसके बावजूद इन "गैरों " ने , जब जब मुझे अकेलापन और अँधेरा महसूस हुआ , मेरा साथ नहीं छोड़ा ! मुझे लगता है पिछले जन्म का कोई रिश्ता रहा होगा, जिसका बदला उन्होंने इस जन्म के कष्टों में, साथ देकर पूरा किया ! निस्वार्थ प्यार और स्नेह का कोई मोल नहीं होता ! जब भी अकेले में, मैं इन प्यारों का दिया संग याद करता हूँ तो आँखों में आंसू छलक आते हैं ...बस यही कीमत अदा कर सकता हूँ इन अपनों की ! और मेरे पास कुछ नहीं इन्हें देने को !
- पत्नी को किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े , आज हमारे दोनों बच्चे बेहतरीन कंपनियों में मैनेजर हैं और अपनी माँ को बहुत प्यार करते हैं ! इतना है उनके पास कि बचे शेष जीवन में वे इतनी मज़बूत रहें कि उनके आँख में कभी धन की कमी के कारण आंसू न आ पाए ! शायद पत्नी की अपेक्षाओं पर उतरना बेहद मुश्किल होता है और मैं भी अपवाद नहीं रहा . जो काम मैं नहीं कर सका उसके लिए मैं अपनी अयोग्यता को दोषी ठहराता हूँ !
- पिता के जाने के बाद, बेटी अपने को, अधिक असुरक्षित महसूस करती है , एक संतोष है कि अपने दोनों बच्चों के लिए मैंने बराबर किया है ! भाई के बेहद प्यार के बावजूद कही न कहीं मायके में उसका भविष्य, भाभी के व्यवहार पर निर्भर होता है ! उम्मीद करता हूँ कि मेरा सुयोग्य बेटा अपनी प्यारी बहिन को कभी अकेले महसूस नहीं होने देगा ! मेरी पुत्री का बेहद मेहनती और स्नेही होना, उसका सुखद भविष्य सुनिश्चित करने को काफी है ! उसकी बेहतरीन कार्यक्षमता, दिन पर दिन निखरेगी इसका मुझे विश्वास है !
- पुत्र में, मैं अपना अंश और व्यवहार पाता हूँ ! चूंकि मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूँ सो अपने बेटे पर पूरा विश्वास है कि वह जीवन में अच्छा करेगा और सारे कर्त्तव्य हँसते हुए पूरे करेगा ! मैं जानता हूँ कि मेरे द्वारा पैदा किया गया, शून्य उसे बहुत खलेगा ! कुशाग्रबुद्धि और आत्मविश्वास उसे अपनी कठिनाइयों पर विजय दिलाने में सहायक रहेंगे ! अपनी इच्छाएं सार्वजनिक करने का मतलब ताकि सनद रहे , मेरे न रहने पर, यह मेरे प्यार का दस्तावेज होगा उन सबके लिए जो मेरे बाद मेरी कमी महसूस करेंगे !
yah dastavej bahut mahatwpurn hai...
ReplyDeleteआप की ये पंक्तियां एक भावपूर्ण कविता सी लगती हैं । अपने बच्चों पर ये विश्वास उनके
ReplyDeleteलिये आपका आशीष है !
सतीश जी ,
ReplyDeleteइस वाले क्यू में आपका नंबर अभी बहुत पीछे है - बिना टर्न आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे तो और पीछे धकेल दिया जायेगा !
यह दस्तावेज़ लिखने का समय अभी नहीं आया है . बहुत कुछ करने को पड़ा है आपके लिए !
आपकी ये पंक्तियां एक भावपूर्ण कविता सी लगी !
ReplyDeleteआज सुबह सुबह कैसी बात कर रहे हैं भाई जान ।
ReplyDeleteअपनों के लिए कितना भी करें , हमेशा कम ही लगता है । इसलिए अफ़सोस न करें ।
पूरा विश्वास है कि बच्चे भी आप पर ही गए हैं ।
इसलिए निश्चिन्त रहिये , और मौज करिए ।
प्रतिभा जी की बात से सहमत।
ReplyDeleteआजकल आसपडोस मे कुछ मातम का माहौल है बस यही कुछ मन मे चस्लता रहता है। उपयोगी पोस्ज़्ट के लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteआज सबेरे सबेरे करेला खा लिया क्या ??????ये सब क्या है और क्यों है ??????सब कुछ नियति पर छोड़ दे निश्चिन्त रहें
ReplyDeleteअरे भईया जी क्या बात कर रहे हैं आप भी , कुछ और नहीं था क्या लिखने को ??
ReplyDeleteमैनें भी ये सब सोचा था एक बार, और उसके बाद एक कविता भी लिखी थी, कभी पोस्ट करूँगीं तो आपको जरूर सूचित करूँगीं... मैनें भी उसमें अपना एक-एक पल बाँट दिया था सबको.... पर आप बहुत पार्शियल हैं, हम लोगों के बारे में तो सोचा ही नहीं... हम जैसें बच्चों को भी तो कुछ... पर सच बोलूं आँखें नाम हो गईं थीं... कृपया अगली बार ऐसी पोस्ट न लिखें... अच्छा नहीं लगता...
