Thursday, January 5, 2012

पापा को भी प्यार चाहिए -सतीश सक्सेना

शक्ति चुकी है, चलते चलते 
थकी उमर में ,पैर न उठते  !
जीवन  की संध्या  में,  ऐसे  
बेमन, भारी  कदम न उठते  !
क्या खोया , क्या पाया मैंने ,
परम पिता का वंदन करते !
वृन्दाबन से, मन मंदिर में, मुझको भी घनश्याम चाहिए !

बचपन में ही छिने खिलौने 
और छिनी माता की गोदी  ,
निपट अकेले शिशु, के आंसू
ढूंढ रहे, बचपन  से  गोदी  ! 
बिना किसी की उंगली पकडे , 
जैसे तैसे चलना सीखा  !
ह्रदय विदारक उन यादों से, मुझको भी अब मुक्ति चाहिए  ! 
  
रात   बिताई , जगते जगते 
बिन थपकी के सोना कैसा ?
ना जाने कब नींद  आ गयी, 
बिन अपनों के जीना कैसा ?
खुद ही आँख पोंछ ली अपनी,
जब जब भी, भर आये आंसू
आज नन्द के राजमहल में , मुझको भी  गोपाल  चाहिए !

बरसों बीते ,चलते चलते ! 

भूखे प्यासे , दर्द छिपाते  !
तुम सबको मज़बूत बनाते 
मैं हूँ ना, अहसास दिलाते !
कभी अकेलापन, तुमको 
अहसास न हो, जो मैंने झेला ,
जीवन की आखिरी डगर में, मुझको भी एक हाथ चाहिए !

जब जब थक कर चूर हुए थे ,

खुद ही झाड़ बिछौना सोये 
सारे दिन, कट गए भागते ,
तुमको गुरुकुल में पहुंचाए 
अब पैरों पर खड़े सुयोधन !
सोचो मत, ऊपर से निकलो !
वृद्ध पिता की भी शिक्षा में, एक  नया अध्याय चाहिए !

सारा जीवन कटा भागते 

तुमको नर्म बिछौना लाते  
नींद तुम्हारी ना खुल जाए
पंखा झलते  थे , सिरहाने  
आज तुम्हारे कटु वचनों से, 
मन कुछ डांवाडोल  हुआ है  !
अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !


( इस रचना पर अली सय्यद साहब द्वारा दिए गए कमेन्ट के जरिये , मेरे गीत पर पाठकों के १०००० कमेन्ट पूरे हुए ! आभार आप सबका ! )

117 comments:

  1. भाई जी ! निशब्द !
    सच ! अब ...पापा को भी ....प्यार चाहिए !!!
    शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  2. सारा जीवन कटा भागते
    तुमको नर्म बिछौना लाते
    नींद तुम्हारी ना खुल जाए
    पंखा झलते थे , सिरहाने
    आज तुम्हारे कुछ वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !
    jai baba banaras....

    ReplyDelete
  3. वाह सतीश जी...
    बड़े दिनों बाद कलम चली मगर दिल के गहरे उतर गयी...
    बहुत बहुत प्यारी भावपूर्ण कविता.
    सादर.

    ReplyDelete
  4. पूज्य पिताजी हेतु समर्पित अंतर के हैं भाव आपके'
    उनकी नसीहतें,उनकी चिंता,याद हमेशा आती हैं.

    उनकी निंदिया रोज़ चुराई ,उसकी क्या भरपाई होगी,
    उनके कामों को करके ही ,मुक्ति आपको पानी होगी !


    .....आपने अपने बहाने हर किसी को उसके पिता की याद दिला दी !

    ReplyDelete
  5. मैं कुछ कह पाने की स्तिथि में नहीं हूँ सतीश जी .. आपकी कविता सिर्फ कविता नही , एक कटु सत्य है .. शब्द नहीं है कि कुछ लिखू..

    ReplyDelete
  6. सुंदर चिंतन काव्य है सतीश भाई

    आभार

    ReplyDelete
  7. आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

    निःशब्द कर देने वाली पंक्तियाँ..

    ReplyDelete
  8. behad umda sir...katu stya ko samete huye...

    ReplyDelete
  9. "आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !"

    पिता की पीडा का सुन्दर चित्रण!
    वाह!

