दूसरों के धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होना मुझे हमेशा अच्छा लगता है , मेरा प्रयत्न रहता है कि वहां उनके अनुष्ठानों के प्रति पूरा सम्मान भी, भाग लेने पर ,ईमानदारी के साथ व्यक्त किया जाए !
अधिकतर ऐसे पूजा आयोजनों में दुखी और कष्टों में सताए लोग उपस्थित होते हैं जो अपने ईश के प्रति सम्मोहन युक्त श्रद्धा के साथ, वहां हिस्सा लेते देखे जाते हैं ! ईश आराधना में तल्लीनता इतनी होती है कि वे अक्सर अपने आपको परमहंस अवस्था में पाते हैं ! गुरु ( पथ प्रदर्शक) के सामने, गहरे ध्यान में, भाव विह्वल, आंसू बहाते यह लोग, सामान्य एवं कमजोर लोगों पर निस्संदेह, गहरा चमत्कारिक प्रभाव छोड़ते हैं !
यह मानवीय तन्मयता और भाव विह्वलता प्रसंशनीय होती है , इस स्थिति को प्राप्त करने वाले, अक्सर अपने आपको पारिवारिक मोहमाया से मुक्त महसूस करते हैं और शनैः शनैः घर परिवार की जिम्मेवारियों से कट कर, अपने आपको पंथ मार्ग में प्रवाहित पाते हैं !
गुरु और धर्म प्रचारक वहां बैठे लोगों को उत्प्रेरित करने के लिए, लोगों से गवाहियाँ और दुहाईयाँ दिलवाते हैं कि गुरु पूजा और उनके सानिंध्य में उन्हें कैसे भयानक बीमारियों से मुक्ति मिली ! गुरु की सम्मोहक आवाज और हर वाक्य समाप्ति के साथ मिलती समर्थन ध्वनि , वहां के वातावरण को सम्मोहित बनाने में कामयाब रहती है !
मेरे जैसे पूर्ण वयस्क बच्चों के पिता और पारिवारिक माया मोह में पड़े व्यक्ति (व्रह्म राक्षसी योनि ) के लिए, जहाँ यह भयावह :-) थी, वहीँ गुरु प्रभावित लोगों के लिए, उनके द्वारा किये गए ईश आवाहन से मानसिक, शारीरिक कष्टों से मिली मुक्ति, इस विश्वास को और गहरा करने में कामयाब थी !
शायद यह श्रद्धा और विश्वास, मानव जीवन सुरक्षा के लिए बहुत आवश्यक है....
श्रद्धा और विश्वास आवश्यक है, अंधविश्वास नहीं।
ReplyDeleteभाई जी ,नमस्कार !
ReplyDeleteआजकल किस पर श्रदा करें और किस पर विश्वास ...ये जानना भी, मानव जीवन सुरक्षा के लिए बहुत आवश्यक है..न ???
आभार और शुभकामनाएँ!
मुख्य समस्या यही है ...
Deleteअपनी अपनी श्रद्धा और अपने अपने विश्वास......
ReplyDeleteस्वयं से पहचान के लिए भी आवश्यक है..सुन्दर आलेख..
ReplyDeleteश्रद्धा और विश्वास से ही व्यक्ति व्याधियों के पार जाता है।
ReplyDeleteबिलकुल !
Deleteफेथ हीलिंग से भी लाखो लोग लाभान्वित होते हैं मगर इसकी आड़ में धोखेबाजों ने अपनी जमात खड़ी कर ली है !
शायद यह श्रद्धा और विश्वास, मानव जीवन सुरक्षा के लिए बहुत आवश्यक है....
ReplyDeleteश्रद्धा और विश्वास पर बहुत सुंदर आलेख .....सही लिखा है आपने ..जैसे मन में भाव हैं वही हमें दृष्टिगोचर होता है ....
एक अंग्रेज़ी कहावत है बड़े भाई, जिसे हमारे चैतन्य जी के नाना जी ने अपनी फिल्म में इस्तेमाल किया था. आज बस वही कहूँगा:
ReplyDelete/
For those who believe, no explanation is NECESSARY.
For those who don't believe, no explanation is SUFFICIENT.
