जिनको पूरे जीवन आपने भरपूर प्यार किया हो , जिनके हर कष्ट को, आपने अपने दिल पर महसूस किया हो, अगर वही प्यारा, आपको मार्मिक चोट पंहुचाने लगे, तब कोमल दिल कहीं गहराई तक घायल होता है ! अक्सर इस चोट से आहत दिल, आने वाले समय में किसी भी प्यार और स्नेह पर विश्वास नहीं कर पाता !
अपने प्यारों से अपेक्षा करने को, अक्सर मानवीय कमजोरी बताया जाता है , प्यार के साथ अधिकार की भावना आ ही जाती है जबकि आपके अधिकार को, उचित सम्मान देने वाले नहीं मिलते और यह आवश्यक तो बिलकुल नहीं कि आपका प्यारा भी आपको उतना हो प्यार करे जितना आप कर रहे हों ! हताशा यहीं से शुरू होती है ...
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
आप सब लोगों का अक्सर एक ही सलाह होगी यहाँ ...अपेक्षा मत करिए !
मगर क्या संवेदनशील दिल को समझाना इतना आसान है ??
अपने प्यारों से अपेक्षा करने को, अक्सर मानवीय कमजोरी बताया जाता है , प्यार के साथ अधिकार की भावना आ ही जाती है जबकि आपके अधिकार को, उचित सम्मान देने वाले नहीं मिलते और यह आवश्यक तो बिलकुल नहीं कि आपका प्यारा भी आपको उतना हो प्यार करे जितना आप कर रहे हों ! हताशा यहीं से शुरू होती है ...
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
आप सब लोगों का अक्सर एक ही सलाह होगी यहाँ ...अपेक्षा मत करिए !
मगर क्या संवेदनशील दिल को समझाना इतना आसान है ??
बहुत संवेदनशील विचार ...... प्रेरणादायी हैं
ReplyDeleteसतीश जी ,
ReplyDeleteआप की पोस्ट पढ़ कर किसी शायर का एक शेर याद आ गया कि ------
जो उम्मीदें करेगा कम
उसे सदमे भी कम होंगे
सच्चाई तो यही है कि कभी कभी ये आशाएं और अधिकार हताशा में परिवर्तित हो जाते हैं जो बहुत तकलीफ़देह स्थिति होती है इसलिये बेहतर है कि उम्मीदें ही न की जाएं
दिल तो नादाँ है इसे यूँ ही तो बहलाया नहीं जाता
ReplyDeleteजख्म जो दे अपना तो इतना सहलाया नहीं जाता
पता नहीं क्यों दिल पे लगा बैठते है बातों को कुछ इतनी
अमित क्या पता उन्हें कुछ खबर ना रही हो जख्मे दिल की
इस मन को कैसे समझाये ये तो उसी का प्यार करने से बाज नही आता जो उसे हताश करता है
ReplyDeleteआपका कहना भी सही है कि अपेक्षा ना की जाये लेकिन से सम्भव कहाँ है प्रेम है तो अपेक्षा भी निश्चित है
बहुत ही सुन्दर प्रेरणात्मक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रेरणात्मक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकुछ जख्म दिखाये नही जाते
ReplyDeleteकुछ प्रश्न उठाये नही जाते
चुपचाप सह लो दर्दे गम
कुछ् दिल बहलाये नही जाते
बहुत वाज़िब सवाल है मगर वाज़िब जवाब नही। शुभकामनायें।
अपने प्रियजन से अपेक्षाएं तो स्वाभाविक रूप से होती ही हैं लेकिन यह सच है जब बार-बार उपेक्षा होने लगे तो व्यक्ति से समझ जाना चाहिए और अपेक्षा के स्थान पर अपने दिल को मजबूत कर लेना चाहिए। यह जोर जबरदस्ती का सौदा नहीं है।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील विचार .
ReplyDeleteसर सवाल तो सही है पर जितना आसान सा ये सवाल है उतना आसान इसका जवाब नही है। सदियॉ बीत जाएगी फिर भी इसका सही जवाब खोजना आसान नहीं होगा।
ReplyDeleteबशीर बद्र जी के इस शेर से इत्तेफाक है हमारा :
ReplyDeleteपूजने से पत्थर भी देवता हो जायेगा,
इतना मत चाहो उसे वो बेबफा हो जायेगा
satish ji,
ReplyDeleteaapke vichar ache lage padhkar par apki salah mai nahi manungi mai to hamesha srshstha ki chah karti hun, bhalehi mile naa mile......
bahut sundar vichar, sanay mile to idhar bhi nazar mariyega :-
ReplyDeletehttp://taarkeshwargiri.blogspot.com/2011/02/blog-post_23.html
सर , इस दर्द का कोई इलाज नहीं | अगर बस मै होता अपेछायें करना -नाकरना इन्सान के,तो भगवान को कौन याद करता ............
ReplyDeleteकभी-कभी अपने इतना दर्द दे जाते हैं, इतना परायापन भर जाते हैं मन में कि भरी हुई आँखों के आँसू भी उनके नाम पर छलकने से मना कर देते हैं...अपेक्षाएँ मत कीजिए सही कहा आपने...एक कथन याद आ गया सतीश जी जाने कहाँ पढ़ा था - मैंने तुमपर आँखें बन्द कर विश्वास किया और तुमने मुझे ये जता दिया कि मैं अन्धा था...
ReplyDeleteदिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
सच्चाई तो यही है
बहुत ही सुन्दर प्रेरणात्मक प्रस्तुति ।
चोट तो अपनों से ही पहुँचता है. दुश्मन थोड़े ही दिल दुखा सकते हैं. अपेक्षाएं करने से निस्संदेह दुःख मिलता है, पर हम कोई पत्थर तो नहीं कि अपनों से बिल्कुल भी उम्मीद ना करें.
ReplyDeleteलेकिन मुझे लगता है कि कभी-कभी हम अति भावुकतावश या एकांगी सोच के कारण चीज़ों को गलत ढंग से ले लेते हैं. हो सकता है कि सामने वाले की वो मंशा ना रही हो या कोई मजबूरी रही हो... एक बार ठन्डे दिमाग से फिर से सोचिये. खुद को अगले की जगह रखकर देखिये. हो सकता है कि आपका दिल जिस बात से दुखा हो वो बात वैसी ना हो जैसी आप सोच रहे हैं. या हो सकता है कि सामने वाला भी उतना ही दुखी हो जितना आप.
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
सही कहा आपने, पर हमारा हाल तो इससे भी बुरा हुआ....
इस दिल के टुकडे हजार हुये,
कोई पांव तले कुचल गया कोई चार लठ्ठ मार गया
रामराम.
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता. कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता.
ReplyDeleteकोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं,
ReplyDeleteनातों का क्या,
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब,
बातें हैं बातों का क्या...
होगा मसीहा...
होगा मसीहा सामने तेरे,
फिर भी न तू बच पाएगा,
तेरा अपना खून ही आखिर तुझको आग लगाएगा,
आसमान में उड़ने वाले मिट्टी में मिल जाएगा,
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब,
बातें हैं बातों का क्या...
सुख में तेरे....
सुख में तेरे साथ चलेंगे,
दुख में सब मुख मोड़ेंगे,
दुनिया वाले...
दुनिया वाले तेरे बन कर तेरा ही दिल तोड़ेंगे,
देते हैं भगवान को धोखा,
इनसान को क्या छोड़ेंगे,
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब,
बातें हैं बातों का क्या...
जय हिंद...
हरेक के प्यार करने का तरीका भी तो अलग होता है और कुछ आत्माएं देवदास बन कर ही समग्र/तृप्त होती हैं.
ReplyDeleteनहीं होता ... और किसी के कहने से कुछ होता भी नहीं है ... बल्कि कई बार बार तो खीज होने लगती है की हर कोई, सभी ऐसे कह रहे हैं ....
ReplyDeleteसमय अपने आप सब कुछ कर देता है ... बस इश्वर पर विशवास नहीं खोना चाहिए ...
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
बहुत प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति..
कहनें को हम कितना भी 'निस्वार्थ प्यार' कह दें।
ReplyDeleteपर जीवन की यही सच्चाई होती है।
हर प्यार के साथ मोह सलग्न होता है।
"मैनें निस्वार्थ प्यार किया बस इतना मान ले"
यह भी एक अपेक्षा होती है।
किसी से भी जितनी गहनता से लगाव रखें, प्रतिकूलता में दुख भी उसी गहनता से होता है।
अपनों से मिली चोट होती भी ज्यादा गहरी हैं... लेकिन क्या करें!!! प्यार और उम्मीद अधिकार को जन्म देती ही हैं. यह तो कुदरत का नियम है... हम इससे अलग कैसे हो सकते हैं???
