Saturday, April 7, 2018

हेल्थ ब्लंडर 4 -सतीश सक्सेना


उम्र बढ़ने के साथ कमजोर होती शक्ति का अहसास सबसे पहले तब हुआ जब कुकिंग गैस के खाली सिलेंडर को उठाने में राइट हैंड बाइसेप्स टूट कर दो इंच नीचे लटक गया था ! पहली बार 50 वर्ष की उम्र में महसूस हुआ था कि अब मैं जवान नहीं रहा
और इस विषय पर सोंचना शुरू किया था ! उस वक्त बॉडी में स्टेमिना 70 वर्ष वाला था , हृदय पर बढ़ता दवाब पहली मंजिल की सीढियाँ चढ़ते ही पता चल जाता था !

मुझे विश्वास था कि मानवीय शरीर बेहद मजबूत बनाया गया है बेहद लापरवाह इंसान हो या भयंकर शराबी , तब भी शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति उस इंसान को 50 वर्ष तक ज़िंदा रखे रहती है मुझे इस बात का विश्वास शुरू से था सो मैंने अपने शरीर को नए सिरे से पुनर्जीवन देने का मन बनाना, पूरे विश्वास के साथ शुरू किया !

शुरुआत में आधा घंटा वाक करना बेहद मुश्किल लगता था , आलस के कारण बिस्तर छोड़ते छोड़ते ही देर हो जाती थी और वाक करते समय मन करता था कि कोई साथ होता तो बातें करते करते, वाक का समय, जैसे तैसे कट जाता ! पूरे पार्क में अक्सर पुरुष महिलाएं इसी मनोवृत्ति को लिए खूब तन्मयता से बतियाते, खुद को स्वस्थ रखने की ग़लतफ़हमी पाले, यह नित्य की ड्यूटी पूरा करते थे !

मैंने फैसला किया था कि कायाकल्प करने के लिए बेहद मजबूत इच्छा शक्ति चाहिए और इस संकल्प में कोई व्यवधान नहीं हो सो अकेले बिना किसी साथ के करना होगा ! मजबूत मन के साथ जो संकल्प लिए वे निम्न थे !

- शुगर किसी भी रूप में न लेना
-रात का भोजन सोने से 3 घंटे पूर्व खाना और दिन भर में खूब पानी पीना
- हर हाल में 6-7 घंटे घंटे नींद लेना
-वाक-रन-वाक- रन का तरीका अख्तियार करते हुए बिना हांफे धीरे धीरे
दौड़ कर साँसों पर कण्ट्रोल करना !

पहले 10 दिन में ही काफ मसल्स और हाथों में दर्द होने लगा था जबकि मैं जिस दिन अधिक मेहनत करता उसके अगले दिन पूरा रेस्ट करता था जिससे थकी मांसपेशियों को आराम मिल सके और वे नयी ताकत के साथ, दौड़ने में साथ दें !
धैर्य और विश्वास जीतने का आधार है कायाकल्प करने के लिए ! शुरुआत के लड़खड़ाते बेबी स्टेप्स अब मजबूत लगने लगे थे और निस्संदेह वे अधिक दूरी तय कर रहे थे इनकी मजबूती में सबसे बड़ी बाधा अपना खुद का मन था जो बेहद आलसी और कामचोर था , जब भी पसीने में तर शरीर को रुकने को कहता मैं खुद को गालियां देता और कहता हार्ट अटैक से मरने से कहीं बेहतर दौड़ते हुए मरना होगा और उन्ही दिनों CoachRavinder Singh जो कि एनसीआर के मशहूर रनिंग आर्गेनाइजर हैं, के द्वारा मुझे 2015 वर्ष के लिए रुकी रनर का पुरस्कार व ट्रॉफी भेंट की गयी ! वह पुरस्कार, मुझे जबरदस्त भरोसा देने में सहायक रहा कि सतीश तुम इस उम्र में कर पा रहे हो और तुम कर लोगे !

उन दिनों यह रचना लिखी थी, इसे गुनगुनाता था दौड़ते हुए !

साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !


दर्द सारे ही भुलाकर,हिमालय से हृदय में
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जाति,धर्म,प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से हृदय में
प्रज्वलित संकल्प लेकर धीमे धीमे दौड़िये !

समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
दूरियों को नमन कर के, धीमे धीमे दौड़िये !

2 comments:

  1. आपका ये विश्वास दूसरों को भी इसी तरह से प्रेरित करता रहे। शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  2. धीरे धीरे दोड़ते हुए भी आपने जो मुक़ाम हांसिल किया है उसे पाना आसान नहि है ... जागरूक करती हुयी आपकी पोस्ट कमाल है ...

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,