Monday, July 22, 2013

मानव वेश में अक्सर फिरें, शैतान दुनिया में -सतीश सक्सेना

अगर ताकत तुम्हारे पास, सब स्वीकार दुनिया में !
कभी मांगे नहीं मिलते ,यहाँ अधिकार, दुनिया में !

फैसलों की घड़ी आये ,तो अपनी समझ से लेना,
मदारी रोज लगवाते हैं, जय जयकार दुनिया में !

किताबें खूब पढ़ डालीं, मगर लिखा नहीं पाया कि
पर्वत भी लिया करते हैं अब, प्रतिकार दुनिया में !

इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ  शैतान  रहते हैं !
बड़े सज धज सुशोभित रूप में मक्कार दुनिया में !

अधिकतर गिरने वाले घर के, अन्दर ही फिसलते हैं !  
तुम्हारे हर कदम पर , ध्यान की दरकार, दुनिया में !

46 comments:

  1. हमेशा की तरह सुन्दर बहुत सुन्दर

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  2. इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
    बड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !
    - बिलकुल सही और सटीक बात कही है -ऊपर से भेद करना मुश्किलहै !

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  3. badi behatareen gazal padhwayee aap ne, किताबे सब पढ़ीं थीं मगर,यह कोई न लिख पाया !
    पर्वत भी लिया करते हैं,कुछ प्रतिकार, दुनिया में !
    sadar aabhar

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  4. अच्छी अभिव्यक्ति!

    ~सादर!!!

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  5. बहुत ही गहन कथ्य है. अक्षरश: आज संसार ऐसा ही हो चला है. आपने गजल में बांधकर मनोभावों को बहुत ही सशक्त रूप में प्रस्तुत किया है, बहुत ही लाजवाब.

    रामराम.

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  6. सुन्दर गजल -
    दूरभाष पर आपके साथ बातचीत के बाद
    जितना सीख सका सादर प्रस्तुत है

    गुरु पूर्णिमा की बधाइयां
    आदरणीय सतीश जी-

    रचना की कोशिश जारी है |
    रविकर करता तैयारी है |

    लिखता रहता था कुण्डलियाँ--
    गजलों की अब की बारी है |

    ब्लॉग जगत पर कई विधाएं-
    देखो तो मारामारी है |

    अगर खिंचाई कर दे कोई-
    मुँह पर ही देता गारी है |

    लगातार लिखता पढता हूँ-
    रविकर यह क्या बीमारी है-

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    Replies
    1. बधाई रविकर जी ,
      आपकी ग़ज़लों का इंतज़ार रहेगा !

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    2. रविकर जी,
      मैं अपने आपको , रविकर को सिखाने योग्य नहीं समझता ! आप जैसे व्यक्तियों से अभी हम खुद कितने वर्षों सीखेंगे ! आपके द्वारा किया गया कार्य बेहतरीन और आदर योग्य है !

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    3. रविकर भाई कविवर हैं।

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  7. किताबे सब पढ़ीं थीं मगर,यह कोई न लिख पाया !
    पर्वत भी लिया करते हैं,कुछ प्रतिकार, दुनिया में !
    हम जड़ बुद्धि होकर पर्वत को जड़ समझते है लेकिन थोड़े विस्तृत दृष्टिकोण से देखे तो,कण कण में उसी परमात्मा की उर्जा काम कर रही है पर्वत भी प्रतिकार करते है प्रतिसाद भी देते है !
    बढ़िया रचना है …

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  8. किताबे सब पढ़ीं थीं मगर,यह कोई न लिख पाया !
    पर्वत भी लिया करते हैं,कुछ प्रतिकार, दुनिया में !

    जे… बात!!!

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  9. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति है सतीश जी !बधाई !
    latest post क्या अर्पण करूँ !
    latest post सुख -दुःख

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  10. यह दुनिया ऐसी क्यूँ हो गयी है...

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  11. आदमी के मिले कितने प्रकार दुनिया में।

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  12. वाह
    अगर ताकत तुम्हारे पास,सब स्वीकार दुनियां में !
    कभी मांगे नहीं मिलते, यहाँ अधिकार, दुनिया में !

    फैसले जब,कभी लेना ,तो अपनी बुद्धि से लेना !
    मदारी रोज लगवाते हैं ,जय जयकार दुनिया में !

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  13. हमेशा गिरने वाले घर के , अन्दर ही फिसलते हैं !
    तुम्हारे हर कदम पर,ध्यान की दरकार,दुनियां में
    बहुत सुन्दर !

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  14. बहुत सुंदर सटीक अभिव्यक्ति

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  15. इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
    बड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !..

    आज के इंसानों की हकीकत ... समाज को आइना दिखाता शेर है ...

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  16. इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
    बड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !....बहुत सुंदर सटीक अभिव्यक्ति..

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  17. शानदार और धाँसू

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  18. मानव रूप में, , कुछ शैतान रहते हैं !
    .... खूबसूरत रचना......

    शब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)

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  19. बधाई के साथ मेरा आभार स्वीकार भी करें। इस ग़ज़ल मुझे आज तो खूब प्रभावित किया। जिसकी जैसी मनःस्थिति होती है वैसी ही छूती है अभिव्यक्ति।

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  20. बहुत सुन्दर ग़ज़ल.

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  21. आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

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  22. खुबसूरत अभिव्यक्ति!...भाई जी !

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  23. बहुत ही सुंदर, मैंने भी एक कोशिश की है गजल लिखने की,पहली गजल लिखी है, आप भी यहाँ पधारे


    यहाँ भी पधारे
    गुरु को समर्पित
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html

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  24. चौथे अशार को पढ़ते वक़्त आपके और अपने एक खास मित्र का ख्याल क्यों आया कहना मुश्किल है !

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    1. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
      गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

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  25. इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
    बड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !
    .....बहुत सही ..बहुत मुश्किल पहचान होती है इनकी..

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  26. फैसले जब,कभी लेना ,तो अपनी बुद्धि से लेना !
    मदारी रोज लगवाते हैं ,जय जयकार दुनिया में !

    क्या बात

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  27. बहुत सुन्दर गजल … वाकई दुनिया मक्कारों से भरी पड़ी है

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  28. इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
    बड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !

    बहुत सुन्दर बात कही अपने …………!

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  29. पहले की ही तरह ज़ोरदार

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  30. वाह बहुत खूब जी

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  31. वाह....क्या बात है

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  32. आखिरी पंक्तियाँ तो सबसे बेमिसाल.....

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  33. किताबे सब पढ़ीं थीं मगर,यह कोई न लिख पाया !
    पर्वत भी लिया करते हैं,अब प्रतिकार, दुनिया में !

    इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
    बड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !

    बेहद सुंदर सच्ची गज़ल । क्या बात है !

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  34. राजनीति के धंधे बाजों पर अच्छा कटाक्ष

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  35. सावन के मौसम में राग भी रस भरे आलापे, तो ज्यादा जचेंगे ..

    जारी रखिये ....

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  36. व्‍यवस्‍थापकों के बारे में कड़वा सच।

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  37. बहुत ही उम्दा लेखन |
    शब्द शब्द सटीकता और यथार्थ |

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  38. फैसले जब,कभी लेना ,तो अपनी बुद्धि से लेना !
    मदारी रोज लगवाते हैं ,जय जयकार दुनिया में !

    क्या बात बहुत ही उम्दा लेखन |

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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