ReplyDeleteह्रदय तंत्री पर आज अनोखी तान छेड़ी
ReplyDeleteयूँ ही तो ना कटा करती स्नेह की बेडी
निज जन काजे साज संजोये पग पग
कण कण में सिक्त करें आशीष ये दृग
चाहे कौन प्रियजन अपने को भूलजाना
समय अमित प्रबल सिखलाता भूलजाना
ऐसा मरघटिया वैराग्य अक्सर जब हम किसी अपने को अस्पताल में गंभीर अवस्था में बीमारी से जूझता देखकर आते हैं तब या फिर किसी के दाह-संस्कार से निवृत्त होकर आते हैं तब अक्सर हमारे मन में उपजता है । अब आपके मन में कैसे उपजा, यह आप सोचिये.
ReplyDeleteहूंआपके लंबे जीवन की कामना करती हूं !!
ReplyDeleteआपकी दूरदर्शिता को सलाम करूँ या इस असमय आई पोस्ट पर अपनी नाराज़गी लिखूँ समझ नहीं आ रहा !
ReplyDeleteसतीश भाई बिना भावुक हुए कह रहा हूं कि ऐसे दस्तावेज लिखते रहना चाहिए। बहुत जरूरी है। न केवल इसलिए कि औरों को पता चले,बल्कि हमें भी याद आता रहे कि हमने जो सार्वजनिक रूप से कहा हुआ है और हम कहीं इसके उलट तो नहीं चल रहे।
ReplyDelete*
शुभकामनाएं
यह कौन सा राग छेड़ दिया आपने.
ReplyDeleteअभी से ऐसा क्यों सोच रहे हैं।
ReplyDeleteलेकिन कल्पना की ये उड़ान एक अच्छी कविता जैसी लगी।
ईश्वर करे , आप दीर्घायु हों।
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ReplyDelete.
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देव,
मैं भी रचना दीक्षित जी का सवाल ही पूछूंगा... क्या हुआ सवेरे-सवेरे... कुछ कड़वा चख लिया है क्या....
मस्त रहिये... ज्यादा सोच विचार व चिंता नहीं करने का... अभी आपकी तो वय भी नहीं है इस हिसाब किताब की...
आज बहुतों का दिल दुखायेगा आपका यह आलेख... :-(
...
आप जैसा विश्वास और विचार, भगवान करे सबके हों।
ReplyDeleteअरे आज ये क्या हो गया आपको ..इतने सुन्दर प्रणय गीत लिखने वाला आज ये कैसी बातें कर रहा है ?
ReplyDeleteवैसे बच्चों के लिए आपका विश्वास देखकर बहुत अच्छा लगा.
मूड स्विंग? होता है होता है :)
ReplyDeleteलगता है फिर दिल्ली आना पड़ेगा !
अजी हमारे मरने के बाद.... यह चिंता क्यो ? बच्चो को अच्च्छी शिक्षा अच्छे संस्कार दे दो ओर उन्हे आजाद छोड दो, बाकी उन की अपनी जिन्दगी हे, हम क्यो उस मे दखल दे, ओर फ़िर मरने के बाद भी.... नही मै ऎसा कभी नही सोचता, जब मै करुंगा तो अगर बीबी जिन्दा रही या बच्चे चोट हे तो उन के गुजर बसर के लिये जरुर छोड जाऊंगा, अगर बच्चे बडे हे तो बीबी के लिये जरुर छोड जाऊंगा, ओर अगर बीबी पहले चली गई तो... बच्चे खुद कमायेगे, मै छोडी गई राशि उन के बच्चो मे या किसी गरीब को दे दुंगा, अगर हम सब ऎसा करे तो भ्रर्ष्टा चार खुद वा खुद खत्म हो जायेगा
ReplyDeleteसतीश जी
ReplyDeleteवास्तविकता तो है आपकी बातों में ............पर जो सच है उससे क्या मोह रखना ..क्या उसके बारे में सोचना ...जिन चीजों पर हमारा वश नहीं ....उन पर हम क्या कह सकते हैं ..............अब कभी ऐसा मत लिखना .....आज आँखें नम हो गयी ...फिर आंसू आ जाएँगे ......सुबह पढ़ा था इस पोस्ट को लेकिन टिप्पणी के बारे में सोचा तो हाथ रुक गया ......अब और अधिक नहीं
apka snehil dastawez bhawnaon ka khazana hai.bemisaal.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट अच्छी लगी ,राज जी से सहमत हूँ .
