यहाँ एक दुखी पिता अपनी लाडली को विवाह की आवश्यकता बताने, समझाने का प्रयत्न कर रहा है ! भारतीय समाज की सबसे मजबूत गांठ, आज पाश्चात्य सभ्यता समर्थन के कारण खतरे में है ! नारी अपने बिभिन्न रूपों को भूल कर अपने एक ही रूप को याद करने का प्रयत्न कर, तथाकथित जद्दोजहद कर रही है ! एवं आधुनिकीकरण की तरफ़ भागता समाज, हमारी शानदार व्यवस्था भूल कर चमक दमक में खो रहा है ! ऐसे समय में ,यह कविता बहुतों के माथे पर बल डालेगी, मगर यह एक भारतीय पिता की भेंट है अपनी बेटी को !
बचपन यहाँ बिताकर अब तुम
अपने नए निवास चली हो !
आज पिता की गोद छोड़ कर
करने नव निर्माण चली हो !
केशव का उपदेश याद कर,
कर्म भूमि में तुम उतरोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !
इतने दिन तुम रहीं पिता की
गोद , मातृ का मान बढ़ाया ,
अब जातीं घर त्याग अकेली
एक नया संसार बसाया ,
जब भी याद पिता की आये ,
अपने पास खड़े पाओगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !
बचपन यहाँ बिताकर अब तुम
अपने नए निवास चली हो !
आज पिता की गोद छोड़ कर
करने नव निर्माण चली हो !
केशव का उपदेश याद कर,
कर्म भूमि में तुम उतरोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !
इतने दिन तुम रहीं पिता की
गोद , मातृ का मान बढ़ाया ,
अब जातीं घर त्याग अकेली
एक नया संसार बसाया ,
जब भी याद पिता की आये ,
अपने पास खड़े पाओगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !
कोई नन्हा जीवन तेरा ,
खड़ा हुआ बाहें फैलाए !
इस आशा के साथ, उठाओगी
तुम , अपनी बांह पसारे !
ले नन्हा प्रतिरूप गोद में ,
ममतामयी तुम्हीं दीखोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं लगोगी !
सृष्टि नयी की रचना करने,
विधि है, इंतज़ार में तेरे !
सुन्दरता की नन्ही उपमा
खड़ी, तुम्हारी आस निहारे
तृप्ति मिलेगी रचना करके
मां की गरिमा तुम्हें मिलेगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्हीं रहोगी !
नर नारी के शुभ विवाह पर
गांठ विधाता स्वयं बांधते,
शायद देना श्रेय तुम्हीं को
जग के रचनाकार चाहते !
जग की सबसे सुंदर रचना
की निर्मात्री तुम्हीं रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्हीं रहोगी !
next - http://satish-saxena.blogspot.in/2008/10/blog-post_14.html
जग की सबसे सुंदर रचना
की निर्मात्री तुम्हीं रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्हीं रहोगी !
next - http://satish-saxena.blogspot.in/2008/10/blog-post_14.html
नर नारी के शुभ विवाह पर
ReplyDeleteगांठ विधाता स्वयं बांधते,
शायद देना श्रेय तुम्ही को
जग के रचनाकार चाहते ,
जग की सबसे सुंदर रचना की निर्मात्री तुम्ही रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !
" ah! dil bharee, ankhen nam ho aayen hain" bus or kya khen...."
Regards
सतीश जी बहुत सुन्दर भाव,
ReplyDeleteजग की सबसे सुंदर रचना की निर्मात्री तुम्ही रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !
धन्यवाद
जग की सबसे सुंदर रचना की निर्मात्री तुम्ही रहोगी !
ReplyDeleteपहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !
बहुत सुन्दर कविता। बधाई स्वीकारें।
सुन्दर कविता.. बधाई!!
ReplyDeleteभारतीय समाज की सबसे मजबूत गांठ, आज पाश्चात्य सभ्यता समर्थन के कारण खतरे में है ! बहुत जोरदार कविता हर लिहाज से !
ReplyDeleteप्रणाम हैं आपको !
भाव प्रवण
ReplyDeleteऔर
मार्मिक प्रस्तुति
मन को छूने वाली.
===============
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत ही सुंदर लगी आपकी यह कविता ..दिल को छु जाने वाली है यह पंक्तियाँ
ReplyDeleteश्रष्टि नयी की रचना करने,
विधि है इंतज़ार में तेरे !
सुन्दरता की नन्ही उपमा
खड़ी, तुम्हारी आस निहारे
तृप्ति मिलेगी रचना करके मांकी गरिमा तुम्हे मिलेगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !
बहुत ही सुंदर भावना है. धन्यवाद!
ReplyDeleteनर नारी के शुभ विवाह पर
ReplyDeleteगांठ विधाता स्वयं बांधते,
शायद देना श्रेय तुम्ही को
जग के रचनाकार चाहते ,
जग की सबसे सुंदर रचना की निर्मात्री तुम्ही रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !
बहुत सुन्दर कविता। बधाई स्वीकारें।
जग की सबसे सुंदर रचना की निर्मात्री तुम्ही रहोगी !
ReplyDeleteपहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !
bhaut bhaavpurn panktiyan
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteमजा आ गया, बंधुवर.. बधाई....
बहुत सुन्दर, सार्थक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDelete
ReplyDeleteआदरणीय/आदरणीया आपको अवगत कराते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि आपकी रचना हिंदी ब्लॉग जगत के 'सशक्त रचनाकार' विशेषांक एवं 'पाठकों की पसंद' हेतु 'पांच लिंकों का आनंद' में सोमवार ०४ दिसंबर २०१७ की प्रस्तुति के लिए चयनित हुई है। अतः आपसे अनुरोध है ब्लॉग पर अवश्य पधारें। .................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
बहुत खूबसूरत लिखा आपने!!!!
ReplyDeleteसब कुछ समाहित कर दिया, आदर्श वादी बहु बनने की सीख,मायके का प्यार,बेटी के प्रति भय उसके सुर क्षित भविष्य की कामना सारी बातें जो स्षस्ट से एक पिता कहना चाहता है आपने सब-कुछ इस खुबसूरत रचना में 👌 पिरो दिया ..बधाई आपको..!
केशव का उपदेश याद कर
ReplyDeleteकर्म भूमि में तुम उतरोगी
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी
पिता की पुत्री को बेहतर सीख...
वखह!!!!
लाजवाब...
भावों का अतिसुंदर शब्दीकरण... बहुत बढिया.
ReplyDeleteपिता के द्वारा दी गई ममतामयी सीख....
ReplyDeleteदो पंक्तियाँ समर्पित हैं -
पापा के दिल में भी माँ का दिल होता है !
पर्वत के उर में शीतल निर्झर सोता है !!!
लाजवाब
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी -- बेटी के लिए एक पिता एक पर्वत सरीखा सम्बल होता है | पिता के बच्चों के प्रति उदगार दुनिया में प्रायः मौन और अपरिभाषित ही रहे हैं -- पर एक कवि पिता उन भावों को सरलता से शब्दांकित करने में सक्षम होता है | एक कवि पिता की लेखनी का बिटिया को संस्कारी सीख देता ये सृजन अपने आप में सार्थक और अनूठा है | बहुत ही मर्मस्पर्शी सीख मन को भावुक करने वाली है | पिता की पारदर्शी दृष्टि कहीं से कहीं देखती बिटिया को जग की निर्मात्री कह रही हैं | इस उत्कृष्ठ सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteमन को मथती सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर