"लंदन में मेरी दुर्घटनाग्रस्त बेटी को जीवन में पहली बार यह त्यौहार अकेले मनाना पड़ा। ऊपर से इस बार यकायक लंदन में दीपावली की रात २-२ फीट हिमपात हो गया। ऐसे में उसे याद आई तो केवल माँ और अपनी उस दिन की वे स्मृतियाँ जब उसने मुझे सुनाईं तो सिवाय फफक फफक कर रोने के कोई शब्द मेरे पास नहीं था।"
उपरोक्त शब्द डॉ कविता वाचक्नवी के हैं, जिनके जरिये उन्होंने बिना प्रमुखता, दिए अपने मन की वेदना दीपावली के बारे में बताते हुए प्रकट की थी ! और यह वेदना उस दिन की चर्चा में बहुत कम लोगों ने नोट की थी ! मुझे अहसास हुआ जब फुरसतिया ने इस पर ध्यान न जाने की क्षमायाचना करते हुए कमेंट्स में प्रमुखता दी ! एक माँ से हजारों मील दूर लन्दन में इलाज़ करा रही इस बच्ची के लिए मेरी शुभकामनायें !
उपरोक्त शब्द डॉ कविता वाचक्नवी के हैं, जिनके जरिये उन्होंने बिना प्रमुखता, दिए अपने मन की वेदना दीपावली के बारे में बताते हुए प्रकट की थी ! और यह वेदना उस दिन की चर्चा में बहुत कम लोगों ने नोट की थी ! मुझे अहसास हुआ जब फुरसतिया ने इस पर ध्यान न जाने की क्षमायाचना करते हुए कमेंट्स में प्रमुखता दी ! एक माँ से हजारों मील दूर लन्दन में इलाज़ करा रही इस बच्ची के लिए मेरी शुभकामनायें !
आज के इस व्यस्त माहौल में हम लोगों में संवेदना का महत्व कम होता जा रहा है, बल्कि अगर यह कहा जाए कि खत्म हो गया है तो भी शायद अतिशयोक्ति नही होगी !
मुझे याद है नवम्बर २००५ की दीपावली जब मेरा बेटा पहली वार अपने घर से हजारों मील दूर कैलिफोर्निया में पार्टी फंक्शन्स में ना जाकर अकेले कमरे में बैठ कर दीवाली पूजा कर रहा था ! वह चित्र देख कर दीवाली का सारा आनंद एक उदास रात में बदल गया था जो आज तक भुलाये नही भूलता है !
इस निर्दयी विश्व में अपनों के प्रति यह संवेदना और प्यार की अनुभूति ही जीवन का आधार है
Very touchy, the world is made up of feelings,
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी आलेख है। परंतु यह बात भी विचारणीय है कि बच्चों का समर्थ होकर दूर चले जाना उनके विकास की प्रक्रिया का एक पीड़ाजनक परंतु अनिवार्य हिस्सा है। और इस दूर जाने में मात्र दुख़ ही नहीं गर्व की भी अनुभूति होती है।
ReplyDelete" sach mey bhut bhavuk kr gyee aapke ye post, वह चित्र देख कर दीवाली का सारा आनंद एक उदास रात में बदल गया था जो आज तक भुलाये नही भूलता है !
ReplyDeleteudaas betey ka chehra dekh kr sach mey charon trf udasee see chaa gyee hai, dewlai na jane kitno ke liye khusee latee hai or kitno ka dil dukhee kr jatee haai uprokt post pdh kr feel ho rha hai.....ab dewali to ja chuke hai pr apnee dukh ke parteyn faila kr...लंदन में मेरी दुर्घटनाग्रस्त बेटी को जीवन में पहली बार यह त्यौहार अकेले मनाना पड़ा। .. kya khen jo feel ho rha hai usko express krna possible hee nahee hai... sirf apnee smvaidna hee prkt kr sktyn hain.......
