सरल भाषा में ,समीर लाल द्वारा लिखी गयी इस सफल उपन्यासिका का ,पहला अध्याय पढ़कर ही, मन में एक सपना सा जग गया कि अपने ब्लॉग लेखों को एक किताब का रूप दिया जा सकता है !
शिवना प्रकाशन शायद देश में अकेला प्रकाशन संस्थान है जो बेहतरीन ब्लॉग लेखकों का परिचय, आम जनता को कराने में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है ! शायद ब्लोगिंग को प्रोत्साहन देने में, पंकज सुबीर अपनी व्यक्तिगत शक्ति और धन का उपयोग कर, सबसे अधिक हिम्मत का काम कर रहे हैं ! वे वाकई सम्मान के अधिकारी हैं ! काश कुछ और पंकज सुबीर, देश को मिल जाएँ :-)
किताबी फार्म में समीर लाल को पढना बेहद सुखद रहा ! सामान्य भाषा में गर्व रहित उड़न तश्तरी को पढ़ते हुए लगता है कि समीर लाल सामने बैठे बाते कर रहे हैं ! ईमानदारी से कहे सौम्य शब्द, आपको मंत्र मुग्धता की स्थिति का अहसास कराने में कामयाब रहेंगे !!
मांट्रियाल सफ़र में, गाड़ी चलाते समय रास्ते के अनुभव, हमसे बाँटते हुए समीर लाल की शैली की एक बानगी देखें....
" सामने ट्रक को देखता हूँ ! सूअर लदे हैं ! एक छेद से मुंह निकाले ठंडी हवा की मौज लेने की फ़िराक में देखा ! उसे क्या पता कि गंतव्य पर पंहुचते ही मशीन उसे फाइनल नमस्ते कहने का इंतज़ार कर रही है ! उस पर गुलाबी निशान है और बहुतों की तरह ! शायद गुलाबी मतलब , पहला स्टॉप ! तो वहीँ कटेगा और फैक्ट्री में से दूसरी तरफ पैकेट में पैक निकलेगा, पीसेस में बिकने को !
छेद से झांकता सूअर ....
वैसे ये तो हमें भी पता नहीं कि कौन सा निशान हम पर लगा है ......"
इन पंक्तियों द्वारा, लेख़क अनजाने में ही अपने संवेदनशील दिल का परिचय दे देता है ! एक दूसरे से जलते भुनते, हम लोगों की आखिरी शाम कहाँ हो जाये यह कौन जानता है ??
"उजाले अपनी यादों के , हमारे साथ रहने दो !
न जाने किस घडी में जिंदगी की शाम हो जाए !"
शिवना प्रकाशन शायद देश में अकेला प्रकाशन संस्थान है जो बेहतरीन ब्लॉग लेखकों का परिचय, आम जनता को कराने में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है ! शायद ब्लोगिंग को प्रोत्साहन देने में, पंकज सुबीर अपनी व्यक्तिगत शक्ति और धन का उपयोग कर, सबसे अधिक हिम्मत का काम कर रहे हैं ! वे वाकई सम्मान के अधिकारी हैं ! काश कुछ और पंकज सुबीर, देश को मिल जाएँ :-)
किताबी फार्म में समीर लाल को पढना बेहद सुखद रहा ! सामान्य भाषा में गर्व रहित उड़न तश्तरी को पढ़ते हुए लगता है कि समीर लाल सामने बैठे बाते कर रहे हैं ! ईमानदारी से कहे सौम्य शब्द, आपको मंत्र मुग्धता की स्थिति का अहसास कराने में कामयाब रहेंगे !!
मांट्रियाल सफ़र में, गाड़ी चलाते समय रास्ते के अनुभव, हमसे बाँटते हुए समीर लाल की शैली की एक बानगी देखें....
" सामने ट्रक को देखता हूँ ! सूअर लदे हैं ! एक छेद से मुंह निकाले ठंडी हवा की मौज लेने की फ़िराक में देखा ! उसे क्या पता कि गंतव्य पर पंहुचते ही मशीन उसे फाइनल नमस्ते कहने का इंतज़ार कर रही है ! उस पर गुलाबी निशान है और बहुतों की तरह ! शायद गुलाबी मतलब , पहला स्टॉप ! तो वहीँ कटेगा और फैक्ट्री में से दूसरी तरफ पैकेट में पैक निकलेगा, पीसेस में बिकने को !
