एक दिन सपने में पत्नी श्री से कुछ ऐसा ही सुना था ,समझ नहीं आया कि यह सपना था कि हकीकत ....हास्य रचना का आनंद
महसूस करें, मुस्कराएं..... ठहाका लगाएं !
महसूस करें, मुस्कराएं..... ठहाका लगाएं !
हो सकें तो सुधर भी जाएँ ... ;-)
लगता है मजदूरी कर ली
बर्तन धोये घर साफ़ करें
बुड्ढे बुढिया के पाँव छुएं !
जब से पापा ने शादी की,
फूटी किस्मत, अरमान लुटे !
ना नौकर है , न चाकर है,
ना ड्राइवर है न वाच मैन !
घर बैठे कन्या दान मिला
ऐसे भिखमंगे चिरकुट को,
कालिज पार्टी,तितली,मस्ती,
बातें लगती सपने जैसी !
चौकीदारी इस घर की कर, हम बात तुम्हारी क्यों मानें
पत्नी , सावित्री सी चहिए,
पतिपरमेश्वर की पूजा को !
गंगा स्नान के मौके पर ,
जी करता धक्का देने को !
तुम पैग हाथ लेकर बैठो ,
हम गरम गरम भोजन परसें !
हम आग लगा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
हम जलतरंग, तुम फटे ढोल,
हम जब चलते, धरती झूमें
तुम हिलते चलते गोल गोल,
तुम आँखे दिखाओ, लाल हमें, हम जब चलते, धरती झूमें
तुम हिलते चलते गोल गोल,
हम हाथ जोड़ ताबेदारी ?
हम धूल उड़ा दें दुनिया की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
ये शकल कबूतर सी लेकर
पति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं !
पैसे निकालते दम निकले ,
महफ़िल में बनते शहजादे !
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
\पुरुष मानसिकता पर गहरा व्यंग
ReplyDeleteपुरुषों को बदलना होगा ....
Deleteपुरुषों को क्या बदलना होगा :)
Deleteयर्थाथ का चित्रण। बधाई।
ReplyDeleteसपने में भी पत्नी श्री !
ReplyDeleteधन्य हो मित्र !:)
सतीश भाई के दिखाये पे ना जाइए :)
Deleteवह भी धमकियों के साथ :-))
Deleteलगता है कवि होने के साथ-साथ मन पढ़ने में भी निपुण हो गये हैं - बहुतों के स्वरों को वाणी दे दी आपने तो ,बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteअगर यह सच है तो लेखन सफल हो गया ...
Deleteआभार आपका !
सटीक व्यंग्यात्मक प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर.... बहुत बढ़िया... शायद सभी पत्नियों के विचार एक से होते हैं...
ReplyDeleteहा..हा...हा...हा....
Deleteशुक्रिया अरुण भाई :-)
पूंछने की कोशिश करें न .....
:-)
बहुत शानदार...शुभकामनाएं...
ReplyDeleteबड़े दिन बाद आयीं हैं आप ..
Deleteआभार आपका !
वाह जी हास्य में व्यंग्य का सम्मिश्रण बहुत सुन्दर लगा |
ReplyDeleteशुक्रिया आपका इमरान भाई !
Deleteहमारी श्रीमतीजी को हमने पढ़ा दी है, उन्होने ईमेल पर मँगा ली है। आगे की टूट फूट की जिम्मेदारी अब आपकी..
ReplyDeleteआप तो ऐसे न थे प्रवीण भाई ....
Delete:-)
हमारी श्रीमती जी बात बात पर अन्तिम पैराग्राफ सुना देती हैं। हम भी जवाब तैयार कर रहे हैं, जल्द ही सुनायेंगे।
Deleteबहुत बढ़िया रहेगा ....इंतज़ार है आपके जवाब का ...
Deleteहोली से पहले
:-)
एक तो अभी रख लीजिये,
Deleteसब बात तुम्हारी ही माने
दो चार चपाती सेंक प्रिये, तुम तुर्रम खां बन जाती हो,
सब्जी अच्छी क्या बन जाये, तुम चौड़ी हो तन जाती हो,
भोजन करवा कर दान धर्म का पुण्य तुम्हें मिल जाता है,
दो चार प्रशंसा शब्द और मुख-कमलपत्र खिल जाता है,
हम भिक्षुक, याचक, जो समझो, घर में तुम्हरी तूती बजती,
बाहर राजे, पर हर घर में, सब बात तुम्हारी ही माने।१।
:-)
Deleteमज़ा आ गया ...
पूरी लिख कर प्रकाशित करें...
बहुत लोगों को इंतज़ार है जवाब का !
