Friday, November 2, 2012

मौसम, बधाइयों और दिखावे का -सतीश सक्सेना

दिवाली, जन्मदिन और वर्षगांठों पर तोहफों की सौगात, अधिकतर लोगों के चेहरों पर, रौनक लाने में कामयाब रहती है ! मगर इन चमकीले बंद डिब्बों में मुझे, स्नेह और प्यार की जगह सिर्फ मजबूरी में खर्च किये गए श्रम और पैसे , की कडवाहट नज़र आती है ! पूरे वर्ष आपस में स्नेह और प्यार से न मिल पाने की कमी, त्योहारों पर बेमन खर्च किये गए, इन डिब्बों से, पूरी करने की कोशिश की जाती है !

भारतीय समाज की यह घटिया, मगर ताकतवर रस्में, हमारे समाज के चेहरे  पर एक कोढ़ हैं जो बाहर से नज़र नहीं आता मगर अन्दर ही अन्दर प्यार और स्नेह को खा जाता है !

एक समय था जब त्योहारों पर, अपने प्यारों के घर, हाथ के बने पकवान भिजवाए जाते थे उनमें प्यार की सुगंध बसी थी ! आज उन्हीं भेंटों को लेने के लिए बाज़ार जाने पर 500 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक के उपहार सजे रखे होते हैं और वे डिब्बे पूंछते हैं कि  बताइये कितने पैसे का प्यार चाहिए ?? जैसे सम्बन्ध वैसी गिफ्ट हाज़िर है ! बिस्कुट के डिब्बे से लेकर, पिस्ते की लौंज अथवा 600 रुपये (हूबहू बनारसी साडी)  से लेकर  लगभग 50000/= ( असली बनारसी ) हर रिश्ते के लिए  !
प्यार भेजने में आपकी मदद करने के लिए, प्यार के व्यापारी  हर समय तैयार हैं, आपकी मदद करने को !इन डिब्बों में अक्सर सब कुछ होता है , केवल नेह नहीं होता ! काश भेंट में भेजे गए, इन डिब्बों की जगह हाथ के बनाए गए ठन्डे परांठे होते तो कितना आनंद आता ... :)

इस वर्ष बेटे और बेटी के रिश्तों के ज़रिये, दो परिवार मिले हैं, मेरा प्रयास रहेगा कि इन दोनों घरों में दिखावे की भेंटे न भेजी जाएँ, न स्वीकार की जाए ! मेरा मानना है कि भेंट देने, लेने से, प्यार में कमी आती है , शिकवे शिकायते बढती हैं ! जीवन भर के यह रिश्ते अनमोल हैं, जब तक मन में प्यार की ललक न हो, पैसे खर्च कर इनका अपमान नहीं करना चाहिए !

इस पोस्ट का उद्देश्य उपहारों का विरोध  नहीं हैं , उपहार प्यार और स्नेह का प्रतीक हैं, जिनके ज़रिये, हम स्नेह और लगाव प्रदर्शित करते हैं , बशर्ते कि इन डिब्बों में विवशता और दिखावे की दुर्गन्ध न आये  !

आज सुदामा के चावल याद आ रहे हैं जिनके बदले में द्वारकाधीश ने, सर्वस्व देने का मन बना लिया था !वह प्यार अब क्यों नहीं दिखता  ?? 

74 comments:

  1. बेह्तरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  2. भेंट में भेजे गए, इन डिब्बों की जगह हाथ के बनाए गए ठन्डे परांठे होते तो कितना आनंद आता ... :)
    sach me sachhe bhaav ka mahatva hota hai mahange dikhawati "gift" ka nahi

    ReplyDelete
  3. प्यार भेजने में आपकी मदद करने के लिए, प्यार के व्यापारी हर समय तैयार हैं, आपकी मदद करने को !
    बहुत ही गडबड माहौल तैयार हो रहा है आज ..