छेद से झांकता सूअर ....
वैसे ये तो हमें भी पता नहीं कि कौन सा निशान हम पर लगा है ......"
इन पंक्तियों द्वारा, लेख़क अनजाने में ही अपने संवेदनशील दिल का परिचय दे देता है ! एक दूसरे से जलते भुनते, हम लोगों की आखिरी शाम कहाँ हो जाये यह कौन जानता है ??
"उजाले अपनी यादों के , हमारे साथ रहने दो !
न जाने किस घडी में जिंदगी की शाम हो जाए !"
सही कह रहे हैं ……………समीर जी का प्रस्तुतिकरण बेहद शानदार और सहज है जल्दी ही आत्मसात हो जाता है।
ReplyDeleteवाह....congrats सतीश चाचा :)
ReplyDeleteदेख लूँ तो चलू का हमे भी इंतजार है
ReplyDeleteआभार
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये
ReplyDeleteसच ही है! एक "उड़न तशतरी" ले ही जाने वाली है, हर किसी को।
sach to hai...
ReplyDeleten jane kis gali me zindagi ki shaam ho jaye
जहाँ देखो वहीं चर्चा! लगता है इस पुस्तक को पढ़ना ही पड़ेगा। मिलेगी कहाँ?
ReplyDeleteपोस्ट पढ़कर मन कर गया कि पुस्तक पूरी पढ़ूँ...
ReplyDeleteजहाँ देखो वहीं चर्चा ! लगता है इस पुस्तक को पढ़ना ही पड़ेगा। मिलेगी कहाँ?
ReplyDeleteमैं भी पढने की जिज्ञासा लिए हूँ .....देखूं तो सही जरा
ReplyDeleteजीवन का ऐसा यथार्थ जिसे हर समय हर किसी को याद रहना चाहिये-
ReplyDeleteन जाने किस घडी में जिंदगी की शाम हो जाए !
आभार सहित...
SAmir Ji ka andaj hi juda hai !!
ReplyDeletesachhi-muchhi baat..........
ReplyDeletepranam.
शाम कभी हो, उम्मीदों का सबेरा रोज होता रहे.
ReplyDeleteसमीर लाल जी की संवेदना सुकून से पढ़ेंगे, कल यात्रा में।
ReplyDeleteएक ठो प्रति का इंतज़ार हमें भी है ..समीर जी की लेखन शैली वाकई प्राभावशाली है .
ReplyDeletesameer bhaiya ko pata hota hai, pathak ke nabj ka, jaise aapko...tabhi to aap log ko ham sammaniya blogger samajhte hain...:)
ReplyDeletesameer bhaiya ko pata hota hai, pathak ke nabj ka, jaise aapko...tabhi to aap log ko ham sammaniya blogger samajhte hain...:)
ReplyDeletehame intzaar hai sameer bhaiya ke iss book ka..:)
sameer bhaiya ko pata hota hai, pathak ke nabj ka, jaise aapko...tabhi to aap log ko ham sammaniya blogger samajhte hain...:)
ReplyDeletehame intzaar hai sameer bhaiya ke iss book ka..:)
sachchi baat ...
ReplyDeletesameer ji ka lekhan hi aisa hai ki har rachna padhne ko man kare.
समीर जी का लेखन पाठक को बाँध कर रखता है ..हल्के फुल्के अंदाज़ में गहन संवेदनशीलता की बात
ReplyDeleteकह देते हैं ...
बिल्कुल सही कहा है आपने ।
ReplyDeleteबहुत चर्चा है, आज पढनी शुरू करूंगा!
ReplyDeletemai bhi jarur padna
ReplyDeletechahugi
..
mai bhi jarur padna
ReplyDeletechahugi
..