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आस्थाएं होती ही मान लेने के लिए हैं!!
बेहद सार्थक लेखन सर..
ReplyDeleteविश्वास हमे साहस देता है..और अंधविश्वास कायर बना देता है..
सादर.
manav jeevan me shradhdha vishvaas to hona chahiye parantu andhvishvaas kabhi nahi hona chahiye aur main mahsoos karti hoon ki padhe likhe samaaj me bhi andhvishvaas bahut teji se cyaapt hota hai tabhi to ek ek sant ke peeche kai hajaar shradhaalu hote hain bina soche samjhe bhed ki chaal ki tarah.
ReplyDeleteसतीश जी,...यह श्रद्धा और विश्वास, ही मानव जीवन में धार्मिक अनुष्ठान करने या शामिल होने की प्रेरणा देते है,...सुंदर आलेख...
ReplyDeleteश्रद्धा और विश्वास हो तो सब ठीक है ॥पर जहां तर्क आ जाता है तो विश्वास डांवाडोल हो उठता है ...
ReplyDeleteगुरु शब्द आजकल बड़ा निंदनीय हो गया है
ReplyDeleteसद्गुरु वही है जो अपने सम्मोहन से किसी को प्रभावित नहीं करता
बल्कि हर सम्मोहन को तोड़ता है !
कम ही विश्वास लायक हैं ...
Deleteश्रद्धा में शक्ति तो होती है, वास्तव में ऐसे आयोजनों में मानसिक तौर पर आदमी खुद को शांत महसूस करता है और यही खुद की शक्ति उसे स्वस्थ और खुशी प्रदान करने में सक्षम है।
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
मैने आजतक गुरू या प्रवंचन के दर्शन नहीं किए तो कह नहीं सकता की क्या प्रतिकिया हो सकती है :)
ReplyDeleteइन धार्मिक अनुष्ठानों में सिर्फ दुखी और सताए हुए लोग ही जाते हैं , यह पूर्णतया सही नहीं लगता . ये अनुष्ठान आजकल सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक भी बन गए हैं . इसलिए हु इज हूँ भी नज़र आते हैं . यहाँ श्रद्धा और विश्वास कम और एक ज़रुरत ज्यादा होती है .
ReplyDeleteइसी श्रद्धा का नाजायज़ फायदा ये धर्म गुरु भी उठाते हैं .
अफ़सोस इस अंध विश्वास की दौड़ में टी वी चैनल्स भी पूरा योगदान दे रहे हैं .
ऐसे पूजा आयोजनों में दुखी और कष्टों में सताए लोग इसलिए अधिक होते है कि सुखी लोगों को आध्यात्म और भक्ति की याद ही नहीं आती। बिनसताए लोगों को शान्ति की तलाश नहीं होती, शोषक वर्ग तो ऐसे आयोजनों में दान-चंदा आदि देकर और कीर्ती प्राप्त करके चैन की निंद सोता है।
ReplyDeleteधूर्तों और पाखण्डियों के आयोजन छोड दें तो बचे सत्संग तनावों से जोरदार मुक्ति दिलाने में समर्थ होते है इन्हें मानसिक थैरेपी की तरह लिया जा सकता है। जो बेशक कार्य करती है।
@ सुज्ञ जी
Deleteवाकई सत्संग लाभदायक हैं , जिस सत्संग में मैंने भाग लिया था उन विदुषी ने किसी भी प्रकार का धन अथवा दान लेना स्वीकार नहीं किया ...
अफ़सोस है कि ऐसे लोग दुर्लभ हैं !
रद्धा और विश्वास जीवन के लिए सचमुच आवश्यक है लेकिन अंधविश्वास का स्थान नहीं होना चाहिए...
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति...
सादर.
अपना अपना विशवास है .. मानों तो भगवान नहीं तो पत्थर वाली बात है ... जिसने चमकना है वो चमकेगा ही ...
ReplyDeleteआस्था और तर्क का आंकड़ा ३६ का है. इसलिए जिनकी आस्था है या जिनकी नहीं है दोनों का ही कल्याण हो.
