हमारी बेटी |
हाथ में टेनिस रैकिट और शर्ट पाजामा पहने विधि ने दरवाजा खोलकर उनका स्वागत किया ! चाय आने पर गुरदीप ने मेरी बहू के बारे में पूंछा कि वह कहाँ है तो हम सब अकस्मात् हंस पड़े कि वे विधि को पहचान ही नहीं पाए कि साधारण घर की बेटी लग रही, इस घर की नव विवाहिता बहू भी वही है !
और मुझे बहुत अच्छा लगा कि मैं अपनी इच्छा पूरी करने में कामयाब रहा ....
लोग नयी बहू पर, अपने ऊपर भुगती, देखी, बहुत सारी अपेक्षाएं, आदेश लाद देते हैं और न चाहते हुए भी, आने वाले समय में, घर की सबसे शक्तिशाली लड़की को, अपने से, बहुत दूर कर देते हैं !
अक्सर हम अपने कमजोर समय ( वृद्धावस्था )में बेटे बहू को भला बुरा कहते नज़र आते हैं, मगर हम भूल जाते हैं कि बहू की नज़र में सास -ननद, अक्सर विलेन का रूप लिए होती है , जिन्होंने उनके हंसने के दिनों में (विवाह के तुरंत बाद ), उसे प्यार न देकर वे दिन तकलीफदेह बना दिए और वह यह सब, न चाहते हुए भी भुला नहीं पाती !
शादी के पहले दिन से, जब लड़की नए उत्साह से, अपने नए घर को स्वर्ग बनाने में स्वप्नवद्ध होती है तब हम उसे डांट ,डपट और नीचा दिखा कर, अपने घर का सारा भविष्य नष्ट करने की, बुनियाद रख रहे होते हैं !
मेरे कुछ संकल्प :
किसी और घर के अलग सामाजिक वातावरण में पली लड़की को , उसकी इच्छा के विपरीत दिए गए आदेशों के कारण, हमेशा के लिए उस बच्ची के दिल में अपने लिए कडवाहट घोलते, सास ससुर यह समझने में बहुत देर लगाते हैं कि वे गलत क्या कर रहे हैं ?
अपनी बहू को,आदर्श बहू बनाने के विचार लिए, अपने से कई गुना समझदार और पढ़ी लिखी लड़की को होम वर्क कराने की कोशिश में, लगे यह लोग, जल्द ही सब कुछ खोते देखे जा सकते हैं !
घर से बाहर प्रतिष्ठित देशी विदेशी कंपनियों में काम कर रहीं, ये पढ़ी लिखीं, तेज तर्रार लड़कियां, अपने सास ससुर की आँखों में स्नेह और प्यार की जगह, एक प्रिंसिपल और अध्यापिका का रौब पाकर, उनके प्रति शायद ही कोई स्नेह अनुभूति, बनाये रख पाती हैं !
समय के साथ इन बच्चों की यही भावना सास ससुर के प्रति, उनकी आवश्यकता के दिनों ( वृद्धावस्था ) में उपेक्षा बन जाती है जबकि उस समय, उन्हें अपने इन समर्थ बच्चों से, मदद की सख्त जरूरत होती है , और यही वह कारण है जब आप ,वृद्ध अवस्था में अक्सर बहू बेटे द्वारा माता पिता के प्रति उपेक्षा और दुर्व्यवहार की शिकायतें अखबारों में सुनने को मिलती हैं !
समय के साथ इन बच्चों की यही भावना सास ससुर के प्रति, उनकी आवश्यकता के दिनों ( वृद्धावस्था ) में उपेक्षा बन जाती है जबकि उस समय, उन्हें अपने इन समर्थ बच्चों से, मदद की सख्त जरूरत होती है , और यही वह कारण है जब आप ,वृद्ध अवस्था में अक्सर बहू बेटे द्वारा माता पिता के प्रति उपेक्षा और दुर्व्यवहार की शिकायतें अखबारों में सुनने को मिलती हैं !
अक्सर हम अपने कमजोर समय ( वृद्धावस्था )में बेटे बहू को भला बुरा कहते नज़र आते हैं, मगर हम भूल जाते हैं कि बहू की नज़र में सास -ननद, अक्सर विलेन का रूप लिए होती है , जिन्होंने उनके हंसने के दिनों में (विवाह के तुरंत बाद ), उसे प्यार न देकर वे दिन तकलीफदेह बना दिए और वह यह सब, न चाहते हुए भी भुला नहीं पाती !
शादी के पहले दिन से, जब लड़की नए उत्साह से, अपने नए घर को स्वर्ग बनाने में स्वप्नवद्ध होती है तब हम उसे डांट ,डपट और नीचा दिखा कर, अपने घर का सारा भविष्य नष्ट करने की, बुनियाद रख रहे होते हैं !
मेरे कुछ संकल्प :
-मुझे ख़ुशी है कि मैं अपनी बहू को यह अहसास दिलाने में कामयाब रहा हूँ कि वह ही घर की वास्तविक मालकिन है, इस घर में वह अपने फैसले ले सकने के लिए पूरी तरह से मुक्त है ! उसको मैंने पारिवारिक रीतिरिवाज़ और बड़ों को सम्मान देने की दिखावा करतीं, घटिया प्रथाओं आदि से, पहले दिन से, मुक्त रखा है !
-विधि ज्ञानी , विधि सक्सेना और गौरव सक्सेना , गौरव ज्ञानी का कर्तव्य पूरा करें और यह सिर्फ कास्मेटिक दिखावा न होकर, इसे ईमानदारी एवं विश्वास के साथ अमल में लाया जाए !
