आज नवभारत टाईम्स के पहले पेज पर दो पर्दानशीं हिन्दुस्तानी लड़कियों की गोद में, बाल कृष्ण को, मोर मुकुट, पीले वस्त्र, लंबा तिलक धारण किए, देखा तो बरबस ही भक्त सूरदास के पद याद आ गए !
"अखियाँ हरि दर्शन की प्यासी ।देखो चाहत कमल नयन को, निस दिन रहत उदासी ॥केसर तिलक मोतिन की माला, वृंदावन के वासी ।"
उक्त चित्र इतना सुंदर था कि समझ नही आता कि तारीफ कैसे करूँ, भावः विह्वल एक चित्र कर सकता है ? कल्पना से परे कि बात लगती है ! अपनी इन मुस्लिम बहनों को प्रणाम, साथ ही नवभारत टाईम्स की जागरूकता को भी !
-लोगो से सुना था कि हमारे मुस्लिम दोस्त, बहुत कट्टर होते हैं, अपने धर्म के अलावा औरों को पसंद नही करते हैं ! उनको एक शानदार जवाब इन मुस्लिम लड़कियों ने जन्माष्टमी के त्योहार पर अपने बच्चों को कृष्ण रूप देकर दिया है ! क्या सुनी सुनाई मानसिकता थी मेरी, मैं आज अपनी उस सोच पर सचमुच शर्मिन्दा हूँ !
"अखियाँ हरि दर्शन की प्यासी ।देखो चाहत कमल नयन को, निस दिन रहत उदासी ॥केसर तिलक मोतिन की माला, वृंदावन के वासी ।"
उक्त चित्र इतना सुंदर था कि समझ नही आता कि तारीफ कैसे करूँ, भावः विह्वल एक चित्र कर सकता है ? कल्पना से परे कि बात लगती है ! अपनी इन मुस्लिम बहनों को प्रणाम, साथ ही नवभारत टाईम्स की जागरूकता को भी !
-लोगो से सुना था कि हमारे मुस्लिम दोस्त, बहुत कट्टर होते हैं, अपने धर्म के अलावा औरों को पसंद नही करते हैं ! उनको एक शानदार जवाब इन मुस्लिम लड़कियों ने जन्माष्टमी के त्योहार पर अपने बच्चों को कृष्ण रूप देकर दिया है ! क्या सुनी सुनाई मानसिकता थी मेरी, मैं आज अपनी उस सोच पर सचमुच शर्मिन्दा हूँ !
sahi kaha Satish jee is daur me sab kahan dekhne ko milta hai.naman un behno ko aur nav-bharat times ko bhi jisne karina,catrina,ya adhnangi model ki bajay prerak tasweer chhapi.han ek baat aur batana chahunga mere, bal-sakha hai mehmood niyaz mohan anty anthony ye dono hum dosto ke sath yanha ke prasidh bamleshwari maiya ke darshan ke liye humesha sath gaye hain.mehmood to baijnath dham tak ho aaya jabki humare group ke kuch hindu dost,main bhi wahan nahi jaa paye paidal 110 km chalne ke dar se.ye humare sath kisi bhi mandir me jaane se nahi hichakte aur na hi prasad grahan karne me.achhi post aabhar aapka,aapne mujhe aapne dosto par garva karne ka mauka diya
ReplyDeleteमुझे यह सौभाग्य अचानक ही मिल गया की अनिल भाई क कमेंट्स का हिन्दी अनुवाद कर सकूँ ! पेश है ...
ReplyDeleteसही कहा सतीश जी इस दौर में सब कहाँ देखने को मिलता है, .नमन उन बहनों को और नव -भारत टाईम्स को भी जिसने करीना,कैटरीना, या अधनंगी मॉडल की बजाय प्रेरक तस्वीर छापी ! हाँ एक बात और बताना चाहूँगा मेरे, बाल -सखा है महमूद नियाज़ मोहन अन्टी अन्थोनी ये दोनों हम दोस्तों के साथ यंहा के प्रसिद्ध बमलेश्वरी मैया के दरशन के लिये हमेशा साथ गये हैं.महमूद तो बैजनाथ धाम तक हों आया जबकि हमारे ग्रुप के कुछ हिंदू दोस्त,में भी वहां नही जा पाए पैदल 110 km चलने के डर से.ये हमारे साथ किसी भी मन्दिर में जाने से नही हिचकते और न ही प्रसाद ग्रहण करने में.अच्छी पोस्ट आभार आपका, आपने मुझे आपने दोस्तों पर गर्व करने का मौका दिया !