ReplyDeleteअर्थात -
ReplyDeleteकर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन:
बहुत ही सुन्दर प्रेरणात्मक प्रस्तुति ।
अर्थात -
ReplyDeleteकर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन:
बहुत ही सुन्दर प्रेरणात्मक प्रस्तुति ।
bilkul sahi kaha bohot gehraee ki baat hai
ReplyDeleteमगर क्या संवेदनशील दिल को समझाना इतना आसान है ??
ReplyDelete-बस, यही तो मजबूरी हो जाती है भाई!!
ummid na rakhe..ye to sahi hai..lekin manav man ye manane ko tayar nahi hota....wo to sirf ummid pe rahta hai..:)...ki har jagah usko sirf aur sirf pyar mile...apekshaayen na ho...aisa ho sakta hai kya?
ReplyDeleteummid na rakhe..ye to sahi hai..lekin manav man ye manane ko tayar nahi hota....wo to sirf ummid pe rahta hai..:)...ki har jagah usko sirf aur sirf pyar mile...apekshaayen na ho...aisa ho sakta hai kya?
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी ,
ReplyDeleteजिन रास्तों पर सहजता से चलते जाते हैं ,उन
रास्तों को कोई याद भी नही करता है । ठोकरें
ही हाथ भी थामती है और राहे भी ।
वैसे एक पुराना गीत है आपने अवश्य सुना होगा
"है इसी मे प्यार की आबरू ,वो ज़फ़ा करे मै
वफ़ा करू ...."
अब ये क्या हुआ ? मगर ये आपकी ही कोई कहानी नहीं है -यह राज की मेरी अपनी और उनकी कहानी भी है -
ReplyDeleteदिल ही तो है न संगो खिस्त दर्द से भर न जाए क्यों
रोयेंगें हम हजार बार कोई हमें रुलाये क्यों ?
कर रहा था गमें जहां का हिसाब
आज वे याद बेहिसाब आये ....
इस दर्द का कोई इलाज नहीं .
ReplyDeleteऐसे सात दिन से तो आप हर दिन भले थे !
ReplyDeleteफिलहाल मुझे मुक्ति की बात संतुलित नज़र आ रही है !
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
बहुत संवेदनशील विचार...
ये सब जीवन के कटु यथार्थ है....कभी ना कभी इनसे दो-चार होना ही पड़ता है...
ReplyDeleteउम्र भर के लिए ये एक सीख दे जाते हैं और दिल को मजबूत भी कर जाते हैं....अगली बार चोट उतनी जोर से नहीं लगती.
हताशा अमूनन अपेक्षा से ही होती है.
ReplyDeleteअपेक्षा मत रखिये .
फिर जितना मिलेगा ,ज़्यादा लगेगा.
जितना मिल रहा है,उतने के लिए भगवान् को धन्यवाद कहना मत भूलिए.
सलाम.
बात सही है गुरुदेव! अपेक्षाओं से ही उपेक्षा का भय बना रहता है!
ReplyDeleteसब शायरी कर रहे हैं,तो एक शेर मेरे ज़हन में भी कुलबुला रहा है.. समाद फ़रमाएँः
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार नहीं,
जहाँ उम्मीद हो इसकी, वहाँ नहीं मिलता!
आप तो ख़ुद ही मुझे सम्वेदनशीलता के इस ख़तरे से आगाह करते रहते हैं, फिर कैसा अफ़सोस!!
सुन्दर विचार सुन्दर आलेख बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर विचार सुन्दर आलेख बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteदिल टूटेगा पर आवाज़ न होगी :(
ReplyDeleteअपेक्षा की दो बेटियाँ हैं
ReplyDeleteआशा और निराशा
तीनो जिस घर में रहती हैं उसका नाम दिल है
दिल कांच का नहीं पारे का बना है
टूटता है तो आवाज नहीं होती
जर्रा-जर्रा बिखर जाता है
जुटता है तो आवाज नहीं होती
हौले-हौले संवर जाता है
सब वक्त-वक्त की बात है
कभी हमारे तो कभी
तुम्हारे साथ है
किसी ने कहा भी है..