-विधि के आते ही, मेरा इच्छा उसका लासिक आपरेशन करवा कर, बचपन से लगाये , भारी भरकम चश्मे को उतरवाना था जो उसने हँसते हुए मान लिया , १३ मार्च को डॉ अमित गुप्ता द्वारा किये गए इस शानदार आपरेशन का परिणाम देखकर ,हम सब आश्चर्य चकित रह गए थे ! विधि की माँ (विमला जी ) की शिकायत थी कि पिछले पांच साल से उनका किया ,अनुरोध इसने कभी नहीं माना था तो विधि का जवाब था कि पापा (मैंने ) ने मुझसे अनुरोध नहीं किया वह तो आदेश था और मैं मना, कैसे कर सकती थी ?
-विधि के माता पिता को कभी यह अहसास न हो सके कि गौरव उनका अपना पुत्र नहीं है , उनके स्वास्थ्य और हर समस्या का ध्यान रखना, विधि के कहने से पहले, गौरव की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए !
- राजकुमार ज्ञानी ( समधी )से मैंने वायदा किया है कि विधि सक्सेना के घर में उनका उतना ही अधिकार होगा जितना कि सतीश सक्सेना का और वे इसे मेरा वचन माने जिसे मैं मरते दम तक निभाऊंगा !
-मुझे ख़ुशी है कि दिव्या ने बहू को बेटा समझ प्यार करने में मेरा पूरा साथ दिया और अब चार बेटों ( बेटा बहू और पुत्री दामाद )वाले इस घर में हर समय ठहाके गूंजते सुनाई पड़ रहे हैं जिसके लिए मैं परम पिता परमात्मा और अपने मित्रों की शुभकामनाओं के प्रति आभारी हूँ !
अन्य घरों की प्यारी बच्चियों (अपनी बहुओं ) के साथ मैं |
उपरोक्त व्यक्तिगत पोस्ट लिख दी ताकि सनद रहे ...
अपनी भावनाएं शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाऊँगी शायद,,,,,,
ReplyDeletei respect u deeply..
regards.
anu
सतीश जी मन गदगद हो गया आपका लेख पड़ कर आपकी बात बिलकुल सही है
ReplyDeleteयदि इतनी सी बात लोगों को समझ आ जाए .....खासकर महिलाओं को ..तो घर का माहोल ही बदल जाए.... बहुओं के साथ वे अधिकतर आदेशात्मक ही होती है ..और दोष बहु के ऊपर आता है मैंने पिछले महीने अपनी बेटी का ब्याह किया है ...शायद इसी लिए आपका लेख मन के हर कोने तक पंहुचा ..आभार
बहुएं सास को कम प्यार नहीं करना चाहतीं मगर टोका टाकी और सख्त आदेशों के कारण उनकी स्वयं की भावनाओं में जोश नहीं रह पाता ....
Deleteभावनात्मक संबंधों की अतुलनीय क्षति होती है जिनकी जिम्मेवारी इन बड़ों की होती है जो बाद में पूरे जीवन बहू को कोसते रहते हैं !
तुसी ग्रेट हो सर ., ये सनद तो नजीर बनेगी . सुँदर .
ReplyDeleteकाश समाज इस पर गौर कर सके , अगर दो लोग भी सबक लें तो यह लेख व प्रतिबद्धता सफल मानूंगा ...
Deleteसंबंधों को मकड़जाल बना जीवन भर उसे कोसते रहने वालों के लिये सीधा और सुलझा उदाहरण। जीवन का सरलीकरण इसे कहते हैं।
ReplyDeleteअफ़सोस है प्रवीण भाई, अपनी बेटी के लिए प्यार करने वाले सास ससुर की कामना और बहू के लिए सुधार पाठ पढ़ाने वाले लोग भरे पड़े हैं ...
Deleteऐसे लोग जीवन में अधिक कष्ट उठाते देखे जाते हैं ...
क्या बाऊजी
ReplyDeleteआप भी ना सदियों से चली आ रही सास-बहू प्रथा को खत्म करने पर तुले हैं :)
बहुत खुशी हो रही है ये पोस्ट पढकर, पता नहीं क्यों
चाहता हूं ये प्रेरक पोस्ट भारतीय समाज में बडे-छोटे सब पढ पायें
प्रणाम स्वीकार करें
:-)
Deleteस्नेह आशीर्वाद अंतर सोहिल !
aapki nek bhawanon se bhari prastuti man ko bhaa gayee... aaj aise hi sakaratmak soch ki jarurat hai... ek beti jo sabkuch chhodkar jab dusare ghar jaati hai to use yadi apnapan nahi milta hai to wah kudh kar rah jaati hai, lekin aap sabkuch achha hota hai to ghar khushiyon se bhar jaata hai..
ReplyDeletesundar sarthak prernaprad prastuti hetu aabhar!
अनुवाद !
Deleteआपकी नेक भावनाओं से भरी प्रस्तुति मन को भा गयी ... आज ऐसे ही सकारात्मक सोच की जरुरत है ... एक बेटी जो सबकुछ छोड़कर जब दुसरे घर जाती है तो उसे यदि अपनापन नहीं मिलता है तो वह कुढ़ कर रह जाती है , लेकिन अगर सबकुछ अच्छा होता है तो घर खुशियों से भर जाता है ..
सुन्दर सार्थक प्रेरणाप्रद प्रस्तुति हेतु आभार !
अनुवाद = लिप्यान्तरण
Deleteशुक्रिया अली सर !
Deleteबड़े भाई! क्षमा मांग लूँ पहले..कारण मिलकर बताउंगा..
ReplyDeleteएक और बिटिया के पिता बनने की बधाई!!
जब बिटिया आपकी स्नेहिल छाँव तले है, तो फिर उससे सुरक्षित कोई जगह नहीं!!
मेरा आशीष बिटिया को!! और आपको प्रणाम!!
ज्ञानी जी के बेटी वाकई मेरी बिटिया बन कर आई है सलिल ....
Deleteआज के समय में मैं अपने आपको खुश किस्मत मानता हूँ भाई !