बहुत उत्सुकता है श्री समीर लाल जी की पुस्तक पढने की ।
ReplyDeleteसमीर लाल जी की पुस्तक की समीक्षा शास्त्री जी के ब्लॉग पर पढ़ी थी और वहां टिप्पणी भी दी थी.आपके ब्लॉग की इस पोस्ट पर उनके बारे में और जानने का मौका मिला,अच्छा लगा.मेरी ओर से उन्हें पुनः पुस्तक की बधाई. ईश्वर उनकी रचनाधर्मिता और सहृदयता को बरक़रार रक्खे ताकि वो समाज को और अधिक दे सकें.
ReplyDeleteवाकई शानदार लेखन है ।
ReplyDeleteहमें तो पुस्तक मिली और एक ही बैठक में पूरा पढ़ गया। समीर जी को नेट पढ़ने का आनंद तो सभी ब्लॉगर्स को मिलता ही है लेकिन पुस्तक में एक के बाद एक कई पोस्टों को सूत्रवत पढ़ने का अलग मजा आया।
ReplyDeleteएक चुटकुला इसी उपन्यासिका से-
एक सेठ जी मर गये। उनके तीनॊ बेटे उनकी अंतिम यात्रा पर विचार करने लगे। एक ने कहा ट्रक बुलवा लेते हैं। दूसरे ने कहा महँगा पड़ेगा। ठेला बुलवा लें। तीसरा बोला वो भी क्यूँ खर्च करना। कंधे पर पूरा रास्ता करा देते हैं। ठोड़ा समय ही तो ज्यादा लगेगा। इतना सुनकर सेठ जी ने आँखें खोली और कहा कि मेरी चप्पल ला दो, मैं खुद ही चला जाता हूँ।
बहुत आभार इस स्नेह का मित्र. आगे काम करते रहने के लिए आप लोगों से ही प्रोत्साहन मिलता है. ऐसा ही स्नेह बनाये रखिये.
ReplyDeleteएक दूसरे से जलते भुनते, हम लोगों की आखिरी शाम कहाँ हो जाये, यह कौन जानता है ?
ReplyDeleteसही बात है, हम सब अपने-अपने अहंकार के ट्रक में सवार हैं।
समीर जी को उनकी क़िताब के प्रकाशन के लिए बधाई।
समीरजी का लेखन बहुत प्रभावित करता है..... आपने सुंदर बानगी साझा की किताब से आभार
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ कर पुस्तक पढने की जिज्ञासा बढ़ गयी है...
ReplyDeleteसही कह रहे हैं,वाकई यह समीर जी की अनुपम कृति है.आपको पस्तुति हेतु पुनः धन्यवाद.
ReplyDeleteसुबीर जी को ज्ञानपीठ भी पुरस्कृत कर चुकी है उनकी कृतियों के लिए। वैसे, समीर जी को कोई धनाभाव तो है नहीं, हां- एक अच्छे प्रकाशक की सहायता ज़्ररूर मिल गई है। सोचा था पुस्तक देख लूं तो चलू पर क्या करें बिना देखे ही चल रहे हैं :)
ReplyDeleteमैं भी इंतज़ार कर रहा हूँ पुस्तक का मुझ तक पहुचने का.
ReplyDeleteआपने पुस्तक को पढने की जिज्ञासा जगा दी है.ढूंढता हूँ कहीं.
ReplyDeleteसलाम
समीर लाल जी की पुस्तक पढने की उतकंठा बढती जा रही है,
ReplyDeleteसमीर लाल जी को उपन्यासिका के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteप्रिय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
आप लगातार विविधरंगी पोस्ट्स का उपहार देते रहते हैं … बहुत साधुवाद के पात्र हैं ।
समीर जी को भी बधाई !
और
पंकज सुबीर जी को भी धन्यवाद !
…और अब इंतज़ार करेंगे आपकी पुस्तक का :)
इससे पहली आपकी अगली पोस्ट का तो इंतज़ार रहेगा ही रहेगा …
प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
प्रणय दिवस मंगलमय हो ! :)
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत जल्द मैं भी समीक्षा लिखने की तैयारी में हूँ.. समीर जी ने मुझे भी यह काम सौंपा है!!