धैर्य हो तो रहो थिर
निकालेगा धुन
समय कोई।
....आपकी पोस्ट को पढ़कर जाने क्या लिख गया! कहीं कविता तो नहीं बन गई!
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
टुच वुड ....... मन की बात कह दी आपने.
दिल को छू लिया आपने ।
ReplyDeleteलौहांगना ब्लॉगर का राग-विलाप
मेरा कमेंट तो प्रकाशित हुआ नहीं। मैने तो उस कमेंट की एक पोस्ट भी बना दी!
ReplyDeleteek bahut hi kadwa sach samne le aaye aap jo kabhi na kabhi sabko aahat kar jati hai.
ReplyDelete" दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया ! "
सत्य वचन !
कम शब्दों में सार्थक बात कह दी आपने.
ReplyDeleteअपेक्षाएं तकलीफ का कारण बनती हैं...किसी ने कहा है...
ReplyDeleteनारियल का खोल टूटने पर नारियल को कुछ नहीं होता अगर नारियल खुद को सिकोड़ कर अपने बाह्य खोल से अलग कर ले...और टूटने के पश्चात वो साबुत बचा रहता है...
ek imandar rachana-----
ReplyDeletejo dil ki baat kahati hai----
ki aaj aap ke saath kiya huya ------
jai baba banaras----
is dard ka marham kaha milaga -----
ham jakar le aate hai----
jai baba banaras---
खुदा की कसम जो पी रहा हूँ मैं साकी
ReplyDeleteयदि जहर है तो भी दवा हो जायेगा....
क्या भाई जी दुःख न हो तो सुख का एहसास कैसा.
हमारे प्रिय कवि स्व.रूपनारायण जी कहा करते थे-
ये तो यार दुनिया है ,करवटें बदलती है,
कभी ये फिसलती है कभी ये संभलती है.
नही आराम, नही एक टीस मिल जाती हे, एक ऎसा जख्म जो जिन्दगी भर का दर्द दे देता हे,
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसँभवतः सँदर्भ
वाह से आह तक का है !
कहीं मेरे लिए ही तो नहीं लिखी आपने ये पोस्ट ......
ReplyDelete): ):
पर दिलतो नादां है समझता ही नहीं
उम्र भर का आराम चाहता ही नहीं ......
@यह आवश्यक तो बिलकुल नहीं कि आपका प्यारा भी आपको उतना हो प्यार करे जितना आप कर रहे हों
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा वैसे कहते है की प्यार कभी किसी से अपेक्षाए नही करता है वो तो निस्वार्थ भाव से किया जाता है बिना किसी चीज के इच्छा किये |
अपेक्षा ही हताशा की जननी है. इसके साथ जियें या इसके बिना, इच्छा हमारी ही है.
ReplyDeleteनोट : मेरे उपरोक्त विचार आपके लेख को पढ़ कर ही उत्पन्न हुए हैं जिन्हें मैं "तेरा तुझको अर्पण" वाली तर्ज पर यहाँ टिपण्णी रूप में दर्ज कर रहा हूँ. इस टिपण्णी के पीछे कोई अन्य छिपा हुआ मंतव्य नहीं है. आप इसे उधार में दी गयी टिपण्णी समझ कर प्रतिउत्तर में मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी करने के लिए बाध्य नहीं हैं.
लेकिन यहाँ आगाह करने से कुछ नहीं होता !
ReplyDeleteजब जरुरी नहीं की आपका प्यारा आपको भी प्यार करे तो अपेक्षा यही ख़त्म हो जाती है ..
ReplyDeleteसंवेदनशील लोगों को एक बार चोट लगती है , अगली बार के लिए मजबूत हो जाते हैं ..
अच्छा लिखा है !
कुछ मसले बेहद नाज़ुक और निजी होते हैं उन पर प्रतिक्रया देना अटपटा सा लगता है लेकिन आपकी पोस्ट पढ़ कर रोक नहीं पाई स्वयं को !
ReplyDelete"काँटा निकला पीर गयी !"