    ReplyDelete
  10. सारा जीवन कटा भागते
    तुमको नर्म बिछौना लाते
    नींद तुम्हारी ना खुल जाए
    पंखा झलते थे , सिरहाने
    आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए

    ....बुजुर्गों के दिल का दर्द बहुत गहनता से चित्रित किया है..एक उत्कृष्ट सशक्त प्रस्तुति...आपकी रचना आँखें नम कर गयी...आभार

    ReplyDelete
  11. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति...शानदार!!!

    ReplyDelete
  12. बड़े भाई!
    कमेन्ट करना एक औपचारिकता है इसलिए कर रहा हूँ.. वरना इस रचना पर कोइ भी टिप्पणी नहीं की जा सकती है.. इसे ह्रदय से अनुभव कर अंतर्मन में स्थापित किया जा सकता है!!
    साधुवाद!

    ReplyDelete
  13. मार्मिक किन्तु सत्य है.........सुन्दर शब्दों में वर्णित किया है आपने |

    ReplyDelete
  14. जब जब थक कर चूर हुए थे ,
    खुद ही झाड बिछौना सोये
    सारे दिन, कट गए भागते
    तुमको गुरुकुल में पंहुचाते
    अब पैरों पर खड़े सुयोधन !सोंचों मत, ऊपर से निकलो !
    वृद्ध पिता की भी शिक्षा में, एक नया अध्याय चाहिए ......sabdon ki kami hai mere pass tarif me ....bahut sundar aur usase bhi sundar

    ReplyDelete
  15. आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

    सतीश जी ,
    आपने कटु सत्य को लिख दिया है ..बहुत संवेदनशील रचना .. सीधे मन में उतरती हुई .

    ReplyDelete
  16. Adareeya satishji,
    koti koti pranaam!
    "पापा को भी प्यार चाहिए "
    Bas ek line hi .... dil ko chuugayi !
    aapki kavita ko कमेंट्स dene yogya nahi manta hun. Maaf kegiyega.
    Aapka Follower.

    ReplyDelete
  17. सतीश जी , बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक के सफ़र की सारी व्यथा कह डाली .
    अति संवेधानशील रचना .
    जिनको सारी उम्र पालते रहें , वही साथ छोड़ जाएँ जब उनकी ज़रुरत सबसे ज्यादा होती है --यह संसार की सबसे बड़ी विडंबना है .

    ReplyDelete
  18. मार्मिक चित्रण!!
    बेहद कोमल वेदना

    ReplyDelete
  19. बहुत मार्मिक चित्रण !
    कहने के लिये कुछ नहीं रहता ,बस एक गहरी अनुभूति मन को छा लेती है .
    बहुत तन्मय-क्षणों में लिखा होगा आपने, बधाई !

    ReplyDelete
  20. आपकी काव्यमय भाव लहरी हृदय को झंकृत कर देती है....
    बेहद भावपूर्ण ....
    सलूजा जी सही कहा कि
    निःशब्द कर दिया आपकी प्रस्तुति ने....

    ReplyDelete
  21. बरसों बीते ,चलते चलते !
    भूखे प्यासे , दर्द छिपाते !
    तुम सबको मज़बूत बनाते
    "मैं हूँ ना "अहसास दिलाते !
    कभी अकेलापन, तुमको अहसास न हो, जो मैंने झेला ,
    जीवन की आखिरी डगर में,मुझको भी एक हाथ चाहिए !


    बहुत अच्छी लगी यह पंक्तिया !
    सुंदर रचना बधाई !

    ReplyDelete
  22. गहरी संवेदनाएं उकेरते हैं आपके गीत.

    ReplyDelete
  23. वाह ...आपने तो निःशब्द कर दिया ,महसूस ही किया जा सकता है .
    बेहतरीन अभिव्यक्ति ..

    ReplyDelete
  24. क्या लिखूं कुछ समझ में नहीं आ रहा... बस नम आखों के साथ वापस जा रहा हूँ... :(

    ReplyDelete
  25. सारा जीवन कटा भागते
    तुमको नर्म बिछौना लाते
    नींद तुम्हारी ना खुल जाए
    पंखा झलते थे , सिरहाने
    आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !
    ...is rachna ke madhyam se aapne jaane kitne ki pitaon ke ankahe dard ko bayan kar diya...
    .. ...

    samvedansheel aur saarthak prastuti ke liye aabhar..
    navvarsh kee aapko spariwar haardik shubhkamnayen..