    ReplyDelete
  4. छाया बाजारी-करण, चमक दमक का दौर ।

    ब्रांडेड मानव छा रहे, देशी पर नहिं गौर ।

    देशी पर नहिं गौर, रसोई हुई विदेशी ।

    गुझिया को नहीं ठौर, बेंचते बच्चन वेशी ।

    क्या बोलेंगे लोग, यही हमको बहकाया ।

    घटिया घर का माल, पड़े नहीं इसकी छाया ।

    ReplyDelete
  5. आप की बात सोलह आने सही है।

    ReplyDelete
  6. अब तो पैसे से उपहार और उपहार देनेवाले का आकलन होता है ... प्यार से दिया गया आशीष हर वस्तु से मूल्यवान था, है .... मानने ना मानने से कुछ नहीं होता

    ReplyDelete
  7. बिल्कुल सहमत हूँ...तोहफों का दिखावा नहीं, स्नेह की ज्योत दिखनी चाहिए|
    सभी त्योहारों की शुभकामनाएँ!!

    ReplyDelete
  8. Hats off to you Satish bhai for pathbreaking,noble thoughts aimed for a radical change in society.

    ReplyDelete
  9. सही आकलन किया है आज तो सब भौतिकता की भेंट चढ गया है।

    ReplyDelete
  10. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  11. पूरे वर्ष आपस में स्नेह और प्यार से न मिल पाने की कमी, त्योहारों पर बेमन खर्च किये गए, इन डिब्बों से, पूरी करने की कोशिश की जाती है !.......aur har taraf dikhawa, ekdam sahi sochte hain aap.....

    ReplyDelete
  12. तीज-त्योहारों का बाजारीकरण जो हो चुका है, तभी तो कहीं-कहीं पर ये गिफ्ट अथवा उपहार दिए नहीं जाते हैं बल्कि सर्कुलेट ( इधर -उधर ) किये जाते हैं, वरना साल में कम से कम एक बार तो दिल में ख्याल आता ही है की अपने कुछ खास लोगों को कुछ खास भेंट देकर यह अहसास कराया जाय की आप हमारे लिए कितने खास है........... ......ज्योति पर्व दीपावली से पूर्व इस खास पोस्ट हेतु आभार व्यक्त करता हूँ......

    ReplyDelete
  13. प्यार बने उपहार,
    मने उत्सव अब मन से,
    कर लो मन तैयार,
    नहीं धन से, बस धुन से।

    ReplyDelete
  14. उपहार प्यार और स्नेह का प्रतीक हैं, जिनके ज़रिये, हम स्नेह और लगाव प्रदर्शित करते हैं , बशर्ते कि इन डिब्बों में विवशता और दिखावे की दुर्गन्ध न आये !

    बिलकुल सही कहा है .... आज भावनाओं से ज्यादा कीमती उफार का प्रचालन बढ़ा है ... रिश्ते बस दिखावा मात्र रह गए हैं .... प्रेरक पोस्ट

    ReplyDelete
  15. अब मन और सोच भी वैसी ही होती जा रही है। प्यार क्या होता है ? इसके लिए गुजरे ज़माने में जाने की जरूरत महसूस होने लगी है। इन उपहारों के चलन ने ही नेह की कीमत इनके आगे कम कर दी . बिलकुल सच लिखा है। आभार !

    ReplyDelete
  16. भाई जी , आपके सुंदर विचारों से एकदम सहमत हूँ ...
    शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  17. अब मन और सोच भी वैसी ही होती जा रही है। प्यार क्या होता है ? इसके लिए गुजरे ज़माने में जाने की जरूरत महसूस होने लगी है। इन उपहारों के चलन ने ही नेह की कीमत इनके आगे कम कर दी . बिलकुल सच लिखा है। आभार !

    ReplyDelete
  18. Nice Post , thank you satish bhai !

    ReplyDelete
  19. आपकी बात वाकई विचारणीय है...

    ReplyDelete
  20. अमूर्त प्रेम की वस्‍तुओं में मूर्त होती अभिव्‍यक्ति.

    ReplyDelete
  21. एक सार्थक पहल पर मेरी ओर से शुभकामनायें स्वीकार करें !

    करवा का व्रत और एक विनती - ब्लॉग बुलेटिन पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप को करवा चौथ की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  22. बेहद विचारणीय सशक्त अभिव्यक्ति ...आभार

    ReplyDelete
  23. आज सुदामा के चावल याद आ रहे हैं जिनके बदले में द्वारकाधीश ने, सर्वस्व देने का मन बना लिया था !वह प्यार अब क्यों नहीं दिखता ??
    सर्वस्व देने वाला द्वारकाधीश आज भी मौजूद है सतीश जी,
    लेकिन इस दिखावे के व्यापार में महंगे महंगे तोहफों के लेनदेन में
    सुदामा विलुप्त हो गया है !
    अच्छी पोस्ट लिखी है आपने ..आज दिखावे के इस माहोल में यह बाते बहुत उपयोगी है जो आपने कही है
    आभार ...

