Tuesday, February 11, 2020

शायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं -सतीश सक्सेना

काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
शायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं !

पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !

रजवाड़ों से,आत्मकथाओं के बदले 
डॉक्ट्रेट , मालिश पुराण में पाये हैं !

पूंछ हिलायी लेट लेट के,तब जाकर 
कितने जोकर, पद्म श्री कहलाये हैं !

अदब, मान मर्यादा जाने कहाँ गयी,
ग़ज़ल मंच पर,लहरा लहरा गाये हैं !
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