
जहां बेहद कम ऑक्सीजन के कारण 10 सीढ़ियां चढ़ने में सांस फूलती हो वहां 14250 फुट ऊंचाई पर स्थित पेंगोंग लेक के किनारे दौड़ने का प्रयत्न करना और वह भी 63 वर्ष की उम्र में , तारीफ का काम है न ? सो तारीफ करिए पर्यटकों के मध्य मैंने यह प्रयत्न ही नहीं किया बल्कि 1km से अधिक भागने में सफलता भी प्राप्त की यह और बात है कि मुझे तीन बार उखड़ी सांस व्यवस्थित करने में वाक भी करना पड़ा !

अक्सर लोग लेक किनारे टेंट पर रात को रुकना पसंद करते हैं यहां के शांत वातावरण में स्वर्गिक आनंद महसूस
होता है ! आश्चर्य की बात है कि यह स्वच्छ जल , मीठा। न होकर नमकीन है क्योंकि 130 km लंबी झील चारो ओर से लैंड लॉक्ड है ।
बहरहाल लेह में आकर पहली बार हिमालयन डेजर्ट को महसूस करना ही अपने आप में उपलब्धि है ! शेष कल ..