    ReplyDelete
  24. बेहतरीन सोच !!! स्नेह किसी चमकीले डब्बे से नहीं आँका जा सकता वो अमूल्य होता है ...
    आदरणीय रश्मि जी ने सही कहा है -"पूरे वर्ष आपस में स्नेह और प्यार से न मिल पाने की कमी, त्योहारों पर बेमन खर्च किये गए, इन डिब्बों से, पूरी करने की कोशिश की जाती है !.......aur har taraf dikhawa, ekdam sahi sochte hain aap.....


    सादर

    ReplyDelete
  25. प्यार खुद अपने आप में एक उपहार है..... :)
    ~सादर !

    ReplyDelete
  26. आपकी कही बातों में बहुत दम है,,,,सतीश भाई ,,,
    विचारणीय सशक्त प्रस्तुति,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

    ReplyDelete
  27. विचारणीय पोस्ट...:-)
    मुझे तो ढ़ेर सारा आशीर्वाद लेना पसंद है....:-)
    :-)

    ReplyDelete
  28. कहाँ सुदामा आजकल,कहाँ किशन भगवान्।
    एक दूसरे के लिए ,कहाँ प्यार - सम्मान।।

    ReplyDelete
  29. दिखावे से तो हमें भी लगाव नहीं है. लेकिन कुछ रिश्तों में दिल से उपहार लेने देने में मज़ा भी बड़ा आता है. इसके लिए रिश्तों को पहचानना ज़रूरी है.

    ReplyDelete
  30. आपकी बात से सत प्रतिशत सहमत हूँ.
    सच कहते हो भाई. ३२ साल की बैंक की नौकरी में बहूत देखा. गिफ्ट के नाम पे क्या क्या होता है यह प्रोफेशनल और मजबूरी के गिफ्ट देख देख के घिन्न सी हो गई थी.

    लेकिन जब परिवार में बहिनों भतीजियो और भांजियों के यहाँ जाता हूँ तो गिफ्ट देना अच्छा लगता है. सकूं मिलता है.
    इस बहाने साल में दो बार मिल तो लेते हैं. राखी और दिवाली. बुजुर्गो का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं और बच्चो को आशीष दे देते हैं.

    सनेह सहित

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी बात से सहमत हूँ भाई जी ..

      Delete
  31. vyar aur vyapar aesa nahi hona chahiye
    aapne khoob likha hai
    rachana

    ReplyDelete
  32. सच कहते हो भाई.
    मुझे लगता है जब पिता बेटे को दिवाली की गिफ्ट या खर्ची देता है तो पापा को बहुत ख़ुशी मिलती है
    मैंने तो पापा से हर दिवाली पे गिफ्ट और खर्ची ज़रूर ली है और मुझे वोह गिफ्ट सबसे अच्हा लगता है
    और में इन गिफ्टो को अपने पापा से लेने में और अपनी बहन बेटियों को देने में बहूत अच्छा लगता है.
    क्या यह भी सच नहीं ???

    ReplyDelete
  33. उपहारों के व्यवसायीकरण ने भावनाओं को इतना दबा दिया है कि बस रंगीन डिब्बे और उनका वज़न ही दिखाई देता है.. खासकर दिल्ली में तो इसका और भी वीभत्स रूप देखा है मैंने..
    बहुत ही सामयिक पोस्ट बड़े भाई!! और जितनी संवेदनाओं की गहराई से आपने इसे बयान किया है, वो मैं महसूस कर सकता हूँ!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया सलिल भाई ...

      Delete
  34. आपके विचारों से एकदम सहमत । दिखावे के चलते असली प्यार की कीमत शून्य है आजकल ।

    ReplyDelete
  35. har jagah bhoutikta ne apni jade jama lee ...

    ReplyDelete
  36. वह प्यार अब क्यों नहीं दिखता ??