जब सलिल जी आपसे मिलकर वापस जाने लगें तो उनके क्षमा प्रार्थी होने का कारण मुझे भी बताइयेगा :)
Deleteसलिल शादी में शामिल नहीं हो पाए अली सर ....
Deleteइस चलन को कई लोग समय रहते अपना रहे .... फर्क मिटेगा तभी रिश्ते सांस ले सकेंगे . हमारे घर की बहुएं भी इसी तरह हैं
ReplyDeleteबधाई आपको !
Deleteअच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeletemubaarak ho ji..
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteकाश आप जैसे सब हो जाएँ।
आप जैसे मित्रों से प्रेरणा लेता रहा हूँ भाई जी ....
Deleteआभार !
आप जैसे १% भी हो जाएँ न तो ९९% समस्याएं हल हो जाएँ हमारे समाज की .सलाम आपको और आपकी सोच को.
ReplyDeletebadhaii apnae sankalp ko puraa karnae ki
ReplyDeleteशुक्रिया रचना बहिन ...
Deleteआपकी सहजता एवं विचारों को हर कोई अपना पाता ...बहुत अच्छा लगा यह सब पढ़कर ..आपका..आभार ।
ReplyDeleteसंस्कार यही हैं ...बहुत अच्छा लगा पढ़कर ...!भावुक सा मन हो गया ....कुछ शब्द नहीं मिल रहे हैं लिखने को ...बस शुभकामनायें ही दे रही हूँ ...!!
ReplyDeleteआज की बहुओं के प्रति सकारात्मक सोच!
ReplyDeleteबहू को आदेश से नहीं प्यार से अपनाएँ...वे भी बेटी बनने में पीछे नहीं रहेंगी|
सतीश जी,
ReplyDeleteनई पीढ़ी की नई सोच के साथ जब हम अपनी सोच बदल कर देखते हें तो तब पता चलता है कि एक घर को घर बना कर रखने में जरा सा भी अपनी सोच को बदलने की जरूरत है. सोच का दायरा अगर उदार ढंग से बढ़ा लिया जाय तो फिर बेटी और बहू दोनों ही बराबर है. मेरे भी दो बेटियाँ है और दामाद के आते ही लगा कि बेटा मिला है और उसकी माँ को बेटी. बस दोनों परिवार इसमें बेहद संतुष्ट और खुश हें. वैसे ये संस्कार हमें ही भरने पड़ते हें और खुद की करनी और कथनी में साम्य रखना होता है. नहीं तो बड़े बड़े भाषण देने वाले अपने घर में दूसरा चेहरा लगाये घूमते हें.
यह सद्भावना बनी रहे , यही कामना करते हैं ।
ReplyDeleteआपके उच्च विचार इसमें अवश्य ही सहायक होंगे ।
बेशक , दूसरों को भी सबक लेना चाहिए ।
आपको सपरिवार शुभकामनायें ।
aapki sakaratmak socho ko salam:)
ReplyDeleteआपके इन सद्विचारों को नमन. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteभाई जी ,आप की स्नेह भरी भावनाओं को प्रणाम !
ReplyDeleteआप अपने सुंदर मकसद में कामयाब तो हैं ही ...इसको पढ़ कर
बहुत से परिवार आपका अनुसरण करके ,अपने जीवन को सार्थक
बनाएंगे |
बहुत सारी ...
शुभकामनाएँ !
बहुत ही सुन्दर और सार्थक सोच! बधाई।
ReplyDeleteअनुकरणीय उदहारण ..... आपके सार्थक विचार मन को छू गए
ReplyDeleteआपके इन सद्विचारों को नमन.काश लोग आपका अनुसरण करके बहू और बेटी का फर्क मिटा दे,..
ReplyDeleteसतीश जी,.....बधाई शुभकामनाए....
MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
samajh nahi aaa raha kya comment karooo.
ReplyDeletesab sapna sa lagta hai.
love you
VISHI'S FATHER
आप प्रेरणा श्रोत हो भाई जी ....
Deleteशुभकामनायें आपको !
प्रेरणा श्रोत = प्रेरणा स्रोत !
Deleteआभार गुरु .....
Delete:-))
wah bhai ji wah............
ReplyDeleteanukarneey...
आपकी बधाई अच्छी लगी कविराज ..
Deleteसतीश जी आपके ऐसे आदर्श भावनाओं को शत शत नमन ...काश यही विचार सारा मानव समाज अपना पाता..बहु तो बेटी ही है जो एक पिता का घर छोड़ कर दूसरे पिता के घर आती है..परिवार को अच्छी तरह चलने के लिए दोनों ओर से रिश्तों का सम्मान जरुरी है....आगे आने वाली जिंदगी के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं .....
ReplyDeleteइसके लिए हम सबको काम करना होगा, समझना होगा मदन भाई ....
Deleteआभार आपका !!
बहुत अच्छे विचार हैं आपके काश की सभी आपकी तरह से सोचते... आपकी भावनाओं को प्रणाम...
ReplyDeleteशुक्रिया संध्या जी ...
Deleteबहुत अच्छा और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है आपने .
ReplyDeleteहमारे यहाँ भी ,बेटे का विवाह 1990 लमें हुआ था और घर आये लोग भ्रम में पड़ जाते थे कि कौन बहू है और कौन बेटी .
नतीजा बहुत संतोषजनक रहा .
आपका आशीर्वाद फलीभूत होगा ....
Deleteसनद तो है ही, बहुतों के काम आ सकती है यह पोस्ट.
ReplyDeleteइसमें हम सबका हित सुरक्षित है ...
Deleteआभार भाई जी !
बहुत अच्छा लगा पढ़ के सतीश जी . असल में ससुराल और बहू से जुड़े मिथक हमारी पीढी को ही तोड़ने होंगे. बल्कि हमें शपथ लेनी होगी की हम अपनी बेटी और बहू में कोई अंतर नहीं करेंगे और वो भी सच्चे मन से.
