आज कल कुछ जगह, हमारे कुछ शास्त्रार्थ पंडित ,एक दूसरे की हजारों वर्षों पुरानी आस्थाओं को अपनी आधुनिक निगाह से देखते हुए,जम कर प्रहार कर रहे हैं ! चूंकि दोनों पक्ष विद्वान् हैं अतः शालीनता भी भरसक दिखा कर अपने अपने जनमत की वाहवाही लूट रहें हैं !
पुराने धार्मिक ग्रंथों में समय समय पर लेखकों अनुवादकों की बुद्धि के हिसाब से कितने बदलाव हुए होंगे फिर भी पूर्वजों और पंडित मौलवियों के द्वारा पारिभाषित ज्ञान को बिना विज्ञान की कसौटी पर कसे, हम इज्ज़त देते हैं और उसमें ही ईश्वर को ढूँढ़ते रहते हैं और निस्संदेह हमें फल भी मिलता है ! ईश्वर चाहें उसके कितने ही नाम क्यों न हो अपने विभिन्न रूपों में हमारी आस्था का केंद्र रहा है और हमें शक्ति देता रहा है ! मगर यह कौन सी भावना और ज्ञान है जिसमें हम दूसरे घर की पूजा पद्धति को गालियाँ दें जिससे हमारा कुछ भी लेना देना नहीं !
यह विशुद्ध द्वेष और मूर्खता परोस कर हम अपने बच्चों को क्या दे रहे हैं ??
satish jee aaj kee peedee par aastha rakhiye .vo aasanee se bhramit nahee hone wale....... :)
ReplyDeleteमैंने एक जगह पढ़ा था जी के इश्वर अनंत है,उस तक पहुँचने के रास्ते भी अनंत है!
ReplyDeleteलेकिन एक वयक्ति एक बाए में केवल एक राह पर ही चल सकता है और वो काफी भी है उसके लिए!
जो रास्ता हमारे लिए है हम उस तक तो पहुँच नहीं पाते,और जो हमे दिखाई देते है,लग जाते है उनकी आलोचना करने!अबोध बालक तो गलतियां करेंगे ही जी!
कुंवर जी,
वह धर्म जो अपने धर्मग्रंथों पर आधुनिक इंटरप्रेटेशन को अटकाता है, सतत सड़ता जाता है।
ReplyDeleteये अतिवादिता है. हमें कोई हक नहीं बनता कि हम किसी की भी धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्नचिंह लगायें. हर बात को विज्ञान को कसौटी पर नहीं कसा जा सकता. आस्था को तो एकदम नहीं.
ReplyDelete@Qabil e qadr janab Saxena ji
ReplyDeleteInsan ek samajik prani hai.
samaj banta hai sangathan se.
sangathan banta hai usool se.
homosexuality ko jayaz qarar dene walo ko dekh kar ye janna asaan hai
ki insan wastaw men apne liye bhale bure ki samajh kam rakhta hai. uska kalyan tabhi hoga jab woh sab kuchh janne wale malik ki baat par chale.
lekin naqli cheez bechne walo ke samaj me logon ne currency aur doodh ke saath saath Dharma bhi naqli aur synthetic bana dale.
logo men puratan ke prati shriddha hoti hai.
thag usi ka fayda uthane ke liye ichhadhari ban jate hen.
ye log mahapurushon ke naam se nachh gaana aur ashlilta vagherah dharm men ghusa dete hen.
Aaj samaj ko system chahiyye.
Achha system kewal Ishwar hi de sakta hai.
marxism ne apne usool kahan se liye?
Duniya men aaj sab se zyada phalne wale maton par kis Dharm ki vyavastha ka prabhao hai?
Punji ke bare men byajvadi nazariya mufid hai ya Zakatwadi?
Hindu Samaj Sada se khud ko badalta aa raha hai.
Uske is badlao ki antim prinati us Dharm ko swikarne par hogi jo ki wastaw men Ishwar ka Dharm hai.
Ishwar Ajanma Avinashi hai.