    बिल्कुल नहीं दिखता .....औपचरिकता और ज़रूरतों का खेल लगता है सब

    ReplyDelete
  37. बिल्कुल नहीं दिखता .....औपचरिकता और ज़रूरतों का खेल लगता है सब

    ReplyDelete
  38. उपहार अब उपहास हैं भावनाओं का

    ReplyDelete
  39. खूब पहचाना आपने खुशियों में लगते जा रहे घुन को ,
    इनसे छुटकारा पाकर ही त्यौहार असली प्रसन्नता दे पायेंगे !

    ReplyDelete
  40. बिलकुल खरी बात कही आपने.....हम तो आज भी "जो अपने हैं उन्हें" घर की,अपनी मेहनत से बनाई मिठाई भेंट करते हैं...अपने घर के स्टील के डिब्बे में...साथ ही डिब्बा खाली वापस न करना की हिदायत भी....
    :-)

    प्रेम से बढ़ कर क्या है भला...
    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  41. यह ठीक है कि प्यार और स्नेह को प्रकट करने के लिए उपहार दिए जाते हैं मगर कई बार यह लेनदेन भारी बोझा हो जाता है , देने और लेने वाले दोनों के लिए ...
    एक अच्छी पहल !

    ReplyDelete
  42. मुझे आपकी बातों से सहमति है। दिखावे के बीच स्नेह दबता चला गया है।

    ReplyDelete
  43. सहमत हूँ भाई जी !

    ...पाखंड है व्यवहार में,पाखंड है त्यौहार में !

    ReplyDelete
  44. आज सुदामा के चावल याद आ रहे हैं जिनके बदले में द्वारकाधीश ने, सर्वस्व देने का मन बना लिया था !वह प्यार अब क्यों नहीं दिखता ??

    ये दर्द मैं भी महसूस करता हूँ

    ReplyDelete
  45. मध्‍यवर्ग को बहुत बड़ी चुनौती है ...एक तरफ भौति‍कता तो दूसरी तरफ मूल्‍य ... न यहां न वहां

    ReplyDelete
  46. प्यार कहाँ छिप गया ,
    आधुनिकता की दौड़ में ,
    अब तो जन्मदिन की बधाई भी ,
    फेसबुक पे मिलती है |
    बहुत सही बात कही आपने |

    सादर

    ReplyDelete
  47. सच कहा आपने, आज पर्व और त्यौहारों के मायने बदलते जा रहे हैं।
    बिल्कुल अगर सुदामा के चावल लोगों के जेहन में तो भी कुछ बदलाव संभव है।

    बहुत सुंदर
    आभार

    ReplyDelete
  48. आज सुदामा के चावल याद आ रहे हैं जिनके बदले में द्वारकाधीश ने, सर्वस्व देने का मन बना लिया था !वह प्यार अब क्यों नहीं दिखता ??


    क्योंकि प्यार की जगह दिखावे ने ले ली है ...आज की आपाधापी ने अपनों को अपनों से दूर कर दिया है .....वक्त ना होने का बहाना सबसे कारगर है ......और इसके बाद किसी के पास कोई शब्द नहीं रह जाते ....

    भाई जी आज आपकी पोस्ट पढ़ कर सच में लगा कि क्या हम अपनों से सच में इतने दूर हो गए हैं ??????

    ReplyDelete
  49. सार्थक विचार
    सब व्यापार है

    ReplyDelete
  50. आपने तो उपहार का उपसंहार कर दिया। आपके विचारों से एक सौ एक प्रतिशत सहमत।

    ReplyDelete
  51. waqt ne kiya kya hassen sitam -
    hum rahe na hum -
    tum rahe na tum
    No doubt this is a social evil, but who has created?
    we all are responsible for all these mis happenings.
    A persons spends crores of rupees on the marriage of his son/daughter, and
    a daughter remains un-married due to dowry.
    Munshi Premchand's Nirmala - is not self explanatory

    Sorry for the inconvenient post

    With warm regards

    ReplyDelete
    Replies
    1. You are right Moti sir !
      we all are responsible for this social downfall, thanks for valuable comment.
      regards

      Delete
  52. आपके विचारों से मैं भी पूर्णतया सहमत हूँ. आजकल तो उपहार का साइज़ और मूल्य भी महत्वपूर्ण हो गया है.

    ReplyDelete
  53. ब्रिटानिया गुड डे का एड है काजू पड़ा है तो दिखना चाहिए है...उसी तरह प्यार तो छलकना चाहिए...अब गिफ्ट की कीमत से ही प्यार का हिसाब लगाया जाता है...तनिष्क वाले भी घर वालों को लड़ा के रहेंगे...