लाज़वाब अभिव्यक्ति..घर घर की कहानी...
ReplyDeleteआभार भाई जी ..
Deleteक्या बात .....:)
ReplyDelete:):) मुझे तालियाँ बजाने का मन कर रहा है...पर इतना सच सच नहीं बोलना चाहिए :)
ReplyDeleteफिर तो सफल हो गयी यह रचना ....
Deleteआभार तालियों के लिए शिखा जी :-)
हा हा हा ...
ReplyDeleteआपने ख्वाब में ही सही, मैडम के दिल की बात पढ़ ली....
और सिर्फ उनकी नहीं...हर पत्नि की :-)
बेहतरीन रचना....
write more often...
regards.
@ write more often...
Deleteकुछ समय से अनियमित रहा हूँ ...मगर ध्यान रखूंगा !
बड़े भाई!
ReplyDeleteहंसी रुके तो कुछ कहूँ... एक निर्मल हास्य रचना!! एक नोर्मल हास्य पैदा करती है!!
मज़ा आ गया!
अब जब सलिल भी कह रहे हैं तो सफल हो गयी यह रचना ....
Deleteआभार !
bahut hi badiya sakaratmak soch se upji sundar rachna..
ReplyDeleteVASTVIKTA KO LIYE ACHCHHA VYANGY..
ReplyDeleteये शकल कबूतर सी लेकर
ReplyDeleteपति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं !
पैसे निकालते दम निकले , महफ़िल में बनते शहजादे !
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
क्या बात है!! आप तो हास्य-कविता भी रचते हैं :) बधाई.
अभी कभी अपने से मज़ाक करने का दिल करता है वंदना जी !
Delete.
ReplyDeleteगंगा स्नान के मौके पर ,
जी करता धक्का देने को !
अरे बाप रे ! सावधानी रख़ना कहां तक मुमकिन होगा …
सतीश भाई साहब
हमारी भाभीजी की महानता है जो आप यह सब लिख कर पोस्ट कर पाए हैं :)
हम सब जानते हैं कि आपने जो लिखा है, स्थिति उससे उलटी है …
हां, रचना अच्छी लिखी है आपने … बधाई !
आपके परिवार में ख़ुशियां बरसती रहे…
आप सभी परिवार जनों को
हार्दिक मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आभार राजेंद्र भाई ....
Deleteआपके ब्लॉग की ही पंक्तियों पर नज़र पड़ी ---- शायद जबाब मिले श्रीमती जी को ...
ReplyDeleteद्रढ़ता हो सावित्री जैसी,
सहनशीलता हो सीता सी,
सरस्वती सी महिमा मंडित
कार्यसाधिनी अपने पति की
अन्नपूर्णा बनो, सदा ही घर की शोभा तुम्ही रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !!
बिलकुल सच १००% सच
Deleteआभार अर्चना जी ...
Deleteशानदार...:))
ReplyDeleteसतीश जी आपने सारी पत्नियों के दिल की बात कर डाली और हास्य का दरिया बहा दिया. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसफल हो गयी यह रचना .....
Deleteशुब्क्रिया आपका !
बेहतरीन अंदाज़.....
ReplyDeleteऔरत को यह सटीक लगती है लेकिन आदमी को "क्या हास्य है"
ReplyDeleteयह सपना बहूत पुराना है. अब तो हम हाथ बांधे बैठे हैं की ..........
और हम लोग कर ही क्या सकते हैं ....
Delete:-)
औरत को यह सटीक लगती है लेकिन आदमी को "क्या हास्य है"
ReplyDeleteयह सपना बहूत पुराना है. अब तो हम हाथ बांधे बैठे हैं की ..........
सपना था... खुश हो जाओ। यदि ये हकीकत बन गई तो हंसना भूल जाओगे :)
ReplyDelete:-))
Deleteसही कहा बड़े भाई ....
आभार आपका !
कुछ तो छिपाया करें, सब बात जग जाहिर है :)
ReplyDeleteहा...हा....हा....हा.....
Deleteकब तक छिपायें सुनील भाई :-)
वाह!!!!!बहुत बेहतरीन लाजबाब प्रस्तुति,
ReplyDeleteसतीश भाई,..लगता है घर में कुछ अनबन चल रही है,
NEW POST...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
बिलकुल नहीं ....
Deleteयह सिर्फ रचना है :-))
@ घर में अनबन ,
Deleteइतना लाजबाब लिखियेगा तो यूँहीं शक हुआ करेंगे :)
शुक्रिया अली सर ....