- अनिल पुसदकर
सतीश जी आपकी ईमानदारी की तो मैं कायल हो गई हूँ, ये आपके दिल की खूबसूरती है जो आपके विचारों से झलकती है, हम एक दूसरे को जाने बिना अपनी राय बना लेते हैं, ख़ुद अपनी कहूँ तो मुझे भी बीजेपी जैसी मानसिकता से डर लगता है लेकिन बचपन से देखा है की कुछ लोग ज़रूर ऐसे होते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जैसी हम कल्पना भी नही कर सकते, यही हाल हर कोम का है ,शायद ऐसे ही लोगों की वजह से हमारा देश जिंदा है.
ReplyDeleteआज अखबार में इस तस्वीर को देखा तो अच्छा लगा. अलगाववादियों को कोई संदेश गया ही होगा.
ReplyDeleteis tarah ke sandesh milte rahne chahiye..
ReplyDeleteयह उदाहरण सभी कट्टर मुसलमानों और हिन्दुओं के लिए है, ईश्वर देश में शांति करे
ReplyDelete"a great and emotional example through this picture"
ReplyDeleteRegards
सतीश जी एक और बेहतरीन ख़बर की तरफ़ आपने
ReplyDeleteसबका ध्यान खींचा ! वरना अखबार की खबर सिर्फ़
दो घंटे बाद बासी हो जाती हैं ! इस तरह की खबरों
पर सबका ध्यान आकर्षित करने के लिए आपको मैं
तहे दिल से धन्यवाद देना चाहूँगा ! और पुन: मैं यह कहूंगा की यहाँ इन राजनीति करने वालों के अलावा कोई भी हिन्दू या मुसलमान नही है ! सब इंसान हैं !
सच बताइयेगा हम दिन में कभी याद रख भी पाते
हैं क्या की हम हिंदू हैं या मुसलमान ? शायद नही | कुछ स्वार्थी लोग याद दिलाकर क्षणिक आवेश में
जनता को लाकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं !
आप जैसे जागरूक नागरिकों के रहते आप देखियेगा
एक दिन आयेगा की जनता इनको ही जूते मारेगी |
@ पी सी रामपुरिया "यहाँ वाकई में कोई हिंदू या मुसलमान नहीं है हम सब इंसान हैं " आज अपने हरियाणवी ताऊ का यह गंभीर अंदाज़ बहुत अच्छा लगा! "रामपुरिया का हरयाणवी ताऊनामा !" पढ़कर आने वाला कोई अगर यह कमेंट्स देखे तो वह विश्वास ही नही कर पायेगा कि यह वही ताऊ है जो हर समय ताई के डर से भागता रहता है ! और यही अंदाज और विद्वता हमारे देश की विविधिता को भी दर्शाता है ! श्री पी सी रामपुरिया जी को आभार सहित, इस पुनीत यज्ञ में शामिल होने के लिए, धन्यवाद !
ReplyDeleteachchi post.
ReplyDeletebeganiji bahut khush huye honge.
aasha karta hun k kabhi masjid me matha tekte hindu balak ki bhi photo akhbaar chaaapega.
sateesh ji aapki sachchi bhavna ke ham sabhi qayal hain.