ReplyDeleteकिसी के प्रति सम्मान या श्रद्धा प्रकट करना दिखावे से अधिक उसके आदर्शों पर चलना होता है.
ReplyDeleteआजकल तो कई बाबा मीडिया के द्वारा अपनी 'दूकान' चला रहे हैं और श्रद्धा,सम्मान,आस्था की गवाहियाँ उनकी उपलब्धियां बयाँ करती हैं.पहले बड़े यज्ञ वगैरह अनुष्ठान होते थे,जिनमें दिखावा नाहीं के बराबर होता था.अब तो ईश्वर की ओट में खुद को स्थापित किये जाने का चलन है !
भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्हें आस्था का यह आयाम सहज ही सुलभ हो जाता है !
ReplyDeleteआस्था तो आस्था है - न तर्क , न व्याख्या
ReplyDeleteकितने सारे पहलू हैं हर एक बात के - a diamond has innumerable facets ......
ReplyDeleteकहीं रेगिस्तान में कोई प्यासा भटक जाए, तो हवा भी पानी दिखने लगती है , मृगतृष्णा के पीछे दौड़ते हुए गिर जाता है तपते रेगिस्तान में कहीं | और कोई गंगा के किनारे रहता हो, उसे पानी का भी कोई मोल नहीं लगता :) | जो दर्द में है , उसे गुरूजी न्यारे लगते हैं , और जो जागा हो उसे - क्या कहूं .........
सही कहा! डूबते को तिनके में भी सहारा दिखता है, जिसका हाथी खोया है वह उसे कुल्हड़ में भी ढूंढता है।
Deleteबढ़िया विषय दिया आपने ...
Deleteगुरु से बड़ा कौन है बशर्ते हम पहचान सकें !
श्रद्धा और विश्वास, बहुत आवश्यक है........
ReplyDeleteश्रद्धा और विश्वास, स्वयं पर भी और ईश्वर पर भी..
ReplyDeleteशायद स्वयं पर विश्वास पहले जरूरी है ...
Delete"श्रद्धा और विश्वास" ये दोनों अति आवश्यक है चाहे अपने आराध्यों में हो या अपने बुजुर्गों,गुरुजनों में !!
ReplyDeleteदिगंबर जी बात से सहमत हूँ अपनी-अपनी श्रद्धा और अपने-अपने विश्वास वाली बात है। सार्थक आलेख...शुभकामनायें
ReplyDeleteअपना अपना विशवास है
ReplyDeleteसुंदर आलेख...
लगभग सभी कमेंट्स से सहमत :)
ReplyDeleteश्रद्धा और विश्वास सकारात्मक भाव हैं और जिनके अंदर ये भाव हैं, वे भी स्तुत्य हैं।
बहुत ख़ूब.
ReplyDeleteगहन सोच है ......पहले तो दूसरे लोगों के से क्या आशय था आपका ? ये समझ नहीं आया....... क्या कोई दूसरा भी है सब एक ही नहीं है ।
ReplyDeleteबाकी देवेन्द्र जी और मोनिका जी से सहमत हूँ.....श्रद्धा और विश्वास अच्छा है पर अन्धविश्वास नहीं......आपको जहाँ भी शांति मिल जाये वही विश्वास जमने लगता है.....सत्य तो पाना पड़ता है.....दान में दीक्षा में नहीं मिलता।
अति सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteअति सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteशायद यह श्रद्धा और विश्वास, मानव जीवन सुरक्षा के लिए बहुत आवश्यक है....
ReplyDeleteRead more: http://satish-saxena.blogspot.com/2012/02/blog-post_21.html#ixzz0er7OcKf9
चिंतन परक पोस्ट .अच्छी जिरह भी चल रही है संदर्भित विषय पर .
विश्वास जरूरी है पर अंधविश्वास घातक।
ReplyDeleteअपनी श्रद्धा और अपने अपने विश्वास......सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपने सही कहा श्रध्दा और विश्वास ही जरूरी है इस भाव के लिये । जब मै मंदिरों के आस पास के गंदगी की बात लोगों से करती हूं तो एक बार किसी ने ने मुझ से कहा था आप में श्रध्दा कम है तभी आपको गंदगी दिखाई देती है और भगवान नही !!!!!
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