Ajanme Avinashi prabhu ki surakshit vani kon si hai?
ye sabhi jante hain.
Muslim badshahon e zulmon ki
kuchh sachhi aur kuchh jhuti dastano se upji nafrat door hogi to
satya ko harek aadmi swikarega.
aakhir Hindu medha namalum muddat se satya ki khoj kar rahi hai.
harek musafir manzil milti hai.
Mahan hindu jati ko bhi zurur milegi.
Vrahattar aryvratt ke adhiktar aryon ko to mil bhi chuki hai.
S.K.Bhatnagar ji mere guru hain.
Kayasth varg ka rini to main aajanm rahunga
aur aapki pur khuloos muhabbat ka bhi.
किसी पर भी अनर्थक दोषारोपण नही किया जाना चाहिये. मनुष्य को ईश्वर ने विवेक दिया है. उसका उपयोग करते हुये सभी अपनी मनमर्जी से धर्म कर्म का पालन करें. इसमे क्या बुरा है? यही होना चाहिये.
ReplyDeleteरामराम.
सतीश जी, यह सब आम आदमी नही करता, चाहे वो किसी भी धर्म का क्यो ना हो, यह सब तो हमारे नेता करते है या फ़िर कुछ सिर फ़िरे लोग. आम दमी तो आज भी मस्त है अपने अपने धर्म मै ओर दुसरे धर्म की इज्जत भी करता है
ReplyDelete@डॉ अनवर जमाल,
ReplyDeleteमैंने आपके कुछ लेख पढ़े हैं, कुल मिलाकर मेरे मन में आप के प्रति सम्मान हैं , निस्संदेह आप भी वही भारत पुत्र हैं जैसा मैं अपने को समझता हूँ ! मैंने आपके ब्लाग पर कुछ अनाम लोगों के द्वारा अभद्र भाषा का इस्तेमाल भी देखा जिससे बेहद अफ़सोस भी हुआ , मगर मैं उनकी बुद्धि और समझ की तुलना आपसे करना सिर्फ मूर्खता मानता हूँ !
एक प्रार्थना आपसे भी करना चाहूँगा आपको कोई कितना ही भला बुरा क्यों न कहे कृपया उस व्यक्ति को जवाब देने से पहले यह सच्चाई ध्यान रखें की उस व्यक्ति को पूरे धर्म का मुखिया मानकर जवाब न दें ! मुझे विश्वास है कि आप हिन्दू धर्म की मर्यादाओं के बारे में अच्छे ज्ञाता हैं फिर भी आपके द्वारा विवेचना नहीं होनी चाहिए ठीक वैसे ही किसी विधर्मी के द्वारा आपके धार्मिक विश्वासों की विश्लेषण करना निंदनीय होना चाहिए !
हमारा धर्म सर्वोच्च है और हमें इस पर ही आचरण करना चाहिए मगर इस कारण आपस में एक दूसरे पर उंगली उठाना सिर्फ वैमनस्य को बढ़ावा देने का कारण बनेगा !
सम्मान सहित
सतीश जी!
ReplyDeleteमैं अपने गीत-संग्रह ‘बडे़ वही इंसान’ एक गीत की मात्र कुछ पंक्तियाँ इस प्रसंग में निवेदित हैं-
"एक गुलामी धन की है।
एक गुलामी तन की है।।
इन दोनों से जटिल गुलामी-
बंधे हुए चिंतन की है।।
चिंतन का पट खुला सदा धरना ही धरना है।
जनम लिया तो एक दिवस मरना ही मरना है।।"
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
मैं उसी बात को रखना चाहूंगा जिसे हमारे दोस्त-दुश्मन दोस्त ने 'एक ब्लॉग पर रखा था.लेकिन उनके कमेन्ट को अप्प्रूवल नहीं किया गया.ऐसे लोकतंत्र वादियों पर हँसा ही जा सकता है.खैर !!