जिस प्यार की किसीको कद्र ही ना हो और जो इसका मोल ही ना समझे उसे वहाँ व्यर्थ लुटाने से क्या फ़ायदा ! तकलीफ तो बहुत होती है इसमें कोई शक नहीं लेकिन समय के साथ यह ज़ख्म भी भर ही जायेगा ! शुभकामनायें !
.
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी ,
सच कहा आपने , कभी कभी ऐसा भी होता है की जिसे हम बहुत प्यार करते वो हमें निराश कर देता है । लेकिन ये उस व्यक्ति की समझ का दोष है जिसने प्यार का मोल समझने में भूल कर दी । लेकिन प्यार एक शाश्वत सत्य है । वो व्यक्ति जो भी है , आपसे थोड़े समय नाराज़ तो रह सकता है लेकिन आपके प्यार में इतनी शक्ति है की उसे वापस खींच लाएगी । ऐसा मेरा विश्वास है ।
अपेक्षाएं जीवन का अभिन्न अंग हैं । कभी-कभी यही अपेक्षाएं दिल कों इतनी जोर से निचोड़ती हैं की पिछला सारा दर्द निकल जाता है और एक नयी ऊर्जा का संचार करता है ।
आप हताश मत हुआ कीजिये , मैं उदास हो जाती हूँ।
सादर ,
.
दुख से जूझना दुख देता है, स्वीकार करना शान्ति। स्वीकार कर लीजिये।
ReplyDeleteनहीं सतीश भाई ,
ReplyDeleteअपेक्षा तो करनी ही चाहिए , या फ़िर ये कहिए न कि ये तो स्वयमेव ही हो आती है , किससे , कितनी , क्यों ? ये अलग मसला है ? आखिर अपेक्षाएं टूटेंगी तभी तो उनमें से सत्य और दर्द निकल कर सामने आएगा ..वर्ना जीवन तो सपाट ही चलता जाएगा । इसलिए अपेक्षाएं करते रहिए ..और उन्हें टूटने या पूरा होने के छोड दीजीए ...
ye man ke andar ke bhaw hain...prayah
ReplyDeleteroj hi hum sab samvedanshil prani ko
.....dainik roop se is bhaw ko jina
parta hai......
apekshyayen kyon na hon? ...........
discovery par dekhte hain....kit-patang aur phool-vanaspati me bhi paya jata hai.....
ek baat aap nishit roop se jaan len
harek vyakti ke apne kuch "maulik acharan hain" apki vishit ta kisi se chupi nahi hai.....
lekin mere 'jaiki dada'....kya apne kabhi socha 'ek apke dukhi hone' se
kitne log dukhi hote hain......oon kitno me se kaion ko sayad rone ko kandha bhi na milta ho.....
isi post par aap ek 'light le yaar'
mod me mast tippani den.....nahi to balak kutti pa lega.....
pranam.
pranam.
सतीश जी ! दुखती रग को छेड़ता है आपका लेख
ReplyDeleteदिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
बहुत ही संवेदनशील और प्रेरणादायक विचार ..
अपेक्षा मत करिए !
मैं आपके इस विचार से बिलकुल सहमत हूँ ..अपेक्षा नहीं होगी तो हताशा भी नहीं होगी..
हम प्यार करते हैं प्यार पाने के लिए ! अन्यथा कोई कारण नहीं की जिसे जीवन भर प्यार दिया और जिसके कष्ट को अपना वो हमें कोई चोट पहुंचा सके ! घरेलू इलाज़ तो कोई नहीं इस समस्या का !वैसे ; जब चोट खाया दिल ये बातें समझने लगता है तो उसका दर्द भी कम होने लगता है ! प्रेम अन-कंडीशनल ही होना चाहिए ! बहुत ही अच्छे विचार लिखे हैं आपने !एक सच्चाई ! धन्यवाद
ReplyDelete@ डॉ आराधना चतुर्वेदी,
ReplyDeleteआपकी बात और सलाह दोनों मान ली हैं, यकीनन कष्ट में आराम है ! फीस बताइए कहाँ भिजवानी है ?
आभार !
@ प्रज्ञा ,
ReplyDelete@ - मैंने तुमपर आँखें बन्द कर विश्वास किया और तुमने मुझे ये जता दिया कि मैं अन्धा था...
यही अहसास था प्रज्ञा ! आभार
@ ताऊ रामपुरिया ,
वाकई ताऊ ...आपका दर्द महसूस कर सकता हूँ !
