अगर ताकत तुम्हारे पास, सब स्वीकार दुनिया में !
कभी मांगे नहीं मिलते ,यहाँ अधिकार, दुनिया में !
फैसलों की घड़ी आये ,तो अपनी समझ से लेना,
मदारी रोज लगवाते हैं, जय जयकार दुनिया में !
इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
बड़े सज धज सुशोभित रूप में मक्कार दुनिया में !
अधिकतर गिरने वाले घर के, अन्दर ही फिसलते हैं !
कभी मांगे नहीं मिलते ,यहाँ अधिकार, दुनिया में !
फैसलों की घड़ी आये ,तो अपनी समझ से लेना,
मदारी रोज लगवाते हैं, जय जयकार दुनिया में !
किताबें खूब पढ़ डालीं, मगर लिखा नहीं पाया कि
पर्वत भी लिया करते हैं अब, प्रतिकार दुनिया में !
पर्वत भी लिया करते हैं अब, प्रतिकार दुनिया में !
इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
बड़े सज धज सुशोभित रूप में मक्कार दुनिया में !
अधिकतर गिरने वाले घर के, अन्दर ही फिसलते हैं !
तुम्हारे हर कदम पर , ध्यान की दरकार, दुनिया में !
हमेशा की तरह सुन्दर बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
ReplyDeleteबड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !
- बिलकुल सही और सटीक बात कही है -ऊपर से भेद करना मुश्किलहै !
badi behatareen gazal padhwayee aap ne, किताबे सब पढ़ीं थीं मगर,यह कोई न लिख पाया !
ReplyDeleteपर्वत भी लिया करते हैं,कुछ प्रतिकार, दुनिया में !
sadar aabhar
अच्छी अभिव्यक्ति!
ReplyDelete~सादर!!!
बहुत ही गहन कथ्य है. अक्षरश: आज संसार ऐसा ही हो चला है. आपने गजल में बांधकर मनोभावों को बहुत ही सशक्त रूप में प्रस्तुत किया है, बहुत ही लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम.
सुन्दर गजल -
ReplyDeleteदूरभाष पर आपके साथ बातचीत के बाद
जितना सीख सका सादर प्रस्तुत है
गुरु पूर्णिमा की बधाइयां
आदरणीय सतीश जी-
रचना की कोशिश जारी है |
रविकर करता तैयारी है |
लिखता रहता था कुण्डलियाँ--
गजलों की अब की बारी है |
ब्लॉग जगत पर कई विधाएं-
देखो तो मारामारी है |
अगर खिंचाई कर दे कोई-
मुँह पर ही देता गारी है |
लगातार लिखता पढता हूँ-
रविकर यह क्या बीमारी है-
बधाई रविकर जी ,
Deleteआपकी ग़ज़लों का इंतज़ार रहेगा !
रविकर जी,
Deleteमैं अपने आपको , रविकर को सिखाने योग्य नहीं समझता ! आप जैसे व्यक्तियों से अभी हम खुद कितने वर्षों सीखेंगे ! आपके द्वारा किया गया कार्य बेहतरीन और आदर योग्य है !
रविकर भाई कविवर हैं।
Deleteमुक़म्मल ग़ज़ल ।
ReplyDeleteकिताबे सब पढ़ीं थीं मगर,यह कोई न लिख पाया !
ReplyDeleteपर्वत भी लिया करते हैं,कुछ प्रतिकार, दुनिया में !
हम जड़ बुद्धि होकर पर्वत को जड़ समझते है लेकिन थोड़े विस्तृत दृष्टिकोण से देखे तो,कण कण में उसी परमात्मा की उर्जा काम कर रही है पर्वत भी प्रतिकार करते है प्रतिसाद भी देते है !
बढ़िया रचना है …
Dhansu rachana
ReplyDeleteकिताबे सब पढ़ीं थीं मगर,यह कोई न लिख पाया !
ReplyDeleteपर्वत भी लिया करते हैं,कुछ प्रतिकार, दुनिया में !
जे… बात!!!
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति है सतीश जी !बधाई !
ReplyDeletelatest post क्या अर्पण करूँ !
latest post सुख -दुःख
यह दुनिया ऐसी क्यूँ हो गयी है...
ReplyDeleteआदमी के मिले कितने प्रकार दुनिया में।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteअगर ताकत तुम्हारे पास,सब स्वीकार दुनियां में !
कभी मांगे नहीं मिलते, यहाँ अधिकार, दुनिया में !
फैसले जब,कभी लेना ,तो अपनी बुद्धि से लेना !
मदारी रोज लगवाते हैं ,जय जयकार दुनिया में !
हमेशा गिरने वाले घर के , अन्दर ही फिसलते हैं !
ReplyDeleteतुम्हारे हर कदम पर,ध्यान की दरकार,दुनियां में
बहुत सुन्दर !
बहुत सुंदर सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
ReplyDeleteबड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !..
आज के इंसानों की हकीकत ... समाज को आइना दिखाता शेर है ...
इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
ReplyDeleteबड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !....बहुत सुंदर सटीक अभिव्यक्ति..
शानदार और धाँसू
ReplyDeleteमानव रूप में, , कुछ शैतान रहते हैं !
ReplyDelete.... खूबसूरत रचना......
शब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)
बधाई के साथ मेरा आभार स्वीकार भी करें। इस ग़ज़ल मुझे आज तो खूब प्रभावित किया। जिसकी जैसी मनःस्थिति होती है वैसी ही छूती है अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteएक असरकारक गज़ल ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteआपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।
ReplyDeleteखुबसूरत अभिव्यक्ति!...भाई जी !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, मैंने भी एक कोशिश की है गजल लिखने की,पहली गजल लिखी है, आप भी यहाँ पधारे
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
गुरु को समर्पित
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html
चौथे अशार को पढ़ते वक़्त आपके और अपने एक खास मित्र का ख्याल क्यों आया कहना मुश्किल है !
ReplyDeleteगुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
Deleteगुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
ReplyDeleteबड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !
.....बहुत सही ..बहुत मुश्किल पहचान होती है इनकी..
फैसले जब,कभी लेना ,तो अपनी बुद्धि से लेना !
ReplyDeleteमदारी रोज लगवाते हैं ,जय जयकार दुनिया में !
क्या बात
बहुत सुन्दर गजल … वाकई दुनिया मक्कारों से भरी पड़ी है
ReplyDeleteइसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
ReplyDeleteबड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !
बहुत सुन्दर बात कही अपने …………!
पहले की ही तरह ज़ोरदार
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब जी
ReplyDeleteवाह....क्या बात है
ReplyDeleteआखिरी पंक्तियाँ तो सबसे बेमिसाल.....
ReplyDeleteकिताबे सब पढ़ीं थीं मगर,यह कोई न लिख पाया !
ReplyDeleteपर्वत भी लिया करते हैं,अब प्रतिकार, दुनिया में !
इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
बड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !
बेहद सुंदर सच्ची गज़ल । क्या बात है !
राजनीति के धंधे बाजों पर अच्छा कटाक्ष
ReplyDeleteसावन के मौसम में राग भी रस भरे आलापे, तो ज्यादा जचेंगे ..
ReplyDeleteजारी रखिये ....
व्यवस्थापकों के बारे में कड़वा सच।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेखन |
ReplyDeleteशब्द शब्द सटीकता और यथार्थ |
फैसले जब,कभी लेना ,तो अपनी बुद्धि से लेना !
ReplyDeleteमदारी रोज लगवाते हैं ,जय जयकार दुनिया में !
क्या बात बहुत ही उम्दा लेखन |