Monday, July 12, 2021

नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये -सतीश सक्सेना

आज सुबह पांच बजे मैं गाडी लेकर DND toll पर पहुँच गया था , बढ़िया मौसम मगर आद्रता 90 प्रतिशत , गाडी एक साइड पार्क कर, रिंग रोड तक जाकर बापस लौटने का (लगभग 8 Km )
मन बनाया और थोड़ी स्ट्रेचिंग के बाद , गहरी गहरी साँस लेकर, बेहद सहज मन से दौड़ना शुरू किया ! आज का संकल्प था कि सहज मन से ही दौड़ना है , न दूरी की चिंता और न समय की , खाली सड़क के किनारे किनारे, पेट के बढे हुए एक टायर पर विचारों को केंद्रित करते हुए कि इस सप्ताह इससे मुक्ति पानी ही है, दौड़ते दौड़ते कब यमुना ब्रिज आ गया पता ही नहीं चला , दिल्ली पुलिस पीसीआर के हैडकांस्टेबल द्वारा गुड मॉर्निंग सर का जवाब देते हुए अच्छा लगा ! इस रुट के लगभग सारे ड्यूटी अफसर जानते हैं कि एक 67 वर्ष का रिटायर्ड जवान नोएडा से दिल्ली तक दौड़ता है !

आज की 8 km की लम्बी दौड़ की विशेषता सहजता रही , बिना किसी तनाव, गरमी ,पसीने पर ध्यान दिए बिना यह बेहद आसान था हालाँकि बढ़ी आद्रता के कारण, बापसी में कार तक पंहुचने पर ऊपर से नीचे तक पसीने से नहाया हुआ था ! 

काया कल्प के संकल्प में सहजता ही आवश्यक है जिसे आज के दिखावटी जगत में पाना बेहद मुश्किल होता है ! सहज आप तभी हो सकेंगे जब मन स्वच्छ हो ईमानदार हो खुद के लिए भी और गैरों के लिए भी ! स्वस्थ मन और शरीर को पाने के लिए आप को भय त्यागना होगा , मृत्यु भय पर विजय पाने के लिए अपनी आंतरिक सुरक्षा शक्ति पर भरोसा रखें कि वह अजेय है किसी भी बीमारी से उसका शरीर सुरक्षित रखने में वह सक्षम है और हाँ, अपने विशाल प्रभामण्डल और तथाकथित आदर सम्मान भार को सर से उतारकर घर पर रख देना होगा अन्यथा यह गर्व बर्बाद कर देने में सक्षम है मेरे हमउम्र तीन मित्र इस वर्ष मोटापे की भेंट चढ़ गए और कुछ हार्ट अटैक की कगार पर हैं ,काश वे समय रहते चेत गए होते ! 

भारत हृदय रोग और डायबिटीज की वैश्विक राजधानी बन चुका है , हर चौथा व्यक्ति इसका शिकार है और उसे पता ही नहीं , चलते समय या सीढियाँ चढ़ते समय सांस फूलता है, उसे यह तक पता नहीं कि साँस फूलने का मतलब क्या होता है और न उसके पास समय है कि इस बेकार विषय पर ध्यान दे मोटापे को वह उम्र का तकाजा समझता है ! खैर  ...

बरसों से आलसी शरीर को सुंदर और स्वस्थ बनाने के लिए कृत्रिम प्रसाधनों , दवाओं का त्याग करना होगा , उनसे शरीर स्वस्थ होगा का विचार, केवल खुद को मूर्ख बनाना है ! शरीर स्वस्थ रखने के लिए जो अंग जिस कार्य के लिए बने हैं उनका सहज भरपूर उपयोग करना सीखना होगा ! गलत लोक श्रुतियों और मान्यताओं, सामाजिक भेदभाव पर खुले मन से विचार कर उनका त्याग करें आप खुद ब खुद सहज होते जाएंगे ! 

साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !

दर्द सारे ही भुलाकर,हिमालय से हृदय में 
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जाति,धर्म,प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये 
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से  हृदय में 
प्रज्वलित संकल्प लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
   
तोड़ सीमायें सड़ी ,संकीर्ण मन विस्तृत करें  
विश्व ही अपना समझकर धीमे धीमे दौड़िये !

समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे  
दूरियों को नमन कर के , धीमे धीमे दौड़िये !

9 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१४-०७-२०२१) को
    'फूल हो तो कोमल हूँ शूल हो तो प्रहार हूँ'(चर्चा अंक-४१२५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. सुंदर प्रेरक अभिव्यक्ति।

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  3. वाह और यूँ दौड़ते हुए अपने को स्वस्थ कीजिये । सार्थक संदेश ।

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  4. वाह सुंदर लेख ,कविता तथा सन्देश भी !!

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  5. मनन योग्य । अति सुन्दर ।

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  6. बहुत सुंदर लेख।

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  7. सकारत्मकता का उजाला फैलाती स्वस्थ रहने के सूत्र देती इस अनुपम पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई !

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- सतीश सक्सेना

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