Deleteउम्मीद है ख़राब हाल में आप जरूर मदद को आओगे :-)
कवियों के साथ यही प्रोब्लम है । कहीं रचना , कहीं कविता , कहीं कल्पना --शक तो होगा ही ! :)
Deleteमैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना मीना............
ReplyDeleteबहुत खूब।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
दुनिया की आधी आबादी को आपने बड़ी चतुराई से अपने पक्ष में कर लिया |
ReplyDeleteनिवेदिता ने इसे कंठस्थ कर लिया है और जब तब रिंग टोन की तरह मेरे सामने बज रही हैं | धन्य है आप |
यह मुझसे अनजाने में हुआ है अमित भाई :-)
ReplyDeleteमगर आपके उद्गारों से, यह रचना सफल मान रहा हूँ !
आभार आपका !
साथ निभता रहे..., गजब की जुगलबंदी.
ReplyDeleteआशीर्वाद ग्रहण किया प्रभो ....
Deleteउम्मीद यही है !
आप हंसी-हंसी में कही गंभीर बात तो नहीं कर रहे है सतीश जी ?
ReplyDeleteमजेदार रचना बहुत पसंद आई !
भले ही मज़ाक सही...
Deleteमगर यह कहानी तमाम घरों की है, जीवन भर के रिश्ते भी दिखावे से चल रहे हैं , यह अफ़सोस जनक है ....
हमें पहल करनी होगी !
शुभकामनायें आपको !
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
ReplyDeleteअच्छा किया सब बता दिया आपने... सटीक व्यंग लिखा है आपने...आभार
हा..हा..हा..हा...
Deleteआभार
अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी,क्या खूब जज़बात निखारे है आपने।
ReplyDeleteकंगूरे के दो ईमारत के एक हिस्से पर व्यंग्य बाण बेहतरीन है...
ReplyDeleteलगता है हमरी बातन का,तुम भंडाफोड मचायो है,
ReplyDeleteयह बात घरैतिन जानि गईं,कम्प्यूटर का दइ मारेन हैं !
यह भेद छिपायो जात नहीं, एक दिन तो भंडा फूटैगो
Deleteअब लट्ठ पड़ें दुई और सही पहिले ससुरी का कमी रही !
क्या बात है सतीश जी बहुत खुबसूरत...सटीक व्यंग लिखा है आपने
ReplyDeleteमगर बेहद प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की बधाई
साथ में प्रत्युत्तर भी होता तो आनद दोगुना हो जाता..
ReplyDeleteसुझाव अच्छा है !
Deleteकोई और आगे आये तो अच्छा लगेगा :-)
इतने डरावने सपने न देखा कीजिए सतीश जी ....कम से कम सपनो में तो श्रीमतीजी से छुटकारा पाइए .......
ReplyDeleteअब मेरे सोंचने से क्या होगा ...
Deleteये शकल कबूतर सी लेकर
ReplyDeleteपति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं
अब इतनी पोल तो मत खोलो सतीश जी ... पति बेचारों का भी ख्याल रहा करो ...
आगे कुछ नहीं कहूँगा ....
Deleteलंगोटी तक तो खींच ली है अब आगे बचा ही क्या है कहने के लिए :)
Deleteजिधर देखूं उधर ही तू ... :-(
Deleteयदि इसे सिर्फ मजाक के तौर पर पढ़ा जाये तो अच्छा है परन्तु व्यंग के रूप मैं तो मन को ठेस लगाने वाला है|
ReplyDeleteआप पुरुष भी ना... पूरी ज़िन्दगी तन-मन-धन से प्यार करो और मिलता है है जवाब की पीछे से मेरे बारे में यह (उप्रोक्क्त रचना) सोचती हो... प्यार का आभार मानिये जनाब!
ठीक है जी ...
Deleteमान लिया अब :-)
अरे आपने तो हिन्दी दारावाहिक कहानी घर-घर कि कोई चरितार्थ करदीय ;)पुरुषों कि मानसिकता पर करारा व्यंग लिख दिया ...समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteअत्यन्त निष्ठुर होके लिखा है भाई जी ! जितना आपने ये कविता लिख के ज़लील किया उत्ता तो उन्होंने भी ना किया था :)
ReplyDeleteबोलते हैं कि काफी दिन पानी में भिगा कर मारा जाये तो ... बस यही किया आपने ! इत्ते दिन ब्लॉग में ना थे तो क्या जान ले लोगे बेचारे शौहरों की :)
सबसे प्यारा कमेंट्स ...
Deleteआभार अली भाई !
हा हा हा हा हा हा ....बढिया हैं भाई जी
ReplyDeleteफिर तो हमने ये जन्म गँवा दिया ...पति को परमेश्वर मान कर ...