ReplyDeleteसतीश जी, पिछले दिनों मेरी अम्मा (सास जी) की एक बहुत पुरानी परिचित आइन, अम्मा थीं नहीं, मैं उन्हें मिली, वो भी आपकी विधि की ही तरह फॉर्मल ड्रेस में. शाम को जब वे दुबारा आइन तो उन्होंने कहा की सुबह आपकी बेटी मिली थी............ अम्मा ने मुझे देखा और मैंने अम्मा को..और हंस पड़े जोर से :) :)
बधाई आपको और अम्मा जी को ...
Deleteइस सोंच से ही कल्याण संभव है ...
आभार आपका !
जिन खोजां तिन पाइयां .दरअसल नज़रिए का फर्क और एक सांचे में ढाली हुई अपेक्षाएं सारा गुड गोबर कर देतीं हैं हम अपनी अपेक्षाओं को जीतें हैं इसीलिए सामने वाले को ताउम्र समझ ही नहीं पाते .असल बात है स्वीकरण और अपनाना यथावत को .
ReplyDeleteइस प्रेरणादायक पोस्ट के लिए आप बधाई के पात्र हैं...इसे कहते हैं स्मूथ सत्ता हस्तांतरण...बच्चों की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी है...फिर अपने को रौब गांठने की क्या आवश्यकता...
ReplyDeleteआपके आशीर्वाद के लिए आभार वाणभट्ट जी ...
Deleteपारिवारिक सौहार्द इच्छुक महानुभावों के लिए अनुकरणीय दृष्टांत!!
ReplyDeleteआपके आशीर्वाद के लिए आभार सुज्ञ जी ...
Deleteसतीश जी आप को जब से पढ़ना शुरू किया है आप की अक्सर posts में बेटियों के प्रति प्यार महसूस किया है और केवल बेटियों के लिये ही नहीं मानवता के लिये भी ,लिहाज़ा ये तो समझ में आता ही है कि आप के लिये बेटी और बहू में कोई अंतर नहीं है ,,यदि सभी लोग इसी भावना को अपना लें तो समस्या ही ख़त्म हो जाएगी वैसे ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे तो मेरे सास- ससुर ने सदा ही माता-पिता का प्यार दिया इसलिये मुझे और भी ये बात समझ में
ReplyDeleteआती है कि ये भावना कितनी ज़रूरी है
आप को आप के लेखन और इस भावना दोनों के लिये बधाई
इस्मत जी ,
Deleteअक्सर देखा गया है जो बातें कहने में आसान रहती हैं वही निजी जिंदगी में करना मुश्किल हो जाता है ! कथनी करनी में यह अंतर व्यापक होने के साथ साथ समाज के लिए घातक है ! चूंकि यह मुझे मौका मिला है अतः अपने घर से शुरुआत क्यों न करूँ बाकी का काम आप जैसे माननीय लोगों के आशीर्वाद कर देंगे !
ReplyDelete♥
आदरणीय सतीश जी भाईसाहब
अच्छी व्यक्तिगत पोस्ट है !
:)
आपके परिवार की ख़ुशियां बनी रहें…
हर घर की ख़ुशियां बनी रहें ,ईश्वर से यह प्रार्थना है !
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आदर्श परिवार के लिए बधाई।
ReplyDeleteशुभकामनाएं....
इसे जीवन में उतारने की दिशा में सबको काम करना चाहिए।
अनुकरणीय पोस्ट .... शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा यह पढ कर कि आप बहू को भी बेटी ही मानते हैं और वह भी मनसा वाचा कर्मणा ।
ReplyDeleteचश्मेबद्दूर...सतीश भाई...
ReplyDelete
ये प्यार हमेशा हमेशा के लिए ऐसे ही बना रहे...
रिश्तों की बुनावट जितनी गहरी होगी, घर की बुनियाद उतनी ही मज़बूत होगी...मकान जितना भी आलीशान बना लिया जाए लेकिन घर ये तब तक नहीं बनता, जब तक इसमें रिश्तों की गर्माहट न भरी जाए...
जय हिंद...
चश्मेबद्दूर...सतीश भाई...
ReplyDelete
ये प्यार हमेशा हमेशा के लिए ऐसे ही बना रहे...
रिश्तों की बुनावट जितनी गहरी होगी, घर की बुनियाद उतनी ही मज़बूत होगी...मकान जितना भी आलीशान बना लिया जाए लेकिन घर ये तब तक नहीं बनता, जब तक इसमें रिश्तों की गर्माहट न भरी जाए...
जय हिंद...
पढकर बहुत अच्छा लगा। दुनिया रातों रात तो नहीं बदल सकती पर हम सब अपने हिस्से के प्रयास में कोताही न बरतें तो यह परिवर्तन कठिन नहीं है। बधाई आपको भी और बच्चों को भी!
ReplyDeleteपढकर बहुत अच्छा लगा। दुनिया रातों रात तो नहीं बदल सकती पर हम सब अपने हिस्से के प्रयास में कोताही न बरतें तो यह परिवर्तन कठिन नहीं है। बधाई आपको भी और बच्चों को भी!
ReplyDeleteसतीश जी आपके विचारों को आपकी भावनाओं को नमन .....
ReplyDeleteगदगद हूँ आपकी पोस्ट पढ़ कर ....
सही कहा आज अगर आप बहुओं को सम्मान देंगे तो कल वे भी जरुर देंगी .....
आपकी बात से सबको सीख लेनी चाहिए .....
अफ़सोस यही है कि बहुओं का आने वाला समय लोग भुलाये रखना चाहते हैं ...
Deleteपढकर बहुत अच्छा लगा ..
ReplyDeleteसबके मध्य आपस में ऐसा ही प्रेम बना रहे ..
शुभकामनाएं !!