Regards
हमें तो अकसर त्यौहार अकेले ही मनाने पड़ते हैं...अकेलेपन को समझ सकती हूं...
ReplyDeleteसतीश जी आपने जो कुछ लिखा वो बड़ा ही मार्मिक और दुःख पूर्ण है ! हम एक समाज में रहते हैं ! और उसमे भी ये ब्लागर्स का और एक छोटा सा समाज है ! दुःख सुख सबमे आता रहता है ! मेरी पुरी संवेदनाएं हैं ! कविता जी को भी आप मेरी संवेदनाएं अवश्य पहुंचा दीजियेगा ! बहुत धन्यवाद आपको !
ReplyDeleteइस लेख का लिंक नहीं मिल पाया अतः पढ़ नहीं पा रही हूँ ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सतीश जी,
ReplyDeleteजिन चीजों पर कहने के लिए शब्द नहीं सूझते उन्हें कैसे कहा जाता है?
प्रतिक्रिया केवल लिख कर ही या शब्दों में ढाल कर ही व्यक्त करना जरूरी है? आपको इस सदाशयता के लिए आभार,बेटे के लिए सपरिवार सुखद भविष्य की शुभकामनाएँ।
@घुघूती बासूती
ReplyDeletelinks are given in this article itself on IInd paragraph please.
सही कह रहे हैं, सतीश भाई. बहुत ही तकलीफदायक होता है ऐसा मौका!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी बात है...यह सभी संवेदनशील लोगों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा अनुभव है.
ReplyDeleteबहुत मार्मिक बात लिखी है आपने...कई बार ना चाहते हुए भी हम अपनों से दूर तन्हाई में त्योहार मनाते हैं... विदेशों में मैंने देखा है कैसे लोग अपना वतन घर इन दिनों याद कर उदास हो जाते हैं लेकिन जिंदगी की दौड़ में बने रहने के लिए ये कुर्बानी देनी ही पढ़ती है...
ReplyDeleteनीरज
बेहद सम्वेदनशील पोस्ट। हम अपनी संवेदनायें बचा के रख सकें तो बहुत कुछ बचा रहता है।
ReplyDeleteइस तरह की पोस्टें हमारी संवेदनशीलता को बचाये रखने में सहयोग करती हैं। बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर।
ReplyDeleteBhaw bharee post. Par Bachche to pankhon me takat aate hee ud kar door chale jate hain. uske liye aise anubhawon se bhee unhe aur hume gujarna padta hai. Koshish karate hain ki e-mail se phone se patr se ye khalee pan hum kuch kum karen.
ReplyDeleteआकाश विस्तृत व असीमित है, डा. कविता
ReplyDeleteहर पंक्षी के अपने अपने दर्द हैं,
पर वह अपने बसेरे को न भूलें हैं
यही आपका सफ़ल मातृत्व है
अंतर की पीड़ा जाहिर करके उनको कमज़ोर न बनायें
प्रवासी पाखियों का दर्द मैं भी समझ सकता हूँ
मेरा बेटा चीन में है, और अपनी तरह से दीवाली मनाता रहा है
सतीश जी, बेटे को अवश्य याद करें,किन्तु गर्व के साथ.. ताकि उसको बल मिलता रहे
Very nice post which has touched my heart.
ReplyDeleteबहुत मार्मिक है।
ReplyDeleteइस सुडौल चेहरे में कितना ख़ालीपन झलक रहा है. आप सचमुच हिला कर रख देते हैं. आभार.
ReplyDelete"Sooni diwali" To celebrate this day alone here is very painful for us too.The last 2 years I am away from my near & dear.Whenever these festival days come I miss you all & my home esp my Ma.She makes our day most precious & memorable. I Miss You Ma.
ReplyDeletema to kewal maa hoti hai
ReplyDeletema dharti si sahansil ,ma nadiya si rasdhara ,ma vistrut aakash ,ma bachche ki dhruvtara,
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