स्वतंत्रता दिवस पर उग्रवादियों और तथाकथित जेहादियों को एक संदेश !
लूटें घर को, मारें मां को
पल पल में, हुंकारे भरते
गर्दन ऊंची, छाती चौडी,
है शर्म नाम की चीज नहीं,
जब बाल पकड़ यमराज इन्हें,
परदेश में लाकर मारेगा !
तब आँख, फटी रह जायेगी , कोई न बचाने आयेगा !
किसको धमकी तुम देते हो ,
लाखों मरने को हैं तैयार !
बच्चों का रक्त बहाने को
आओ लेकर सब हथियार!
मारो बम कितने मारोगे,
इक दिन ऐसा भी आयेगा !
जब, मौत तुम्हारी आने पर , आंसू कोई न बहायेगा !
तुम मासूमों का खून बहा,
ख़ुद को इंसान बताते हो
औ मार नमाजी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
जब मौत तुम्हारी आयेगी,
तब कोई न फूल चढ़ायेगा !
मय्यत में कंधा देने को , घर से भी न कोई आयेगा !
बहुत सुन्दर व्यंग्य है। बधाई
ReplyDeleteतुम मासूमों का खून बहा
ReplyDeleteख़ुद को शहीद कहलाते हो
औ मार नमाजी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
" truely said, good thoughts with appropriate words"
Regards
मारो बम कितने मारोगे
ReplyDeleteतुम कितना खून बहाओगे
पर,मौत तुम्हारी आने पर
आंसू कोई न बहायेगा,
बहुत जोरदार लिखा है सतीश जी !
बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको !
तुम मासूमों का खून बहा
ReplyDeleteख़ुद को शहीद कहलाते हो
औ मार नमाजी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
अच्छी सोच को नमन .
कितना सच लिखा है, मैं ऐसे कई अब्बू को जानता हूँ जिनके लड़के ज़रा अपराधिक गतिविधियों में शामिल हुए कि उनके पिता ne बेटे को आक़ कर दिया.
आक़ का मतलब परित्याग कर देना.
सतीश जी .आपने सरोकार का लिंक दिया है, आभार.
are mahoday ka kahna hai.
ReplyDeleteprnaam sir.bahuh hi badhya likhe hain aap.
तुम मासूमों का खून बहा
ReplyDeleteख़ुद को शहीद कहलाते हो
औ मार नमाजी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
क्या खूब कहा है, बहुत अच्छे!
तुम मासूमों का खून बहा
ReplyDeleteख़ुद को शहीद कहलाते हो
बहुत खुब आज बदमाश ओर गुण्डे भी शहीद कहलाने लगे हे, ओर शहीद .....
धन्यवाद
आप सब का यहाँ आने के लिए धन्यवाद !
ReplyDelete@शहरोज भाई ! हम यह सब जानते हैं की कुछ उग्रवादी संगठनों की सोची समझी चाल है कि इस देश के दोनों घरों में दरार कैसे डाली जाए ! मेरा संदेश भी यही है कि अगर पथभ्रष्ट लड़का इस अंत में पहुंचा तो यकीनन घर के अन्य लोग इनका साथ नही देंगे !
सरलतम पर सत्य को उखेलती रचना
ReplyDeleteतुम मासूमों का खून बहा
ReplyDeleteख़ुद को शहीद कहलाते हो
औ मार नमाजी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
जब मौत तुम्हारी आएगी,
तब बात शहादत की छोडो
मय्यत में कन्धा देने को,
अब्बू तक पास न आयेंगे
सतीश जी
बेहद सच्ची रचना! दिल छु लिया!
उम्मीद है की आगे भी अमन और भाई चारे का पैगाम देती और सच्चाई का निरूपण करती ऐसी साहसिक रचनाये पढने को मिलती रहेंगी