संकल्प पूरा करने की बहुत बधाई और सुलझे परिवार के लिए बहुत शुभकामनायें !
ReplyDeleteबधाई! ऐसे ही खुशनुमा माहौल बना रहे इसके लिये शुभकामनायें।
ReplyDeleteपरिवार और ब्लॉग परिवार पे लिखने का अंतर टिप्पणियों से पता चलता है :)
Deleteआपने जो संकल्प किए हैं वह सबसे महत् 'होम वर्क' है. आपकी पोस्ट व्यक्तिगत है और सामाजिक भी. यह टिप्पणी कर दी है ताकि इसके सामाजिक होने की सनद रहे :))
ReplyDeleteआभार भाई जी ....
Deleteलोकमंगल भावना से जुडी अनुकरण योग्य पोस्ट! आभार!
ReplyDeleteआप हमेशा से बेटियों के बारे में ही लिखते आए हैं ..आज बहु के बारे में लिखकर मन बाग़ -बाग़ हो गया ! सच कहा --हम खुद ही हैं अपना बुढ़ापा बिगाड़ने वाले ..अगर बेटी को हर आजादी हैं तो बहु को क्यों नहीं ? सार्थक लेख !
ReplyDeleteबहू और बेटी में फर्क नहीं समझ पाता हूँ...हर बहू किसी कि बेटी होती है !
Deleteआभार आपका !
wah....kabil-e-tareef hai aapki sujh-boojh bhara ye sankalp.yah bahut hi prernadayak post hai.
ReplyDeleteप्यार दो...प्यार लो..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और उपयोगी बातें बताई हैं आपने.
जीवन यात्रा को सहज,सरल और सुन्दर
बनाने के लिए प्यार और सहकार अति
अति आवश्यक है.
आपका सुखमय परिवार समस्त समाज
व् देश के लिए आदर्श प्रेरणास्रोत बने
और सदा ही शुभ और मंगलकारी
हो यही दुआ और हार्दिक कामना है.
मंगल कामनाओं के लिए आभारी हूँ राकेश भाई ...
Deleteपारिवारिक रिश्ते शायद ऐसे ही मजबूत बनते हैं...बहुत अच्छा लेखनाभिप्राय ...
ReplyDeleteआपसे बहुत कुछ सीखा है सतीश जी , आज की इस पोस्ट ने मेरे मन के इस अभिव्यक्ति को और पुष्ट किया है कि बहुत और बेटी में कि अंतर न ही होता है और न ही होना चाहिए . यदि समाज का ०.०००१ % भी आपका अनुसरण कर सके तो ये समाज निश्चिंत ही एक बेहतर समाज होंगा !!!!!
ReplyDeleteप्रणाम
विजय
आपकी मंगल कामनाओं से संकल्प और शक्तिशाली होगा भाई जी !
Deleteवर्तमान पारिवारिक सौहार्द हेतु उतकृष्ट सीख, सादर .
ReplyDeleteबहुत ही अनुकरणीय उदाहरण...
ReplyDeleteकाश!! लोगबाग... कम से कम आपके संपर्क में आने वाले..पड़ोसी-मित्र-रिश्तेदार ही आपसे प्रेरणा ले कर अपनी बहुओं के साथ ऐसा ही व्यवहार करें तो कितनी ही लड़कियों की जिंदगी में सुकून आ जाए.
अफ़सोस है कि लोगों के कहने और करने में बेहद फर्क होता है ....
Deleteमेरे परिवार से जुड़े लोगों कि सोंच बदलने में दांतों पसीने आ जाते हैं ! मेरे अपने बड़ों ने भी " उल्टा कौन करता है " वगैरह वगैरह क्या क्या न कहा ...
समस्या एक है हमें मिठाई अथवा कपडे लेते अच्छा लगता है और देते जोर पड़ता है !
सबसे ख़राब बात है कि लड़की वालों के घर से लिया जाता है , लड़के वाले देते हैं तो उल्टा है !
यह सब बेहद दुखदाई है...
स्नेह दिखावा है ...
शर्मनाक है..
ताकि सनद रहे यह व्यक्तिगत नहीं अपितु आपके द्वारा जनहित में जारी एक प्रेरक प्रस्तुति है,
ReplyDeleteआभार...
बशर्ते लोग मन से स्वीकार करें ...
Deleteअफ़सोस है कि ब्लॉग रीडर कम हैं :-))
सतीश भाई,
ReplyDeleteआप ब्लॉग परिवार के नाम से जो ट्रीटमेंट अब तक देते आये थे उससे मुझे पहले ही आशंका हो गई थी कि खुद के घर में आप क्या करने वाले हो :)
सुहृदय पिता और स्नेही श्वसुर होने के लिए कोटि कोटि आशीष और अशेष शुभकामनायें !
आप जैसे मित्रों के आशीष अवश्य फलेंगे अली भाई ...
Deleteमेरा मानना है कि स्नेह का फल अवश्य मिलेगा और वह फल बेहद मीठा होगा ! दो नए परिवारों के बीच स्नेह हो सकता है बशर्ते प्यार मन से किया जाये ! अधिकतर जगह दिखावा और चतुराई बरती जाती है वहीँ दोनों तरफ से चालाकी का व्यवहार होता है और शादी के बाद रह जाता है केवल दिखावा ...
शायद लोगों को स्नेह चाहिए ही नहीं, शादी के बाद क्या करना ...यही बुद्धि काम करती नज़र आती है !
यह बीज कुछ समय बाद अपने घर में ही जमें नज़र आते हैं मगर कोई अपनी बेवकूफी स्वीकार करने को तैयार नहीं !
सादर
आपको आशीष देकर मैंने भी अपने लिए गुरु / बुज़ुर्ग होने की सनद हासिल कर ली :)
ReplyDeleteमुबारक हो भाई जी ...