ReplyDelete...कृप्या छोटों को राह सीधी दिखाईये ।
खुशी मिली तो खुशी में शरीक सबको किया
मिले जो ग़म तो अकेले में जाके रोने लगे
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/01/246701.html
Ye baat kuchh azm nahi hui... Aap jaise bindaas rehne wale insaan iss tarah likhte hain.. hamara mood suba subah fuse ho gaya... Itna samay laga hamari bulb jalne mei.. Aapko hamari umar lag jaye... Khush rahiye hamesha ki tarah . Dubara rulana nahi...
ReplyDeleteसुबह से 10 बार आया इस पोस्ट पर, लेकिन क्या कहुं सुझ ही नहीं रहा?
ReplyDeleteबस…………
अतित व्यवस्थित बीता!!
वर्तमान से आप पूर्ण सन्तुष्ट है………
फ़िर भविष्य पर पूर्ण आस्था रखिए॥
सतीश जी आँखें नाम हो गईं थीं......उपयोगी पोस्ट के लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteपता नहीं मैं इसे दस्तावेज कहूं या आपके अंतर्मन के भाव ....... पढ़कर आँखें नम हों गयीं ......
ReplyDeleteरुक जाना नहीं, तू कहीं हार के,
ReplyDeleteकांटों पे चलने से साये मिलेंगे बहार के...
ओ राही , ओ राही,
ओ राही, ओ राही...
सूरज देख रुक गया है,
तेरे आगे झुक गया है,
यूहीं चला चल...
सतीश भाई, ये वक्त अभी तो मैं जवान हूं गाने का है,
न कि ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं...
कुछ तो अपने राजनेताओं से सीखते सतीश भाई, आपकी उम्र में तो उनकी मिनिस्टरी की प्राइमरी शुरू होती है...
सौ बातों की एक बात...मरें आपके दुश्मन...
जय हिंद...
एक करीबी रिश्तेदार अस्पताल में जीवन -मृत्यु की जंग लड़ रहे हैं ,ऐसे में इसे पढ़ना ..ओह!
ReplyDeleteबहुत ही सच्ची बात कही है |मन को छूती रचना |
ReplyDeleteआशा
यह दस्तावेज़ लिखने का समय अभी नहीं आया है . बहुत कुछ करने को पड़ा है आपके लिए !
ReplyDeleteऐसा कुछ लिख डालने के लिए कितनी हिम्मत जुटाना होगी, नहीं मालूम...पर अलिखित इबारतें इससे मिलती जुलती ही लगीं.
ReplyDeleteराजेश उत्साही जी की बात से सहमत ...भावनाएं ऐसा सोचने पर मजबूर करती हैं ....सबका नंबर क्यू में लगा हुआ है ..कौन कहाँ खड़ा है यही नहीं मालूम ...
ReplyDeleteजीवन को बहुत व्यवहारिक रूप में लेती हु उस लिहाज से आप का ये दस्तावेज जरुरी है | अपनो के साथ ही इसे बाहर कहने से ये फायदा है की जिसने इस बारे में नहीं सोचा है है या काम नहीं किया है उसे कुछ इस तरह का सोचने और करने की प्रेरणा या आइडिया ले |
ReplyDeleteये भावनायें व्यक्त करने में आप बहुत-बहुत-बहुत ज्यादा जल्दबाजी कर रहे हैं जी
ReplyDeleteप्रणाम
यह क्या सोचना शुरू कर दिया? आपने बच्चों को जो कुछ दिया है वे यह कभी नहीं भूलेंगे..अभी तो आपकी बहुत रचनाएँ पढनी हैं..आभार
ReplyDeleteअभी नही सतीश जी ... अभी तो और मिलना है आपसे और और पढ़ना है ... अभी से ऐसी बाते न करें ...
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी
ReplyDeleteचरण स्पर्श !
प्रतिभाजी, दराल साहब, ख़ुशदीप जी, कैलाश जी का कहा ही मेरा भी कहा मानें ।
किसी भी स्थिति में सूरज को अपने सूरज होने का अलग से प्रमाण कभी नहीं देना पड़ता…
~*~आप जैसे प्यारे इंसान के लिए हृदय से मेरी सदैव मंगलकामनाएं हैं !~*~
आपसे हुई एक बार की बातचीत मेरे मन पर अंकित हो'कर रह गई है ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
रचना पर प्रयोग पसंद आया, आप से काफी कुछ सीखना है :) तो कृपया कुछ साल और मुझ जैसे पाठकों को झेलने के लिए ऐसा विचार त्याग दीजिये! आप को अभी नहीं जाने देंगे...
ReplyDeleteशुभकामनायें!
Sateesh ji, aapki rachnaao par najar daalte hue is article par ruk gai.aapki soch ,vichaaron ko main salute karti hoon.esi sooch vaalo ki chaap to jeete ji hi dilon me ghar kar jaati hai baad ke to kya kahne.bahut achcha likhte hain aap...abhar.
ReplyDeleteकल्पना की उडान बहुत ही मनमोहक होती है।
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