काश हम भी पत्नी पुराण में अपनी हिस्सेदारी देख सकते ....आभार
फुल मजे आये पढ़ कर....
ReplyDeleteजय हो!
ReplyDeleteआपके काव्यत्व -काव्य प्रतिभा को नमन ! अब इत्ती सी ही गुजारिश है कि एक पुरुष उवाच भी हो जाए!
ReplyDeleteहम बात तुम्हारी क्यों माने.
तुम गैंडे सी ,काली मोटी भैंस बराबर
अक्ल के नाम पर जीरो हो ..
और शक्की नंबर एक बनी हो
हम बात तुम्हारी क्यों माने ...
जब भी डाईंग टेबल पर
खाना खाने आता हूँ,
झट से तुम भी साथ बैठ
जीमने को जम जाती हो
मन कहता है थाली फेंक
उठ कहीं चल जाऊं
......गंगा घटा पे कहीं धक्का देकर
हट जाऊं ...
बात तुम्हारी क्यों मानूं!
अमृता तन्मय जी की प्रत्युत्तर की इच्छा इच्छा आपने पूरी करदी ...
Deleteजवाब कुछ अधिक ही तगड़ा रहा :-)
शुभकामनायें आपको !
सटीक व्यंग्यात्मक प्रस्तुति....बढिया!
ReplyDeleteबेचारा पुरुष पत्नी से कुछ नहीं चाहता- सिवाए प्यार के। और लेडीज को देखिए। सिर्फ पैसा,पैसा,पैसा!
ReplyDeleteआपकी और अरविन्द मिश्र जी की कल्पनायें साकार हों। :)
ReplyDeleteधन्य हो प्रभु ...
Deleteध्यान सबका रखते हो ...
अरविन्द मिश्र को भुलाए नहीं :-)
इस कविता\किस्से\वाकये पर टिप्पणी करना भी मुश्किल लग रहा है, हँसी के मारे बहुत अच्छा हाल हो गया है बड़े भाई:)
ReplyDeleteअब लगता है कि यह हलकी फुलकी रचना कुछ वाकई अच्छी बन गयी है...
Deleteआभार संजय !
हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
ReplyDeleteहम जलतरंग,तुम फटे ढोल
हम उड़नतश्तरी में घूमें ,
जब तुम घर बाहर जाते हो
तुम आँखे दिखाओ लाल हमें, हम हाथ जोड़ ताबेदारी ?
हम धूल उड़ा दें दुनिया की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
बहुत मजा आया । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद .
तारीफ़ तो आपकी करनी चाहिए सतीश जी, कि आपने पत्नी के सपने को यहाँ भली भांति उतारा!...बहुत मजा आया!
ReplyDeleteहा हा हा हा ..................मज़ेदार हास्य है.
ReplyDeleteसुंदर सटीक व्यंग,मजेदार रचना,..
ReplyDeleteMY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...
हम आपकी हिम्मत कि दाद देते हैं कमसे कम आपने इसे स्वीकार करने कि हिम्मत तो कि :) बहुत सुन्दर व्यंग्य जिसे आपने बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया बहुत खूब |
ReplyDeleteहाय! यह मस्त गीत कब लिखा जान ही न पाया!! कमेंट में भी ढेर सारे हैं मेरा मतलब कमेंट भी बहुत से हैं..अभी एक्को नहीं पढ़ा। अभी तो गीत की मस्ती में डूबा हूँ।:)..बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteसतीश भाई, यह सब भी सुनना पड़ता है ।
ReplyDeleteहम तो पिछले ज़माने के पतियों का संशोधित संस्करण हैं फिर भी काफी खरी खोटी सुना दी आपने :))
ReplyDeleteसटीक...क्या बात है!!
ReplyDeleteहम उड़नतश्तरी में घूमें ,....अहा!!!!!!!!!!!!आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteबेचारे पति की ऐसी-तैसी कर दी है।
ReplyDeleteकमाल है सतीश जी.
ReplyDeleteकहने न कहने की सभी बातें कह दी आपने.
सपने का सहारा लेकर आपने अपनी ओर से उनकी कह दी,
पर अब उनकी ओर से उनकी ही पढ़ने का
अवसर मिले तब जाने सही वस्तु स्थिति का.
सुन्दर हास्य रस 'दान' करने के लिए आपका आभार जी.
लग रहा है मानो,मन की बात छीन ली हो जैसे :D....
ReplyDeleteइस व्यंग्य का कोई न कोई हिस्सा सभीके जीवन को प्रभावित करता है....
बहुत सुन्दर व्याख्या....
Very well written.
ReplyDeleteVinnie
मस्त है
ReplyDelete