जिस ओर उठाऊँ दृष्टि वहीं
हरियाली चादर फैली है !
मन में उठता है प्रश्न,
पवन लहराने वाला कौन ?
बादलों के सीने को चीर बूँद बरसाने वाला कौन?
कलकल छलछल जलधार
बहे,ऊँचे शैलों की चोटी से
आकाश चूमते वृक्ष लदे
स्वादिष्ट फलों औ फूलों से
हर बार, रंगों की चादर से ,
ढक जाने वाला कौन ?
धरा को बार बार रंगीन बना कर जाने वाला कौन ?
चिडियों का यह कलरव वृन्दन !
कोयल की मीठी , कुहू कुहू !
बादल का यह गंभीर गर्जन ,
वर्षा की ये रिमझिम रिमझिम !
हर मौसम की रागिनी अलग,
सृजनाने वाला कौन ?
मेघ को देख घने वन में मयूर नचवाने वाला कौन ?
अमावस की काली रातें
ह्रदय में भय उपजाती हैं !
चांदनी की शीतल रातें,
प्रेमियों को क्यों भाती हैं !
देख कर उगता पूरा चाँद ,
कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
चाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?
कामिनी की मनहर मुस्कान
झुकी नज़रों के तिरछे वार !
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति , जगाये वेश !
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार ,
रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार,प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
हरियाली चादर फैली है !
मन में उठता है प्रश्न,
पवन लहराने वाला कौन ?
बादलों के सीने को चीर बूँद बरसाने वाला कौन?
कलकल छलछल जलधार
बहे,ऊँचे शैलों की चोटी से
आकाश चूमते वृक्ष लदे
स्वादिष्ट फलों औ फूलों से
हर बार, रंगों की चादर से ,
ढक जाने वाला कौन ?
धरा को बार बार रंगीन बना कर जाने वाला कौन ?
चिडियों का यह कलरव वृन्दन !
कोयल की मीठी , कुहू कुहू !
बादल का यह गंभीर गर्जन ,
वर्षा की ये रिमझिम रिमझिम !
हर मौसम की रागिनी अलग,
सृजनाने वाला कौन ?
मेघ को देख घने वन में मयूर नचवाने वाला कौन ?
अमावस की काली रातें
ह्रदय में भय उपजाती हैं !
चांदनी की शीतल रातें,
प्रेमियों को क्यों भाती हैं !
देख कर उगता पूरा चाँद ,
कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
चाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?
कामिनी की मनहर मुस्कान
झुकी नज़रों के तिरछे वार !
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति , जगाये वेश !
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार ,
रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार,प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता। ऐसी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteकामिनी की मनहर मुस्कान
ReplyDeleteझुकी नज़रों के तिरछे वार
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
" kitne rup hain is kaveeta mey....kintee najuk see abheevyktee hai.....dil ko chu gyee"
Regards
ये महज कविता नही है ! बड़ा गूढ़ प्रश्न है आपका ! हमारे ऋषियों ने उपनिषदों में इसी तत्व का जवाब देने की कोशीश की है ! पर तत्व को भाषा से समझाया नही जा सकता ! महसूस किया जा सकता है ! प्रश्न आपने उठाया है तो जवाब भी आपको ही मिलेगा ! इस लेबल तक सोचने के लिए भी बहुत पुण्य चाहिए होते हैं ! आपकी इस सोच को प्रणाम और मेरी तरफ़ से अनंत शुभकामनाएं !
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
वाह वाह! फिल्म का गीत याद आ गया - ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है! ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार!
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी बड़ी ही गूढ़ बात बड़े अदभुद ढंग से प्रस्तुत की आपने. आभार आपका इस सुंदर रचना के लिए. और हाँ जी, टिप्पणी से पूर्व मैंने आपकी कविता अच्छी तरह पढ़ ली है. कन्फ़र्म. हा हा चलता हूँ. फ़िर मिलेंगे.
ReplyDeleteबवाल जी !