    ReplyDelete
  54. मेरा कमेन्ट गायब हो गया सर!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आ गया :)
      याद दिलाने के लिए आभार !

      Delete
  55. बहुत सही कहा है...आज उपहार प्रेम का प्रतीक न रह कर हैसियत का दिखावा बन कर रह गया है...काश हम पीछे लौट पाते..

    ReplyDelete
  56. सच कहा आपने। अब डिब्बाबंद औपचारिकताएं ज्यादा हैं। खासकर दिवाली के त्योहार को तो लोगों ने वैभव के प्रदर्शन का त्योहार बना दिया है।

    ReplyDelete
  57. SHAT PRATISHAT SAHMAT HOON AAPSE...
    SAB DIKHAWA HAI ..PYAAR KAHAAN ?

    ReplyDelete
  58. इतनी अच्छी सोच की कौन भला तारीफ नहीं करेगा! हाँ, उन्हें झटका लग सकता है जो आपसे उपहार की उम्मीद लगाये बैठे थे। :)

    सुंदर अपील करती पोस्ट है। भौतिकता का दिखावा चरम पर है। ऐसे में उन लोगों के लिए दिवाली आफत बनकर आती है जो रोजमर्रा के खर्चों से ही तबाह रहते हैं।

    ReplyDelete
  59. "भेंट देने, लेने से, प्यार में कमी आती है , शिकवे शिकायते बढती हैं !"
    सच है , क्योंकि ढंग का तोहफ़ा देने वाला अपने घर अवसर आने पर वापिस ढंग के तोहफ़े की ही उम्मीद में रहेगा ।
    :)

    तोहफों का दिखावा नहीं होना चाहिए ,
    औपचारिकताएं अपनत्व नहीं बढ़ा सकती …

    अच्छी पोस्ट !

    ReplyDelete
  60. विचारणीय पोस्ट... सही बात तो यह है कि आजकल निश्चल और सच्चा प्रेम रह ही कहा गया है ॥ सब कुछ तो दिखावा है... चंद लोग ही मिलेंगे जो भावनाओ और प्रेम कि कदर करते होंगे ...

    ReplyDelete
  61. जितना पैसा हम दिखावे में बर्बाद करते हैं उससे किसी गरीब के घर में ख़ुशी के दीप जल सकते हैं यही सबसे बड़ी दिवाली होगी सच में ये दिखावटी प्रेम के लेन देन दिलों में और दूरी पैदा कर देते हैं सबसे पहले तो गिफ्ट की कीमत आंकते हैं फिर कोई प्रतिक्रिया देते हैं बहुत अच्छा आलेख लिखा आपको सपरिवार दिवाली की हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  62. जितना पैसा हम दिखावे में बर्बाद करते हैं उससे किसी गरीब के घर में ख़ुशी के दीप जल सकते हैं यही सबसे बड़ी दिवाली होगी सच में ये दिखावटी प्रेम के लेन देन दिलों में और दूरी पैदा कर देते हैं सबसे पहले तो गिफ्ट की कीमत आंकते हैं फिर कोई प्रतिक्रिया देते हैं बहुत अच्छा आलेख लिखा आपको सपरिवार दिवाली की हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  63. सच कह रहे हैं..आजकल सिर्फ दिखावा ही रह गया है..उपहारों के ज़रिए बडप्पन दर्शाना का सिलसिला.अधिकतर बस औपचारिकताएं रह गई हैं .

    दीपोत्सव पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  64. वाह यह चार्ज देने लेने की परंपरा बहुत अछ्छी लगी । बेटी की विदाई मुश्किल है पर बेटी की खुशी भी तो देखनी है । ऐसे ही विदा लेती बेटी के मन के भाव मेरे ब्लॉग पर पढ सकते हैं .

    ReplyDelete
  65. इन डिब्बों की जगह हाथ के बनाए गए ठन्डे परांठे होते तो कितना आनंद आता ... :)

    ठन्डे परांठे hai ya khatam ho gaye..aaj bhee kuch log ठन्डे परांठे bade man se khate hai...


    jai baba banaras...

    ReplyDelete
  66. bilkul satya,shandar bat.....

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,