मगर विकिपीडिया कुछ और ही कहती है , सन २००८ के आंकड़ों को देखें तो, उसके हिसाब से २५ प्रतिशत लोग अभी भी अनपढ़ हैं तथा मात्र १५ % भारतीय छात्र हाई स्कूल एवं ७ % ग्रेजुएट बन पाते हैं ! महिलाओं में स्थिति पुरूषों के मुकाबले और अधिक ख़राब है !
आधुनिक भारतीय समाज के पास मनोरंजन का साधन , और दुनिया से जुड़े रहने के लिए टेलीविजन एक मात्र माध्यम है और उस पर दिखाई गयी बातों पर गहरा विश्वास करते हैं ! आज भी अक्सर शर्त लगाने पर जीत अक्सर उसकी होती है, जो प्रमाण स्वरुप , उसे लिखा हुआ कहीं दिखा दे ! चाहे लिखा किसी भ्रष्ट बुद्धि ने ही हो :-)
अक्सर पूंछा जाता है कि कहाँ लिखा है ...? दिखाओ तो जाने ? से हमारी लेखन और लेखक के प्रति आस्था का पता चलता है !
ऐसी परिस्थिति में , नोट कमाने के लिए मार्केट में उतरे , टेलीविजन कैमरा और उनके लिए ढोल बजाते नगाडची , भारतीय भीड़ को अपनी सुविधानुसार, राह दिखाने में खूब कामयाब हो रहे हैं !
आम जनता के नाम पर, टीवी कैमरे के सामने खड़े, एक सामान्य घबराए व्यक्ति से, मनचाहे शब्द बुलवाकर , हर न्यूज़ को अपने मन मुताबिक़ शक्ल देकर, आम जनता को भ्रमित करना, राष्ट्रीय अपराध होना चाहिए !
पूरे राष्ट्र को, सरेआम बेवकूफ बनाते, मीडिया के इन धुरंधरों के खिलाफ, कोई कानून नहीं है !
आम जनता के नाम पर, टीवी कैमरे के सामने खड़े, एक सामान्य घबराए व्यक्ति से, मनचाहे शब्द बुलवाकर , हर न्यूज़ को अपने मन मुताबिक़ शक्ल देकर, आम जनता को भ्रमित करना, राष्ट्रीय अपराध होना चाहिए !
पूरे राष्ट्र को, सरेआम बेवकूफ बनाते, मीडिया के इन धुरंधरों के खिलाफ, कोई कानून नहीं है !
आपकी इस अभिव्यक्ति में हम भी साथ हैं।
ReplyDeleteमिडिया के खिलाफ काहे बोल रहे है सर जी ... ??? आपके काफी सारे दोस्त भी तो मिडिया वाले है ... सब एक साथ मोर्चा खोल देंगे आप के खिलाफ ... फिर कोई आपको तानाशाह कहेगा ... कोई फासीवादी ... कोई कुछ ... कोई कुछ ... मिडिया वाले भले ही कुछ भी करें ... कुछ भी कहें ... वो हमेशा ठीक होते है ... भाई वो मिडिया है ना इस लिए ... निजी अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ !
ReplyDeleteआम जनता के नाम पर, टीवी कैमरे के सामने खड़े एक सामान्य घबराए व्यक्ति से, मनचाहे शब्द बुलवाकर , हर न्यूज़ को अपने मन मुताबिक़ शक्ल देकर, आम जनता को भ्रमित करना, राष्ट्रीय अपराध होना चाहिए !
ReplyDeleteI AGREE
but i also feel that we need to raise this kind of contempt against all those who try to fool the mass by getting people to speak for them
AND
I FULLY AGREE WITH SHIVAM MISHRA
बिल्कुल सही कहा है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteनैतिकता का सवाल उठाना ही शायद अब सबसे बड़ा गुनाह है -मीडिया ही क्यों? कुत्सित मानसिकताएं हर ओर तो है .....अब तो यही लगता है कि एक परमाणु बम गिर जाए और मानवता फिर पल्लवित हो .....