    ReplyDelete
  26. आज भावुक कर गए आप..

    ReplyDelete
  27. सारा जीवन कटा भागते
    तुमको नर्म बिछौना लाते
    नींद तुम्हारी ना खुल जाए
    पंखा झलते थे , सिरहाने
    आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

    dukhad vartmaan

    ReplyDelete
  28. आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

    ....मार्मिक गीत। इन पंक्तियों का दर्द तो छीलता है अंतर्मन को। पुत्र के कटु वचन पिता को सबसे ज्यादा आघात पहुंचाते हैं। अपने भोजपुरी गीत में मैने ऐसा ही कुछ महसूस किया था। ये पंक्तियाँ याद आ गईं..

    कल कह देहलन बड़कू हमसे, का देहला तू हमका ?
    खाली आपन सुख की खातिर, पइदा कइला तू हमका !

    सुन के भी ई माहुर बतिया, काहे अटकल प्रान बा!
    उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

    ReplyDelete
  29. जब यह सब पढ़के बच्चो के भी आंशु आ जाते हैं तो इसका मतलब बच्चे लायक हैं.

    बहूत सच्च लिखा सतीश भाई - पापा की याद आया गयी.
    शुभकामनाएँ!
    love you a lot

    ReplyDelete
  30. Did you see alternate transltion ::


    "DAD ALSO SHOULD LOVE"

    gr8

    ReplyDelete
  31. ये अपने बड़ों की उपेक्षा करने वाले भूल क्यों जाते हें कि इस स्थिति में उन्हें खुद भी आना है. हमारी आने वाली पीढ़ी वही सीखती है जो हम उनको सिखाते हें और हर बात हर पकड़ कर नहीं सिखाई जाती है. वे खुद ग्रहण कर लेते हें और जब हमारी बात हमारे सामने ही दुहराने लगते हें तो अपनी गलती का अहसास होता है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. इसलिए वक़्त से पहले ही संभाल जन सही है.

    ReplyDelete
  32. रात बिताई , जगते जगते
    बिन थपकी के सोना कैसा ?
    ना जाने कब नींद आ गयी,
    बिन अपनों के जीना कैसा ?
    खुद ही आँख पोंछ ली अपनी,जब जब भी, भर आये आंसू
    आज नन्द के राजमहल में , मुझको भी वसुदेव चाहिए !

    आप के इस गीत में बुज़ुर्गों की व्यथा का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया गया है
    मन को छूता हुआ गीत

    ReplyDelete
  33. इसमें कुछ ऐसी बाते हैं जो हमने भी निजी ज़िन्दगी में महसूस की है। हमें और हमारे लिए नएम बिछौना लगाते, खुशियां और आराम जुटाते ये लोग खुद के लिए प्यार की आस जोहते ही रह गए।
    एक मन को भिंगो देने वाली रचना।

    ReplyDelete
  34. वाह सतीश जी बेहतरीन शब्द दिए है अंतरध्वनि को. अश्रुपूरित कर दिया सभी घायल हृदयों को .आपकी लेखनी को सलाम.

    ReplyDelete
  35. मन भिगोती रचना..

    ReplyDelete
  36. आप की रचनाएँ इतनी पीड़ा क्यों देती हैं?

    ReplyDelete
  37. अंदर कहीं गहरे , वंचित होने का अहसास जगा रही है आपकी कविता ! अपनेपन के कड़वे शब्दों से आहत बड़प्पन ! नये तेवर ,सोग वाले तेवर , पीड़ा की गहन अनुभूति वाले तेवर ,अपेक्षाओं के अधूरा रह जाने वाले तेवर ! जीवन यथार्थ को कुरेदती , अभिव्यक्त करती हुई कविता !

    दुखी हुआ हूं कहूं तो कविता को सफल जानिये !

    ReplyDelete
  38. गहरी संवेदनाओं से भरी.... बहुत ही मार्मिक रचना

    ReplyDelete
  39. gehre bhavo se saji rachna...........

    ReplyDelete
  40. मेरी भी शुभकामनायेंस्वीकार करें।

    ReplyDelete
  41. sampoorn jeewan vratant aur jiwan sandhya me nipat akelapan yahi to kahta hai.

    marmik chitran.

    ReplyDelete
  42. कोमल भावों की प्रौढ़ अभिव्‍यक्ति.

