विलक्षण बुद्धि मदारी के लिए ,मन्त्रमुग्ध होकर सुनने वाली भीड़ जुटानी आसान है !और अक्सर मदारी अपना उद्देश्य तय कर चुके होते हैं !उसे पता है कि सीधे साधे श्रद्धानत होकर सुनने वाले लोगों से फायदा उठाना आसान है !
ऐसे मजमें, हमारे देश में ही नहीं, विदेशों में भी लगते देखे गए हैं !अक्सर कुछ समय बाद, सीधा साधा इंसान अपने आपको ठगा महसूस करता है ! इन्सान को भावनात्मक तौर पर ठगा जाना ,शायद सबसे आसान है सदियों से शैतान, और अब दुशाला ओढ़े, इंसान रूप में शैतान,रोज इसका फायदा उठाते देखे जा सकते हैं !आज हमारे देश में ऐसे स्वामियों की भीड़ है और हम लोग विवश होकर देखने सुनने को मजबूर हैं !
पहन फकीरों जैसे कपडे
परम ज्ञान की बात करें
वेद क़ुरान,उपनिषद ऊपर
रोज नए व्याख्यान करें,
गिरगिट को शर्मिंदा करते , हुनर मिला चतुराई का !
बड़ी भयानक शक्ल छिपाए रचते ढोंग फकीरी का !
विश्व में सर्वाधिक अशैक्षिक लोगों के इस देश में, आज भी 90% लोग ग्रेजुएट डिग्री नहीं ले पाए हैं ! बचपन से पुरातन पुस्तकें पढ़कर, गुरु का सम्मान करना सीखे हम लोग, गुरुओं की पहचान भूल गए हैं ! आज हमें सौम्य मुद्रा में कुरता पायजामा, और धवल दुपट्टा डाले, मधुर आवाज में बोलता हर व्यक्ति, गुरु श्रद्धा के लायक लगता है !
सीधे साधे और अनपढ़ लोगों की श्रद्धा के साथ मज़ाक का, विश्व में सबसे बड़ा उदाहरण है जिसको हमारे देश में जम कर भुनाया जा रहा है ! "गुरु बिन मोक्ष नहीं " में भरोसा करने वाले हम लोग ,गुरु की तलाश में टीवी पर आसानी से अपनी पसंद के गुरु को चुन सकते हैं !लगभग हर न्यूज़ चैनल पर चलते प्रवचन श्रद्धा के साथ ग्रहण किये जाते हैं !सुबह सुबह किसी भी चैनल पर यह मनोहर गुरुजन शिष्यों से समस्याओं से मुक्ति के उपाय बताते मिलते हैं जिन्हें हमारे प्रथम गुरु (माताएं) बड़े लगन से ग्रहण करती हैं! बिना किसी विशेष शिक्षा और परिश्रम के, गुरु बनकर लोगों के दिल दिमाग पर छा जाना बेतहाशा फायदे का सौदा है !
अभी हाल में मेरे एक परममित्र जो भारत सरकार में कार्यरत हैं , ज्योतिष का एक कोर्स करने के बाद से टीवी पर आने में सफल रहे हैं और वे अब नौकरी छोड़ने की सोंच रहे हैं !
श्रद्धा और धर्म से जुड़े इन व्यवसाओं में सीधे साधे धर्म भीरु लोग न फंसे इसका कोई उपाय नहीं दिखता , शिक्षा और समझ का प्रसार इतना आसान नहीं हैं ! लोकतंत्र का दुरुपयोग और सरकारी तंत्र का बड़े फैसले करने का साहस न कर पाना, देश को आगे बढ़ने से रोकने में कामयाब होगा !
मैं निराश हूँ कि शायद ही मैं अपने जीवन काल में एक स्वस्थ लोकतंत्र देख पाऊंगा , लंगड़े लोकतंत्र जिसमें सही को सही कहने का साहस न हो , को सहना हमारी नियति रहेगी !