ReplyDeleteजिनके पास पुस्तक नहीं है, उनमें से जो मित्र पुस्तक क्रय करके पढ़ना चाहते हैं, वे तुरंत nukkadh@gmail.com पर मेल भेजकर पूरी प्रक्रिया की जानकारी ले लें। यह सूचना देश में मौजूद देशी साथियों के लिए है। विदेशियों के लिए तो समीर भाई हैं ही।
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगिंग का वेलेंटाइन डे है आज
वैसे पुस्तक क्रय करके पढ़ने का अलग आनंद है,और मैं इस आनंद से इस पुस्तक के संबंध में वंचित रहा हूं पर आप इस आनंद से सराबोर हो सकते हैं।
मिने भी पढ़ा है उन्हें...मज़ा आता है....सही में लगता है कि बात ही कर रहे हैं....संस्मरण लिखते हैं तो लाजवाब....
ReplyDeleteआपने पुस्तक को पढने की जिज्ञासा जगा दी
ReplyDeleteमैं भी इंतज़ार कर रहा हूँ पुस्तक का मुझ तक पहुचने का.
सतीश भाई,
ReplyDeleteसमीर जी को इस बार मिलने के बाद और अच्छी तरह जानने का मौका मिला...व्यवहार और लेखनी दोनों से समीर जी ने साबित किया है...सिक्के भले ही खनखनाहट से कितनी भी आवाज़ करें लेकिन मूल्य नोट का ही ज़्यादा होता है...और नोट कभी कोई आवाज़ नहीं करता...
जय हिंद...
सतीश जी,
ReplyDeleteसमीर जी की पुस्तक पढ़ने की इच्छा बलवती होती जा रही है !
कहाँ उपलब्ध है कृपया सूचित करने की कृपा करें !
पुस्तक के लिंक कहीं दिख गये है सो देखी जायेगी पर आपसे उम्मीदें जाग रही हैं ! अग्रिम शुभकामनायें !
ReplyDeleteएक बार पढ ली दूसरी बार पढनी है मन नही भरता पढते हुये।ीस से अधिक क्या कहूँ\ शुभकामनायें।
ReplyDeleteसतीष जी बहुत अच्छी तरह से आपने पुस्त क के तथा प्रकाशन के बारे में लिखा है । मैं 7 दिनों से बाहर था । दिल्ली
ReplyDeleteयमुना नगर तथा उधर के कई जगहों पर साहित्यिक समारोंहों में भाग लेता हुआ आज ही लौटा हूं और आते ही आपकी ये मेल देख कर दिल बाग बाग हो गया । आभार ।
सुबीर
पुस्तक वाकयी में बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteभाग्यशाली है आप, मुझे तो किताब मिली ही नहीं पढे क्या और बोले क्या ??ॉ
ReplyDeleteबहुत ही रोचक पुस्तक है...एक बैठक में ख़त्म की जाने वाली...
ReplyDeleteसमीर जी को बधाई एवं शुभकामनाएं
सारा ब्लॉग जगत देख रहा है इसे।
ReplyDeleteवैसे शिवना प्रकाशन के अलावा हिन्दयुग्म ने भी इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किये हैं।
---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
AIIAS
ReplyDeleteNational Integration and communal Harmoney
in Mailanker Hall, Vithal Bhai patel House, Rafi Marg,-----on---24-02-2011--at---4.30 pm--to--9.30 pm
ब्लॉग पर आना सुखद रहा |भाई सतीश जी इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए आभार |
ReplyDeleteसतीश जी मैंने तो सभी बड़े बड़े लेखकों कि किताबें फ़ोकट में यार दोस्तों से उधार मांग कर ही पढ़ी हैं. अब देखें कि समीर जी कब मेरी इस लिस्ट में शामिल होते हैं.
ReplyDeleteइतनी संक्षिप्त समीक्षा -पहले न कभी देखी न सुनी -ट्रेंड न बन जाय और आप ट्रेंड सेटर :)
ReplyDeleteचलिए आपने अच्छा किया -इस पुस्तक के समीक्षा यग्य में अपना अकिंचन हविदान देकर ...
मेरी तो आँख का आपरेशन हुआ था नहीं तो एक प्रति मैं भी मंगाता उस समय !
