डॉ अरविन्द मिश्रा की एक पोस्ट मैं भुला नहीं पाता ! निस्संदेह सोम ठाकुर के लिखे इस अमर गीत नजरिये हो गए छोटे हमारे की एक एक लाइन, आज के समाज और वातावरण पर बिलकुल सटीक उतरती है ! मगर आज इस पोस्ट लेखन का कारण ,यह महान गीत कम, बल्कि इसके दोनों गायक अधिक हैं !
खाली समय में, इंग्लिश मीडियम में पढ़े अधिकतर नवजवानों की रुचि, माता पिता का साथ देने में कम और इंग्लिश उपन्यास अथवा पाश्चात्य संगीत में अधिक रहती है ! अधिकतर इस झुकाव का कारण कॉन्वेंट शिक्षा परिवेश में भारतीय संगीत, भाषा और संस्कारों की उपेक्षा रही है !
आज के व्यस्त समय और समाज में, जहाँ पिता और वयस्क पुत्र के बीच संवाद होना भी, कम आश्चर्य नहीं माना जाता वहीँ एम एस रमैया कॉलेज बंगलुरु का मैनेजमेंट क्षात्र कौस्तुभ द्वारा, अपने पिता डॉ अरविन्द मिश्र का, एक हिंदी गाने में संगत देना, एक सुखद आश्चर्य है !
निस्संदेह इस युग्म गीत के जरिये, अरविन्द जी के परिवार में प्यार और स्नेह के अंकुर नज़र आते हैं ! मुझे आशा है पिता पुत्र का यह प्यार प्रेरणास्पद रहेगा !
खाली समय में, इंग्लिश मीडियम में पढ़े अधिकतर नवजवानों की रुचि, माता पिता का साथ देने में कम और इंग्लिश उपन्यास अथवा पाश्चात्य संगीत में अधिक रहती है ! अधिकतर इस झुकाव का कारण कॉन्वेंट शिक्षा परिवेश में भारतीय संगीत, भाषा और संस्कारों की उपेक्षा रही है !
आज के व्यस्त समय और समाज में, जहाँ पिता और वयस्क पुत्र के बीच संवाद होना भी, कम आश्चर्य नहीं माना जाता वहीँ एम एस रमैया कॉलेज बंगलुरु का मैनेजमेंट क्षात्र कौस्तुभ द्वारा, अपने पिता डॉ अरविन्द मिश्र का, एक हिंदी गाने में संगत देना, एक सुखद आश्चर्य है !
निस्संदेह इस युग्म गीत के जरिये, अरविन्द जी के परिवार में प्यार और स्नेह के अंकुर नज़र आते हैं ! मुझे आशा है पिता पुत्र का यह प्यार प्रेरणास्पद रहेगा !
पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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सतीश जी आप भी न... :)
अब बेटे द्वारा पिता के साथ गायन... वह भी अपनी मातृभाषा में ही... मुझे तो कोई आश्चर्य नहीं दिखता इसमें...
पुत्र पिता से हर मामले में आगे रहे... इसी कामना के साथ...
...
sach kaha sir aapne...:)
ReplyDeleteहम्म... युवा पीढी के बारे में सहमती है, मैंने भी कुछ लोगों को ऐसा देखा है... but exceptions are everywhere...
ReplyDeleteपर कभी-कभी ऐसी स्थिति माता-पिता का बच्चों के साथ communication-gap के कारण भी होता है...
अरविन्द जी से उनके पूरा के साथ के संगत दिए गीत और सुनने को मिलें...
अधिकतर इस झुकाव का कारण कॉन्वेंट शिक्षा परिवेश में भारतीय संगीत, भाषा और संस्कारों की उपेक्षा रही है !