पहन फकीरों जैसे कपडे
ReplyDeleteपरम ज्ञान की बात करें
वेद क़ुरान,उपनिषद ऊपर
रोज नए व्याख्यान करें,
वाकई यही सब कुछ हो रहा है इस मुल्क में। लाखों लोग निर्मल बाबा बनकर भोली जनता को लूट रहे हैं।
बात बड़े पते की कही है भाई जान आपने -मगर जिस देश के न्यायविद ,राष्ट्रनायक ,नीति नियोजक ,वैज्ञानिक तक गंडा तावीज धारण करते हों और दसो उँगलियों में गृह शान्ति रत्न जटित अंगूठी पहनते हों उस देश को एक बार नेस्तनाबूद हो जाना ही श्रेष्ठ है
ReplyDeleteबात बड़े पते की कही है भाई जान आपने -मगर जिस देश के न्यायविद ,राष्ट्रनायक ,नीति नियोजक ,वैज्ञानिक तक गंडा तावीज धारण करते हों और दसो उँगलियों में गृह शान्ति रत्न जटित अंगूठी पहनते हों उस देश को एक बार नेस्तनाबूद हो जाना ही श्रेष्ठ है
ReplyDeleteअंधविश्वास की अति है इस देश में मजेदारी यह है की हम दासों उँगलियों में अंगूठियाँ पहने इन लोगो से देश और जनता के भले की कामना करते हैं !
Deleteश्रद्धा और धर्म से जुड़े इन व्यवसाओं में सीधे साधे धर्म भीरु लोग न फंसे इसका कोई उपाय नहीं दिखता , शिक्षा और समझ का प्रसार इतना आसान नहीं हैं !
ReplyDeleteबिलकुल सही बात .....शिक्षा भी तो मज़ाक ही बन गई है....न पढाने वालों को रूचि न पढ़ने वालों को .....बस पैसा ही सब कुछ है .....कहाँ से उत्थार हो देश का .....??????
सही मायने में शिक्षा न के बराबर है ...
ReplyDeleteवाणी के व्यवसाय में, सदा लाभ ही लाभ ।
ReplyDeleteन हर्रे न फिटकरी, मस्त माल-मधु चाभ ।
मस्त माल-मधु चाभ, वकालत प्रवचन भाषण ।
कोई नहीं *प्रमाथ, धनिक खुद करे समर्पण ।
गुंडे गंडा बाँध, *सांध पर मारे धावा ।
पाले पोषे फ़ौज, चढ़े नित चारु चढ़ावा ।
*बलपूर्वक हरण ।
*लक्ष्य
विश्व में सर्वाधिक अशैक्षिक लोगों के इस देश में, आज भी 90% लोग ग्रेजुएट डिग्री नहीं ले पाए हैं ! बचपन से पुरातन पुस्तकें पढ़कर, गुरु का सम्मान करना सीखे हम लोग, गुरुओं की पहचान भूल गए हैं ....
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति.. आभार
अपना उल्लू साधने के लिये धर्म-भीरुओं को प्रभावित करना तो जाने कब से चला आ रहा है, अब तो फिर भी लोगों में चेतना आ रही है !
ReplyDeletesach hai ye........
ReplyDeleteएक अच्छा चर्चित विषय चुना है आपने सभी बातों से सहमत हूँ !
ReplyDeleteसबसे अच्छी बात यह लगी कि,जिस प्रथम गुरु माताओं क़ी बात आप कर रहे है
वो ही अगर इन अंधश्रद्धाओं में विश्वास करने लगे तो भावी पीढ़ी कैसी होगी
आप समझ सकते है ! इस वैज्ञानिक युग में इसप्रकार क़ी अंधश्रद्धा सोचकर ही बुरा लगता है !
बधाई इस पोस्ट के लिये !
गिरगिट को शर्मिंदा करते , हुनर मिला चतुराई का !
ReplyDeleteबड़ी भयानक शक्ल छिपाए रचते ढोंग फकीरी का !
सतीशजी आपने सही कहा,......
