Saturday, January 23, 2010

दिखावे की हमारी दुनियाँ में, धीरे धीरे दम तोड़ते ये लेखक और कलाकार !!


शानदार लेखनी के धनी, शहरोज के  एक मार्मिक लेख   "जिंदादिल इंसान और उम्दा लेख़क का जाना " ने आज सुबह सुबह हिला कर रख दिया , बहुत दिनों के बाद फिर एक मार्मिक विषय मिला  कुछ कहने के लिए ! हम लोगों के लिए , समाज के लिए, बेहतर सृजन करते ये कलाकार और लेख़क ,आर्थिक अभाव में अक्सर बेहद कमज़ोर  होते हैं ! शानदार सोच और महान विचारक, ये लोग अक्सर  मुफलिसी, भुकमरी और गरीबी न झेल पाने के कारण, असमय दम तोड़ते देखे जा सकते हैं और हम लोग ,इस महान देश के  अच्छे नागरिक , इन्हें अपनी श्रद्धांजलि  अर्पित कर अपने कर्त्तव्य की  इतिश्री कर लेते हैं !


शहरोज की डायरी में वर्णित यह घटना बरसों पुरानी है , मगर वर्षों बाद आज भी  लेख़क,प्रकाशन वर्ग से जुड़े लोगों की  स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि स्थिति बद से बदतर होती जा रही है ! असंगठित वर्ग  की सुधि लेने के लिए सरकार अथवा समाज ने कुछ  नहीं किया  ! दुनिया और समाज की आँखें खोलने में लगे,  इन लोगों की निजी जिन्दगी बेहद कष्टदायक है ,और हम समर्थवान लोगों का मामूली सहयोग भी इनके बच्चों की आँखों में सुनहरे सपने पैदा कर सकता है ! 


यहाँ लेख़क और पाठकों में  एक से एक दिग्गज मौजूद हैं , जिनकी एक मामूली पहल से इन मुसीबतज़दा लोगों को राहत मिल सकती है ! मगर वास्तविक पहल कोई नहीं करता ...बिलकुल सच है कि...
"साहिल के तमाशाई  ! हर  डूबने  वाले पर ,
अफ़सोस तो करते हैं ,इमदाद नहीं  करते !!"


मगर शहरोज भाई ! उम्मीद ना छोड़ें , आज नहीं तो कल वह  समय भी आएगा जब लोग पछतायेंगे अपने निकम्मे पन पर , खुदा के घर देर है अंधेर नहीं है !!  

15 comments:

  1. आत्महत्या के विरुद्ध संघर्ष !!! यकीनन लोग कर रहे हैं.और हम टेसुए जब बहाते हैं, जब पानी बहुत बह चुका होता है, और इस बाढ़ में बहा चुका होता है.आप जैसे लोग भी हैं, जो आश्वस्त करते हैं.
    वरना तो यही कैफियत रहती है,
    पहले उम्मीद प जीते थे
    अब जीने की भी उम्मीद नहीं!

    लेकिन आशाएं और विश्वास हमें ऊर्जा से सराबोर कर देती हैं,जब आप जैसे लोग हम जैसे लोगों को मिलते हैं.

    बजा कहा ,
    धीरे-धीरे समाज बदलेगा, जो न बदला वो आज बदलेगा

    shahroz

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  2. आज के इस दुनिया में हर क्षेत्र में या तो अमीर और प्रभावशाली .. नहीं तो व्‍यवसायिक योग्‍यता रखने वालों की पूछ है .. चाहे उसके पास क्षेत्र विशेष से संबंधित योग्‍यता हो न हो .. किसी भी क्षेत्र की योग्‍यता रखनेवाले हाशिए पर खडे अपनी रोजी रोटी तक की व्‍यवस्‍था करने में असमर्थ हैं .. सुविधाभोगी संस्‍कृति में ये होना ही है .. और इस संस्‍कृति तो अभी शुरूआत है .. आनेवाले समय में और न जाने क्‍या क्‍या हो !!

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  3. शहरोज़ साहब सच में अलग हैं..... उनकी लेखनी को नमन....