    ReplyDelete
  43. बिन अपनों के जीना कैसा ?waah bahut achchi abhivaykti.satish jee.

    ReplyDelete
  44. बहुत ही भावपूर्ण, गहरी संवेदनाओं को समेटे हुए एक बहुत ही बेहतरीन रचना है!

    ReplyDelete
  45. आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

    बहुत ही कोमल भावों को पिरोया है आपने तो ..
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  46. aapki is rachna ne nihshabd kar diya.
    bahut hi khoobsurat bhaav samete apni dil par chchaap chhodti rachna.nav varsh ki shubhkamnaayen.

    ReplyDelete
  47. बुजुर्गों के प्रति हमारे प्यार और स्नेह में कभी कमी न आने पाए इस अहसास की याद दिलाती बहुत मार्मिक कविता! आभार!

    ReplyDelete
  48. आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !
    बहुत सही कहा है ..आभार इस प्रस्‍तुति के लिए ।

    ReplyDelete
  49. जानबूझकर या अनजाने ही संतान के कटु वाक्य भीतर तक घायल कर देते हैं !
    मार्मिक किन्तु सत्य !

    ReplyDelete
  50. भावाभिभूत करने वाली अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  51. सतीशजी आप ब्लॉग जगत के दिलीप कुमार बनते जा रहे हैं| दर्द की इंतनी भाव पूर्ण अभिव्यक्ति हिन्दीजगत मैं मैंने अभी तक नहीं पढ़ी है...


    ढ़ेरों शुभकामनायें!!!

    ReplyDelete
  52. जब युवापीढी पश्चिम का अनुसरण कर रही है तब तो प्रत्‍येक माता-पिता को सबकुछ भूल जाना चाहिए। अपने ही साथी चयन करने में जुट जाना चाहिए। बहुत ही हृदयस्‍पर्शी रचना।

    ReplyDelete
  53. .
    .
    .
    क्या कहूँ ?
    सेंटी कर दिया आप ने ...



    ...

    ReplyDelete
  54. संबंधों के उद्गाता को, संबंधी-अभिराम चाहिये।

    ReplyDelete
  55. जीवन की शाम में बस शान से शांत होकर जिएं॥

    ReplyDelete
  56. पहली बार फोटो को ध्यान से देखा नहीं था.. आज जब चैतन्य ने फोन पर बताया तब पहचान पाया कि ये तो अपने ज्ञानी जी हैं..
    भाई साहब अपब तो हमारे बैंक से दोहरा रिश्ता हो गया आपका..
    एक बार फिर से बधाई!!

    ReplyDelete
  57. क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है,
    आखिर आजीवन त्याग के बाद क्यों उठते हैं ये सवाल क्यों???
    आँखें भिगो गए भाव...सादर...

    ReplyDelete
  58. पापा दिल कि बात नहीं कहते...पर पापा बनने के बाद हम महसूस कर सकते हैं...पापा का दिल...वाकई पापा भी प्यार चाहते हैं...

    ReplyDelete
  59. बहुत मार्मिक ...सच्ची है आभार

    ReplyDelete
  60. कटु सत्य बहुत बढिया प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ......
    WELCOME to--जिन्दगीं--

    ReplyDelete
  61. कविता के रूप में यह कितने बुजुर्गों का यथार्थ लिख दिया आपने । दिल को छू लेने वाली रचना ।

    ReplyDelete
  62. भाई बधायी सहस्रवीं टिप्पणी के लिए....
    रचना भी बहुत भावपूर्ण है

    ReplyDelete
  63. बहुत प्यारी भावपूर्ण कविता.
    पिता की पीडा का सुन्दर चित्रण
    बधाई.

    ReplyDelete
  64. पापा को भी प्यार चाहिए.....कहाँ सोच पाती है अब की पीढ़ी ये ,काश कुछ लोगों की संवेदनाये तो जाग्रत हो आप की इस रचना से......अच्छी रचना ....बधाई स्वीकारें........

    ReplyDelete
  65. भाई जी ... पापा को खोने का दर्द ...हम भी बरसो से झेल रहे हैं और जीवन की इस कमी को कोई पूरा कर पायेगा ...(ऐसा कभी नहीं लगा ).....आपकी लेखनी का दर्द ...अपना सा लगता है हर बार ....बार बार ...आभार

    ReplyDelete
  66. तेरे बिन मुझको चलने का अभ्यास चाहिए!