Deleteमगर मैं आपको हमेशा ही बड़ा मानता आया हूँ , आवश्यक नहीं कि उम्र गिनी जाए , स्नेह देने में आप बड़े हैं सो आशीष सहर्ष स्वीकार किया !
अरे वाह - आपके घर का माहौल देखने से मुझे अपनी नयी नयी शादी के दिन याद आ गए | मम्मी (मेरी सासू माँ ) और पापा (मेरे ससुर जी ) ने मुझे (या मेरी देवरानी को ) कभी बहू के रूप में नहीं देखा - हम उनकी लाडली बेटियां हैं - उतनी ही - जितने उनके अपने बेटे | बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़ कर | आभार आपका |
ReplyDeleteआप खुशकिस्मत हैं इंजी. शिल्पा ...
Deleteमेरा ख्याल है की अच्छे लोगों को उनके जैसे लोग मिल ही जाते हैं !
शुभकामनायें आपको !
बस इतना ही कहूंगी, कि हर लडकी जब बहू बने तो उसे आपके परिवार सा घर मिले. तो शायद हर लडकी की आँखों में विदाई के समय आंसू के साथ खुशी की चमक भी हो .......
ReplyDeleteयह चमक होनी ही चाहिए ...
Deleteबदले में ढेर सारा प्यार मिलेगा इस बच्चे से....
Tabhi to ro nahi rahi thi main papa...ulta apne papa ko chup kara rahi thi :)))
DeleteVidhi
अरे वाह ,
Deleteहमारी मोटू का यह कमेन्ट तो पहले देखा ही नहीं था :( , खुश रहो बच्चे !!
बहुत अनुकरणीय उदहारण...काश लोग बेटी और बहू में अंतर करना बंद कर सकें...शुभकामनायें
ReplyDeleteआपका यह आलेख, आलेख में व्यक्त विचार और आपके उद्गार समाज के लिए एक उदाहरण और प्रेरणा है। चित्र में दिख रही मुस्कान सदा बनी रहे।
ReplyDeleteआभार।
आप प्रेरणास्रोत हैं मनोज भाई .....
Deleteआशीषों के लिए आभार आपका !
वाह... वाह ! बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteइस पोस्ट में व्यक्त आपके विचार सभी के मन की बात बने, यही शुभकामना है।
ReplyDeleteआप सपरिवार यूं ही खूश रहें।
यदि आप जैसा बना जा सके तो यह आदर्श स्थिति होगी। किंतु,अक्सर इस बात की अनदेखी होती है कि सास-ससुर भी अपने बेटे का घर बसते देखना चाहते हैं। यदि उनमें कुछ व्यवहारगत कमियां हैं तो बहुओं को भी उनके लिए थोड़ी सहनशीलता दर्शानी चाहिए।
ReplyDeleteKUCHHA BHI KAHANE SE BEHATAR MAIN AAPASE SIDHE MILANA CHAHUNGA. AAP JAISE HI LOGON KE KARAN IS SANSAR MEN DHARM AUR VISHWAS PAR BHAROSA HAI .
ReplyDeletePRANAM AUR PRANAM SWIKAREN.
लोगों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं आप। बधाई और प्रणाम!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा यह पढ़ कर ॥ काश सभी लोग यह समझ पाते ....नई –नवेली दुल्हन को उसके माता-पिता के बारे मे ताने सुना कर , या शादी मे उसके माता –पिता द्वारा दिये गए उप-हारो की कमिया गिना कर ससुराल वाले स्वयं का ही सबसे बड़ा नुकसान करते है ...बहू उन्हे मन से प्यार या अपनापन देना भी चाहे तो उसे रह –रह कर अपने माता –पिता के बारे मे ससुराल वालों के उदगार याद आ जाते है ॥और यही से विश्वास की नींव खोखली हो जाती है....
ReplyDeleteआपके शब्द हर लड़की की कहानी है...
Deleteआभार आपका !
Jatinder Kumar( samdhi )said by Email...
ReplyDeleteRead your article. It is beautifully written, meaningful, full of emotions and heartfelt expressions. I pray to the almighty God that all your wishes and dreams come true. May God bless you all.
Jatinder
जतिंदर कुमार जी, मेरी पुत्री गरिमा के नए पिता (मेरे दुसरे समधी ) हैं !!
Deleteआपकी सोच बहुत अच्छी है सतीश जी। काश सारे लोग आपकी तरह सोचनेवाले हों और हमारी बेटियों बहुओं और घर की महिलाओं के साथ होने वाले सभी तरह के भेदभाव दूर हों।
ReplyDeleteपढकर बहुत अच्छा लगा ..बहुत बधाई ..सार्थक सोच!!
ReplyDeleteऐसी प्रगतिशील सोच से ही परिवर्तन संभव है !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ....आपकी खुशी में शरीक होकर !
शुक्रिया प्रवीण भाई !
Deleteऐसी प्रगतिशील सोच से ही परिवर्तन संभव है !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ....आपकी खुशी में शरीक होकर !
बधाई देने देर से आ पायी, बहुत बहुत बधाई। यह विश्वास ऐसे ही बना रहे।
ReplyDeleteआपका आभारी हूँ ...
Deleteदर-अस्ल मां और पत्नी दोनों को ही थोड़ा सा सोच में लोच लाना चाहिये, मां को समझना होगा कि बेटा किसी का पति भी है और पत्नी को यह कि उसका पति किसी का पुत्र भी है. बहुत अच्छा लगा आपके इस पूरे परिवार के बारे में जानकर.
ReplyDeleteआपका आभारी हूँ भारतीय नागरिक ......
Deleteशादी के पहले दिन से, जब लड़की नए उत्साह से अपने नए घर को स्वर्ग बनाने में स्वप्नवद्ध होती है तब हम उसे डांट डपट और नीचा दिखा कर अपने घर का सारा भविष्य नष्ट करने की बुनियाद रख रहे होते हैं................वाह , आपकी ये बेहतरीन सोंच ही तो आपके अच्छे व्यक्तित्व की परिचायक है.