इतनी संक्षिप्त समीक्षा -पहले न कभी देखी न सुनी -ट्रेंड न बन जाय और आप ट्रेंड सेटर :)
ReplyDeleteचलिए आपने अच्छा किया -इस पुस्तक के समीक्षा यग्य में अपना अकिंचन हविदान देकर ...
मेरी तो आँख का आपरेशन हुआ था नहीं तो एक प्रति मैं भी मंगाता उस समय !
हम भी पढ़ना चाहेगे उड़नतश्तरी..........
ReplyDeleteबहुत आभार आपका जानकारी देने के लिये, वैसे इस पोस्ट पर आई खुशदीप जी की टिप्पणी ने बहुत कुछ कह दिया. बहुत शुभकामनाएं भतीजे खुशदीप को.
ReplyDeleteरामराम.
मैं भी पढने की जिज्ञासा लिए हूँ | इस पुस्तक को पढ़ना ही पड़ेगा !
ReplyDeleteउजाले हमारी यादों के हमारे साथ रहने दो |
ReplyDeleteन जाने किस गली मै जिंदगी की शाम हो जाये |
जिन्दगी को हकीक़त से मिलवाती रचना |
’पढ़ने को मिलेम तो कहूँ’:))
ReplyDeleteइतना तो मालूम ही है कि मस्त होगी पढ़ने में।
ReplyDeleteमैंने भी पढ़ा, यदि पाठक अपने में से ब्लॉगर तत्व अलग करके एक आम पाठक की तरह पढ़े, तो प्रभावित हुये बिना न रह पायेगा । इसे उपन्यासिका कहूँ या सँस्मरणिका यह तय नहीं कर पा रहा हूँ । कुल मिला कर इसमें सरल और सुखद पठन का अच्छा समन्वय है !
Q: अरविन्द जी, काहे लिये आँख खुलवाये लिहे, हो ?
ब्लॉग पर आना सुखद रहा|वाह भाई वाह...
ReplyDelete"उजाले अपनी यादों के , हमारे साथ रहने दो !
न जाने किस घडी में जिंदगी की शाम हो जाए !"
वाकई बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं आप!
लगता है इस पुस्तक को पढ़ना ही पड़ेगा।परन्तु यह मिलेगी कहाँ?
कनाडा के दो परम आदरणीय ब्लोगर्स (मेरे लिए शुरूआती परिचय यही है) आदरणीय समीर जी और आदरणीया अदा दीदी से बेहद प्रभावित हुआ हूँ .. बहुत दिनों से दोनों के ही ब्लॉग पर नहीं जा पाया हूँ :( मेरी भी मजबूरी है .... ब्लोगिंग का आधे से ज्यादा समय "प्रवचन" [मेरा दिया शब्द नहीं] देने में जाता है
ReplyDeleteसुखद आश्चर्य होता है ....
इस बात पर की इतने सारे नित्य नवीन दृष्टिकोण कैसे जनरेट होते हैं
और ....इस बात पर भी हम सबको को ये ब्लॉग पर "फ्री ऑफ़ कोस्ट" में पढने को मिलते हैं
ये तो थी दिल की बात ...
.. अब कमेन्ट पोस्ट पर (कोपी पेस्ट कर रह हूँ आदरणीया संगीता जी की ने वही बात कह दी जो मैं कहता )
~~~~~~~~~
समीर जी का लेखन पाठक को बाँध कर रखता है ..हल्के फुल्के अंदाज़ में गहन संवेदनशीलता की बात कह देते हैं ...
~~~~~~~~~~
और अब ...... मैंने रुख किया .. अपने फेवरेट ब्लोगर्स में से दो फेवरेट ब्लोगर्स के ब्लोग्स की ओर .. इस पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद
आस्थावान ध्यान दें ~~~~~ स्वामी विवेकानंद की आवाज और सच
समीर अंकल की यह बुक तो मैंने भी देखी है..बढ़िया है.