ReplyDeleteso all indians should educate their children in goverment schools and i am sure you must have also done the same
seems indians have a habit to critisize and you are no different
प्रिय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteमेरे पूज्य पिताश्री मेरे प्रति मित्रवत व्यवहार रखते थे , और मैं भी अपने तीनों बेटों का दोस्त हूं ।
बच्चे मेरे साथ शालीनता और मर्यादा में कभी चूक नहीं करते , मुझे भी अपने पिताजी का मन में डर अवश्य रहता था ।
संस्कार और संतुलित शिक्षा हो तो पिता पुत्र का प्यार ज़्यादा आश्चर्य की बात नहीं ।
डॉ अरविन्द मिश्रा की वह पोस्ट मुझे भी अच्छी लगी थी … और आपकी पोस्ट भी ।
मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जी सच है ..हमारी दृष्टि संकीर्ण हो गयी है .....शीर्षक सार्थक है ....आपका आभार
ReplyDeletelike father like son....
ReplyDeletepranam.
पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।
ReplyDeleteपिता-पुत्र में ये स्नेह भाव तभी बना रह सकता है ,जब उनमें मित्र भाव पनप जाये । वैसे सच में देखा जाये तो यही मित्र भाव किसी भी संबन्ध की लम्बी उम्र के लिये आवश्यक है ।
ReplyDeleteसादर.
बादशाहों का दिल जब जिस पर न आ जाय :)
ReplyDeleteबच्चे कान्वेंट में पढ़े जरुर हैं मगर उनका दिल तो पूरा देशी है ..
और मुझे भी सुखद आश्चर्य होता है कि वे राम चरित मानस में भी
रूचि रखते हैं -जो शिक्षा आपको अपनी जड़ों से अलग कर दे -वह
अंततः बड़ी ही पीड़ा दायक होती है !
नयी पीढी के अच्छे संस्कार बने रहें, इसके लिए जिम्मेदार पीढ़ी को अपना योगदान सम्यक रूप से देना ही होगा. वरना नयों का क्या दोष.
ReplyDeleteअगर हमारी शिक्षा संस्कार सही हैं तो बच्चे जरुर साथ देंगे ..
ReplyDeleteपिता पुत्र का प्यार बना रहे शुभकामनाये.
'सुखद आश्चर्य', सुखद तो है, लेकिन मेरी नजर में आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं.
ReplyDeleteपुत्र पिता का अनुसरण करता है कि नहीं ,उनके द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करता है कि नहीं ,उनके साथ सुर संधान करता है कि नहीं ,इससे भी ज़रुरी है कि वह एक सभ्य सुसंस्कृत विद्यार्थी और अपने कैरियर के लिए समर्पित व्यक्तित्व हो ! चि.कौस्तुभ के लिए अपरिमित आशीष !
ReplyDeleteअरविन्द जी को भी शुभकामनायें !
आपने अच्छा किया जो बता दिया । एक बात तो तय है किं मिश्रा जी और उनके सुपुत्र बड़े अच्छे गायक हैं ।
ReplyDeleteसाथ गाकर उन्होंने पारस्परिक प्रेम का परिचय दिया है ।
PITA -PUTRA KA PREM HAMESH BANA RAHANA HI CHAHIYE. ISME DO RAY NAHI.
ReplyDeleteकौस्तुभ भी जीवन्त व्यक्तित्व हैं, अपने पिताजी की ही तरह।
ReplyDeleteपण्डित जी और उनके सुपुत्र की जुगलबंदी उनके ब्लॉग पर सुनी थी... अद्भुत अनुभव था.. मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा.. और ये मेरा तुम्हारा, जब पिता पुत्र हों...तो हमारा अवश्य एक आदर्श परिवार होगा.. संस्कार तो घर में पढ़ाए जाते हैं, न कॉनवेण्ट स्कूल में न सरकारी स्कूलों में!!
ReplyDeleteअरविंद जी के आसपास अनेक रंग बिखरे हैं। वह तो उनका बेटा ही है। फिर कैसे न गवैया बने।
ReplyDeleteपारिवारिक वातावरण मंगलमय बना रहे।
आपकी पोस्ट बहुत रोचक है।
यह मेरा भी पसंदीदा गीत है,पिछले दो दशकों से हम सब इसको गाते-गुनगुनाते रहे हैं.
ReplyDeleteजहाँ तक सह गायन की बात है -यही तो हम सब की संस्कृति और परम्परा है.
पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।
ReplyDeleteसुखद अनुभूति हुई जानकर...... यह आपसी समझ , सम्मान और प्रेम हमेशा बना रहे...शुभकामनायें
ReplyDeleteसच कहा जुगलबंदी उम्दा है पर यह संयोग आज भी इतना आश्चर्यजनक नहीं. घर से मिले संस्कार कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने से भी आसानी से धुंधले नहीं पड़ते, हाँ कुछ अपवाद हो सकते हैं.
ReplyDeleteअच्छे संस्कार का पेड लगाया है तो फल भी मीठा ही होगा ना :)
ReplyDeleteपिता पुत्र का प्रेम बना रहे।
ReplyDeleteजानकर बहुत अच्छा लगा .यों भी कलाओं के अनुशीलन में पीढियाँ एक, दूसरे की पूरक बन जाती हैं -वही हो !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteअरविन्द जी और उनके सुपुत्र के बीच यह संवाद सभी के लिए प्रेरणा है.आप बड़ी खूबी से छोटी-छोटी प्रेरणास्पद बातों को महत्वपूर्ण बना देते हैं.
पिता-पुत्र का यह प्यार दूसरों को प्रेरणा दे, यही कामना है.
@Anom,"seems indians have a habit to critisize and you are no different "
ReplyDeleteindians =Indians
critisize=criticize
So you proved that you are also an Indian!:)
बहुत अच्छी बात याद दिला दे आपने....वो बहुत मस्त है....
ReplyDeleteऔर पुत्र में पिता के गुणसूत्र तो होंगे ही...
@am
ReplyDeletecapitals are not used on net
and as such could not find any paragraph break in ur comment
now what is ur
= your
and yes i am an indian , a proud one
who believes that education whether imparted in english or hindi is for the betterment of the child
critsize { now try to translition for this and you will find its better then criticize }
and by the way
am = arvind mishra
slags and shortkuts { yep cut is old fashioned but how will you @54 know :}
सुखद अनुभूति हुई जानकर......पिता पुत्र का प्रेम बना रहे।
ReplyDeleteयह संस्कारों का प्रभाव है| पिता पुत्र का प्रेम तो हमेशा ही रहता है मग़र साथ साथ गायन बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteपिता के साथ पुत्र द्वारा स्वर देने की यह शुरुआत एक सिलसिला बन जाए, एक परम्परा बन जाए, यही कामना है।
ReplyDeleteप्रेरणादायी विचार पोस्ट के लिए बधाई। विनय का जीवन में बड़ा महत्व है। कबीर की ’साखी और तुलसी की विनय-पत्रिका’ मे तद्विषयक अनेक बातें कही गई हैं। विनय से बहुत कुछ मिलता है। विशेष कर अपनों अग्रजों एवं गुरुजनों से.........।
ReplyDeleteकृपया बसंत पर एक दोहा पढ़िए......
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
भाई सतीश जी सादर नमस्कार |बहुत बढ़िया लिखा है आपने बधाई |
ReplyDeleteआद.सतीश जी,
ReplyDeleteपिता पुत्र को शुभकामनाएं !
समाज की अच्छी, अनुकरणीय बातें लोगों के सामने लाकर आप जो नेक काम कर रहे हैं उसके लिए धन्यवाद !
नयी पीढी के अच्छे संस्कार बने रहें पिता पुत्र का प्यार बना रहे शुभकामनाये.
ReplyDeletesatish ji geet sunne ko kab milega.
ReplyDeleteअगर हमारी शिक्षा संस्कार सही हैं तो बच्चे जरुर साथ देंगे .....
ReplyDeleteबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...
पिता-पुत्र के बीच संवादहीनता के शहरी और ग्रामीण संदर्ब प्रायः अलग होते हैं। किंतु इसमें संदेह नहीं कि बच्चे की उम्र के साथ जो दूरी बढ़ती जाती है कथित आत्मनिर्भरता या परिपक्वता के कारण,वही आगे चलकर उच्छृंखलता का कारण बनती है। इसलिए,ऐसे प्रयासों से ही हम सिद्ध कर पाएंगे कि एक उम्र विशेष के बाद पिता-पुत्र का रिश्ता मित्रवत् होता है,होना चाहिए।
ReplyDeletehamen to apne sanskar par naaz hai ..hamari santati bhi jarur legi ..bharosa hai... sundar post.
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