    यही अंतिम सत्य है

    ReplyDelete
  67. निशब्द हूँ. इस रचना पर कुछ कहने लायक शब्द सजोना सबके बस की बात नहीं.
    आपकी रचनाएँ समाज और हर व्यथित ह्रदय के सत्य को उजागर करती हैं.

    ReplyDelete
  68. मार्मिक और प्रेरक रचना।

    ReplyDelete
  69. आज तुम्हारे कुछ वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति

    vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....

    ReplyDelete
  70. क्या कहें...महसूस कर पाये...बस्स!!!

    ReplyDelete
  71. "रात बिताई , जगते जगते
    बिन थपकी के सोना कैसा ?
    ना जाने कब नींद आ गयी,
    बिन अपनों के जीना कैसा ?
    खुद ही आँख पोंछ ली अपनी,जब जब भी, भर आये आंसू"

    बहुत मार्मिक पर अत्यन्त सशक्त भावाभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  72. रात बिताई , जगते जगते
    बिन थपकी के सोना कैसा ?
    ना जाने कब नींद आ गयी,
    बिन अपनों के जीना कैसा ?
    खुद ही आँख पोंछ ली अपनी,जब जब भी, भर आये आंसू
    आज नन्द के राजमहल में , मुझको भी वसुदेव चाहिए !

    ReplyDelete
  73. निस्शब्द कर दिया इस कविता ने भाव सागर की सघनता इतनी की पढ़ते पढ़ते मन बह जाए सुध न पाए .

    ReplyDelete
  74. sandhya prahar ke manobhav ko darshati achhi kavita...

    ReplyDelete
  75. पिता होने के भाव को
    बहुत प्रभावशाली शब्दों में काव्य रूप दिया है भाई
    वाह !
    पढ़ते-पढ़ते, संवेदनाएं, मन में कहीं गहरे उतर रही हैं
    गीत की बंदिश, शिल्प, शैली
    सब लाजवाब हैं .
    बधाई स्वीकारें .

    ReplyDelete
  76. बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया लाजबाब अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
    new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
    फालोवर बन गया हूँ आपभी फालो करे मुझे खुशी होगी,

    ReplyDelete
  77. बुजुर्गों की पीड़ा को स्वर दिया है, सभी को आत्म-मंथन करना चाहिये.

    बेहतरीन.

    ReplyDelete
  78. अत्यन्त सशक्त भावाभिव्यक्ति। मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ|

    ReplyDelete
  79. निःशब्द कर दिया...आपने सतीश जी

    ReplyDelete
  80. बहुत सुन्दर गीत है.
    पढ़कर अच्छा लगा.

    ReplyDelete
  81. bhai bahut sundar prastuti .....abhar.

    ReplyDelete
  82. अच्छे संस्कारों पर जोर देती आपकी मार्मिक रचनायें बहुत अपीलिंग होती हैं, थोड़ा सा भी सबक सीख सकें तो पढ़ना सार्थक हो जाये।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अफ़सोस यह भी है संजय भाई कि लोगों को पढने की आदत कम ही हैं :-)

      Delete
  83. लिखा आपने भोगा सबने सबको एक एक व्यास चाहिए ,जीवन को एक आस चाहिए ...संध्या में अवकाश चाहिए .....दस हजारी क्लब से आगे जाइए ...

    ReplyDelete
  84. जीवन की सच्चाई से आमना-सामना होने पर सच में जीवन-संध्या ऐसे विचारों से घिरने लगती है. बहुत सुंदर तरीके से भाव उभर कर आए हैं सतीश जी.

    ReplyDelete
  85. आपकी हर रचना पारिवारिक स्पर्श की आंच लिए होती है .आप ब्लॉग पार आये अच्छा लगा .शुक्रिया .

    ReplyDelete
  86. aap bahut achha likhte hain...lekin aapke vichar aapki kavitaaaon se kahin jyada achhe lage mujhe.....sach me aap bahut achche insaan hain..uske baad ek achhe samvednsil kavi hain.

    ReplyDelete
  87. आपकी भावपूर्ण,मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति पर
    कहने के लिए शब्द नही हैं मेरे पास.बस चंद आँसू
    हैं,स्वीकार कीजियेगा.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ राकेश भाई ....
      आप संवेदनशील हैं ...
      आपने बड़ों का दर्द महसूस कर लिया , कामना है कि कम से कम माता पिता इस दर्द को झेलें !
      शुभकामनायें !