ReplyDeleteक्या खुशदीप जी ने पढी आपकी पोस्ट? मै हाँ मे हाँ मिलाना चाहती हूँ मगर उसे नाराज नही कर सकती आखिर भाई भतीजावाद की परंपरा अभी इस देश मे है ना। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपके सरोकार वाजिब हैं. लेकिन अनपढ़ और गँवार मीडिया का क्या किया जाए. मीडिया तो अपने पति (उद्योगपति) की भाषा बोलता है और धन-प्रवाह की दिशा देख कर ही कुछ कहता है. बढ़िया आलेख.
ReplyDeleteएक ही तरीका मेरी समझ में आता है ..अधिक से अधिक चर्चा करना ..जहाँ भी जिस फोरम पर भी संभव हो सके ...अगर गलत लग रहा है तो तो ऊँगली उठाना हमारा काम है और शायद नैतिक जिम्मेदारी भी ..लोग भी अब काफी समझने लगे हैं ..और बड़ी तेजी से ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रहि है जो मीडिया के चोंचले समझने लगे हैं.
ReplyDeleteआपकी बात से पूर्णतः सहमत...बिलकुल सही कहा है..
ReplyDelete@ निर्मला कपिला ,
ReplyDeleteखुशदीप सहगल का काम मेरी नज़र में आदरणीय है....वे अपवाद हैं !
आपकी बातों से सहमत हूँ ...समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDelete" उसूलो की बुनियाद अपवादों से कमज़ोर होती है !! "
ReplyDeleteआपके विचारों से सहमत हूँ ..
ReplyDeleteSatish ji, media ab keval breaking news ke liye hi kaam karta hai... Sansani faila kar news bechna dhandha banta jaa raha hai...
ReplyDeleteबड़े भाई! ब्लॉग जगत में भी वही हाल है.. कहीं कोई बात, किसी सन्दर्भ में कहीं उद्धृत की नहीं कि दसियों टिप्पणियाँ आनी शुरू हो जाती हैं कि लिंक दीजिए... अरे भाई जो बात मेरे स्वर्गीय पिताजी अपने श्रीमुख से उवाच गए हैं, उसका लिंक कहाँ से लाऊँ और उन्हें झूठा कह दूं यह भी मर्यादा/परम्परा के विरुद्ध है... क्या खा जा रहा है इससे अधिक बल इस बात पर होता है कि किसने कहा है!!
ReplyDeleteऔर मीडिया वाली बात पर तो मैं शिखा जी के साथ हूँ..
हम हंस दिए हम चुप रहे
मंज़ूर था पर्दा तेरा!!
मीडिया का तो वास्तविक रूप मैंने बहुत करीब से देखा है। नकारात्मकता का विस्तार करना ही मीडिया का कार्य है। मैं पहले सोचती थी कि इस समाचार में कुछ तो होगा तभी मीडिया इतना लिख रहा है लेकिन जब स्वयं पर बीती तब पता लगा कि मीडिया कुछ भी कर सकता है। उसका कोई चरित्र नहीं है। बस आदर्श व्यक्तियों का चरित्रहनन करना उसका प्रथम कर्तव्य है।
ReplyDeleteभाई जी , टी वी चैनल्स के रिपोर्टर्स पर आसकरण अटल जो एक मशहूर कवि हैं , ने बहुत सुन्दर हास्य कवितायेँ लिखी हैं । कभी अवसर मिला तो सुनाऊंगा । हालाँकि अच्छी बातें भी दिखाते हैं ।
ReplyDeleteसतीश भाई ,
ReplyDeleteलिखा दिखाओ वाली बात गज़ब कही आपने है :)
मीडिया की विश्वसनीयता जैसे मुद्दों पर रिसर्च रिपोर्ट को बेस कर पहले कुछ पोस्ट लिखी थीं ,आपको लिंक दूं तो शायद कुछ दिलजोई हो :)
बाकी तो सब ठीक है ! आज आप इतने गुस्से में क्यों हैं ? आपकी रचना का रेफरेंस (प्रेरणा स्रोत) बतायेंगे तो मुझे बेहद खुशी होगी !