ReplyDeleteमैं पिछले तीन सालों से ब्लॉग जगत में हूँ.और ऐसी मानसिकता के ब्लागेर तब से ही सक्रीय हैं.लेकिन इधर दूसरा समूह भी कूद पड़ा ब्लाग जगत में.यानी ऐसे भारतीय नागरिकों की संख्या और बढ़ गयी.हद तो यह है कुछ लोगों ने चन्दा भी मांगना शुरू कर दिया.
तो साथियों स्वाभाविक है, हमारी शर्ट तुमसे कम सफेद क्यों!!
लोगों ने साम-दाम जैसे सारे अस्त्र उतार दिए.
और दरअसल पहले दूसरा पक्ष था ही नहीं तो वाद-विवाद या ऐसी पोस्ट नहीं लिखी गयी .आपके अतिरिक्त ढेरों लिख चुके हैं या लिखने का मन बना रहे हैं.क्या यह भी एक सवाल हो सकता है !! लेकिन मैं कोई सवाल नहीं करूंगा.
मैं विनम्र आग्राह करूंगा कि आप सभी की आस्था किसी भी मत-सम्प्रदाय में हो..आप धार्मिक अवश्य बनें,लेकिन धर्मांध कभी कभी न बने.
सतीश जी की शाइस्तगी को नमन!!
यह विशुद्ध द्वेष और मूर्खता परोस कर हम अपने बच्चों को क्या दे रहे हैं ??
ReplyDelete-काश!! इतनी दूर की सोचते होते तो ऐसे हालात पैदा ही कब होते!
सतीश जी!
ReplyDeleteमैं अपने गीत-संग्रह
‘बडे़ वही इंसान’ में से
एक गीत की मात्र कुछ पंक्तियाँ
इस प्रसंग में निवेदित कर रहा हूँ-
धर्म और कुछ नहीं व्याकरण मानव के व्यवहार का।
पाठ पढ़ता प्यार का।
उत्तम सोंच-विचार का।।
..................................................................
धर्म सिखाता जन-जन को जीवन जीना सहकारी,
जति, लिग, भाषा की लगती उसे नहीं बीमारी,
सही अर्थ में, धर्म नाम है, सेवा परोपकार का।
पाठ पढ़ता प्यार का।
उत्तम सोंच-विचार का।।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
सतीश जी!
ReplyDeleteमैं अपने गीत-संग्रह
‘बडे़ वही इंसान’ में से
एक गीत की मात्र कुछ पंक्तियाँ
इस प्रसंग में निवेदित कर रहा हूँ-
धर्म और कुछ नहीं व्याकरण मानव के व्यवहार का ।
पाठ पढ़ता प्यार का ।
उत्तम सोंच-विचार का ।।
...................................
धर्म सिखाता जन-जन को जीवन जीना सहकारी,
जति, लिग, भाषा की लगती उसे नहीं बीमारी,
सही अर्थ में, धर्म नाम है, सेवा परोपकार का।
पाठ पढ़ता प्यार का ।
उत्तम सोंच-विचार का ।।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
सतीश जी , किस सन्दर्भ में कह रहे हैं , यह खुलासा करते तो और बेहतर होता ।
ReplyDeleteमैं तो बस इतना ही कहूँगा की आजकल धर्म की आड़ में जो कुछ हो रहा है , उसे देखकर तो कोई भी श्रधा बनाये रखना बड़ा मुश्किल है।
तरह तरह के आनंद बाबा आनंद ले रहे हैं और भोली भली जनता बेवक़ूफ़ बन रही है।
ज्ञानदत्त जी के विचार से सहमत हूँ। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि हमारे ग्रंथों को वि्ज्ञान की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। यदि कहीं वह अटकता है तो हमें अपने सिद्धांतों को उन के अनुरूप संशोधित परिवर्धित करना चाहिए। लेकिन अप्रासंगिक हो जाने से किसी पुराने ग्रंथ की महत्ता समाप्त नहीं हो जाती। क्यों कि वे वे सीढ़ियाँ हैं जिन पर चल कर हम आज की स्थिति में पहुंचे हैं। यदि ये सीढ़ियाँ न होतीं तो हम आज यहाँ नहीं होते जहाँ हैं।
ReplyDeleteसमस्या यह है कि पहली, दूसरी या तीसरी सीढ़ी को ले कर बैठे रहें तो हम मंजिल तक नहीं पहुँच सकते।
@सतीश जी ,
ReplyDeleteदुनिया से घबरा कर ब्लॉग जगत में सुकून पाया था....पर पिछले दिनों जो कुछ पढ़ रही हूँ उससे उससे लगता है ..राजनैतिक गन्दगी यहाँ भी पसर रही है ,लगा था यहाँ दो तरह के लोग आते है , लिखने वाले और पढने वाले पर ...यहाँ भी कीचड़ उछालने और संसद वाला हाल हो गया
बहुत पहले एक शेर पढ़ा था
"होश में आते ही फिरको में बट गए लोग ,इससे तो रात मयखाने का हाल अच्छा था "
sateesh jee galtee se meree agalee kavita publish ho gayee thee par maine use theek kar abhee MATEE
ReplyDeletekavita blog par dalee hai . shubhechoo....