@ सुज्ञ ,
किसी से भी जितनी गहनता से लगाव रखें, प्रतिकूलता में दुख भी उसी गहनता से होता है
अफ़सोस यही रहा अन्यथा दुःख क्यों होता ! आभार आपका
@ संजय झा ,
तुम्हारा अपनापन हर वाकया से झलकता है यार ! क्यों कर्ज़दार बनाते जाते हो !
मैं हमेशा हर बात को हलके में ही लेता रहा हूँ ! दुखी होना मेरे स्वभाव में ही नहीं मेरे भाई ! मगर कई बार कुछ प्यारे ऐसा कर जाते हैं तो सोंचा इस बार ब्लॉग पर साझा करूँ शायद कुछ मित्र सबक लें ! एक अनुरोध है आगे से रोमन में न लिखकर हिंदी में लिखा करो अथवा मैं...
सतीश जी , आपको भी हार्दिक शुभकामनायें ...कमेन्ट तो सभी अच्छा ही करते हैं पर आपका कमेन्ट मुझे एक जिम्मेवारी दे रहा है कि मुझे और बेहतर करना है ... उपरवाले की कृपा .. मुझे भी अपनी हर रचना की उत्सुकता से प्रतीक्षा होती है कि ..अब क्या उतरेगा ..परिणाम आप सबों के सामने है .रही बात आपकी लेखनी की तो ........प्रत्यक्षं किम प्रमाणं..
ReplyDeleteआद. सतीश जी,
ReplyDeleteआपके इस संवेदनशील लेख ने न जाने कितने लोगों को शुकून की रोशनी दी होगी !
आभार एवं शुभकामनाएँ !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteमगर क्या संवेदनशील दिल को समझाना इतना आसान है ??....
ReplyDeleteसमझाना बिलकुल आसान नहीं होता...संवेदना ही तो है जो इंसान को रुलाती भी है, हंसाती भी है।
.....गहन चिन्तनयुक्त विचारणीय पोस्ट ...
aapki yah snavednaa se bhari post kal bhi charchamanch par hogi... bahut sundar aur dard me doobi..
ReplyDeleteअपने प्यारों से अपेक्षा करने को, अक्सर मानवीय कमजोरी बताया जाता है
ReplyDelete.
सही तो है लेकिन यह कमजोरी सभी के पास हुआ करती है. मैंने भी इस ब्लॉगजगत मैं कुछ को अपना मान के अपेक्षा कि और तकलीफ हुई. लेकिन
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !.
'दुःख' और 'दिल' पर इतने अनुकरणीय लोगों के इतने अच्छे विचार आ चुके हैं कि चुप रहना बेहतर होगा फिर भी दिल है कि ससुरा मानता नहीं !
ReplyDeleteधूप-छाँव का खेल भर है जी , और ज्यादा सीरियसली किसी को लीजिये ही न , हाँ मुझे भी , ब्लॉगबुड में रहने के बाद भी यह सीख न आ सके तो समझिये ब्लागरी ने आपके व्यक्तित्व को एकदम 'इनक्रीज' नहीं किया ! :)
देव , अब हबीब पेंटर साब' की यह कौव्वाली गौर से सुनिए , बहुत कुछ कहती है :
http://www.youtube.com/watch?v=47hSVU0ajtg&feature=related
और ... इस तरह से दुःख-चर्चा से कुछ लप्पू-झन्ना/झन्नी भी दुखी नहीं बल्कि खुशी ही होते हैं , काहे मौक़ा देना किसी को जी ! :)
पृष्ठभूमि नहीं मालूम,हम तो इतना मात्र जानते हैं कि जो होता है अच्छे के लिये होता है।
ReplyDeleteबड़े भाई, मस्त रहने का। एक जगह ठोकर लगी तो सफ़र रुकता नहीं।
वैसे पता है कि आप सुधरने वाले हैं नही:)) और बेसिक कैरेक्टर को बदलना आसान भी नहीं।
शुभकामनायें।
बहुत ही सुन्दर प्रेरणात्मक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकभी समय मिले तोhttp://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपनी एक नज़र डालें
कृपया फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये.
जब ज़रूरत से ज्यादा उम्मीदें की जाती हैं तभी हताशा होती है ....