जिसके भी हाथ माइक आ जाता है वहीं बुद्धिजीवी हो जाता है चाहे वह मीडिया में या राजनीति में
ReplyDeleteआम जनता के नाम पर, टीवी कैमरे के सामने खड़े एक सामान्य घबराए व्यक्ति से, मनचाहे शब्द बुलवाकर , हर न्यूज़ को अपने मन मुताबिक़ शक्ल देकर, आम जनता को भ्रमित करना, राष्ट्रीय अपराध होना चाहिए !
ReplyDeletehan ab to vishwas karna bahut hi mushkil ho gaya hai...koi no. aisa ho jahan shikayat kar ke inko bandi bana liya jaye.
स्थिति विकट ही है। जो ज़ोर लगाकर कह दे बात उसकी सच मान ली जाती है। और आपने सही ही कहा है कि एक सामान्य घबराए व्यक्ति से, मनचाहे शब्द बुलवाकर , हर न्यूज़ को अपने मन मुताबिक़ शक्ल देकर, आम जनता को भ्रमित करना, राष्ट्रीय अपराध होना चाहिए !
ReplyDeleteहां, लिखे हुए को ही प्रामाणिक माना जाता है यहां :)
ReplyDeleteअब अधिकतर मीडिया समूह केवल व्यावसायिक हिट साधने में लगे हैं इसमें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों तरह के लोग शामिल हैं.अब खबरें चिल्लाकर सनसनी-सी पैदा करने का चलन हो गया है.अपनी तईं ख़बरें भी अब प्लाट की जा रही हैं !
ReplyDeleteअब अधिकतर मीडिया समूह केवल व्यावसायिक हिट साधने में लगे हैं इसमें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों तरह के लोग शामिल हैं.अब खबरें चिल्लाकर सनसनी-सी पैदा करने का चलन हो गया है.अपनी तईं ख़बरें भी अब प्लाट की जा रही हैं !
ReplyDeleteसत्य को सबसे ऊपर रखना पड़ेगा, किसी भी हालत में।
ReplyDeleteआम जनता के नाम पर, टीवी कैमरे के सामने खड़े एक सामान्य घबराए व्यक्ति से, मनचाहे शब्द बुलवाकर , हर न्यूज़ को अपने मन मुताबिक़ शक्ल देकर, आम जनता को भ्रमित करना, राष्ट्रीय अपराध होना चाहिए !
ReplyDeleteबिल्कुल... आपकी ये बात आज के पूरे हालात को बयां करती है......
मित्र ! पहले मैं माफ़ी चाहूँगा ,बाहर होने की वजह व अति व्यस्तता के कारन बच्चों को स्नेहाशीष नहीं दे सका , मेरी हृदय से शुभकामनाये, उज्जवल भविष्य ,व चिरायु होने की,सफलता के सोपानों के आरोहन की /
ReplyDeleteआज का परिदृश्य ऐसा है -- सूरज भी कभी दिन में बादलों से अवसान की स्थिति प्राप्त कर लेता है ,तो लगभग स्वाभाविक स्थिति mani जाती है ,/पर अमावास की रात्रि में सूरज उग आये तो ,छद्म या वाचक को असंतुलित मनः-स्थिति की संज्ञा दी जाती है... / मिडिया को आज जहाँ आईना बनना था ,मशीहा बनने लगा है, शायद उन्हें पता होगा ,मशीहा कभी -2 प्रकट होता है / तथ्य और कथ्य में कितना अंतर है ,विश्लेषण परिलाषित है ......../बहुत तीक्षण प्रहार किया है ,वास्तु स्थिति के अनुरूप ...सफल सार्थक आलेख ......शुक्रिया मित्र /
सार्थक, सटीक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteसार्थक, सटीक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDelete.
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी
नमस्कार !
आपकी बात से असहमत होने काप्रश्न ही नहीं …
भाषा - शैली प्रभावित करती है -
नोट कमाने के लिए मार्केट में उतरे , टेलीविजन कैमरा और उनके लिए ढोल बजाते नगाड़ची
उपयोगी और दायित्वपूर्ण पोस्ट के लिए आभार !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी
नमस्कार !