sarita
sateesh jee galtee se meree agalee kavita publish ho gayee thee par maine use theek kar abhee MATEE
ReplyDeletekavita blog par dalee hai . shubhechoo....
sarita
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ReplyDelete.
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Hindu Samaj Sada se khud ko badalta aa raha hai.
Uske is badlao ki antim prinati us Dharm ko swikarne par hogi jo ki wastaw men Ishwar ka Dharm hai.
Ishwar Ajanma Avinashi hai.
Ajanme Avinashi prabhu ki surakshit vani kon si hai?
ye sabhi jante hain.
aakhir Hindu medha namalum muddat se satya ki khoj kar rahi hai.
harek musafir manzil milti hai.
Mahan hindu jati ko bhi zurur milegi.
Vrahattar aryvratt ke adhiktar aryon ko to mil bhi chuki hai.
आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
जरा बूझिये तो, कि आदरणीय, प्रभातस्मरणीय अनवर जमाल साहब ऊपर लिखी लाइनों में क्या कहना चाह रहे हैं ?
और किसी व्यक्ति विशेष के बजाय समूचे कायस्थ वर्ग का ऋणी होने तथा आपकी पुरखुलूस मोहब्बत का भी ऋणी होना कहने के पीछे इनका क्या मंतव्य है ?
@ आदरणीय अनवर जमाल साहब,
आप द्वारा उठाई गई यह बहस और उस के परिणाम स्वरूप फैली यह सब दुर्भावना आपके एक कथन मात्र से खत्म हो सकती है, यदि अपने धर्म पर दॄढ़ रहने वाले एक धार्मिक आदमी होने के नाते आप यह कहें कि "मेरे धर्म (इस्लाम) के अतिरिक्त अन्य धर्मों के धर्मावलंबी भी यदि परोपकार भरा, न्यायपूर्ण जीवन जीयें, अपने धर्म का पालन करें तो वह भी उस अजन्मे अविनाशी ईश्वर की कृपा पा सकते हैं । "
है आपमें यह साहस ? छोड़ सकते हो स्वधर्म को सर्वश्रेष्ठ व एकमात्र सही धर्म माने की अपनी कट्टरपंथी मानसिकता ? तभी आप सही मायने में धार्मिक कहलाने लायक बन सकते हो ! एक ऐसा धार्मिक जिसने धर्म का मर्म समझ लिया है।
सतीश जी, वैसे तो आपके ब्लॉग पर मेरा ट्पियाना लगभग ना के बराबर ही रहा है ! लेकिन इस टिपण्णी को एक खास वजह से पोस्ट कर रहा हूँ !
