चलो सामान ही , बाजार से लाने निकलें !
क्या पता आज वे, मेले के बहाने निकलें !
काश इक बार और आएं , छेड़ने हमको,
क्यूँ न हम छेड़ने वालों को,बुलाने निकलें !
तुमने पूंछा था बहुत बार,क्या कहते तुमसे,
आज, करते हैं तुम्हें प्यार , बताने निकलें !
उन्हें हंसाने को, बस इक सलाम काफी है,
इसी विश्वास पर,रूठों को हंसाने निकलें !
बहुत मज़ाक हुआ, एक बार फिर आओ,
तुम कहो,आज से मनुहार ही गाने निकलें !
क्या पता आज वे, मेले के बहाने निकलें !
काश इक बार और आएं , छेड़ने हमको,
क्यूँ न हम छेड़ने वालों को,बुलाने निकलें !
तुमने पूंछा था बहुत बार,क्या कहते तुमसे,
आज, करते हैं तुम्हें प्यार , बताने निकलें !
उन्हें हंसाने को, बस इक सलाम काफी है,
इसी विश्वास पर,रूठों को हंसाने निकलें !
बहुत मज़ाक हुआ, एक बार फिर आओ,
तुम कहो,आज से मनुहार ही गाने निकलें !
वाह जी..एक बार निकल ही पड़िये :)
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 23 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteChaliye Nikalte hai, kuch door chalte hai
ReplyDeleteवाह बढ़िया ।
ReplyDeleteचलो सामान ही , बाजार से लाने निकलें !
ReplyDeleteक्या पता आज वे, मेले के बहाने निकलें
काव्य की यही खासियत है शायद संभावनाओं में,आशाओं में,
अपेक्षाओं में सुख खोजने की कोशिश करना,बहुत बढ़िया लगी रचना !
Surkh galon pe muskarahaten bhee aa jaayengee
ReplyDeleteSirf mere naam Ko dil se auron Ko sunaane niklen