आपकी बात से असहमत होने काप्रश्न ही नहीं …
भाषा - शैली प्रभावित करती है -
नोट कमाने के लिए मार्केट में उतरे , टेलीविजन कैमरा और उनके लिए ढोल बजाते नगाड़ची
उपयोगी और दायित्वपूर्ण पोस्ट के लिए आभार !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ओहो अच्छा अच्छा , हम भी कहे कि सतीश भाई हैं कहां ..दुनाली साफ़ करते करते अर्सा हो गया ..दागे नहीं । और देखिए पहिला से लेकर आखिरी गोली तक .एकदम कायदे से कान पे कट्टा सटा दिए हैं । धार बनाए रखिएगा , बहुत जरूरत है इस तेवर की
ReplyDeleteआपका लेख आज के वक़्त के मुताबिक सही है ....पर मीडिया भी हर वक़्त गलत नहीं होती ...बहुत बार मीडिया का रोल भी बहुत सही साबित होता है ...आभार
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteआपके स्नेह के लिए शुक्रिया नहीं कहूंगा...क्योंकि छोटे भाई बड़ों से सब कुछ लेते रहते हैं, बदले में आदर के सिवा देते कभी कुछ नहीं...
अब एक सवाल मेरे कुछ शुभचिंतकों से...
ब्लॉगिंग में मेरी पहचान मेरे लेखन से है या मेरे उस प्रोफेशन की वज़ह से जो मेरी रोज़ी-रोटी का ज़रिया है...जैसे औरों की ब्लॉगिंग से उनके प्रोफेशन का कोई नाता नहीं है, वैसे मापदंड से ही मुझे भी देखा जाना चाहिए...मैं अपने दायित्वों के लिए ईमानदार हूं या नहीं, ये वही जान सकते हैं जिन्होंने मुझे करीब रह कर परखा है...जैसे आप सब अपने प्रोफेशन का सम्मान करते हैं, वैसे ही मैं भी अपने प्रोफेशन की पूजा करता हूं...
क्या मेरे प्रोफाइल में कहीं मेरा प्रोफेशन लिखा हुआ है...एक पोस्ट को छोड़कर मैंने क्या कभी किसी पोस्ट में अपने मीडिया से जुड़े होने का हवाला दिया है...
सतीश भाई से मेरी दोस्ती मेरे प्रोफेशन की वजह से नहीं इंसानियत के उस रिश्ते की वजह से है जिसकी सतीश भाई अपने आप में अकेली मिसाल है...
निर्मला कपिला जी को जो दर्ज़ा मेरे लिए है, उसके मुताबिक वो मुझे डांट तो क्या, डंडा लेकर मेरी पिटाई भी कर सकती हैं...मेरे लिए उनके आशीर्वाद से बढ़ कर कुछ नहीं...ये उनका स्नेह ही है कि मेरे लिए उन्होंने अपने दिल की बात को भी दबा लिया...
आखिर में एक बात...क्या ये ज़रूरी है कि दोस्ती या रिश्ता वहीं तक रहता है, जब तक एक दूसरे की हां में हां मिलाते रहा जाए...क्या दो दोस्तों के विचार अलग नहीं हो सकते...
जय हिंद...
ज्ञान सिखाने वालों की हर गली कुचों में भरमार है
ReplyDeleteसही बात कही है आपने ! सिखाना जितना आसान है
स्वयं आचरण करना उतनाही कठिन है ! शायद इसीलिए ......
अच्छी पोस्ट आभार !
यह आलेख पढकर अभय तिवारी की कविता बँटा हुआ सत्य याद आ गयी।
ReplyDeleteऔर हाँ, निर्मला जी की टिप्पणी बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteमीडिया की दुकानों पर भी वही सेल्समैन सफल है जो ज्यादा से ज्यादा ग्राहक को बेवकूफ बना सके।
ReplyDeleteप्रणाम
अपवाद हर जगह है !
ReplyDeleteसही कहा आप ने..मैं पूर्णतः सहमत हूँ.....आभार ।
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे..एक अनुशासन , एक मर्यादा जरुर होनी चाहिए मीडिया के द्वारा की गयी अभिव्यक्तियों में.
ReplyDeletewww.belovedlife-santosh.blogspot.com
हम्म! आपसे असहमत होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, लेकिन सभी जगह सभी लोग एक जैसे नहीं होते.
ReplyDeleteबिकुल २४ कैरेट खरी बात !
ReplyDeleteआप की बात ठीक है लेकिन सूचना पाने का कोई और उपाय भी तो नहीं .
ReplyDeleteमीडिया वन-वे ट्रेफिक है...जब लोगों ने पढना छोड़ दिया...तो देखो वो जो दिखाएं...
ReplyDeleteसही कहा आपने
ReplyDeleteअब तो चौथेखंभे के गिरने का सवाल उठता है,
ReplyDeleteजिन सवालों के लिए थे वो, उसपर सवाल उठता है।
हर सवालों के सवाल से हम वाकिफ है,
ना खुदा तुम नहीं, तुमको भी खुदा हाफीज है।।
aapke post parne ke bad yahi vichar man me uthe.
पढ़े-लिखे और अक्लमंद में अंतर होता है। कई पढेलिखे मंद बुद्धि के मिल जाएंगे- ठोक के भाव :)
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ बड़े भैय्या... आभार
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वगत है । कृपया निमंत्रण स्वीकार करें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ...सतीश जी
ReplyDeleteबढ़िया लिखा.
ReplyDeleteसतीश जी ... इस बिके हुवे मीडिया से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ...
ReplyDeletesahi soch hai shyad aaj aesa hi ho raha hai.
ReplyDeleterachana
शब्दशः सहमत हूँ आपके विचार से. अब तो झूँठ को तरह तरह से बोल के सच बनाने की कला के लिए सलाम करना पड़ेगा मीडिया को.
ReplyDeleteमीडिया भी भाई साहब बहु -रूपा नारी की तरह हो गया है .मीडिया तेरे रूप अनेक .कोई कुछ कहता है कोई कुछ साधारणीकरण ऐसे में हो ही नहीं पाता है .
ReplyDeletesahi kaha aapne...!!
ReplyDeleteज़िम्मेदारी हर कहीं से गायब होती नज़र आ रही है |हालात गंभीर हैं ...!!
ReplyDeleteदोनों ही पक्ष हैं - मीडिया अपरिपक्वता भी करती है, परन्तु वही मीडिया समाज के नेगेटिव पक्षों को सामने भी लाती है | सब मीडिया कर्मी एक ही मिटटी से तो बने नहीं हैं न ?
ReplyDeleteमुद्दा तो बहुत अच्छा है - इस पर कुछ करने की भी आवश्यकता है - पर कहाँ से शुरू किया जाए - यह समझ में नहीं आता |
सच कह रहे हैं सर । बचपन में हम भी अपनोी बात की पुष्टि के लिये कहते थे किताब में लिखा है । उस समय वह सही भी था पर आज किताबों में अखबारों में सच और झूट की नामालूम मिलावट होती है ।
ReplyDeleteआम जनता के नाम पर, टीवी कैमरे के सामने खड़े एक सामान्य घबराए व्यक्ति से, मनचाहे शब्द बुलवाकर , हर न्यूज़ को अपने मन मुताबिक़ शक्ल देकर, आम जनता को भ्रमित करना, राष्ट्रीय अपराध होना चाहिए !
ReplyDeleteआपका आक्रोश वाजिब है सतीश भाई.
मिडिया का प्रभाव दिलो दिमाग पर पड़ता ही है.
ऐसे में मिडिया को जिम्मेवार होना चाहिये.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मुझे लिखना याद दिला कर क्या आप भूल गए
सतीश भाई.जल्दी आईये वर्ना...
बिल्कुल सही कहा....इस हेतु भी अनशन करना होगा..
ReplyDeleteअब तो मीडिया से भरोसा ही उठ सा गया है .
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