ReplyDelete______________________________
'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !
jala lo dil ko----------
ReplyDeletejai baba banaras-------
शिवना प्रकाशन शायद देश में अकेला प्रकाशन संस्थान है जो बेहतरीन ब्लॉग लेखकों का परिचय, आम जनता को कराने में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है ! शायद ब्लोगिंग को प्रोत्साहन देने में, पंकज सुबीर अपनी व्यक्तिगत शक्ति और धन का उपयोग कर, सबसे अधिक हिम्मत का काम कर रहे हैं !
ReplyDeleteपंकज सुबीर जी को भी बधाई ...इस पुस्तक की .....!!
छेद से झांकता सूअर ....
ReplyDeleteवैसे ये तो हमें भी पता नहीं कि कौन सा निशान हम पर लगा है ......"
और सब अपनी अपनी तरह से छेद से बाहर मुंह निकाल कर सांस लेने की कोशिश कर रहे हैं... है ना ?
समीर जी के लिए तो कुछ मुझे बेमानी लगता है क्योंकि यह तो सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा।
ReplyDeleteआपका लेख भावपूर्ण है
किसी जीवन की शाम कब,कहां,किस तरह हो जाये ये कौन जानता है?
समीर जी की पुस्तक के बारे में सुंदर परिचयात्मक आलेख. समीर जी को पुस्तक-प्रकाशन पर हार्दिक बधाई और इस परिचयात्मक आलेख के लिए आपका आभार .
ReplyDeleteवाह समीर लाल जी को पढवा कर बडा अच्चा काम किया आपने । किताब- देख लूँ ते चलूँ, कब आ रही है ।
ReplyDeleteसमीर जी के इस सम्वेदनशील हृदय को प्रणाम!!
ReplyDeleteवस्तुतः ऐसी सम्वेदना जब हृदय से प्रकट होती है, तो जीवन के प्रति करूणा का प्रसार करती है।
यह मात्र रची गई सम्वेदनाएं नही, जी गई, भोगी गई सम्वेदनाएं है।
सतीश जी का आभार प्रकट करते हुए कि आपनें उपन्यास की चर्चा के संग लेखक के सम्वेदनशील हृदय से भी सक्षात्कार करवा दिया।
main bhi vandana ji ki baaton se sahmat hoon ,unki rachna badi sundar aur sahaj hoti hai .is pustak ko apne mitr ke yahan lekar dekhi rahi pasand aai .
ReplyDeleteकिताब मुझे भी मिली समीर चचा से... बस उन्हीं की लाइन्स दोहराउंगा कि उनकी कहानियां लिखी नहीं जातीं, 'उग आती हैं'......
ReplyDeleteहलके अंदाज़ में समीर भाई ने गहरी बात लिखी है ...
ReplyDeleteसतीश जी आपकी प्रतिक्रिया भी जोरदार है ... मज़ा आ गया आपकी समीक्षा पढ़ कर ...
पंकज जी,ब्लॉग रत्न है जो अपने मेहनत से बहुत से ब्लॉगर्स को कहानीकार और ग़ज़लक़ार बना दिए हैं.. उनका सहयोग और मार्गदर्शन अतुलनीय है..
ReplyDeleteसमीर जी के बारे में क्या कहूँ..उनके व्यक्तित्व को नमन करता हूँ....पुस्तक का इंतजार है...
sahi kaha aapne
ReplyDeleteब्लॉग लेखन को एक बर्ष पूर्ण, धन्यवाद देता हूँ समस्त ब्लोगर्स साथियों को ......>>> संजय कुमार
''वैसे ये तो हमें भी पता नहीं कि कौन सा निशान हम पर लगा है ''
ReplyDeleteadbhud tarike se dhyan khinchti hain ye panktiyan..........aur pustak ka wah ansh bhi bahut hi khubsurti se likha hai lekhak ne..............
समीर जी का लेखन रोचक और आकर्षक है ... अपने ही अलग अंदाज़ में वो गहन संवेदनशीलता की बात कह जाते हैं ...
ReplyDeleteआज फ़िर कोई मेहमान ही मिला यहाँ...
ReplyDeleteसमीर जी की इन पंक्तियों से मिलवाने का बहुत-बहुत धन्यवाद...
I s nayi aur rochak jankaari ke liye abhar Satishji!
ReplyDeleteआज फिर देखा..मन भावविहिल हो उठा!!
ReplyDelete