ReplyDeleteकुछ जख्म दिखाये नही जाते
ReplyDeleteकुछ प्रश्न उठाये नही जाते
चुपचाप सह लो दर्दे गम
कुछ् दिल बहलाये नही जाते
बहुत संवेदनशील विचार ...... शुभकामनायें।
दो पंक्तियाँ मेरी तरफ से भी ..
ReplyDeleteये ऋतुओं का बदलना तो, मुझे भी खूब भाता है !
यूँ अपनों के बदलने का,चलन भाया नहीं मुझको !!
अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआशा
सच कहा है आपने. दुख होता है. बहुत दुख होता है.
ReplyDeleteआपने बा ओ सौ आने सच कही
ReplyDeleteमगर ये कहाँ मुंकिन हो पाता है कि बिना किसी उम्मीद के प्यार किया जाय , कम से कम मिलन की उम्मीद तो की ही जाती है ।
और यही कभी कभी उम्र भर के गम का सबब बन जाता है ।
दर्द तो मिट जाते है ऐसा समझ लेते हम भी , गर जख्मों के निशा मिटाने का नुस्खा कोई बता देता ........
प्यार में अपेक्षाएं, दिल का टूटना और फिर उपेक्षा...जीवन भर यही सब तो चलता है।
ReplyDeleteसंवेदना से जुड़ी हुई,विचारणीय,सुन्दर पोस्ट.
ReplyDeleteसतीश जी,नमस्कार !
ReplyDeleteआप की जिंदादिली का कायल हूँ मैं ,
हताशा का नही | मैं यहाँ आप सब से कुछ सीखने आया हूँ | अभी टिप्पणी के तो मैं काबिल ही नही पर आप से उम्र मैं बड़ा होने के नाते एक बात केहना चाहता हूँ ?
लोगो के लिए आप तब तक अच्छे हो ,जब तक आप उनकी उम्मीदों को पूरा करते हो और सभी लोग अच्छे हैं ,जब तक आप उनसे कोई उम्मीद न करो |
खुश और सेहतमंद रहें |
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
..बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
विचारणीय प्रस्तुति. पर आखिर कब तक विचार करें ????
ReplyDeleteमानव जीवन अपेक्षाओं से मुक्त हो ही नहीं सकता.
ReplyDeleteपोस्ट में कुछ अधूरापन सा है...ऐसा लगा कि आप बहुत कुछ कहते-कहते रुक गए
लेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
कहाँ का आराम जनाब ?
जिन्दगी भर कसक बनी रहती है.
सुन्दर पोस्ट है.
आपकी पंक्तियों को कुछ इस तरह पूरा करना चाहूँगा
ReplyDeleteदिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया !
हम जिसे समझ ना सके उम्र भर ,
उसी सवाल से ज़िन्दगी का जवाब मिल गया
तमाम उम्र का आराम मिल गया .................................
सतीश जी, दिल तो बच्चा है जी। समझाएंगे तो मान ही जाए।
ReplyDeleteaapne bahut sahi baat kahi hai , lekin sir , jiska dil tutta hai , wahi to dard ko jaanta hai ... lekin aapke sher ne sahi message pahuncha diya, thode der ki takleef hi sahi , lekin umr bhar ka aaram to mila.
ReplyDeleteaapko bahut saadhuwaad.
vijay
-----------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
एक गुज़ारिश--- लेख की स्याही कुछ गहरी करें, पढ़ने में कठिनाई होती है :)
ReplyDeleteपहली पोस्ट और ये पोस्ट में थोड़ी बहुत समानता भी मुझे इसलिए लगी की आजकल जो हालात देख रहा हूँ अपने आसपास वो लगभग ऐसे ही हैं...
ReplyDeleteऔर आपने अंकल एकदम सही बात कही है...
आपकी पोस्ट से बहुत कुछ सीखने योग्य मिला।
ReplyDeleteप्यार तो प्यार है, दुत्कार से भी कम नहीं होता।
ReplyDeleteजीवन का कडवा सच।
ReplyDeleteabhi tak pyaar nahi hua hain isliye is dard ka ehsaas hi nahi hain
ReplyDeletepyaar nahi hua hain isliye iska ehsaas nahi hain toh aur kuch nahi keh sakti hoon
ReplyDelete