Monday, January 11, 2016

सहज रहने नहीं देगी, तेरी मौजूदगी मुझको - सतीश सक्सेना

भरी आँखें रुलायेंगी तेरी,  ताजिन्दगी मुझको ,
तुम्हारी याद के संग आयेगी शर्मिंदगी मुझको !

हमें अरसा हुआ दुनियां के मेलों में नहीं जाते 
सहज रहने नहीं देगी, तेरी मौजूदगी मुझको !

न मिलने की तमन्ना शेष न दीदार की ख्वाहिश
बहुत तकलीफ ही देगी,तुम्हारी बंदगी मुझको !

जमाने भर से लड़ने में कभी नज़रें न नीची कीं   
कहीं मज़बूर न कर दे, तेरी बेपर्दगी  मुझको !

खुदा के सहज बन्दे को, दिखावे ही नहीं आते, 
न जाने क्यों लगे अच्छी मेरी आवारगी मुझको !

15 comments:

  1. किरण आर्य जी ने आज से ब्लॉग बुलेटिन पर अपनी पारी की शुरुआत की है ... पढ़ें उन के द्वारा तैयार की गई ...
    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "मन की बात के साथ नया आगाज" , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. वाह एक और नायाब कृति ।

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  3. खुदा के सहज बन्दे को, दिखावे ही नहीं आते,
    न जाने क्यों लगे अच्छी मेरी आवारगी मुझको !
    एक से एक सभी नायाब शेर !

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  4. जमाने भर से लड़ने में कभी नज़रें न नीची कीं
    कहीं मज़बूर न कर दे, तेरी बेपर्दगी मुझको !
    वाह! वाह!
    सतीश जी ,बहुत बढ़िया लगी यह रचना आपकी.

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  5. जमाने भर से लड़ने में कभी नज़रें न नीची कीं
    कहीं मज़बूर न कर दे, तेरी बेपर्दगी मुझको !
    वाह वाह बहुत शानदार प्रस्तुति दिली दाद हाजिर है

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  6. हमें अरसा हुआ दुनियां के मेलों में नहीं जाते
    सहज रहने नहीं देगी, तेरी मौजूदगी मुझको !
    ..वाह! बहुत सुन्दर ...

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  7. अद्भुत भाव के साथ सुन्दर रचना है आपकी ,जहाँ हर पंक्तियाँ अनेकों अर्थ दे रही है।

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  8. This comment has been removed by the author.

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    Replies
    1. बेहद खूबसूरत रचना ।

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    2. बहुत सुंदर रचना ।

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  9. सादगी भरी आवारगी, हम तो तरस गये।

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  10. खूबसूरत ग़ज़ल । लेकिन याद के साथ शर्मिंदगी भला क्यों ?

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- सतीश सक्सेना

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