      Delete
  88. आपको टिप्पणियों का दस हजारी बनने के लिए बहुत बहुत बधाई.
    आपका लेखन इतना सुन्दर और प्रभावशाली है कि शीघ्र ही आप तीस हजारी
    हो जाएँ तो कोई अचरज नही.

    ReplyDelete
  89. अत्यंत मार्मिक,ह्दय स्पर्शी रचना।

    ReplyDelete
  90. बहुत सुंदर प्रस्तुति .। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  91. touchy and beautiful :)

    ReplyDelete
  92. बहुत सार्थक प्रस्तुति, सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
    new post...वाह रे मंहगाई...

    ReplyDelete
  93. बहुत सुंदर प्रस्तुति .

    नया हिंदी ब्लॉग

    http://hindidunia.wordpress.com/

    ReplyDelete
  94. केवल इसे न कविता मानूँ,
    यह अकाट्य इक कड़वा सच है।
    कृपया इसे भी पढ़े
    क्या यही गणतंत्र है

    ReplyDelete
  95. बरसों बीते ,चलते चलते !
    भूखे प्यासे , दर्द छिपाते !
    तुम सबको मजबूत बनाते
    ‘मैं हूँ ना ‘अहसास दिलाते !
    कभी अकेलापन, तुमको अहसास न हो, जो मैंने झेला ,
    जीवन की आखिरी डगर में,मुझको भी एक हाथ चाहिए।

    मर्मस्पर्शी गीत।
    पिता की व्यथा शब्दों में साकार हो गई है।
    आपकी संवेदनशीलता स्तुत्य है।

    ReplyDelete
  96. marmsparshee abhivykti .
    kaash insaan mahaj vartmaan me jeena seekh pataa .

    ReplyDelete
  97. मन की बात मन तक पहुँचा दे,
    वही तो कविता होती है और
    कविता लिख कर ही कवि धन्य
    हो जाता है। आप अपने प्रयोजन
    में सफल रहे हैं।
    धन्यवाद।
    आनन्द विश्वास

    ReplyDelete
  98. सुन्दर भावासिक्त उदगार....

    ReplyDelete
  99. हृदय को छू जाने वाली रचना है। जीवन का सच बयां करती रचना है। बेहतरीन कलम से निकली अद्भुत कविता है।

    ReplyDelete
  100. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.
    कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर पधार कर मेरे प्रयास को भी अपने स्नेह से अभिसिंचित करें, आभारी होऊंगा.

    ReplyDelete
  101. बचपन में ही छिने खिलौने
    और छिनी माता की लोरी ,
    निपट अकेले शिशु, के आंसू
    की,किस को परवाह रही थी !
    बिना किसी की उंगली पकडे , जैसे तैसे चलना सीखा !
    ह्रदयविदारक उन यादों से,मुझको भी अब मुक्ति चाहिए !

    रात बिताई , जगते जगते
    बिन थपकी के सोना कैसा ?
    ना जाने कब नींद आ गयी,
    बिन अपनों के जीना कैसा ?
    खुद ही आँख पोंछ ली अपनी,जब जब भी, भर आये आंसू
    आज नन्द के राजमहल में , मुझको भी वसुदेव चाहिए !

    आंसू आ गए पढ़ते ही.... लगा मानो अपनी ही गाथा सुन रही हूँ.... अभी तो पैरों में जान है.... युवा हूँ....
    समय का पता नहीं.... किस क्षण बदल जाये...
    बहुत भावपूर्ण रचना....

    ReplyDelete
    Replies
    1. तब तो लेखन सफल हो गया मीनाक्षी जी...
      आपको शुभकामनायें !

      Delete
  102. koti koti dhanyebaad sri hari ji aapke kavita sayad soye hue logo ko jaga de jai jai sri hari

    ReplyDelete
  103. koti koti dhanyebaad sri hari ji aapke kavita sayad soye hue logo ko jaga de jai jai sri hari

    ReplyDelete
  104. sundar prastuti,"gar jina hai to pyar chahiye,mammi ko bhi papa ko bhi,hamko bhi ayr tumko bhi,......

    ReplyDelete
  105. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना, सचमुच मन डांवाडोल हो गया. बहुत - बहुत आभार

    ReplyDelete
  106. भावों का समंदर - सादर

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,