ReplyDeleteकल आपके लेख पर नजर तो गई थी मगर समयाभाव के कारण पूरा नहीं पढ़ पाया था! आपने बड़े ही सभी ढंग से किसी ख़ास निशाने को समझाने की कोशिश की मगर लगता नहीं कि वह समझ पाए हो ! जैसा की मैंने बार-बार कई विषयों पर लेख तथा टिप्पणियों में कहा है एक बार फिर से कहता हूँ कि "बेनामी" कायरों अगर इन्सान की औलाद हो, तो अगर आमने सामने लड़ने की हिम्मत नाहे रखते हो तो कम से कम इतनी तो हिम्मत रखो कि अपने नाम से अपनी बात कह सको ! इस देश का दुर्भाग्य ही कहूंगा कि देश ने ऐसे कायर सदियों से पाले रखे है !
लेकिन एक बात पर सतीस जी आप से भी विरोध जताउंगा कि आपने बिना जाने यह कैसे कह दिया कि वह बेनामी हमारे धर्म का हो सकता है ("एक प्रार्थना आपसे भी करना चाहूँगा आपको कोई कितना ही भला बुरा क्यों न कहे कृपया उस व्यक्ति को जवाब देने से पहले यह सच्चाई ध्यान रखें की उस व्यक्ति को पूरे धर्म का मुखिया मानकर जवाब न दें ! " ) सतीस जी, सच कहूँ तो पिछले कुछ समय का मेरा अनुभव यह कहता है कि एक ख़ास अंदाज में दुसरे धर्म के लोगो को यह जतलाना कि देखो तुम्हारे धर्म के लोग भी बेनामी बनकर कैसी बाते कर रहे है , ये लोग खुद ही बेनामी बन कर यह गंदा खेल खेल रहे है ! अगर ऐसा नहीं तो सीधी सी बात है कि ब्लॉग पर जाकर टिप्पणी वाले सेट्टिंग में बेनामी ऑप्शन ही बंद कर दो ताकि कोई भी बेनामी होकर टिपण्णी न कर सके , मगर इनका तो उद्देश ही दूसरा है !
इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है...
ReplyDeleteइंसान का इंसान से हो भाईचारा,
यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा...
जय हिंद...
@प्रवीण शाह,
ReplyDeleteमैं अपनी बात अपने लेख में और टिपण्णी में कह चूका हूँ , अपने दर्द के साथ साथ मैं डॉ अनवर जमाल की बात समझाने का प्रयत्न ईमानदारी के साथ करना चाहता हूँ और यही आपसे भी प्रार्थना है ! इस तरह की प्रतिक्रियाओं में अगर हमारे विद्वान् लोग भी शामिल हो गए तो मैं इस प्रयत्न और तथाकथित शास्त्रार्थ को व्यर्थ गया ही मानूंगा ! मेरे प्रति कहे शब्द उनके अपने शब्द हैं उसका अर्थ निकालना उचित नहीं हैं , अपना अपना प्यार अहसास करने के नज़रिए और कारण अलग अलग हैं उसे हम और आप पारिभाषित नहीं कर सकते ! आशा है आप मेरी बात समझेंगे !
मगर हर एक की अपनी तकलीफ है अगर हम उनके नज़रिए से देखेंगे तभी न्याय कर पायेंगे !
@पी सी गोदियाल,
ReplyDeleteआपको मैंने पढ़ा है गोदियाल साहब , और आपके बारे मेरी अलग राय है, आपने अपने ब्लाग से कमेंट्स को गायब क्यों किया, यह अच्छा नहीं लगा ! इससे आप और हम दूर नहीं हो गए ??
बेनामियों के बारे में आपके विचार से मैं पूरी तरह सहमत हूँ , दुःख की बात यह है कि कुछ बड़े नामधारी ब्लागर भी बेनामी हैं ! शायद अपने चरित्र को उजागर कर रहे हैं !
आपकी नाराजी जायज भी हो सकती है, बेनामी अपने मकसद को पूरा करने हेतु कुछ भी कह सकते हैं, मगर यह आप डॉ अनवर जमाल की तरफ से भी यही मानें वहां भी कुछ बेनामी विभिन्न नकाब लगा कर आते हैं और बेहद घटिया बातें कहते हैं ! मैं डॉ अनवर जमाल के तरीके से भी संतुष्ट नहीं हूँ , मेरा यह स्पष्ट मानना है कि दुबारा १९४७ दुहराया नहीं जा सकता ! हर हालत में हमें साथ रहकर चलना सीखना पड़ेगा !