सीधे साधे और अनपढ़ लोगों की श्रद्धा के साथ मज़ाक का, विश्व में सबसे बड़ा उदाहरण है जिसको हमारे देश में जम कर भुनाया जा रहा है ! "गुरु बिन मोक्ष नहीं " में भरोसा करने वाले हम लोग.......
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
@मैं निराश हूँ कि शायद ही मैं अपने जीवन काल में एक स्वस्थ लोकतंत्र देख पाऊंगा , लंगड़े लोकतंत्र जिसमें सही को सही कहने का साहस न हो , को सहना हमारी नियति रहेगी
ReplyDeleteआप कैसे नैराश्य के चंगुल में फंस गए.
बाबाओं का चक्कर है दीपक बाबा :)
Deleteभ्रष्टाचार , धर्म भीरुता , अज्ञान और अंध विश्वास के मिले जुले कारणों से पनप रहे हैं बाबा , गुरु , ज्योतिषी आदि .
ReplyDeleteइस (अ) शुभ कार्य में योगदान दे रहे हैं प्रतिस्पर्धा के मारे टी वी चैनल्स .
सही कहा , हमारे जीते जी तो कुछ सुधरने वाला लगता नहीं .
शुभकामनायें ही दे सकते हैं भाई .
कुछ हद तक सरकारी तंत्र के साथ हम भी जिम्मेवार हैं इस व्यवस्था के लिए ...
ReplyDeleteबदलाव की गति में तेज़ी लानी होगी ...
कहता है जोकर सारा ज़माना,
ReplyDeleteआधी हक़ीक़त आधा फ़साना,
चश्मा उतारो फिर देखो यारों,
दुनिया नई है, चेहरा पुराना...
जय हिंद...
सही कहा आपने...बहुत अच्छा लगा!
ReplyDeleteपता नहीं हम अपना विश्वास अपने से इतना दूर स्थापित कर देते हैं कि अच्छे और बुरे का भान ही नहीं रहता है।
ReplyDeletebilkul sach.......
ReplyDeleteस्वस्थ्य समाज, बेहतर तंत्र की रचना करता है.
ReplyDeleteसभी बातों से सहमत हूँ मैं..सही कहा आपने..सशक्त प्रस्तुति..सतीश जी
ReplyDeleteसही लिखा है आपने ...सब तरफ बस यही हो रहा है ...
ReplyDelete...अगर फिर भी हम मूल्यों को याद करते हैं
ReplyDeleteतो कहीं न कहीं एक आस बची है,
रोशनी मद्धम हुई है पर बुझी नहीं !
ये निराशा केवल आपकी ही नहीं है .. कितने आधुनिक होते जा रहे हैं हम कि...
ReplyDeleteये निराशा केवल आपकी ही नहीं है .. कितने आधुनिक होते जा रहे हैं हम कि...
ReplyDeleteपढ़ा लिखा व्यक्ति भी आज अनपढ़ों वाला व्यवहार करता हैं ...इन बाबाओं के चक्कर में
ReplyDeleteबड़े भाई.. यह कविता तो आपने हमपर लिखी थी करीब साल-दो साल पहले!! मगर जो भी लिखा था आपने आज भी सामयिक है!!
ReplyDeleteडिग्रीधारी ही सही मायने में शिक्षित हों यह भी ज़रूरी नहीं !
ReplyDeleteमाहौल बदलेगा भी कैसे , जो नैतिक शिक्षा बच्चों को घूंटी की तरह पिलाई जाती थी , वही आजकल बुद्धिजिवियों को उपहास की बात लगती है .
fakiri/babagiri se apan ko koi parhej nai hai......lekin iska(babagiri/fakiri) ka shakl gar nirmal/sri ghat/asha bapu ke roop me shrinkhlabadh tarike se aate rahe to 'bharoshe' ka uth jana tai hai.....
ReplyDeletepranam.
सहमत हूँ आपसे...यही चलन बनता जा रहा है.
ReplyDeleteसमसामयिक विषय उठाया है .... अशिक्षित ही नहीं शिक्षित लोग भी खूब झांसे में आते हैं ...
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