युवा आचार्य विवेक जी की कही दो पंक्तियाँ दिल में उतर गयीं , और एक काव्य अभिव्यक्ति ने जन्म ले लिया , आभार संत विवेक जी का , प्रणाम करते हुए यह रचना उन्हीं के सद्प्रयासों को समर्पित करता हूँ !
न हो यदि आस्था, श्रद्धा, मगर संवेदना तो हो !
न हो यदि आस्था, श्रद्धा, मगर संवेदना तो हो !
भले विश्वास ईश्वर पर न हो, पर भावना तो हो !
वहां पर सर झुके या न झुके पर चेतना तो हो !
हजारों बार गप्पें मारते , शमशान हो आये,
किसी का पुत्र कंधे पर हो, अंतर्वेदना तो हो !
सभी नज़रें झुका लेते , तेरे दरबार में आकर ,
किसी गुस्ताख़ का नज़रें मिलाके छेड़ना तो हो !
ये गुस्सा, ये विरक्ति, ये नज़र नीचे हुई कैसे ,
हमीं खो जाएंगे, विश्वास की अवमानना तो हो !
माननीय सतीश जी
ReplyDeleteधन्यवाद इस अभिव्यक्ति के लिए, आपके शब्द अंतर्मन का निष्कर्ष हैं। जीवन के सत्य को आप जैसे शब्दों में पिरोते हैं, स्वयं वाणी को इससे गौरव प्राप्त होता है। आप जैसे कवि को व्यक्तिगत तौर पर जानने का मौक़ा मिला, और आपने साहित्य और राष्ट्रीय भाष्य गौरव पुरस्कार जैसे कार्यों में जो भूमिका निभाने का सहयोग दिया वह आनंददायी है।
आपका
आपका
आपके इन शब्दों के साथ इस रचना का लेखन सफल हुआ , आपके सत्कार्यों को नमन ! आपके कार्य अनुकरणीय हैं ....
Deleteसादर !
Real thing is man's determination to fling across all fettishes. Kavi also tries to thread some heart's pearls into necklace. Beautifully tried to very noble bhavas . Regards.
ReplyDeleteसहज स्वाभाविक अभिव्यक्ति इतनी सरलता से आप ही कर सकते है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
भले विश्वास ईश्वर पर न हो,पर भावना तो हो !
ReplyDeleteवहां पर सर झुके या न झुके पर चेतना तो हो !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सक्सेनाजी
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 11/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 238 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 11/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 238 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
न हो यदि आस्था, श्रद्धा, मगर संवेदना तो हो !
ReplyDeleteकिसी की वेदना के साथ,मन में वेदना तो हो !
..बहुत सुन्दर
संवेदनहीन इंसान इंसान कहलाने लायक नहीं!
मन में भाव, विचार संवेदना होना जरूरी है ... इंसान को इंसान का परिचय तो देना ही होगा ...
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
न हो यदि आस्था, श्रद्धा, मगर संवेदना तो हो !
ReplyDeleteकिसी की वेदना के साथ,मन में वेदना तो हो !
इन दो लाइनों में आप ने आज की जिन्दगी का सार कह दिया भाई जी ..स्वागत है .स्वस्थ रहें |