ReplyDeleteआभार आपका कुसुमेश जी !
Deletesamay badal rha hai soch bhi badal rhi wo subah jarur aayegi satish jee.
ReplyDeleteआज ऐसे आचरण की ही जरूरत है आपने बेशक सराहनीय और प्रशंसनीय कार्य किया है जिससे समाज मे सोच मे बदलाव जरूर आयेगा।
ReplyDeleteदेर लगी आने में हमको, शुक्र है लेकिन आये तो
ReplyDeleteखुद से सुंदर बनता है घर, सीख आपसे पाये तो।
...यह पोस्ट व्यक्तिगत होते हुए भी समाज के लिए प्रेरक है। हम केवल बच्चों को कोसते हैं कि बच्चों ने बूढ़े माँ-बाप की सेवा नहीं करी लेकिन यह कटु सत्य है कि ताली दोनो हाथों से बजती है। सामान्य सा सिद्धांत है..प्रेम दोगे तो प्रेम मिलेगा। यह तो हो ही नहीं सकता कि आप हिटलरी करते रहो और अगला प्रेम करता रहे। बहू को बेटी बनाना तो क्या बेटी भी झांकने नहीं आयेगी यदि जीवन भर तानाशाही ही चलाते रहे। इस पोस्ट के लिए इसलिए भी आपका आभार कि आपने नितांत घरेलू बातों को भी प्रेरक संदर्भ के साथ हम सब से साझा किया।
हमें बदलना होगा देवेन्द्र भाई ...आभार आपका !
DeleteVIDHI IS VERY LUCKY THAT SHE HAS A FATHER-IN LAW LIKE YOU .YOU ARE ALSO VERY-VERY LUCKY THAT YOU HAVE FIND A DAUGHTER -IN LAW LIKE VIDHI .GREAT POST .
ReplyDeletetoofan tham lete hain
वाकई मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे विधि मिली, आपका आभार शिखा !
Deletedoosron ko seekh deti bahut acchhi post. aabhar.
ReplyDeleteदूसरों को सिखाने वाले बेवकूफ होते हैं , यह लिखा है कि मुझे और मेरे परिवार को याद रहे :-))
Deleteसब प्रसन्न हैं तो आपकी व आपके परिवार की प्रसन्नता के लिए आपको व परिवार को बधाई। यह खुशी बनी रहे।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आपका स्वागत है घुघूती जी
Deleteआभार आपका !
आप बहुत अच्छे इंसान हैं. मैंने आपकी आँखों में सबके लिए प्यार देखा है. काश! दुनिया में सारे नहीं तो कम से कम कुछ लोग आप जैसे हो जाते, तो दुनिया का रूप ही कुछ और होता.
ReplyDeleteअच्छा लगा डॉ आराधना...
Deleteमहज प्रयत्न है... अगर मेरे आसपास के लोग ईमानदारी से साथ दें तो सफल मानूंगा !
मुक्ति जी - सहमत हूँ |
Deleteसबके लिए caring और सबको ख़ुशी बांटने की इच्छा सबमे नहीं होती है |
आपका लेख सच में उन लोगो के लिए आंखे खोलने वाला हैं जो बहु को बेटी नहीं बना सकते ....पढते हुए आँखों के सामने ...अतीत की कुछ यादे घूम गई ...पर मेरा भी खुद से वादा हैं कि ...मेरी बहुएँ..बहुएँ नहीं बेटी बन कर साथ रहेंगी ...
ReplyDeleteकाश हर कोई ऐसा सोचे तो ...किसी भी घर में ...माँ बाप का अनादर नहीं होगा ....आभार
ऐसा करने के बाद, सबसे अधिक आत्मसंतुष्टि आप खुद महसूस करेंगी अनु !
Deleteशुभकामनायें आपको !
आप अच्छा लिखते हैं दिनेश भाई ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
bahut hi pyaari post,kaash har insaab aap si soch wala ho jaaye
ReplyDeleteaap ki bahuyen ,bahut hi khushkismat hai jo unhe aap ka pariwaar aur itne vichvichaarwaan logon ki bahu banne ka avsar mila
ReplyDeleteAAPKA YAH AALEKH KAI LOGON KE LIYE PRERNA KA SHROT BAN SAKTA HAI...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी सोंच ...हर बेटी ऐसे ही घर की कामना करे ..
ReplyDeleteमैंने इसे अपने फेसबुक वाल पर शेयर किया था, और मेरे कई परिचितों ने आपको शुभकामनाएं दी. सोचा आपको खबर कर दूँ. :-)
ReplyDeleteबहुत अच्छी सीख देती प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार।
ek achhi sonch ke sath aapne apne ghar ko ek achha mahaul diya hai...
ReplyDeleteसिर्फ़ कह तो कोई भी सकता है लेकिन सच में इन बातों को अपनाना ही असली बात है। आपने इसे कर दिखाया है, औरों को भी प्रेरणा मिलेगी। देखा जाये तो ऐसा करके कोई अपने बेटे बहू के साथ अहसान नहीं करता, इसके अलावा और करना भी क्या चाहिये? लेकिन आज के समय में स्वाभाविक होना ही अस्वाभाविक है। आपकी स्वाभाविकता बरकरार रहे, शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपका आभार !
Deleteआपके विचार बहुत अच्छे लगे काश ये सोच हर घर में हो तो बेटियाँ सच में सुखी होंगी। बधाई एव हार्दिक शुभ कामनाएं !
ReplyDeleteKaash!!!
ReplyDeleteयार सच कहूं तो आंख गीली हो गई.अब और क्या कहूं.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत पोस्ट, बधाई.
Deleteकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम प्रविष्टि पर भी पधारें.