मैने एक सिमी समर्थक ब्लॉग देखा। उलूल-जुलूल हिन्दु समाज को गरियाता।
ReplyDeleteमैं माडरेट विचार रखता हूं; पर इस तरह खुली गाली पच नहीं रही। ऐसे में आपकी पोस्ट पर स्वस्थ टिप्पणी नहीं निकल पा रही।
@श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी,
ReplyDeleteआप जैसे सम्मानित अतिथि का अभिवादन, के साथ निवेदन है, कि हर ब्लाग की भाषा उसके संचालक की सोच के अनुसार होती है और तदनुसार ही उनके मित्रगण, साथी लेखक रचनात्मक सहयोग देते हैं ! आप इस तरह के कितने ही ब्लोग्स को जानते होंगे जिन पर जाकर अपने सर के बाल नोचने का दिल करता है, आप एक व्यक्ति के कारण सारे सत्कार्यों को दोषी नही ठहरा सकते !
- ग्रुप बना कर हम घर नहीं चला सकते, और ना आजीवन शीतयुद्ध लड़ा जा सकता , तमाम ऐतिहासिक भूलों के बावजूद हमें इस भूमि पर साथ रहना है तो प्यार से रहने का प्रयत्न क्यों ना करें ! बात सिर्फ़ अपने मन में बैठी हुई दूषित सोच और अविश्वास को निकालने की है !
- हम नेगेटिव उदाहरण को देखते रहेंगे तो कभी इस घर में शान्ति नहीं मिलेगी और हम दोनों पक्षों में उग्रवादी सोच का पलडा भारी होजायेगा ! एक दूसरे की बुराइयाँ भूल कर ही हम आगे बढ़ पाएंगे !
- पहल करनी ही होगी और इस पहल का बोझ आप जैसों को ही उठाना पड़ेगा !
- हमारा दायित्व( पुरानी पीढी ) सिर्फ़ अपनी पुरानी रंजिशें भुलाना हो तो आगे का कार्य नयी पीढी आसानी से कर लेगी ! मेरा यह विश्वास है की नयी पीढी के पास इन धार्मिक पचडों में पड़ने तथा उसकी पेचीदगियों में उलझने का समय ही नहीं है !
आशा करता हूँ की आपसे आशीर्वाद अवश्य मिलेंगे !
सतीश जी आपकी पोस्ट अच्छी लगी लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि आप हैरान क्यों हैं।
ReplyDeleteसतीश जी, हमारे यहां एक परिवार हे मुस्लिम, ओर एक परिवार हे गुजराती हिन्दु का, यह दोनो मेरे से काफ़ी दुर रहते हे, लेकिन मित्रता काफ़ी हे, ओर गुजराती भाई की पीठ का ओप्रेशन हुआ हे , इस लिये वह वजनी काम नही कर सकता, एक बार वो भारत से एक मन्दिर (लकडी का) बना कर लाया जिस का वजन ३५ किलो के करीब था, ओर उस सारे मंदिर को बह मुस्लिम भाई ने उठा कर उस के घर पहुचायां , फ़िर उसे एक एक हिस्से को जोडा, ओर वो मंदिर पुरा बन गया,ना तो उस हिन्दु का मंदिर ही भरष्ट हुआ, ना ही उस मुस्लिम भाई का धर्म खराव हुआ, लेकिन इस बात से मुस्लिम भाई मेरे दिल मे एक खास जगह पर बेठ गया,
ReplyDeleteआप का लेख पढ कर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद
@शायदा जी !
ReplyDeleteमैं हैरान बिल्कुल नहीं हूँ, बल्कि मुझे बेहद विश्वास है कि हर मुस्लिम परिवार हमारा है, और तहेदिल से हमारा बनना चाहता भी है, दुःख इस बात का अवश्य है कि हम इस नाज़ुक विषय पर बिना जाने, व जानने कि कोशिश किए बिना, कलम उठा कर तुंरत लिखने बैठ जाते हैं, मेरी आप सबसे यह विनती है कि किसी भी पोस्ट पर कमेंट्स देते समय अगर पढ़ कर लिखें तो अच्छा हो ! मगर क्या हमारे पास पढने का समय है ? हाँ अपने को स्थापित करने के लिए हम लिखते जरूर हैं, क्योंकि हम जानकर व् विद्वान् हैं,
यह पोस्ट सिर्फ़ सतीश को नही, बल्कि प्रतिनिधित्व कर रही है, हर उस सामान्य सोच को जो कि पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है, अगर आपके पास कुछ समय हो तो मेरे पूर्व लेख " भारत मां के ये मुस्लिम बच्चे ! " दिनांक १९ जुलाई २००८ "एवं असद जैदी और इरफान" दिनांक १५ जुलाई २००८ अवश्य पढियेगा ! अगर उसके बाद भी यह कहेंगी कि मैं हैरान हूँ तो मैं यह विश्वास कर लूँगा !
