दिल की परतों में सोये हो ,
लगते तो कुछ अपने जैसे
तुम्हें छिपायें बोलो कैसे ,
जबसे तुमको देखा मैंने , पलकें अपनी बंद रखी हैं !
कौन जान पायेगा तुमको,कैसी है पहचान तुम्हारी !
जब भी आये, द्वार तुम्हारे !
तुम छिप गए लाज के मारे
आखें खोज रही तुमको ही
कब से देखो, बिना सहारे !
बरसों बीते बिन देखे ही ,
कैसी है ? यह प्रीत हमारी !
कैसी है ? यह प्रीत हमारी !
लोकलाज वश कहाँ छिपायीं,तुमने मेरी प्रेम निशानी !
अभी कुछ दिनों पहले तुमने
प्रणय गीत कुछ गाये तो थे
पीड़ा मेरी कुछ सुनकर ही
आँख, अश्रु भर आये तो थे !
मुझे ख़ुशी है उस घटना की,
तुमको भी है याद पुरानी !
तुमको भी है याद पुरानी !
कौन समझ पायेगा जग में,मेरी तेरी अमर कहानी !
अभी कुछ दिनों पहले तुमने
ReplyDeleteप्रणय गीत कुछ गाये तो थे
पीड़ा मेरी कुछ सुनकर ही
आँख, अश्रु भर आये तो थे !
मुझे ख़ुशी है उस घटना की तुमको भी है याद पुरानी !
कौन समझ पायेगा जग में,मेरी तेरी अमर कहानी !
वाह...क्या बात है //बहुत सुंदर अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना //
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
आपके इस गीत ने फिल्म स्वामी के पसंदीदा गीत की याद दिला दी...
ReplyDeleteका करूं सजनी, आए ना बालम...
जय हिंद...
कल 05/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अच्छा लगा जानकार आपसे !
Deleteआपका स्वागत है !
संवेदनशील कविता मन के भावों स्पर्श करती हुयी.......प्रसंशनीय
ReplyDeleteसुंदर सतीश जी
ReplyDeleteबरसों बीते बिन देखे ही , कैसी है ? यह प्रीत हमारी!
ReplyDeleteकौन समझ पायेगा जग में,मेरी- तेरी अमर कहानी !
मन तो समझता होगा, जोड़े रखने वाली एक नाजुक अनदेखी डोर जो होगी !
सुन्दर गीत !
स्वागत है....
Deleteसुन्दर भावभीनी प्रस्तुति.
ReplyDeleteपढकर भावविभोर हो गया हूँ.
मेरे ब्लॉग को बिसरा न दीजियेगा.
आदेश सर माथे ...
Deleteसादर
संवेदनशील कविता
ReplyDeleteआपके गीतों का कोई जवाब नहीं है, बधाई।
ReplyDeleteशुक्रिया अजित जी...
Deleteकतल है सर कतल है , लगता है आजकल मन ज्यादा बेचैन है । रहने दीजीए और उडेल डलिए सबकुछ । हम पढ रहे हैं सतीश भाई
ReplyDeleteआचार्य गीत के |
ReplyDeleteउपासक प्रीत के |
मीत मनमीत के -
जियो जग-जीत के ||
आभारी हूँ आपके आशीर्वाद के लिए कविवर ...
Deleteबहुत सुंदर सतीश जी.
ReplyDeleteबरसों बीते बिन देखे ही , कैसी है ? यह प्रीत हमारी !
लोकलाज वश कहाँ छिपायीं,तुमने मेरी प्रेम निशानी !
बहुत प्यारा....मधुर सा प्रेम गीत.............
सादर...
दिल की परतों में सोये हो ,
ReplyDeleteलगते तो कुछ अपने जैसे
मन में इतने गए समाये
तुम्हें छिपायें बोलो कैसे ,
जबसे तुमको मैंने देखा , पलकें अपनी बंद रखी हैं !
कौन जान पायेगा तुमको, कैसी है पहचान तुम्हारी
आपके लिए बस
बंद पलकों में तेरे ख्वाब सजाऊँ कैसे ?
हर एक शाम तेरी याद जब रुलाएगी ..
बहुत सुंदर गीत....
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत के लिये बधाई स्वीकार करे!
ReplyDeleteआप खूबसूरत शीर्षक देने के लिए धन्यवाद स्वीकारें !
