मेरे दोस्तों में उम्र में मुझसे २० वर्ष छोटे (45 वर्षीय जो खुद को उम्रदराज समझते हैं) भी अक्सर उन्मुक्त होकर हंस नहीं पाते और अगर कोई मजाक या जोक शेयर कर दूँ तो इधर उधर देखने लगते हैं कि कोई क्या कहेगा ! मुझे लगता है कि प्रौढ़ावस्था के आसपास के अधिकतर व्यक्ति समाज में असहज व्यवहार करने को मजबूर हैं , उन्हें लगता है कि इस उम्र में वे जवानों जैसा व्यवहार नहीं कर सकते, उनके लिए अपने मनोभावों, इच्छाओं को बचे जीवन दबाकर जीना, समाज द्वारा लादी हुई मजबूरी बन जाती है !
कुछ दिन पहले एक महिला लेखक मित्र से बात करते हुए मुझे लगा कि वे असहज महसूस कर रही हैं जबकि मैं सिर्फ अपनी सामान्य बात हँसते हुए साझा कर रहा था , और मैं आगे उनसे बात करने में, खुद ही चौकन्ना रहा क्योंकि उनकी एक ६६ वर्ष के व्यक्ति से, अधिक सौम्यता और गंभीर वार्तालाप की आशा, मैं तोड़ना नहीं चाहता था !
मुझे लगता है कि उन्मुक्त होकर हँसने के लिए सबसे पहले, एक निर्मल और मस्तमौला मन चाहिए ! अगर आप स्वस्थ जीने के लिए, हंसना सीखना चाहते हैं तब किसी छोटे बच्चे की खिलखिलाहट सुनते हुए , उसकी आँखों में झांकिए उसमें आपके प्रति निश्छल विश्वास और प्यार छलकता दिखाई देगा यही है असली हंसी ....इस हंसी को देखते ही आपका तनाव गायब हो जाएगा और खुद हंस पड़ेंगे !
अगर ऐसी हंसी, आप नहीं हंस सकते तब आप उस आनंद तक कभी नहीं पहुँच पाएंगे जो स्वस्थ मन और शरीर के लिए आवश्यक है ,मनीषियों ने, इसी हँसी को सेहत और जवान रहने के लिए आवश्यक बताया है !
बिल्कुल सही लिखा है आपने " मुझे लगता है कि उन्मुक्त होकर हँसने के लिए सबसे पहले, एक निर्मल और मस्तमौला मन चाहिए!"
ReplyDeleteइसी तरफ़ बांटते चलें सकारात्मकता। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१०-११-२०२०) को "आज नया एक गीत लिखूं"(चर्चा अंक- 3881) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है सर... अक्सर समय और हालात से लड़ते हुए औरतों में गंभीरता आ ही जाती है। परिवार की उम्मीदों पर खरा उतरने की चाह में उन्हीं के अनुसार ढल जातीं है। शायद हम औरतों को सही सब पसंद भी है।
ReplyDeleteसादर
सही कहा आपने
ReplyDeleteहँसी-खुशी बाँटने से ही बढ़ती है सकारात्मक चिन्तन को प्रस्तुत करती बात का उल्लेख किया आपने ।
ReplyDeleteलेकिन पूर्वाग्रहों में जीते इंसान कब मुक्त भाव से जी पाते हैं। प्रेरक लेख सतीश जी🙏🙏
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