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  4. शहरोज़ साहब सच में अलग हैं..... उनकी लेखनी को नमन....

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  5. यह तो बिलकुल सही कहा,आपने...पता नहीं हिंदी में लिखने वालो के साथ ऐसा क्यूँ है.??....जबकि ज्यादा प्रतिशत हिंदी पढने वालों का ही है...ये इतना उम्दा लिखने वाले, मुफलिसी में ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं...और उनका लिखा पढ़कर कितने लोग लाभान्वित होते हैं.
    कम से कम अपनी बिरादरी वालों की तो सहायता करनी ही चाहिए...बाद में घडियाली आंसू बहाने से क्या फायदा...फिर भी यही कहूँगी...हौसला नहीं खोना चाहिए..

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  6. सही कहा अपने, उम्मीद पर हे दुनिया कायम है ! वक्त जरूर आयेगा, बस अफ़सोस यही है कि कब आता है ये पता नहीं !

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  7. शहरोज़ साहब की इज्जत है मेरे दिल मै, बहुत उम्दा लिखते है, वो वक्त आये या न आये, लेकिन हमे हमेशा अपने हालात से लडते रहना चाहिये, हालात ओर अपने ऊपर हावी मत होने दो, जेसे भी हालात हो उन पर हावी हो जाओ,फ़िर देखो जिनद्गी हर हाल मै कितनी हसीन लगती है, आत्महत्या कोई रास्ता नही... यह तो सिद्ध करती है की हम हालात से हार गये.... नही हमे तो हर हालात मै जीतना है बस

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  8. बिल्कुल सही कहा आपने, स्थिति तो यही है. और बस उम्मीद ही की जा सकती है. शायद कभी तो हालात बदलेंगे. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  9. सतीश जी /कभी उपन्यासकार संजीव द्वारा श्री राजेन्द्र यादब को लिखे पत्र पढने का मौका मिले तो पढियेगा ।दिसम्बर ०९ की पाखी पत्रिका मे मैने यही तो कहा है कि लेखक अर्थ अभाव से पीडित और प्रकाशकों से शोषित होता है । लेखक शिवमूर्ति जी ने लिखा था कि रेणु का परिवार केवल लेखक होने का मूल्य चुका रहा है ,संजीव के परिवार ने भी लेखक होने का मूल्य कमोवेश चुकाया ही है

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  10. आपका कहना सही है ...... कोई ख़ास परिवतन नही आया है ....... बस आशा है जिसका दामन नही छोड़ना चाहिए .....

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  11. यह समस्या तब तक बनी रहेगी जब तक हिंदी का जुड़ाव पेट से नहीं होगा. आज भी बहुत से अच्छे लेखक हैं जो मुफलिसी की जिंदगी जी रहे हैं. सिर्फ लेखन से उन्हें इतना पैसा भी नहीं मिलता की वे अच्छी किताबें खरीद सकें.
    "जिंदादिल इंसान और उम्दा लेख़क का जाना "..पढ़ा और पढकर मन दुखी हो गया.

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  12. खुदा के घर देर है अंधेर नहीं है...
    " उसी दिन का इन्तजार है .......मन उदास हुआ कुछ , ऐसा लगता है कितनी दुखद स्थिति है....."
    regards

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  13. सतीश जी ।मैने १९ दिसम्बर घर से बहुत दूर पोस्ट पढी ,और २३ जनवरी दिखावे की हमारी दुनिया पोस्ट पढी किन्तु ९ जनवरी वाली इस तरफ़ आदमी वाली पोस्ट पर सिर्फ़ शीर्षक पढने मे आ रहा है और चित्र दिखाई दे रहे है किन्तु जो लाइने लिखी हुई है वहा ........... ऐसे बिन्दु दिखाई दे रहे है ऐसा मेरे साथ अन्य ब्लोग पर भी हो रहा है इस बजह से कई ब्लोग तो पढ पाता हूं और कई नही पढ पाता

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  14. हां बहुत शानदार लिखा है शहरोज़ साहब ने. आभार.

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  15. आपकी बात अक्षरशः सत्य है..
    नीरज

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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