Deleteकृष्ण-राधा सा प्रेम है .....शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteदिल से निकली ....दिल तक पहुंचे ,,!!!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
एक अपील ...सिर्फ एक बार ?
बड़े गुलाम अली खां साहब की मशहूर ठुमरी "आए न बालम" की याद दिलाता है यह गीत!! आपके इन्हीं गीतों को पढकर खुद के संगीत से अनभिज्ञ होने का अफ़सोस होता है!! कभी अपनी आवाज़ में पोडकास्ट करें, बड़े भाई!!
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता कि मैं गायक बन सकता हूँ ...
Deleteफिर भी कोशिश करूंगा ...
आपका अनुरोध महत्वपूर्ण है !
ekdam dil se.....
ReplyDeleteअभी कुछ दिन पहले ---- यानि प्रेम कहानी नई है ! :)
ReplyDeleteकौन समझ पायेगा जग में,मेरी तेरी अमर कहानी !
हम तो बिना समझे ही समझ गए भाई जी -- बहुत सुन्दर प्रेम कहानी है .
मैंने तो अपनी रचना में हर गीत तुम्हारे नाम लिखा
Deleteजाने क्या अर्थ निकालेगी इन छंदों का दुनिया सारी !!
बरसों बीते बिन देखे ही , कैसी है ? यह प्रीत हमारी !
ReplyDeleteलोकलाज वश कहाँ छिपायीं,तुमने मेरी प्रेम निशानी !
मन की गहराई से निकले कोमल भाव... बहुत सुन्दर गीत...
दिल की परतों में सोये हो ,
ReplyDeleteलगते तो कुछ अपने जैसे
मन में इतने गए समाये
तुम्हें छिपायें बोलो कैसे ,
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
श्री मन जी नमस्कार ,बहुत ही सुन्दर कवि़त है |अंतिम पंक्तियों में जो सार दिया है वोह बहुत ही अच्छा है |
ReplyDeleteअभी कुछ दिनों पहले तुमने
ReplyDeleteप्रणय गीत कुछ गाये तो थे
पीड़ा मेरी कुछ सुनकर ही
आँख, अश्रु भर आये तो थे !
बहुत कोमल भावों को सँजोया है गीत में ... सुंदर गीत
्भावप्रवण रचना
ReplyDeleteजबसे तुमको मैंने देखा , पलकें अपनी बंद रखी हैं !
ReplyDeleteकौन जान पायेगा तुमको, कैसी है पहचान तुम्हारी
वाह ...!बहुत ह्रदय के भाव ....!
शुभकामनायें ...!!
मेरी तेरी अमर कहानी !
ReplyDeleteअब तो सारे समझ गया और जान गए
गीत अनुरोध पर भी लिखे जाते हैं , हाँ भाव कवि के हैं ...
Deleteआशा है ग़लतफ़हमी नहीं पाली जायेगी !
बहुत सुंदर कोमल भाव से सजी कविता!
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत गीत लिखा गया हैं ...सोच और शब्द को ध्यान में रखते हुए
ReplyDeleteअभी कुछ दिनों पहले तुमने
ReplyDeleteप्रणय गीत कुछ गाये तो थे
पीड़ा मेरी कुछ सुनकर ही
आँख, अश्रु भर आये तो थे !
मुझे ख़ुशी है उस घटना की,तुमको भी है याद पुरानी !
कौन समझ पायेगा जग में,मेरी तेरी अमर कहानी !
bhaav bibhor kar diya
बहुत सुन्दर श्रृंगार अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteआपके शब्दों में भाव इतने सरस हो निकलते हैं कि आनन्द आ जाता है।
ReplyDeleteअब आपके कहने पर विश्वास सा हो रहा है ....
Deleteआभार
सरल शब्दों में सहज ही मन में उतरती रचना ...
ReplyDeleteअभी कुछ दिनों पहले तुमने
ReplyDeleteप्रणय गीत कुछ गाये तो थे
पीड़ा मेरी कुछ सुनकर ही
आँख, अश्रु भर आये तो थे !
मुझे ख़ुशी है उस घटना की,तुमको भी है याद पुरानी !
कौन समझ पायेगा जग में,मेरी तेरी अमर कहानी !
रूहानी रिश्ता
कोमल भावो से लिखी
ReplyDeleteबेहतरीन गीत....
बहूत हि उत्कृष्ठ लिखा है...