ReplyDeleteआपने मजबूर कर दिया जवाब देने के लिए ! स्नेह के लिए आभार !
अति सुंदर शब्द संयोजन और अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा गया है
बहुत सुन्दर्।
ReplyDeleteअमावस की काली रातें ,
ReplyDeleteह्रदय में भय उपजाती क्यों
चाँदनी की शीतल रातें
प्रेमियों को भाती हैं क्यों
देख कर उगता पूरा चाँद कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
चाँद को देख ह्रदय में कवि के मीठे भाव जगाता कौन ?
bahut achha likha hai.
वाह सतीश भाई वाह!! बहुत खूब!!
ReplyDeleteसुंदर.
ReplyDeleteआपका गीत पढते-पढते मुझे भी 'ये कौन चित्रकार है' गीत याद आने लगा था । लेकिन धरती पर आया तो पाया कि ज्ञानजी इसका उल्लेख कर चुके हैं । अपने से बेहतर लोगों के पीछे चलने का आनन्द ही और है । सो, मैं ज्ञानजी के पीछे-पीछे ।
ReplyDeleteआपकी शब्दावली सुन्दर और प्रभावी है । सुखद ।
सुंदर, अनुपम!
ReplyDeleteसतीश जी आप ने तो सागर को गागर मै भर दिया इस कविता के रुप मे, बहुत ही अच्छी लगी ,
ReplyDeleteधन्यवाद
Waah ! क्या कहूँ............अद्भुत ! atisundar !
ReplyDeleteएक सुंदर रचना से आपने परिचय करवाया, धन्यवाद।
ReplyDeleteभाई सतीश /अन्तिम लाइन में तो सार निचोड़ कर रख दिया /पहली लाइन से ही मुझे एक गाना याद आने लगा था ""ये कौन चित्र कार है ""लेकिन जैसे जैसे आगे बढ़ता गया प्रकृति में खोता गया /पवन ,हरियाली ,जलधार ब्रक्ष पुष्प ,चिडियों का कलरव =सच कहता हूँ मे बैठा तो था कमरे में लेकिन मनो बागीचे में खडा हूँ ऐसा लगने लगा =मालिक झूंठ न बुलवाए कुछ कुछ खुश्बू सी भी आने लगी थी /लेकिन जब मनहर मुस्कान ,नज़रों के तिरछे बार और ...... पर केशों ने जब मुझे अपना बेष दिखाया तो होश आया और वास्तब में ऊपर हाथ उठा कर जैसे दुआ के लिए उठाते है वैसे उठा कर पूछने लगा ये आसक्ति कौन करा रहा है ये अभिव्यक्ति कौन करा रहा है ये कौनसी रूपसी का यौवन है =ऊपर से आवाज़ आई आती हूँ देखती हूँ कौन है ?
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ReplyDelete@बृजमोहन श्रीवास्तव
ReplyDeleteहा..हा..हा....आपका स्वागत है बड़े भाई !
जिंदगी जिंदादिली का नाम है ,
मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं
बहुत अच्छा लिखते हैं आप, स्नेह बनाये रखिये !
वाह..
ReplyDeleteWah..wa
वाह........
wah wah bouth he aacha post hai ji
ReplyDeleteShyari Is Here Visit Jauru Karo Ji
http://www.discobhangra.com/shayari/sad-shayri/
Etc...........
कामिनी की मनहर मुस्कान
ReplyDeleteझुकी नज़रों के तिरछे वार
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार, रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?
सिर्फ कविता ही नहीं, एक गूढ़ प्रशन भी!
उत्तम रचना.
चाँदनी की शीतल रातें
ReplyDeleteप्रेमियों को भाती हैं क्यों
देख कर उगता पूरा चाँद कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
चाँद को देख ह्रदय में कवि के मीठे भाव जगाता कौन ?
Bahut oomda likha hai aapne..badhai svikaren
ReplyDeleteआपकी रचना पठनीय है, ह्र्दयस्पर्शी है, आभार !
ReplyDeletebahut sunder rachna.......
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