मेरा लगभग हर दोस्त जो 70+ का है, तीन चार तरह की दवाएं रोज खाता है चाहे एक ही दवा की आवश्यकता हो मगर डॉ उसकी घबराहट को देख चार पाँच तरह की गोलियां देकर घर भेजता है ताकि उसे भरोसा रहे कि डॉ उसे बचाने का प्रयत्न कर रहा है !
ख़ास तौर पर वे दोस्त जो कि बड़े ओहदे से रिटायर हुए हों अथवा समाज में मशहूर हों या शिष्य मंडली बड़ी हो , बड़े प्रभामंडल से सुसज्जित यह लोग बढ़ती उम्र से सबसे अधिक भयभीत दिखते हैं , अपनी शान में पढ़े कसीदों और तालियों से ताक़त पाते हैं , वे वाक़ई सबसे अधिक ख़तरे में होते हैं और किसी दिन अचानक तालियों की गड़गड़ाहट RIP में बदल जाती है और इस तरह एक शानदार व्यक्तित्व असमय ही मात्र अपनी लापरवाही के कारण संसार से विदा ले लेता है !
क्या आपने कभी सोचा कि
हर घाव बिना दवा के भर जाता है, ,हर बुखार बिना ऐंटीबायोटिक के उतर जाता है, हर जुकाम कुछ दिन बाद खुद-ब-खुद चला जाता है
क्यों?
क्योंकि भीतर कोई है जो सदा जाग रहा है ...वही हमारी प्राकृतिक चिकित्सा शक्ति, हमारी इम्यून पॉवर है।
उसने सतीश सक्सेना की जवान रहने की जिद को 70 साल की उम्र में पूरा करवा दिया ! मरने का भय मस्त शरीर को भी समय से पहले मार सकता है , "कुछ हो न जाय "का विचार मात्र , कॉर्टिसोल, एड्रिनलिन ना नामक हार्मोन्स पैदा करते हैं ये हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को रोक देते हैं और हम बिना लड़े ही बीमारियों के सामने आत्मसमर्पण कर बैठते हैं !
बीमारी के समय यह मानना कि “मैं ठीक हो जाऊँगा "शरीर को यह संदेश देता है कि "घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ "
मानव शरीर एक जीवित चमत्कार है , हर रोग से लड़ने की शक्ति इसके भीतर है, बशर्ते हम उसे डर से नहीं, भरोसे से देखें
डॉक्टर और दवाइयाँ अंतिम उपाय हैं पहला कदम है शरीर को समझना, सुनना और सहारा देना।
डरिए मत, ध्यान दीजिए , शरीर के संकेत समझने की शक्ति विकसित करें , आप योगी , बुद्ध कहलायेंगे !
प्रणाम !
प्रेरणादायक पोस्ट !
ReplyDeleteडरिए मत,
ReplyDeleteध्यान दीजिए ,
शरीर के संकेत समझने की
शक्ति विकसित करें ,
आप योगी ,
बुद्ध कहलायेंगे !
सुंदर
आभार
बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसहमत! अपने देखे भी जो ज्यादा दावा खाने के शौकीन हो जाते है, उन पर हालात-ए-जिंदगी फिल्मी मोड पर ले आती है - अब इन्हे दावा की नहीं, दुआ की जरूरत है!!! इसिलए वर्जिश जिन्दाबाद!! लिखते रहिए !
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