Saturday, March 26, 2016

हम जैसे सख्त जान भी, बरबाद हो गए ! -सतीश सक्सेना

कुछ श्राप भी दुनिया में आशीर्वाद हो गए,
जब भी तपाया आग में, फौलाद हो गए !

यह राह खतरनाक है , सोचा ही नहीं था ,
हम जैसे सख्तजान भी, बरबाद हो गए !  

कितने तो कट गए बिना आवाज किये ही
बच वे ही सके, जो कहीं आबाद हो गये !

ख़त ध्यान से पढ़ने की जरूरत ही नहीं थी 
हर शब्द के मनचाहे से, अनुवाद  हो गए !

क्यों दर पे तेरे आके ही सर झुक गया मेरा 
काफिर न जाने क्यों यहाँ , सज़्ज़ाद हो गए !

न जाने कब से तेरे सामने बेबस रहे थे हम 
इस बार उड़ाया तो , हम आज़ाद हो गए !

Monday, March 21, 2016

इसी विश्वास पर, रूठों को हंसाने निकलें -सतीश सक्सेना

चलो सामान ही , बाजार से लाने निकलें !
क्या पता आज वे, मेले के बहाने निकलें !

काश इक बार और आएं , छेड़ने हमको,
क्यूँ न हम छेड़ने वालों को,बुलाने निकलें !

तुमने पूंछा था बहुत बार,क्या कहते तुमसे,
आज, करते हैं तुम्हें प्यार , बताने निकलें  !

उन्हें हंसाने को, बस इक सलाम काफी है,
इसी विश्वास पर,रूठों को हंसाने निकलें  !

बहुत मज़ाक हुआ, एक बार फिर आओ,
तुम कहो,आज से मनुहार ही गाने निकलें !

Tuesday, March 8, 2016

किसी की वेदना के साथ,मन में वेदना तो हो - सतीश सक्सेना

युवा आचार्य  विवेक जी  की कही दो पंक्तियाँ दिल में उतर गयीं , और एक काव्य अभिव्यक्ति ने जन्म ले लिया , आभार संत विवेक जी का , प्रणाम करते हुए यह रचना उन्हीं के सद्प्रयासों को समर्पित करता हूँ !

न हो यदि आस्था, श्रद्धा, मगर संवेदना तो हो !
किसी की वेदना के साथ, मन में वेदना तो हो !

भले विश्वास ईश्वर पर न हो, पर भावना तो हो !
वहां पर सर झुके या न झुके पर चेतना तो हो !

हजारों बार गप्पें मारते , शमशान हो  आये,
किसी का पुत्र कंधे पर हो, अंतर्वेदना तो हो !

सभी नज़रें झुका लेते , तेरे  दरबार में आकर ,
किसी गुस्ताख़ का नज़रें मिलाके छेड़ना तो हो !

ये गुस्सा, ये विरक्ति, ये नज़र नीचे हुई कैसे , 
हमीं खो जाएंगे, विश्वास की अवमानना तो हो ! 


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