आशा है आप पहली लाइन का जवाब जरूर देंगे !
सादर
मैं विनम्र आग्राह करूंगा कि आप सभी की आस्था किसी भी मत-सम्प्रदाय में हो..आप धार्मिक अवश्य बनें,लेकिन धर्मांध कभी कभी न बने.
ReplyDeleteसतीश जी ,
ReplyDeleteआप ने क्या कहना चाहा और डॉ.अन्वर जमाल ने उसे किधर मोड़ दिया ,इस्लाम कहता है कि ’दूसरे मज़हबों की भी उतनी ही इज़्ज़त करो जितनी अपने मज़हब की करते हो’,और असली धर्म यही है और का जब प्रश्न आस्था का हो तो उस पर किसी भी तरह का प्रश्नचिन्ह असहनीय हो सकता है ,मुझे ’मंज़र भोपाली की ये पंक्तियां आती हैं
”धर्म जो तुम्हारा है ,धर्म जो हमारा है ,
धर्म सब का प्यारा है बस भरम ने मारा है
धर्म पर झगड़ते हैं ,धर्म पर जो लड़ते हैं
अपनी इस बुराइ से, अपनी इस लड़ाई से,
शर्म से न हो जाएं धर्म पानी पानी
कोई भी व्यक्ति अगर सच्चे अर्थों में धार्मिक है तो वो समाज में वैमनस्य नहीं फैला सकता ,धर्म प्यार बांटना सिखाते हैं दुश्मनी नहीं
ताऊ रामपुरिया जी ने सही कहा कि ऊपर वाले ने इंसान को सब से बड़ी दौलत दी है चिंतन शक्ति
हम अपने विवेक और चिंतन शक्ति का सही दिशा में प्रयोग जिस दिन शुरू कर देंगे समस्याओं का अंत भी उसी दिन हो जाएगा.
चलिये आज ये प्रण लें कि हम अपने बच्चों को एक ऐसा भारत सौंपें जहां केवल प्यार ,सहयोग ,भाईचारे जैसी भावनाएं हों .हमारा एक दूसरे के प्रति ख़ुलूस और प्यार हमें एक दूसरे का क़र्ज़दार बनाए न कि साहूकार.
jo log dusro k dharam ki aalochna karte hai main samajhti hu unke bheetar ye dar samaya hota he kahi na kahi ki kahi unda dharam to kamjor nahi pad raha...aur isi apne dar ko dabane k liye vo aise vaimnasye ki isthiti laane ki koshish karte hai..aap khud hi sochiye...ki jab aap is baat se fully confident rahenge ki aapka dharam sarvottam aur sudrad hai to aapko parvaah hi nahi hogi ki koi kya kah raha hai...tab to is soch vali isthiti hogi ki.....haathi chalte hai to dhool k gubaar udte hi hai...to bas aisa hi hota he jab ham apne dharam me poorn vishwas rakhte hai...aur gubar unhi ke udte hai jinke bheetar dar hota hai..jinke dharam me kamjori hoti hai vahi ninda karte hai.
ReplyDeleteaap sab ki tippaniya bahut pasand aayi.
shukriya.
सतीश जी, मज़हब हमें इंसान बनने की शिक्षा देता है. हमारे लिये सामाजिक आचरण की सीमाएं निर्धारित करता है.
ReplyDeleteयहां चल रही बहस में शामिल सभी सज्जनों से
मेरे ब्लॉग जज़्बात पर ’तकरार किसलिये’ पढ़ लेने का अनुरोध करता हूं.
धर्म तो समाज में आपसी तालमेल बैठाता है,इसमें वैमनस्य जैसा कुछ नहीं होना चाहिये। दूसरे के धर्म की आलोचना या पूजा की विधि का मज़ाक---मंजिल तो सबों की एक ही है --सार्थक आलेख
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