कई बार पढ़ा पोस्ट को। सचमुच आप बहुत भाग्यशाली हैं। मेरा भी यही सपना है मेरे घर भी बहू बेटी बन कर आये। सच आँखें नम हो गई। आपको बहुत-बहुत बधाई सतीश भाई साहब।
ReplyDeletebahut achcha likha hai aapke vichar bhi bahu ke prati mere jaise hi lage bahut unnat vichar hain par itna kahungi ki bahut kuch aapke apne putra par nirbhar karta hai. kai baar hum saari galtiyan doosre ghar se aai bachchiyon par daal dete hain aur apne putra ki galtiyon par parda dalte hain yahi hum galti karte hain.bahut achcha laga aapka aalekh padh kar.
ReplyDeleteआभार आपका !
Deleteईश्वर की कृपा से आपके परिवार में हमेशा ऐसे ही खुशियों का माहौल बना रहे!
ReplyDeleteशुभचिंतक बने रहें तो मन को आराम मिलता है , आभार !
Deleteसंवेदनाओं को जीने वाले विरले ही होते हैं ........आपके विचारों से बहुत प्रभावित हूँ !
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा और अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है!...पुरानी परम्पराओं को कब तक और क्यों निभाते रहेंगे हमलोग!
ReplyDeleteवाह ! ! ! ! ! बहुत खूब आपकी ये खुशियाँ हमेशा बरकरार रहे,
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
me to bas yahi kahungi aapke jaese vichar bhagvan sabhi ko de ayr aapke ghr pr bhagvan apki kripa aese hi banaye rakhe
ReplyDeleterachana
काश बाकी सास ससुर भी इसी तरह सोचते तो सभी की जिंदगी स्वर्ग बन जाती.
ReplyDeleteबात बिलकुल सही है,जब भी कोई बहु नायेघर्मे जाती है खुद को अकेला पाती है, उसके माँ पिता की जगह उसको उसके सास ससुर ही नज़र आते हैं,
ReplyDeleteवो उन लोगों से उतना ही प्यार करना चाहती है जितना अपने माता-पिता से करती थी ,उस समय उसका मन निर्मल होता है....... परन्तु वही रोक टोक,नियमों को थोपना और कई साड़ी ऐसी बातें जो उसको अपनेपन के अहसास से दूर ले जाती हैं,और सबसे दूर कर देती हैं,
काश की सभी सास ससुर ऐसा सोच पाते.... एक बहु होने के नाते मैं इसको बेहतर समझ सकती हूँ.....
एक अच्छी सोच को पढ़कर मन खुश हो गया आज....
बहुत ही प्रशंसनीय कदम. बहु को बेटी की तरह प्यार मिले तो ही ससुराल को अपना घर मान पाएगी. उच्च विचार और सराहनिए प्रयास के लिए आपको बधाई. आपका परिवार यूँ ही खुशहाल रहे बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपके लेख को पढकर बहुत ही अच्छा लगा ....आपने भारतीय सभ्यता के उस दर्शन को चरित्रार्थ करने का प्रयत्न किया है जिसमे स्त्री को श्रीमती अर्थात श्री - लक्ष्मी ,मति - सरस्वती का रूप मन गया है |फिर चाहे वो बेटी हो या बहु |अति उत्तम ........
ReplyDeleteI was very encouraged to find this site. I wanted to thank you for this special read. I definitely savored every little bit of it and I have bookmarked you to check out new stuff you post.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने रिश्तों में मिठास तभी आएगी या आ सकती है, जब रिश्तों को थोपा नहीं जिया जाएगा।
ReplyDeleteआपका यह आन्दोलन रंग लाकर ही रहेगा। असीम प्यार.
ReplyDeleteबहुत-बहुत अच्छा लगा पढ़कर! ऐसे विचार रखने और उसे निभाने में पूरी ईमानदारी बरतने में ही हर परिवार का सुख-चैन निहित है....
ReplyDelete~सादर!!!
आदरणीय, आपका लेख पढ़कर मन भावुक है। पहले तो आपके लिए compliment के आप तीन बहुओं के ससुर बिल्कुल नहीं लगते और दूसरी बात कि आप बहुत अच्छे इन्सान हैं, वास्तव में घर को घर बनाने वाली स्त्री को प्यार-दुलार अपने सास-ससुर से भी मिले तो वो क्या न करेगी अपने परिवार को खुश रखने के लिए।
ReplyDeleteबेहद नेक और अनुकरणीय व्यवहार। यदि हर सास श्वसुर, बहु और उसके माँ बाप के प्रति ऐसे विचार रखेंगे तो फिर बेटी बोझ कहाँ रहेगी। समय के साथ बेटियों के माँ बाप ने नजरिये में फर्क ला कर उन्हें उच्च शिक्षा दे रहें हैं तो बेटों के माँ बाप को भी नजरिये में फर्क लाना ही होगा।
ReplyDeleteबेहद नेक और अनुकरणीय व्यवहार। यदि हर सास श्वसुर बहु और उसके माँ बाप के प्रति ऐसे विचार रखेंगे तो फिर बेटी बोझ कहाँ रहेगी। समय के साथ बेटियों के माँ बाप ने नजरिये में फर्क ला कर उन्हें उच्च शिक्षा दे रहें हैं तो बेटों के माँ बाप को भी नजरिये में फर्क लाना ही होगा।
ReplyDeleteबेहद नेक और अनुकरणीय व्यवहार। यदि हर सास श्वसुर बहु और उसके माँ बाप के प्रति ऐसे विचार रखेंगे तो फिर बेटी बोझ कहाँ रहेगी। समय के साथ बेटियों के माँ बाप ने नजरिये में फर्क ला कर उन्हें उच्च शिक्षा दे रहें हैं तो बेटों के माँ बाप को भी नजरिये में फर्क लाना ही होगा।
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