भाई सहरोज़ हिन्दू बालको को मस्जिद के आगे नमाज पढ़ कर निकलते लोगो द्वारा दुआ की कामना पाने के लिए खड़े हुए बहुत देखा है.
ReplyDeleteऔर आपको तो नमाज अदा करनी आती ही होगी, अन्यथा आप सीखने के लिए आ सकते है.
प्रिय सतीश जी
ReplyDeleteपरिवार एवं इष्ट मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की बधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना कृष्ण-कन्हैया से है !
सतीश जी आपका संदेश पढ़ा। मेरा मक़सद शायद आप समझ नहीं सके या यूं कहें कि मैं समझा नहीं सकी। मैं कहना चाहती थी कि आपने जो देखा उससे प्रभावित होकर आपने यह पोस्ट लिखी जबकि इस तरह के द्रश्य दिखना तो सामान्य बात है। मेरा कहना यह है कि ऐसा तो हम बचपन से ही देखते आ रहे हैं। मसलन स्कूलों में सारे त्योहार मनाए जाते हैं तो बच्चे उनमें भाग लेते ही हैं, फिर चाहे वह राखी हो, जनामष्टमी हो या फिर दुर्गापूजा। और उन अवसरों पर बच्चों को अलग-अलग वेषभूषाओं में देखा ही जाता है। आपकी सदाशयता पर मुझे कोई संदेह नहीं है और न ही ऐसा है कि आपकी पोस्ट पढ़े बगै़र किसी शौक के तहत आपको कमेंट किया मैंने। हां संक्षिप्त में कमेंट कर देने से शायद मै मंतव्य स्पष्ट नहीं कर सकी।
ReplyDeleteखैर आपका धन्यवाद इस सलाह का कि हम कमेंट करने से पहले पोस्ट को पढ़ भी लें...।
जन्माष्टमी की बहुत बहुत वधाई
ReplyDeleteराज भाई !
ReplyDeleteएक खुबसूरत द्रष्टान्त के लिए आभारी हूँ तथा आपके लिए भी जन्माष्टमी की मुबारक बाद !
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ReplyDeleteयदि ज्ञानदत्त जी जैसे चिंतक, विचारक जो अनवरत मानसिक हलचल के धनी हैं, यहाँ बदहज़मी की शिकायत कर रहे हैं, तो मेरा कुछ भी बोलना ' हैसियत से बाहर ' की बात होगी ।
शेष अन्य पाठक यदि उचित समझें, तो यह तथ्य ग्रहण कर सकते हैं, कि " यदि हम अपवादों से निकले निष्कर्ष पर कोई सार्वभौमिक राय कायम कर लेते हैं, तो निश्चित ही हम दया के पात्र हैं । ' ज़ाहिर सी बात है, कि इस तरह से यह अपवादी अपने को सार्वभौमिक बनाने में क्यों शर्मायें ? " आख़िर उत्प्रेरक किसे करार दिया जाये ?
वैसे ही, बाई द वे..चलते चलते
आज हमारे शहर मॆं एक शातिर चोर पकड़ा गया... क.ख.ग. बाजपेयी ! क्या मुझे पूरे बाजपेयी समाज के लिये आज ही कोई ठोस राय कायम कर लेनी चाहिये ?
एनी कमेन्ट्स ...
वेलकम !
पंकज बेंगाणी जैसे मशहूर नाम की उपस्थिति प्रेरणा दायक है, शहरोज भाई की और उनके मध्य क्या चल रहा है ? समझ नही आया !
ReplyDeleteसतीश जी आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी !!!!!!!1
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